मिर्च की फसल में प्रमुख रोग कौन से हैं?
देश में मिर्च की खेती अधिकतर राज्यों में की जाती है.जिसमें से आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान प्रमुख हैं.
लेकिन मिर्च की खेती में कई बार किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. क्योंकि इसमें कई प्रकार के रोग लग जाते हैं. जिससे ऊपर काफी कम होती है.
यदि किसान भाई समय रहते इन लोगों की पहचान करके इनकी रोकथाम का इंतजाम कर लें. तो वह अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं. तो आइए जानते हैं, मिर्च की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग कौन कौन से हैं. और किसान भाई उनका प्रबंधन किस प्रकार से कर सकते हैं. आइए जाने पूरी जानकारी-
मिर्च की फसल आर्द्रगलन रोग
आर्द्रगलन रोग मिर्च का प्रमुख रोग है. मिर्च की इस रोग की शुरूआत पौधशाला से ही हो जाती है. इस रोग का मुख्य कारक एक भूमिजनित फफूंद पीथियम एफानीडरमेटस होता है. इस फफूंद रोग के कारण पौधे उगने से पहले ही या उगने के कुछ दिनों बाद मर जाते हैं.
मिर्च के पौधे जब उगने से पहले ही मर जाते हैं. तो किसान को लगता है, कि बीज का जमाव काम हो रहा है. उन्हें इस रोग के बारे में जानकारी नहीं होती है. लेकिन जब पौधे निकलने के बाद रोग का प्रभाव होता .है तो वह रोग से ग्रसित होकर गिर कर मर जाते हैं. क्योंकि ऐसे पौधों का जमीन की सतह के समीप वाला भाग प्रभावित तना मुलायम हो जाता है. जब रोग का प्रभाव बढ़ता है. तब तना सिकुड़ जाता है और पौधा गिर जाता है.
इस रोग का मुख्य कारण पौधशाला में अधिक नमी, पौधों की अधिक संख्या तथा बढ़ा हुआ तापमान आदि मुख्य कारक होते हैं.
रोग की रोकथाम करें ऐसे
- मिर्च की बिजाई से पूर्व मिर्च के बीजों को उपचारित करना चाहिए. इसके उपचार के लिए कैप्टान या थीरम द्वारा 25 ग्राम प्रति किलो बीज में मिलाकर करना चाहिए.
- फिर पौधे उठने पर पश्चात उन्हें गिरने से बचाने के लिए नर्सरी की सिंचाई कैप्टान 0.2% 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर करना चाहिए यदि आवश्यकता पड़े, तो पुनः इस फफूंदी नाशक का उपयोग करना चाहिए.
- मिर्च की पौधशाला तैयार करते समय पौधों की संख्या को नियंत्रित रखना चाहिए और पौधशाला में बहुत अधिक पौधे ना हो.
- पौधशाला में प्रयोग की जाने वाली खाद पूर्णतया सड़ी गली होना आवश्यक होता है.
- रोग से बचाव के लिए पौधशाला को ऊंची जगह पर बनाना चाहिए और पौधशाला से जल निकास का बेहतर प्रबंध होना चाहिए.
मिर्च की फसल का मोजैक और मरोड़िया
मिर्च के यह दोनों रोग एक ही विषाणु द्वारा मिर्च की फसल में फैल जाते हैं. यह मिर्च की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं. इससे पौधे की फसल की बढ़वार रुक जाती है. और पौधे की पत्तियां टेढ़ी-मेढ़ी मुड़ी और मोटी हो जाती हैं.
इन रोगों से प्रभावित पौधों में बहुत कम फल लगते हैं. तथा पौधों में नई पत्तियों का अभाव हो जाता है. फलों का आकार भी काफी खराब हो जाता है. फल छोटे रह जाते हैं.
मिर्च यह दोनों रोग एक साथ फैलते है.खेत में इन दोनों रोगों का प्रसार एक पौधे से दूसरे पौधे तक की द्वारा फैल जाता है. इन कीटो में मुख्यता सफेद मक्खी तथा चेपा द्वारा फैलता है.
रोग की रोकथाम करें ऐसे
- इस रोग के नियंत्रण के लिए पौधों की रोपाई के लिए स्वस्थ और रोग रहित पौधों को ही लेना चाहिए.
- खेत में रोग का प्रभाव देखते ही रोगी पौधों को निकाल कर नष्ट कर देना चाहिए जिससे रोग का प्रसार आगे ना हो.
- रोग फैलाने वाले इन कोटो का नियंत्रण पौधशाला से ही शुरु कर देना चाहिए. 10 से 15 दिन के अंदर कीटनाशकों का छिड़काव जरूर करें.
- रोग की रोकथाम के लिए रोग रोधी किस्म का ही चुनाव करना चाहिए.
मिर्च की फसल का चूर्णिल असिता रोग
मिर्च का रोग लेविल्युला टौरिका नामक कवक द्वारा फैलता है. इस रोग के कारण मिर्च के पौधे की अधिकतर पत्तियां प्रभावित होती हैं.इसरो का प्रभाव पौधे के डंठल और फलों में भी संक्रमण के रूप में दिखाई पड़ता है.
इस रोक के शुरुआती लक्षणों में पत्तियों की निचली सतह पर पाउडर जैसे सफेद धब्बे तथा पत्तियों की ऊपरी सतह पर निम्न घनत्व के पीले धब्बे दिखाई पड़ते हैं. तदुपरांत यह सफेद चूर्ण जैसे धब्बे बढ़कर पत्तियों की उपरी सतह पर भी दिखाई पड़ने लगते हैं.
मिर्च का आरोप जैसे-जैसे बढ़ता है. वैसे वैसे यह नुकसान पहुंचाता रहता है. बाद की अवस्था में संक्रमित भाग या पत्तियां मुरझा जाती हैं. और गिर जाती है पौधे मर जाते हैं.
यह भी पढ़े : अक्टूबर के इस महीने में करें इन सब्जियों की खेती, दिसंबर तक होगी बंपर कमाई
रोग की रोकथाम करें ऐसे
- इस रोग की रोकथाम के लिए गर्मियों के मौसम में पौधशाला में बीजों की बुवाई से पूर्व मिट्टी को 0.45 एम०एम० मोटी पॉलीथिन शीट से ढककर सौरीकरण विधि से निर्जलीकृत करें.
- रोग अधिक फैल जाने पर सल्फर 52 एस०सी० का 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 450 से 500 लीटर पानी में या सल्फर 80 डब्ल्यू०पी० का 3.15 पानी में या सल्फर 80 डब्ल्यू०पी० का 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी के घोल के साथ छिड़काव करें.
- इसके अलावा इस रोग के नियंत्रण के लिए हेक्साकोनाजोल 2 एस०सी० का 3 लीटर प्रति हेक्टेयर या टेब्युक्युनाजोल 25% एम एम ई सी का 500 मिलीलीटर या एजोक्सीट्रोबिन 11% + टेब्युक्युनाजोल 18.25 प्रतिशत एस०सी० डब्लू डब्लू का 600 से 700 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए.