माँहू सरसों कुल की फसलों का विनाशकारी शत्रु, आइए जाने कैसे करेंगे इस कीट  की रोकथाम?

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enemy of Maahu mustard family crops
माँहू सरसों कुल की फसलों का विनाशकारी शत्रु

माँहू सरसों कुल की फसलों का विनाशकारी शत्रु

माँहू कीट सरसों कुल की फसलों का सबसे भयंकर शत्रु होता है. भारत में तिलहनी फसलों में सरसों का प्रमुख स्थान है. इसके भयंकर प्रकोप से सरसों का उत्पादन एक गंभीर समस्या बन गया है. तिलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए भारत सरकार द्वारा समय-समय पर विभिन्न परियोजनाएं चलाई जा रही हैं. अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए अन्य बातों के अलावा फसल सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है.

माँहू कीट देश में दिसंबर महीने से फरवरी महीने तक अधिक सक्रिय रहता है. जिसमें 15 से 50% तक फसल नष्ट हो जाती है. जब तापक्रम घटकर 4 से 8 डिग्री सेंटीग्रेड पहुंच जाता है. और आसमान में काले बादल और घना कोहरा छा जाता है. तब इस समय इस के प्रकोप की तीव्रता बढ़ जाती है. सरसों के अलावा यह मूली, पत्तागोभी एवं फूलगोभी इत्यादि को भी भयंकर रूप से हानि पहुंचाता है.

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कैसे पहुंचाता है फसलों को हानि

इस कीट की सभी अवस्थाएं (निम्फ तथा प्रौढ़) पत्तियों, पुष्पक्रम तथा फलियों पर समूह के रूप में रहती हैं. जिसके फलस्वरूप पौधे कमजोर एवं बदरंग हो जाते हैं. तथा इसमें बीज का निर्माण नहीं होता है. माँहू अपने शरीर से एक प्रकार का द्रव विसर्जित करते हैं. जिसके कारण पत्तियों पर एक काले रंग का कवक विकसित हो जाता है. जो पत्तियों की सामान्य क्रियाओं में बाधक होता है. इसके भुजांग चुभाने व चूसने वाले होते है.

माँहू कीट की सामान्य पहचान

माँहू कीट हल्के हरे रंग का तथा आकार में 2 से 2.5 मि०मी० लंबा एवं गोलाकार होता है. शरीर के पिछले भाग पर ऊपरी सतह से दो छोटी मधु नलिकाएं निकलती है.इसके प्रौढ़ों के लंबे सफेद पंख होते हैं. किंतु अधिकतर यह पंख रहित भी होते है.

माँहू कीट का जीवन चक्र

माँहू कीट सरसों कुल की फसलों पर नवंबर के अंत में या दिसंबर के शुरू में दिखाई देते हैं. सर्वप्रथम जो कि दिखाई देते हैं. वह सदा पंख हीन होते हैं. और बिना मैथुन के शिशुओं को पैदा करते हैं. इनकी मादा सीधे अंडे ना देकर बच्चे पैदा करती है. इस प्रकार इनकी संख्या तेजी से बढ़ने लगती है. और यह काफी बड़े क्षेत्र में फैल जाते हैं. बाद में पंख वाली मादा भी बनती है. यह दिसंबर से फरवरी तक सबसे अधिक सक्रिय रहती है. क्योंकि इस समय पंख वाले तथा पंखहीन दोनों प्रकार के प्रौढ़ पाए जाते हैं. इनकी कई पीढ़ियां ठंडे मौसम में पाई जाती हैं.

माँहू कीट की रोकथाम ऐसे करें

  • क्योंकि ठंडा एवं बादल वाला मौसम इस के प्रकोप को प्रोत्साहित करता है. इसलिए फसल को समय से बोना चाहिए. तोरिया की फसल के प्रकोप से बहुत कम प्रभावित होती है. क्योंकि माँहू की वृद्धि हेतु प्रभावी मौसम जब आता है. उससे पहले तोरिया कटने की स्थिति में आ जाती है.
  • फसलों पर संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें.
  • एलोट्रैप (पीला प्रपंच) माँहू ग्रसित क्षेत्रों में लगाने से माँहू का नियंत्रण हो जाता है.
  • माँहू से ग्रसित टहनियों को शुरुआत में ही काट कर नष्ट कर देना चाहिए.
  • जब 30% से अधिक पौधों पर माँहू दिखाई पड़ने लगे. तो उपयुक्त कीटनाशक से किसी एक उचित मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से नियंत्रण हो जाता है.
  •  एंडोसल्फान 35 ई०सी० 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से.
  •  मेटासिस्टाक 25 ई०सी० की 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से.
  • मैलाथियान 50 ई०सी० की 1.50 से 2.50 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से.
  • डाईमेथोयेट 30 ई०सी० की 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से.

रोकथाम के अन्य उपाय 

फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत धूल या मैलाथियान 5% धूल का 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करके इस कीट का नियंत्रण किया जा सकता है.

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ध्यान रखने योग्य बातें

उपरोक्त इन दवाओं का प्रयोग आवश्यकतानुसार 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए.

छिड़काव हमेशा कीट की प्रारंभिक अवस्था में तथा शाम के समय किया जाना चाहिए. जिससे इसको लाभ पहुंचाने वाले परभक्षीयों (लेडीबर्ड बीटल सिरफीड लारवा) इत्यादि तथा परागण करने वाले कीट (मधुमक्खी इत्यादि) को कम से कम नुकसान हो.

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1 COMMENT

  1. माँहू कीट का जैविक तरीके से यानि की नीम की तेल का छीरकाव करके रोका जा सकत हैं।

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