बीज की अनुवांशिक शुद्धता बनाए रखने के क्या-क्या उपाय हैं ? आइए जानें पूरी जानकारी

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बीज की अनुवांशिक शुद्धता

बीज की अनुवांशिक शुद्धता बनाए रखने उपाय

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है. यहां के ज्यादातर लोग कृषि कार्य करते हैं. ऐसे में लोगों की आय का मुख्य स्रोत फसलों से होने वाली उपज से होता है  इसलिए कृषि फसलों का अच्छा होना सबसे प्रमुख होता है. अच्छी फसलों के लिए बीज की शुद्धता बहुत ही जरूरी है. अशुद्ध बीज उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं. इसीलिए बीज की अनुवांशिक शुद्धता बनाए  रखना काफी जरूरी होता है.

बीच की आनुवंशिक शुद्धता का तात्पर्य उन विशिष्ट लक्षणों से जिसके आधार पर किस्म को विशेष नाम से जाना जाता है. बीज उत्पादन के दौरान इन सभी किस्म संबंधी लक्षणों का अनुरक्षण किया जाना आवश्यक है. आनुवंशिक रूप से बीज का फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. तथा उपज कम होती है. अतः आवश्यक है. कि इन किस्मों का अनुवांशिक रूप से शुद्ध बीज ही किसानों को उपलब्ध कराया जाए.

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बीज की अनुवांशिक शुद्धता ह्रास के प्रमुख कारण

बीज की अनुवांशिक शुद्धता तमाम कारणों से घट जाती है. जिनमें से मुख्य कारण निम्न वत हैं-

1.विकास के दौरान विभिन्नताएं

बीज फसल की ऐसी किस्म जो एक प्रदत्त वातावरण एवं परिस्थिति के अनुकूलित होती है. और इसको जो विभिन्न वातावरण में कई पीढ़ियों तक उगाया जाता है. तो उसमें अनुवांशिक परिवर्तन हो सकते हैं. इन परिवर्तनों को रोकने के लिए किस को उसके अनुकूलित क्षेत्र में उगाना चाहिए.

2.यांत्रिक मिश्रण या संदूषण 

कृषि क्रियाओं के दौरान खेत में या खेत के बाहर वांछनीय पौधों के बीजों से, आस-पास के खेतों में भिन्न-भिन्न किस्मों की फसल होने से एवं कंबाइन तथा गहराई यंत्रों को कई किस्मों के लिए प्रयोग करने से मिश्रण हो सकता है. इस प्रकार के मिश्रण को रोकने के लिए वांछनीय पौधों को खेत से निकालते एवं प्रयुक्त होने वाले यंत्रों की अच्छी तरह से साफ करते रहना चाहिए.

3.उत्परिवर्तन

अधिकांशत उत्परिवर्तन से बीज किस्म का ह्रास नहीं होता है. फिर भी जई आदि में अगर उत्परिवर्तित पौधे मिलते हैं. तो उन्हें कैसे निकालते रहना चाहिए.

4.प्राकृतिक संरक्षण

लैंगिक रूप से वर्णित किस्मों में यांत्रिक मिश्रण की भांति प्रकृतिक संरक्षण से भी गुणवत्ता का ह्रास होता है. स्वतिषेचित  फसलों में गुणता ह्रास बहुत कम परंतु पर परागित फसलों में वांछनीय पृथक्करण दूरी ना होने पर फसल में संदूषण हो जाता है. संदूषण को रोकने हेतु फसलानुसार पर्याप्त पृथक्करण दूरी प्रदान करना चाहिए.

5.रोगों का वरणात्मक प्रभाव 

अन्लेगिक रूप से उत्पादित की जाने वाली फसलों के बीच में कवक और जीवानिवक रोगों के लगने की संभावना रहती .है इसीलिए सभी प्रकार के रोग मुक्त बीज को रोग जनको से मुक्त वातावरण में उगाना चाहिए.

6.अल्प अनुवांशिक परिवर्तन

समान रूप से दिखने वाले वंश कमों को मिलाकर जारी की गई मिश्रित किस्मों में अल्प मात्रा से अनुवांशिक परिवर्तन हो सकते हैं.

7.पादप प्रजनक की तकनीक

पादप प्रजनक की तकनीकी में कभी-कभी खामी रहने से भी किस्मों में ह्रास हो जाता है. इसलिए प्राप्त प्रजनन को प्रत्येक कार्य विधि अनुसार करना चाहिए.

बीज की अनुवांशिक शुद्धता के अनुरक्षण के उपाय

बीज की अनुवांशिक शुद्धता के अनुरक्षण के उपाय निम्न वत है-

1.बीज स्रोत का नियंत्रण

बीज उत्पादन के दौरान अनुवांशिक शुद्धता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि बीज को उपयुक्त स्रोत से लेना चाहिए तथा उस बीज की वंशावली ज्ञात होना चाहिए.

2.संदूषण स्रोतों से पृथक्करण

बीज फसल की परागण प्रकृति एवं बीज वर्ग के आधार पर संदूषण स्रोतों से एक निश्चित दूरी पर अलग रखा जाता है. ताकि परागण से होने वाले संदूषण एवं कटाई के दौरान बीज में अन्य जातियों व संबंधित फसलों के बीजों के मिश्रण एवं रोगों के फैलाव को रोका जा सके. सामान्यतः स्व परागित पुष्पों में प्रथक्करण दूरी कम एवं परंपरागत फसलों में अधिक पृथक्करण दूरी फसलानुसार रखी जाती है. इसके अतिरिक्त कटाई यंत्र, गहराई यंत्र एवं बीज रखने वाले थैलों एवं बोरो को भी अच्छी तरह से सफाई कर देनी चाहिए.

3.अवांछनीय पौधों को निकालना (रोगिंग)

बीज फसल में खरपतवार तथा वांछनीय पौधों के अतिरिक्त कमजोर या रोगी पौधों को भी पुष्पं के काफी पहले निकाल देना चाहिए. बीज फसल को अवांछनीय पौधों के संदूषण से बचाने के लिए जिस खेत में पिछले साल या पिछले मौसम में जो बीज किस्म दी गई हो, उसी के अनुरूप किस्म की बीज फसल उगाना चाहिए.

4.बीज किस्म का सस्य परीक्षण 

जिस बीज किस्म का बीज उत्पादन किया जा रहा है. उसके आनुवांशिक लक्षणों का फसल के दौरान और घर या कांच घर में फसल उगा कर परीक्षण (ग्रो आउट टेस्ट) करते रहना चाहिए. जिससे या जानकारी मिलती रहेगी. कि संबंधित किस्म अपने आनुवांशिक लक्षणों के अनुरूप है या नहीं.

5.बीज प्रमाणीकरण

बीज प्रमाणीकरण कार्यक्रम के द्वारा मुख्यता अनुवांशिक शुद्धता बनाए रखी जा सकती है. बीज प्रमाणीकरण में मुख्य रूप से फसल बीजों का अनुरक्षण और उत्पादन हेतु उन्हें सुलभ कराने का कार्य एवं किस्म की भौतिक शुद्धता अंकुरण क्षमता और बीज वर्णन करना है. यह कार्य बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा किए जाते हैं. जो मुख्य रूप से पृथक्करण दूरी, खेत में भिन्न प्रकार के पौधों की उपस्थिति, काटी गई फसल की गुणवत्ता के उत्पादन मानक एवं बीज संस्थान का पर्यवेक्षण एवं बीज परीक्षण का कार्य मानक अनुसार निर्धारित कराने का कार्य करती हैं.

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6.पीढ़ी पद्धति

उत्पादन के दौरान विभिन्न कारणों से पीढ़ी दर पीढ़ी बीज उत्पादन में अनुवांशिक शुद्धता का ह्रास होता है. अतः यह महत्वपूर्ण है कि बीज उत्पादन एक निश्चित पीढ़ी तक कि करना चाहिए. सामान्यतः चार पीढ़ियां (प्रजनक बीज, आधार बीज, पंजीकृत बीज एवं प्रमाणित बीज) से ही बीज उत्पादन की सिफारिश की जाती है. ताकि बीच में अधिकतम अनुवांशिक शुद्धता बनी रहे. बीज उत्पादन का कार्य सामान्यतया प्रजनक बीज, प्रमाणीकरण संस्था, बीज उत्पादन संस्था, कृषि विश्वविद्यालय की देखरेख में ही किया जाना चाहिए.

7.अनुवांशिक परिवर्तन पर नियंत्रण

कभी-कभी एक प्रकार की परिस्थितियों में उत्पादित बीज और लगातार कई वर्ष तक भिन्न परिस्थितियों में उगाने से अनुवांशिक परिवर्तन हो जाता है. अतः ऐसे परिवर्तनों को ना होने देने या न्यूनतम रखने के लिए केवल एक पीढ़ी तक ही दूसरे क्षेत्रों में उगाना चाहिए.

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