सरसों के प्रमुख कीट रोग एवं प्रबंधन – Mustard Disease and Pests
नमस्कार किसान, सरसों देश प्रमुख तिलहनी फसल है. इसलिए आज गाँव किसान अपने इस लेख में सरसों के प्रमुख कीट रोग एवं प्रबन्धन के बारे में पूरी जानकारी देगा. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर पाए. तो आइये जानते है सरसों की फसल के प्रमुख कीट एवं रोग का प्रबन्धन कैसे करे-
सरसों से बहुपयोगी खाद्य तेल प्राप्त होता है इसके दानों में 30 से 40 प्रतिशत तेल पाया जाता है. जो स्वास्थ्य की द्रष्टि से बड़ा उपयोगी होता है. इसके अतरिक्त तेल निकलने के बाद बची खली का प्रयोग पालतू पशुओं के दाने के रूप में किया जाता है. सरसों की छोटी हरी पत्तियों का प्रयोग कहीं-कहीं हरी सब्जी के तौर पर होता है.
सरसों के कीट
सरसों की आरा मक्खी कीट
सरसों के इस कीट की सूडी अवस्था ही हानिकारक होती है. प्रौढ़ कीट द्वारा कोई हानि नही होती है. सूड़ियाँ सरसों की कोमल हरी पत्तियों को खाकर उसमें टेढ़े-मेढ़े छेदकर देती है. धीरे-धीरे प्रभावित पत्तियां सूखने लगती है. तथा पौधों की बढवार रुक जाती है.
माहूँ कीट
इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ फसल को नुकसान पहुंचाते है. जो पौधों की जड़ों को छोड़कर शेष सभी अंगों के रस चूसते रहते है. कीट का प्रकोप नवम्बर के अंतिम सप्ताह या दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह से शुरू हो जाता है. माहूँ की संख्या जनवरी-फरवरी में आकाश में बादल छाये रहने से तथा नमी बढ़ने से अधिक हो जाती है.
फसल में शिशु तथा प्रौढ़ दोनों समूहों में रहकर रस चूसते है. जिससे पौधे पीले पड़ जाते है. तथा बढ़वार रुक जाती है. देर से बोई गयी फसल में इस कीट का प्रकोप अधिक देखा गया है.
सरसों का पेंटेड बग
कीट के शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही नुकसान पहुंचाते है. ये मुलायम पत्तियों से तथा तने से रस चूसते है. परिणाम स्वरूप पौधों की वृध्दि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है.पत्तियां पीली तथा बढ़वार रुक जाती है. कीट से ग्रसित पौधों पर फूल कम लगते है. तथा जो फलियाँ लगती है. वह कमजोर होती है. फूल तथा फलियों का रस भी ये कीट चूसते है. जिससे फलियों में दाने कम बनते है. तथा तेल की मात्रा कम प्राप्त होती है.
बालदार सूड़ी
इस कीट की केवल सूड़ियाँ ही हानिकारक होती है. सूड़ियों के पूरे शरीर में बालदार रोये पाए जाते है. प्रारम्भिक अवस्था में ही सूड़ियाँ झुण्ड में पत्तियों के ऊपर रहकर हरे भाग को खाती रहती है. बड़ी होने पर यह पूरे खेत में फैल जाती है. उग्र अवस्था में पत्तियों के साथ-साथ मुलायम तने तथा शाखाओं को खाकर नष्ट कर देती है.
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सरसों में लगने वाले रोग
आल्टरनेरिया झुलसा रोग
यह सरसों का प्रमुख हानिकारक रोग है. यह आल्टरनेरिया नामक फफूंदी से होता है. प्रारम्भ में पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल आकार के कत्थई धब्बे बन जाते है. जो बाद में एक साथ मिलकर पत्तियों का अधिक भाग ढक लेते है. इन धब्बों के बीच गोलाकार छल्लेनुमा रचना दिखाई देती है. रोग की उग्र अवस्था में धब्बे तने तथा फलियों पर भी दिखाई देती है.
डाउनी मिल्ड्यू रोग
यह भी एक प्रकार का फफूंदी से होने वाला हानिकारक रोग है. शुरू में पत्तियों की निचली सतह पर गोल या अनियमित आकार के बैंगनी या भूरे रंग के धब्बे बनते है. पत्ती की उपरी सतह पर धब्बों का रंग पीला सा दिखाई देता है. रोग के प्रभाव से तने का उपरी भाग फूलकर टेढ़ा हो जाता है. तथा फलियों का निर्माण नही होता है.
सफ़ेद रतुआ रोग
फफूंदी जनित इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर छोटे आकार के गोलाकार सफ़ेद धब्बे बनते है. जो कुछ-कुछ सफ़ेद फफोले जैसे प्रतीत होते है. रोग का प्रकोप बढ़ने से पुष्प विन्यास भी विकृत हो जाता है. तथा फूलों से फलियाँ नही बनती है.
तना सड़न रोग
यह रोग जेंथोमोनास नामक जीवाणु से होता है. रोग के प्रारंभ पत्तियों पर वी (V) आकार के धब्बे बनते है. जो झुलसे हुए दिखाई देते है. फली बनने के दौरान ग्रसित पौधे का तना अन्दर से सड़ कर टूट जाता है.
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सरसों के फसल में कीट एवं रोग प्रबन्धन विधियाँ
रबी के मौसम की इस महत्वपूर्ण तिलहनी फसल में विभिन्न हानिकारक कीट एवं ब्याधियाँ द्वारा बड़ी मात्रा में प्रतिवर्ष हानि होने से फसल की उपज तथा गुणवत्ता दानों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इस समस्या को निम्न प्रबन्धन विधियाँ अपना कर सफलतापूर्वक हल किया जा सकता है.
प्रतिरोधी किस्मों की बुवाई
रोग का नाम | प्रति रोधी किस्में |
सफ़ेद रतुआ | टी० 4, वाई० आर० टी० 3, टी० 6 |
अल्टरनेरिया झुलसा | आर० सी० 781 |
चेपा एवं सफ़ेद रतुआ | आर० एच० 30 |
इसके अलावा निम्नवाट बातों का ध्यान रखे-
- प्रतिरोधी किस्मों की सही समय से बुवाई करनी चाहिए.
- जिन क्षेत्रों में माहूँ का अधिक प्रकोप रहता हो वहां तोरिया सरसों की उन्नत प्रजातियाँ बोने से माहूँ का प्रकोप कम होता है.
- माहूँ के प्रकोप से बचने के लिए सरसों की प्रजाति टी० 59 की अगेती बुवाई से लाभ होता है.
- सरसों की अगेती बुवाई जो अक्टूबर माह के दूसरे सप्ताह से पूर्व की जाती है. माहूँ की रोकथाम के लिए प्रभावी पायी जाती है.
- फसल में होने वाले बीज जनित रोगों की रोकथाम के लिए बीज बोने से पूर्व बीज को ट्राइकोडरमा बिरडी के 4 ग्राम पावडर प्रति किग्रा० बीज दर से शोधित करना चाहिए.
- फसल में उर्वरकों का प्रयोग संतुलित मात्रा में करना चाहिए.
- सरसों के चेपा (माहूँ) से प्रभावित टहनियों को दिसम्बर के अंत तक हाथों से तोड़ देना चाहिए तथा बाजार सूड़ियों के झुण्ड को पत्ती समेत तोड़कर मिट्टी में दबाकर नष्ट कर देना चाहिए.
- माहूँ नियंत्रण की जैविक विधि के रूप में परभक्षी कीटों जैसे – लेडी बर्ड बीटिल, सिरफिड फ्लाई, काइसोपरला इत्यादि कीटों का संरक्षण करना चाहिए एवं जीवनाशी तथा मित्र कीटों का अनुपात 2:1 रखना चाहिए.
- माहूँ कीट के नियंत्रण के लिए परभक्षी कीट काइसोपरला की 50,000 सूड़ियाँ प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छोड़ना चाहिए. यदि माहूँ का प्रकोप क्षति स्तर (30-40 माहूँ प्रति 10 सेमी तना) से अधिक हो जाय तो मिथाइल-ओ-डिमेटान 25 ई० सी० या डाईमिथोएट 30 ई० सी० की एक ली० मात्रा या इंडोसल्फान 35 ई० सी० 1.25 लीटर मात्रा को आवश्यक पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना, चाहिए.
- अल्टरनेरिया झुलसा, सफ़ेद रतुआ (पाईट रस्ट) तथा डाउनी मिल्ड्यू रोगों की रोकथाम के लिए जिंक मैगनीज कार्बानेट 75 प्रतिशत की 2.5 किग्रा० मात्रा को आवश्यक पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
- बालदार सूंडी के नियंत्रण के लिए प्रथम तथा द्वितीय अवस्था की सूड़ियाँ पर मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत धुल 20 किग्रा० या इंडोसल्फान 4 प्रतिशत धूल 20 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए. तथा पूर्ण विकसित सूंडी की रोकथाम के लिए डाइक्लोरोफ़ॉस 76 प्रतिशत की 600 मिली० मात्रा या क्लोरोपायरीफ़ॉस 20 ई०सी० की 1.25 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर दर से आवश्यक पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
- तना सड़न रोग से बचाव के लिए सरसों के बीज को बुवाई से पहले स्ट्रप्टोसाईंक्लिन के घोल से उपचारित करने पर लाभ होता है.
निष्कर्ष
किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख से सरसों के प्रमुख कीट रोग एवं प्रबन्धन की पूरी जानकारी मिल पायी होगी. इससे सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कम्नेट बॉक्स में कमेन्ट कर सकते है इसके अलावा यह लेख आपका कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं, महान कृपा होगी.
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.