नारियल की खेती (Coconut Farming) की पूरी जानकारी
नमस्कार किसान भाईयों, नारियल या श्रीफल भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है.इसके पेड़ का प्रत्येक हिस्सा किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है.इसलिए इसे स्वर्ग का पेड़ भी कहा जाता है-एक ऐसा पेड़ जो जीवन की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है.आज गाँव किसान (Gaon kisan) अपने इस लेख के द्वारा नारियल की खेती (Coconut Farming) की पूरी जानकारी देगा,वह भी अपने देश की भाषा हिन्दी मे.जिससे किसान भाईयो को इसकी खेती करने में मदद मिल सके.तो आइये जानते है नारियल की खेती (Coconut Farming) के बारे में-
नारियल के फायदे
नारियल के वृक्ष का हर भाग उपयोगी है.नारियल फल का जल प्राकृतिक पेय के रूप में, गरी खाने एवं तेल के लिए, फल का छिलका एवं रेशा विभिन्न औद्योगिक कार्यों में तथा पत्ते, जलावन, झाड़ू, छप्पर एवं खाद हेतु तथा लकड़ी उपयोगी फर्नीचर, दरवाजे-खिड़की इत्यादि बनाने के काम में आती है.नारियल का फल एवं जल में विभिन्न प्रकार के विटामिन, शर्करा,एवं खनिज लवण की प्रचुर मात्रा पायी जाती है.इन्ही उपयोगिताओं के कारण नारियल को कल्पवृक्ष कहा जाता है.
उत्पति एवं क्षेत्र
नारियल का वानस्पतिक नाम कोकस नुसिफेरा (Cocas nusifera) जो पाल्मी (Palmea) कुल का एक बीजपत्रीय पौधा है.इसकी उत्पत्ति का स्थान दक्षिण-पूर्व एशिया माना गया है.भारत विश्व का सबसे बड़ा नारियल उत्पादक देश है.यहाँ इसकी खेती 2137 हजार हेक्टेयर में होती है तथा कुल वार्षिक उत्पादन लगभग 156 लाख टन है.भारत में नारियल का उत्पादन का 90 प्रतिशत हिस्सा समुद्र तटीय राज्यों का है.यह प्रमुख राज्य केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, अंडमान निकोबार द्वीप समूह, पश्चिम बंगाल एवं महाराष्ट्र आदि है.
जलवायु एवं मिट्टी
नारियल समशीतोष्ण जलवायु में उगाया जाने वाला फल है.अच्छी फलन के लिए गर्म एवं नम जलवायु आवश्यक है.इसकी खेती के लिए 10 डिग्री सेंटीग्रेड दैनिक उतार-चढाव के साथ 27 डिग्री सेंटीग्रेड औसत तापमान सर्वोत्तम है एवं 200 सेमी० समानुपातिक रूप से वितरित सालाना वर्षा सर्वोत्तम है.किन्तु असमानुपातिक रूप से वितरित वर्षा की स्थिति में सिंचाई आवश्यक है.लंबे समय तक 40 प्रतिशत से कम आर्द्रता रहने पर परागण सूखने लगता है तथा निषेचन की क्रिया बाधित है.
नारियल की खेती (Coconut Farming) के लिए अच्छी जलधारण एवं निःसारण (जल निकास) क्षमता वाली बलुई अथवा दोमट मिट्टी जिसका पी० एच० मान 5.2 से 8.0 के बीच हो सर्वोत्तम होती है.केवाल अथवा काली चिकनी मिट्टी जिसमें निचली सतह में चट्टान हो नालियल की खेती के लिए अनुपयुक्त होती है.
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नारियल की किस्में
नारियल की किस्मों को दो वर्गों में बांटा गया है, लम्बी किस्में एवं बौनी किस्में.लेकिन लम्बी एवं बौनी किस्मों के संकरण से किस्मे बनायीं भी जाती है उन्हें संकर किस्म कहा जाता है.नारियल की किस्मों का विवरण निम्नवत है-
लम्बी पौधे वाली किस्में
इन किस्मों में मुख्य रूप से 7 से 8 वर्षों में फलन होता है.इसमें फलन नियमित होता है तथा इनकी गरी (कोपरा) में तेल की मात्रा अधिक होती है.ये पौधे विपरीत वातावरण एवं कीट एवं रोग के प्रति ज्यादा सहिष्णु होते है.इन किस्मों में ईस्ट कोस्ट टोल, वेस्ट कोस्ट टोल, अंडमान टोल, तिप्तूर लंबा, अंडमान जायंट एवं लक्ष्यद्वीप साधारण आदि प्रमुख है.
बौनी किस्में
इन बौनी किस्मों में 4 से 5 वर्षों में फलन प्रारंभ हो जाता है.इनमे चौगट नारंगी ड्वार्फ, मलयन, पीला, ड्वार्फ मलाया, नारंगी ड्वार्फ, चौगट, ड्वार्फ ग्रीन, गंगा बोंदम आदि प्रमुख है.नारियल पानी के लिए ये किस्में उत्तम मानी गयी है.परन्तु इनमें अनियमित फलन की समस्या रहती है तथा विपरीत मौसम, रोग एवं कीट के प्रति ये कम सहिष्णु होती है.
संकर किस्में
संकर किस्में लम्बी एवं बौनी जातियों के संकरण से निकाली गयी है.ये 3 से 4 वर्षों में फल देने लगती है.संकर किस्मों में चंद्रसंकर, केरासंकर, केराश्री, चन्द्रलक्षा, केरासौभाग्य, गोदावरीगंगा, एवं आनन्दगंगा प्रमुख है.
रोपण की दूरी एवं विधि
नारियल के रोपण के लिए अनुशंसित दूरी 7.5 मीटर से 9 मीटर तक उपयुक्त होती है.7 से 7.5 मीटर की सघन रोपण भी किया जा सकता है.लेकिन किसी भी स्थिति में पौधों से पौधों की दूरी 25 फीट से कम करना लाभदायक नही है.नारियल के बाग़ वर्गाकार, आयताकार, तथा त्रिभुजाकार विधि से लगाये जा सकते है.लेकिन वर्गाकार प्रणाली सबसे उपयुक्त होती है.
पौध प्रवर्धन
नारियल में बीज द्वारा पौध प्रवर्धन होता है.अच्छे पौधे के लिए आदर्श मातृवृक्ष का चुनाव करना आवश्यक है.कीट रोग रहित वृक्ष जिनमे नियमित रूप से 80 से ज्यादा फल प्रति वर्ष लगते हो तथा जिसकी उम्र 25 से 50 वर्ष हो, तना सीधा एवं मजबूत तथा शिखर पर 30 से 40 पत्तियां हो आदर्श मातृवृक्ष माना जाता है.पूरी तरह से परिपक्व फल जिसमें रोग एवं कीट का प्रकोप न हो पौध प्रवर्धन के लिए उपयुक्त माने जाते है.
नारियल के पौधों का रोपण जून के अंतिम सप्ताह से सितम्बर तक (भारी वर्षा की अवधि छोड़कर) रोपण विन्यास के अनुसार किया जाता है.गड्ढे में नारियल बिचड़ों की रोपनी करते समय यह ध्यान रहे कि बचड़ों के ग्रीवा स्थल से 5 सेमी० व्यास के बीच नट अंश मिट्टी से नही ढका जाता नहीं तो उसकी वृध्दि पर कुप्रभाव पड़ता है.9 से 15 महीने की अवधि वाले पौधे का चुनाव रोपण के लिए किया जाना चाहिए.
तरुण पौधों की देखभाल
नारियल पौधों को अधिक सर्दी तथा अधिक गर्मी सहन करने की शक्ति नही होती है.प्रतिरोपण के बाद 2 से 3 वर्षों तक सर्दी के दिनों में पाले से बचाव के लिए सुबह शाम को पानी का छिड़काव या सिंचाई के अलावा धुँआ करना चाहिए एवं तीक्ष्ण गर्मी से बचाव के लिए छाया तथा प्रतिदिन हल्की सिंचाई करना आवश्यक है.
उर्वरक प्रबन्धन
नारियल की अच्छी उपज के लिए खाद एवं उर्वरकों को निम्नवत मात्रा का प्रयोग नियमित रूप से पौधों को देना चाहिए-
पौधे की उम्र | नत्रजन (ग्रा०/प्रति वर्ष पौधा) | स्फुर (ग्रा०/प्रति वर्ष पौधा) | पोटाश (ग्रा०/प्रति वर्ष पौधा) |
रोपण वर्ष | – | – | – |
पहले वर्ष | 150 | 70 | 200 |
दूसरे वर्ष | 300 | 140 | 400 |
तीसरे वर्ष | 450 | 210 | 600 |
चौथे वर्ष | 600 | 280 | 800 |
पांचवे वर्ष | 750 | 350 | 1000 |
जिन क्षेत्रों में बोरॉन सूक्ष्म तत्व की कमी पायी जाती है.उन क्षेत्रों में 50 ग्राम प्रति वयस्क पेड़ प्रति वर्ष बोरेक्स (सुहागा) के प्रयोग करने शिखर अवरूध्द (क्राउन चोकिग) रोग का डर नही रहता है.
सिंचाई प्रबन्धन
गर्मी के मौसम में सिंचाई, नारियल के लिए अधिक अनुकूल है.भीषण गर्मी के दौरान 4 दिन में एक बार प्रति ताड़ 200 लीटर के हिसाब से कुन्डभ में पानी डालना नारियल के पेड़ों के लिए लाभदायक होता है.
निराई-गुड़ाई
नारियल के अधिक उत्पादन के लिए नारियल बाग़ में नियमित अंतराल पर निराई-गुड़ाई और जुताई आवश्यक है.आच्छादन फसल के लिए मूंग, उड़द, सेसबेनिया आदि की बुवाई की जा सकती है.आच्छादन कृषि के द्वारा मिट्टी आद्रता बनी रहती है.मृदाक्षय नही होता है.तथा इससे जैविक पदार्थों की भूमि में वृध्दि होती है.
अंतरवर्ती एवं मिश्रित फसलन
नारियल के बाग़ में अंतरवर्ती तथा मिश्रित फसलों के रूप में केला, अनानास, ओल, मिर्च, शकरकंद, पपीता, हल्दी, अदरख, टेपीओका, तथा फूल एवं सजावटी पौधे उगाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त की जा सकती है.मिश्रित फसल के रूप में नींबू, लीची, अमरुद, मौसंबी, तेजपत्ता आदि फसलें नारियल रोपण की दूरी आवश्यकतानुसार समायोजित कर सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है.मिश्रित खेती हेतु नारियल आधारित बहुस्तरीय कृषि प्रणाली में विभिन्न पेड़ों के बीच चारा फसल भी उगाया उगाई जा सकती है.
तुड़ाई एवं उपज
नारियल के फल परागण के 10 से 12 महीने बाद पक जाते है.नारियल पानी के लिए 5 से 6 महीने में तथा गरी के लिए पूर्ण परिपक्व होने पर नारियल तोड़ना चाहिए.नारियल की खेती को अच्छे प्रबन्धन के साथ किया जाय तो 80 से 120 फल प्रतिवर्ष वृक्ष में आते है.
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नारियल के कीट एवं रोग नियंत्रण
गैंडा भृंग (रिनोसिरस बीटल)
इस कीट के आक्रमण ग्रस्त कोपलों के पूर्णरूप से खुलने पर पत्ते ज्यामितीय ढंग से कटे हुए दिखाई देते है.
रोकथाम
इन कीटों की रोकथाम के लिए कीटों को अंकुश में फंसाकर बाहर निकल देना चाहिए.प्रभावित वृक्ष की उपरी तीन पत्तियों के पर्णकक्ष में 25 ग्राम सेविडॉल या 10 ग्राम फोरेट जी को 200 ग्राम महीन बालू अथवा रेत से मिलाकर, मई, सितम्बर व दिसम्बर के महीनों में भर दें.साथ ही साथ बागान को साफ-सुथरा रखें.
ताल ताड़ घुन (रेड पाम वीविल)
यह कीट पत्तियों के निचले भाग में छेदकर तने में प्रवेश कर तने के कोमल उत्तकों को खाते हुए नीचे की ओर बढ़कर तने में भी छिद्र करते जाता है.
रोकथाम
इस कीट के नियंत्रण के लिए तने को किसी भी प्रकार की छति या घाव होने से रोके.आक्रांत भाग की सफाई कर कीटनाशक से उपचारित कर छिद्रों को तारकोल से बंद कर देते है.इसके अतरिक्त मोनोक्रोटोफ़ॉस का जड़ द्वारा अवशोषित कराएं.
फलों का झाड़ना
इस रोग में छोटे-छोटे नारियल (मादा फूल) से लेकर बड़े फल तक गिरते है.
रोकथाम
इसके नियंत्रण के लिए फूलों एवं फलों के गुच्छों पर फाइटोलॉन अथवा ब्लाइटाक्स-50 दवा की 4 से 5 मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर एक छिड़काव वर्षा आरम्भ होने से पूर्व और दो माह के अंतराल पर एक बार फिर दोबारा छिड़काव करना चाहिए.
कलिका सड़न रोग
इसमें नई कोपले मुरझा जाती है.जो पहले पीला और फिर भूरा होकर नीचे झुक जाती है.आक्रांत वाले स्थल के कोमल ऊतक सड़कर बदबूदार पदार्थ में बदल जाते है.
रोकथाम
इसके नियंत्रण के लिए प्रभावित ऊतकों को काटकर निकल देते है.तथा कटे हुए भाग को 10 प्रतिशत बोडो पेस्ट से उपचारित करते है.
निष्कर्ष
किसान भाईयों, उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख के जरिये आप सभी को नारियल की खेती (Coconut Farming) की सभी जानकारियां मिल पायी होंगी.गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा इस लेख में नारियल के फायदे से लेकर नारियल के कीट एवं रोग नियंत्रण तक सभी जानकरियों को देने की कोशिश की गयी है.फिर भी नारियल की खेती (Coconut Farming) से सम्बन्धित कोई अन्य प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में पूछ सकते हो.इसके अलावा यह लेख आप सभी को कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये.महान कृपा होगी.
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.