CHAMPA KI KHETI IN HINDI : चम्पा के फूल की खेती कैसे करे ? जिससे हो किसानों को अधिक फायदा

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CHAMPA KI KHETI IN HINDI
चम्पा के फूल की खेती 

CHAMPA KI KHETI IN HINDI | चम्पा के फूल की खेती 

चम्पा के फूलों का पौधा एक सदबहार लम्बाई में बढ़ने वाला पौधा है. इसकी लम्बाई 35 मीटर या उससे भी अधिक हो जाती है. इसके पेड़ की मोटाई कभी-कभी 2.5 मीटर से 3.5 मीटर तक हो जाती है. 

चम्पा का पेड़ पूरे भारत में उगाया जाता है. लेकिन ज्यादातर इसके पौधे पश्चिमी बंगाल, असम, बिहार, मध्य प्रदेश, केरल व कर्नाटक में अधिक उगाया जाता है. 

फूलों के आने समय जहाँ इसके पौधे लगे होते है. वहां तथा उसके आस-पास का वातावरण काफी सुगंधित हो जाता है. इसके फूलों से तैयार इत्र का प्रयोग कपड़ों, मिठाइयों, प्रसाधन सामग्रियों तथा उत्सवों पर कमरे व आसपास के वातावरण को सुगन्धित बनाने के लिए किया जाता है.

केरल तथा पश्चिमी बंगाल में चम्पा की खेती (CHAMPA KI KHETI) बड़े पैमाने पर जंगलों के रूप में की जाती है. वहां इसका इत्र तिल के तेल में चम्पा का सत बसा कर तैयार किया जाता है. 

चम्पा के फूलों से तेल भी तैयार किया जाता है. यह तेल ग्रीष्म काल में गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए प्रभावशाली होता है. 

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चम्पा का वानस्पतिक विवरण 

चम्पा को कई प्रचलित नामों (Common Names) से जाना जाता है. इसे चम्पा के अलावा चम्पाका, चैम्प, काला सैमपिज, सैमपिथा, चम्पाकम, चम्पागम, कुंडचम्पा, कंचनाम, शेमबूगा, सेमपंगन, शाम्बा, चम्पाकामू, सेमपंगा, कंचानागू आदि नामों से जाना जाता है. 

चम्पा का वानस्पतिक नाम (Botanical name) माइकेलिया चंपाका (Michelia champaca Linn.) है. यह मेग्नोलिएसी (Magnoliaceae) कुल का पौधा है. 

चम्पा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

चम्पा के पौधे एक नम-गर्म जलवायु के पौधे है. अतः इसके लिए 5000 मि०मी० तक वर्षा तथा 48 सेंटीग्रेड तक तापमान की आवश्यकता होती है. इससे कम वर्ष क्षेत्र में इसकी वृध्दि अच्छी नही होती है. वर्षा के मौसम में इस पर फूल आना प्रारंभ हो जाते है. और नई पत्तियां मार्च में या गर्म मौसम (मई-जून) में आती है. 

चम्पा में प्रवर्धन कैसे करे 

चम्पा के पौधों को तैयार होने 6 साल का समय लग जाता है. इसके बाद इसमें फूल आते है और इसके उपरान्त इसमें बीज बनते है. 

इन बीजों के जमाव के लिए उचित पोषक तत्वों वाली भूमि व बीजों की किस्म का अच्छा हो अति आवशयक होता है. भूमि को भुरभुरी बनाकर तथा सही ढंग से भूमि की तैयारी करके स्वस्थ बीज से उत्तम पौधे तैयार कर सकते है. इसके लिए पके फलों से अगस्त-सितम्बर माह में बीज इकट्ठे कर सकते है. 

यदि सम्भव हो सके तो उसी महीने (अगस्त-सितम्बर) में ही बीजों की बुवाई कर देनी चाहिए. बीजों की बुवाई 8 से 10 सेंटी मीटर की दूरी पर करनी चाहिए. छायायुक्त पौधशाला में पौधों की वृध्दि अच्छी होती है. 

बोये गए बीजों का जमाव में लगभग 10 से 12 दिन का समय लग जाता है. बाद में इसकी नर्सरी की निराई करके आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. पौधों की लम्बाई 30 सेंटी मीटर होने पर इसकी रोपाई कर देनी चाहिए. 

किसान भाई इस बात का ध्यान रखे जब पौधे 2 से 3 सेमी० के हो जाय तो इन पौधों को पॉलीथीन में रोपाई कर सकते है. क्योकि पॉलीथीन के थैले में इन पौधों की देखभाल अच्छी प्रकार से कर सकते है. तथा इसके साथ-साथ ही, इन पौधों को एक जगह से जगह तक ले जाने में भी सुविधा रहती है. 

इन पॉलीथीन के थैलों को तैयार करने के लिए इसमें मिट्टी, बालू एवं गोबर की खाद बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर भर दिया जाता है. तथा इन थैलों में सांयकाल में 2 से 3 सेमी० के पौधे रोप दिए जाते है. 

रोपाई के उपरांत इसकी हल्की सिंचाई करनी चाहिए. कुछ दिनों के अंतराल पर पॉलीथीन  की थैलियों का स्थान बदलते रहना चाहिए. ऐसा करने से इनकी जड़े जमीन में नही जम पाती है. आवश्यकतानुसार सिंचाई, निराई-गुड़ाई के पश्चात लगभग 8 से 10 महीने बाद इसके पौधे रोपाई योग्य हो जाते है. 

चम्पा की खेती के लिए उपयुक्त भूमि एवं तैयारी 

चम्पा का पौधा लगभग हर प्रकार भूमि में लगाया जा सकता है. लेकिन पौधे की अच्छी बढ़वार एवं अधिक उत्पादन प्राप्त करने की द्रष्टि से बलुई भूमि में लगाया सबसे उअचित होता है.

जिस भूमि की कड़ी सतह न हो, उचित सिंचाई व जल निकास की सुविधा हो, वह इसकी खेती के लिए श्रेष्ठ होती है. 

चिकनी मिट्टी में चम्पा के पौधों के विकास, वृध्दि एवं फूलों के आकार व उत्पादन की द्रष्टि से उचित नही होती है. 

बलुई भूमि में हालांकि चम्पा के पौधों पर फूल शीघ्र आते है. परन्तु पौधों की उंचाई कम होने के कारण फूलों के उत्पादन में कमी आ जाती है. खारे पानी वाली जमीन और कंकड़ीली -पथरीली जमीन में पौधे की वृध्दि स्वतः ही कम हो जाती है. 

चम्पा के पौधों के लिए अच्छी जमीन के अलावा सिंचाई के साथ-साथ पी०एच० मान का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है. क्योकि 5.5 से कम तथा 8 पी०एच० मान से ज्यादा वाली भूमि पौधों की वृध्दि के लिए बेकार होती है. अतः इसके लिए उचित पी०एच० मान 7 से 8 अच्छा माना जाता है. 

भूमि की तैयारी के लिए ऊँची-नीची भूमि को सर्वप्रथम समतल करके, पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से या हैरों से करनी चाहिए. इसके बाद 5 से 6 जुताई हल या हैरों से करनी चाहिए. इसके साथ ही कंकड़-पत्थर आदि को निकालकर पुराने फसल अवशेषों को जला देना चाहिए. 

मई-जून माह में 2.5 X 2.5 मीटर की दूरी पर खूँटियाँ लगाकर प्रत्येक खूँटी पर 30 X 30 X 30 सेमी० आकार के गढ्ढे खोद लेना चाहिए. तथा खोदी गयी मिट्टी में एक टोकरी गोबर की सड़ी खाद, 50 ग्राम यूरिया, 250 ग्राम सिंगल सुपर फ़ॉस्फेट, 75 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश व 10 से 15 ग्राम थायमेट नामक कीटनाशी मिलाकर गड्ढों में भर देना चाहिए. इसके बाद पुनः इन भरे गड्ढों में खूँटी लगा देनी चाहिए ताकि पौध के रोपण में सुविधा हो सके. 

पौधों की रोपाई कैसे करे 

इसके पौधों की रोपाई करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए. इसके पौधों की रोपाई आमतौर पर सांयकाल के समय करनी चाहिए.पौधे स्वस्थ होना चाहिए. रोपाई के समय पौधे की पत्तियां पीली नही होनी चाहिए. 

पूर्व में लगाई गयी खूँटियों के स्थान पर ही पौधों की रोपाई करनी चाहिए. रोपाई के पश्चात 10-15 दिनों तक रोपित पौधों में सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. यदि कुछ पौधे मर जाए, तो उनकी जगह पर दूसरे स्वस्थ पौधे लगा देना चाहिए. 

सिंचाई कब करे 

इसके पौधों को सबसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता ग्रीष्म काल में पड़ती है. अन्यथा की स्थिति में पौधों की वृध्दि, फूलों का आकार, यहाँ तक कि फूलों के वजन व उनके सत में भी कमी आ जाती है. 

बलुई दोमट व बलुई भूमि में क्रमशः 8 से 10 दिन एवं 5 से 7 दिन के अंतर पर रोपण के तीन वर्ष बाद तक ग्रीष्मकाल में सिंचाई अवश्य करनी चाहिए. चिकनी मिट्टी में 12 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए. 

वर्षा ऋतु में आवश्यकतानुसार सिंचाई व जल-निकास की व्यवस्था रखनी चाहिए. शरद ऋतु में आवश्यकतानुसार लगभग 20 से 25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. 

निराई-गुड़ाई का उचित समय  

चम्पा में अच्छी निराई-गुड़ाई के लिए पतले मुहं वाली खुरपी, कुदाली व फावड़ा आदि की जरुरत होती है. वैसे तो किसी भी पौधशाला में खरपतवार दिखाई देते ही उसे निकाल देना चाहिए. किन्तु फिर भी निराई की आवश्यकता बीज बोने से लेकर पौधे की रोपाई तक पड़ती है. 

बीज जमाव के समय हाथ से तथा पौधों की रोपाई के समय पतले मुंह वाली खुरपी से यह कार्य किया जाता है. वर्षा, ग्रीष्म एवं शीत ऋतु में एक-एक निराई जरुर करनी चाहिए. 

मार्च-सितम्बर में जब पौधे बड़े हो जाय, तब भी एक-एक निराई जरुरी है. निराई करते समय सख्त मिट्टी भुरभुरी हो जाती है. साथ ही, उर्वरक भी मिट्टी में भली-भांति मिल जाते है. निराई के समय घास की जड़ों तथा कंकड़-पत्थर को अच्छी तरह निकाल देना चाहिए. पौधों के थालों की गुड़ाई सावधानीपूर्वक करनी चाहिए ताकि उनकी जड़े कट-फट न जाय.

खाद एवं उर्वक की उचित मात्रा 

पौधों की अच्छी वृध्दि, उत्तम आकार एवं सुगन्धयुक्त फूलों की प्राप्ति के लिए उचित खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता होती है. 

मार्च के प्रथम या द्वितीय सप्ताह सप्ताह में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद पौधों की जड़ों में डालनी चाहिए. खाद डालते समय प्रति पौधा 50 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सिंगल सुपर फ़ॉस्फेट तथा 25 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधा आयु वर्ष की दर से उर्वरक मिलाना आवश्यक है. उर्वरक की इस मात्रा को 10 वर्षों तक लगातार देना उचित रहता है. 

खाद डालने के पश्चात खेत की गुड़ाई 20-25 सेमी० गहरी करनी चाहिए. ताकि खाद एवं उर्वरक अच्छी तरह मिट्टी में मिल जानी चाहिए. चिकनी मिट्टी में 25 ग्राम जिंक सल्फेट एवं 20 ग्राम चूना प्रति पौधा डालना चाहिए. पत्तियों में पीलेपन के लक्षण उभरने पर 2 प्रतिशत यूरिया घोल का छिडकाव जुलाई-अगस्त माह में कर सकते है. 

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पौधे में पुष्पन एवं उनकी तुड़ाई    

चम्पा के फूल अप्रैल से जुलाई माह तक उपलब्ध रहते है. साधारणतः बलुई भूमि में फूल शीघ्र आते है. और चिकनी भूमि में देर से आते है. रोपाई के 4-5 वर्ष बाद सामान्यतः फूल मिलने शुरू हो जाते है. फूलों का आकार भूमि, पौधों की आयु, सिंचाई की मात्रा एवं किस्म आदि विभिन्न कारकों पर निर्भर करते है. 

फूलों से अच्छा तेल व सत प्राप्त करने के लिए उन्हें उचित समय पर एवं पूरा खिलने पर ही तोड़ने की व्यवस्था करनी चाहिए. प्रायः फूलों को प्रातः 6 से 8 बजे तक तोड़ने पर उसमें ताजगी व सुगंध दोनों अधिक देर तक बनी रहती है. यदि फूलों को सायंकाल में तोड़ना पड़े तो उन्हें पानी छिड़कर ताजा रखा जा सकता है. 

फूलों को असमय व अधिक तापमान पर तोड़ने पर उनके सत एवं तेल की मात्रा में कमी आ जाती है. अतः उन्हें नम एवं हवादार स्थान पर रखना चाहिए व तोड़ने के पश्चात शीघ्र अति शीघ्र तेल निकालने की व्यवस्था करनी चाहिए. फूलो के तोड़ने की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए बड़े-बड़े सीढ़ीनुमा स्टूलों का प्रबंध किया जाना चाहिए.  

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