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पर्ण धब्बा रोग से गेहूं की फसल का बचाव
गेहूं के रोगों में पर्ण धब्बा रोग भी गेहूं की उपज को काफी नुकसान पहुंचता है. इसलिए गेहूं के खेती में लगने वाले रोगों की कड़ी में छठे नंबर पर पर्ण धब्बा रोग है. जिसके बारे में गाँव किसान का आज का लेख पूरी जानकारी देगा.
किसान भाई जान पायेगें पर्ण धब्बा रोग की पहचान, प्रकोप के क्षेत्र,प्रकोप का समय एवं रोग की शुरुवात, अनुकूल परिस्थियाँ और रोग का नियंत्रण कैसे करे. जिससे वह अपनी गेहूं की फसलों को इस रोग से बचा पाए. तो आइये जानते है पर्ण धब्बा रोग की पूरी जानकारी –
पर्ण धब्बा रोग के मुख्य लक्षण
इस रोग में हलके हरे से पीले धब्बे पत्तियों पर पाए जाते है. बाद में ये धब्बे हलके भूरे रंग के हो जाते है. जिन पर छोटे-छोटे काले पिक्नीडियम दिखाई देते है.
रोग के प्रकोप के क्षेत्र
गेहूं की खेती का यह रोग उत्तरी भारत के उन क्षेत्रों में जहाँ वातवरण अपेक्षाकृत ठंडा होता है. यह रोग अधिक पाया जाता है.
प्रकोप का समय एवं रोग की शुरुवात
पर्ण धब्बा रोग का प्रकोप फरवरी महीने में गेहूं की फसल पर दिखाई पड़ता है. इस रोग की उत्पत्ति मृदोढ और बीजोढ़ दोनों से ही होता है.
रोग की अनुकूल परिस्थितियां
जिन स्थानों पर अधिक नमी और ठंडा होता है. उस वातावरण में यह रोग अधिक पनपता है.
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रोग का नियंत्रण करे इस तरह
- सबसे पहले किसी अच्छे कवक नाशी से बीजोपचार कर बीज का शोधन किया जाना चाहिए.
- पहले उगाई गयी फसल के अवशेषों का इकठ्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए.
- गर्मी के मौसम में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करके भूसे को मिट्टी में दबा देना चाहिए.
- रोग रोधी किस्मों का चुनाव करके बुवाई करनी चाहिए.