ROSE CULTIVATION TIPS | गुलाब की खेती की पूरी जानकारी
गुलाब का पौधा प्रायः हमारे ग्रह उद्यानों में जरूर मिल जाता है. क्योंकि यह एक ऐसा पौधा है, जिसको हर व्यक्ति अपने घर लगाना या उगाना चाहता है. क्योंकि इसका फूल काफी सुंदर होता है. आज हमारे देश में गुलाब के फूल एवं इससे बने उत्पादों की मांग को देखते हुए आज इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.
सौभाग्य से हमारे देश की जलवायु इस प्रकार की है कि पूरे वर्ष गुलाब के पुष्प उपलब्ध रहते हैं. इसीलिए किसान भाई गुलाब की खेती कर काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. इस लिए गांव किसान आज अपने इस लेख में गुलाब की खेती से संबंधित सभी जानकारियां आपको उपलब्ध कराएगा. जिससे देश के ज्यादातर किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ ले पाए. तो आइए जानते हैं गुलाब की खेती से संबंधित सभी जानकारियां-
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गुलाब की खेती से मिलने वाला लाभ
गुलाब के फूलों की मांग शादी, विवाह, मुंडन, बर्थडे एवं पूजा आदि अनुष्ठानों में अधिक होती है. इसके अलावा यह देश के बड़े-बड़े होटलों और विदेशों में भी इसकी मांग काफी अधिक होती है. इसलिए किसान भाई इनके फूलों को बेचकर अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं.
फूलों के अलावा इससे इत्र, गुलाब जल, गुलकंद और गुलाब के तेल से भी भारी आय अर्जित की जा सकती है. अरब देशों में इत्र व गुलाब की भारी मांग रहती है. गुलाब जल का प्रयोग पेय पदार्थों में पीने के पानी में और मिठाइयों में सुगंध के लिए किया जाता है. अमीर घर की महिलाएं इससे सुंदरता एवं सुगंध के लिए नहाने के पानी में प्रयोग करती हैं. गुलाब जल का निर्यात भी विदेशों में किया जाता है.
गर्मी के दिनों में गुलकंद खाने से काफी शीतलता प्राप्त होती है. मीठे पान में भी इसका उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है. पेट संबंधी विकारों में इसका प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है. गुलाब की सूखी पंखुड़ियों का प्रयोग ठंडाई के लिए किया जाता है. जो कि गर्मी को शांत कर शीतलता पहुंचाती हैं. गुलाब का तेल भी बड़े पैमाने पर उपयोग में लाया जाता है. जो बालों को सुंदर बनाता है व बालों के कालेपन को बढ़ावा देकर शीतलता प्रदान करता है.
गुलाब की मुख्य प्रजातियां
गुलाब की प्रमुख 4 प्रजातियां हैं जो कि इत्र, गुलाब जल व तेल के लिए उत्तम पाई गई हैं जो निम्नवत है-
- रोजा सेंटीफोलिया – गुलाब की यह प्रजाति भारतीय उद्यानों में शोभा कार्य उद्देश्य से उगाई जाती है. जिस पर गुलाबी रंग के फूल आते हैं. लेकिन बड़े पैमाने पर यह प्रजाति भारत में नहीं उगाई जाती है. फ्रांस में यह प्रजाति बड़े पैमाने पर उगाई जाती है. और वहां घुलनशील पदार्थों के माध्यम से इससे इत्र निकाला जाता है. इस प्रजाति से निकाला गया गुलाब जल मुख्य रूप से दवाओं में प्रयुक्त किया जाता है.
- रोजा मोसचैटा – गुलाब की यह प्रजाति ऊंची पहाड़ियों पर 900 से 2500 मीटर की ऊंचाई तक पाई जाती है. इसका पौधा अन्य 1 प्रजातियों पर चढ़ने वाला होता है. फूल अकेले लगते हैं जिनका रंग सफेद होता है और जिनमें कस्तूरी की सी गंध आती है. हिमाचल प्रदेश में इस प्रजाति का प्रयोग गुलाब जल निकालने के लिए किया जाता है.
- रोजा बोरबोनियाना – गुलाब की यह प्रजाति मुख्य रूप से भारतीय उद्यान में उगाई जाती है. जिसका प्रयोग प्रकंद के रूप में किया जाता है. इस प्रजाति के फूल लाल, गुलाबी होते हैं. इसकी खेती दक्षिण भारत व मध्यप्रदेश में होती है. इस प्रजाति के फूलों का उपयोग मालाएं बनाने, मंदिरों में चढ़ाने एवं गुलकंद बनाने में किया जाता है. कुछ मात्रा में गुलाब जल बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है. लेकिन इस प्रजाति का प्रयोग इत्र बनाने के लिए नहीं किया जाता है.
- रोजा डैमासीना मिल – गुलाब की इस प्रजाति का प्रयोग मुख्य रूप से इत्र बनाने गुलाब जल बनाने व तेल बनाने के लिए किया जाता है. इसे बुल्गेरियन गुलाब भी कहते हैं. इसके फूल गुच्छों में लगते हैं. जिनका रंग हल्का गुलाबी होता है. सुबह के समय इस प्रजाति के खेतों में मनोहर सुगंध आती है. इस प्रजाति से तैयार किया गया इत्र अन्य प्रजातियों की तुलना में उत्तम गुणवत्ता एवं सुगंध वाला होता है.
गुलाब की उन्नतशील किस्में
नूरजहाँ – गुलाब की यह किस्म केंद्रीय औषधि एवं सगंधी पौधा संस्थान द्वारा विकसित की गई है. इसके पौधों में इत्र की मात्रा सामान्य किस्म से अधिक है और इसके फूलों की पैदावार भी अपेक्षाकृत अधिक है. फूल मध्यम आकार के अधिक टिकाऊ एवं हल्के गुलाबी रंग के होते हैं. एक गुच्छे में औसतन 10 से 12 फूल आते हैं.
उपयुक्त भूमि का चयन व तैयारी
गुलाब की खेती के लिए चिकनी दोमट भूमि जिसमें नाइट्रोजन पर्याप्त मात्रा में हो उपयुक्त होती है. इसके अलावा जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. दोमट या बलुई दोमट भूमि में गुलाब का पौधा अच्छी वृद्धि करता है. लेकिन पुष्प उत्पादन उत्तम नहीं होता है. सबसे उत्तम भूमि जिसका पीएच मान 6.5 से 7.0 हो उपयुक्त होती है. इसके ऊपर के पीएच मान पर वृद्धि एवं पैदावार दोनों में कमी आती है. कम पीएच मान वाली भूमियों में इसकी खेती करना संभव ही नहीं होता है. कम पीएच मान वाली भूमियों में चूना व गोबर की खाद डालकर इसकी खेती की जा सकती है. गुलाब की खेती का क्षेत्र छाया रहित होना चाहिए.
वर्षा में एक-दो दिन पानी भरा रहना हानिकारक नहीं है. लेकिन इससे अधिक पानी भरा रहना इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है. फरवरी से अप्रैल तक विशेष सिंचाई की आवश्यकता होती है. अतः उस समय सिंचाई की व्यवस्था होना अति आवश्यक होता है. एवं पथरीली भूमि में इसकी खेती करना संभव नहीं है.
गुलाब की खेती के लिए भूमि की तैयारी करना सबसे जरूरी होता है. इसके लिए 1 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से दिसंबर या जनवरी के प्रथम सप्ताह में करनी चाहिए बाद में 5 से 6 जुताई देसी हल या हैरों से कर देनी चाहिए. यदि संभव हो सके तो किसान भाई 1 जुताई के बाद 1 सप्ताह के लिए खेत को खुला छोड़ देना चाहिए. एक बार लगाई गई फसल लगभग 10 से 15 साल तक चलती है. इसलिए खेत को समतल करना जरूरी होता है. प्रत्येक हैरों के बाद पटेला चलाना काफी जरूरी होता है. बाद में यदि आवश्यक समझा जाए, तो खेत को ठीक कर लेना चाहिए. खेत की तैयारी के समय पुरानी फसलों के अवशेष व ईट, पत्थर एवं कांच के टुकड़ों को इकट्ठा करके खेत से बाहर निकाल देना चाहिए. हैरों लगातार समांतर न चलाएं हमेशा दूसरों विपरीत दिशा में लगाया जाए, ताकि मिट्टी पूर्णतया भुरभुरी बन जाए एवं भूमि की संरचना में सुधार हो सके. खेत की आखिरी जुताई के 15 से 20 दिन पूर्व 200 से ढाई सौ कुंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिला देनी चाहिए. यदि गोबर की खाद उपलब्ध ना हो तो गुलाब लगाने से पूर्व बरसात में ढांचा या सनई को हरी खाद के रूप में बोना चाहिए. जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहे .
कम ठंड वाले क्षेत्र गुलाब की खेती के लिए सबसे उत्तम होते हैं. क्योंकि इसमें इसकी वृद्धि काफी अच्छी होती है. लेकिन अधिक पाला व अधिक वर्षा, दोनों ही इसकी फसल के लिए हानिकारक होते हैं .अधिक वर्षा से उकठा नामक बीमारी का प्रकोप अधिक होता है.
गुलाब का प्रवर्धन कैसे करें
गुलाब का प्रवर्धन मुख्य रूप से कलम द्वारा किया जाता है. इसके लिए कलम दिसंबर-जनवरी में कटाई छटाई के समय ही तैयार कर लेनी चाहिए. कलमें उन शाखाओं से तैयार करनी चाहिए जो 1 वर्ष पुरानी हो तथा जो रोग व कीट ग्रस्त नहीं होनी चाहिए. जिनकी मोटाई 2 से 2.5 सेमी० तक होनी चाहिए. एक शाखा में 20 से 30 सेमी० लंबी तीन या चार कलमें तैयार की जा सकती हैं. नीचे के भाग ऊपरी भाग से कलमें नहीं लेनी चाहिए. कलमें तैयार होने पर एक-एक हजार के बंडल बना लेते हैं. बंडल बनाते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि ऊपर ही वह नीचे के भाग एक तरफ ही होने चाहिए. इन तैयार मंडलों को नम जमीन में 20 से 30 सेमी की गहराई में गाड़ देना चाहिए. जिससे पूर्व- कैलसभवन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
यदि कलमों के नीचे के भाग में आई०वी०ए० 200 पी०एम० लगाएं. तो जड़े अधिक मात्रा में व शीघ्र निकलती हैं. लेकिन इस क्रिया को ज्यादा नहीं अपनाया जाता है.
गुलाब की कलम को पौधशाला में लगाना
गुलाब की कलम को लगाने से पूर्व पौधशाला की अच्छी तरह से तैयारी करनी चाहिए. फावड़े से निराई-गुड़ाई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए. पुरानी फसल के अवशेष ईट-पत्थर आदि को निकाल देना चाहिए. तैयारी के समय भूमि पूर्णतया समतल कर के 10 से 15 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति 5 वर्ग मीटर के हिसाब से मिला देना चाहिए. साधारणतया 50×40 मीटर आकार की पौधशाला में 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पौधे तैयार किए जा सकते हैं. तैयार पाठशाला में 20×10 सेमी० की दूरी पर कलमें गाड़ दी जाती है. कलमों 3/4 भाग जमीन में गाड़ देना चाहिए तथा 1/4 भाग बाहर रखना चाहिए. कलमें लगाने के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए. कलमें लगाने के 20 से 25 दिन बाद कलियां निकलना शुरू हो जाती है. बाद में पौधशाला में ग्रीष्म काल में 1 सप्ताह के अंदर से वह शीतकालीन में 2 सप्ताह के अंतर से सिंचाई करते रहना चाहिए. बरसात में जल निकास की उचित व्यवस्था करके पौधशाला में निराई करना बहुत जरूरी होता है. जब भी खरपतवार दिखाई दे तुरंत निराई कर देनी चाहिए. जून के आखिर या जुलाई के प्रथम सप्ताह में 20 किलोग्राम यूरिया जब पौधों में डालें. उस समय जमीन में पर्याप्त मात्रा में नमी होनी चाहिए. इस तरह करने से कलमें लगाने से 10 से 12 माह बाद पौधे मुख्य स्थान पर रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं.
गुलाब की कलम को सीधे खेत में लगाना
कलमें सीधे खेत में लगाने से पहले खेत की पूर्णतया तैयारी कर लेनी चाहिए. समतल करके वह 200 से 300 कुंटल गोबर की सड़ी हुई खराब प्रति हेक्टेयर की दर से डाल देनी चाहिए. तैयार खेत में 1.5×1 मीटर या 1.25×1 मीटर के फासले पर निशान लगा लेना चाहिए. प्रत्येक निशान को केंद्र बिंदु मानकर 30×30 सेमी० आकार वाले 20 सेमी० गहरा गड्ढा तैयार करके प्रत्येक गड्ढे में कोने पर दो-दो कलमें लगाकर गड्ढे को अच्छी तरह मिट्टी से बंद कर देना चाहिए. इस तरह कलमें लगाने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर के बाद ही पौधशाला की तरह सिंचाई निराई गुड़ाई करनी चाहिए. जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए तथा जून के आखिरी या जुलाई के प्रथम सप्ताह में 105 किग्रा यूरिया प्रति की दर से डाल देना सबसे लाभकारी होता है. यूरिया डालते समय जमीन में पर्याप्त मात्रा में नमी होनी चाहिए. इस तरह कलमें लगाने से पौधशाला की आवश्यकता नहीं होती है. और स्वस्थ पौधे प्राप्त होते हैं तथा दूसरे वर्ष ही फूल लगना प्रारंभ हो जाते हैं.
पौधों की रोपाई करें इस तरह
गुलाब के पौधों का रोपण का सबसे अच्छा समय जनवरी-फरवरी माह में होता है. रोपड़ से पूर्व भूमि की अच्छी तरह से तैयारी कर लेनी चाहिए. गोबर की सड़ी हुई खाद डालकर भूमि को समतल कर लेना चाहिए. तैयार खेत में 1.5×1 मीटर या 1.25 x1 मीटर के फासले पर निशान लगाएं. इन निशानों को केंद्र बिंदु मानकर 30 x 30 x 30 सेमी० आकार का गड्ढा बनाकर उस गढ्ढे के चारों कोनों पर चार पौधे लगाकर अच्छी तरह से मिट्टी से भर देना चाहिए. यदि दीमक की समस्या हो तो 10 ग्राम थायमेट कीटनाशक दवा डालनी चाहिए. रोपड़ के तुरंत बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए. रोपण करते समय निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए.
- पौधशाला से पौधे निकालने एवं खेत तक लाने के समय में एक दिन से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए. पौधे बगैर मिट्टी के उखाड़े गए पौधों को छाया में रखकर उन पर पानी छिड़क देना चाहिए.
- आवश्यकतानुसार पौधों की कटाई छटाई पौधशाला में ही करनी चाहिए.
- स्वस्थ एवं निरोग पौधों को ही रोकना चाहिए.
- पौधों को खेत में लगाने से पूर्व खेत का भली-भांति नक्शा तैयार कर लेना चाहिए ताकि कतारे सीधी हो और पौधे लगाने के बाद खेत देखने में भी अच्छा लगे.
पौध रोपण के 20 से 25 दिन बाद कलियां निकलना प्रारंभ हो जाती हैं. इसके कुछ दिनों बाद पुष्प-कलिकाएं बनने लगती हैं जिन पर फूल आते हैं. जिस वर्ष पौधे लगाए जाते हैं उस वर्ष काफी कम मात्रा में फूल लगते हैं. गुलाब का जीवन 10 से 15 वर्ष है लेकिन समय से सक्रिय करने पर तथा उचित उर्वरक डालने पर 20 वर्ष तक इससे फूल लिए जा सकते हैं.
गुलाब में सिंचाई
गुलाब की फसल में जनवरी से मार्च तक सिंचाई की विशेष जरूरत पड़ती है. क्योंकि पौधों की वृद्धि एवं अधिक पुष्प उत्पादन हेतु ऐसा करना आवश्यक होता है. खेत में हर समय नमी बनाकर रखनी चाहिए. इससे पुष्पों का वजन भी बढ़ जाता है. ग्रीष्म काल में 10 से 15 दिन के अंतर पर तथा शीतकाल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए. वर्षा जल के निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए यदि खेत में लगातार पानी भरा रहा तो फसल चौपट हो सकती है.
खाद एवं उर्वरक की मात्रा
बुल्गेरियन गुलाब को खाद एवं उर्वरक दोनों की आवश्यकता अधिक होती है. जनवरी-फरवरी में कटाई छटाई के उपरांत 80 से 100 कुंतल प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद पौधों की जड़ों में खुदाई करते समय डाल देनी चाहिए. इसके उपरांत 303 सिंगल सुपर फास्फेट म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मिश्रण बनाकर बराबर मात्रा में पौधों के चारों तरफ डालकर जमीन में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए.
जब अवधि में वृद्धि शुरू हो जाए तो 0.2% एग्रोमीन नामक मिश्रण घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव कर देना चाहिए. इससे संतुलित वृद्धि होगी तथा पुष्पों का उत्पादन भी अधिक होगा.
गुलाब में निराई गुड़ाई
गुलाब की खेती में मोथे व दूब की भारी समस्या रहती है. उससे दूर करने के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई करना काफी आवश्यक होता है. फरवरी-मार्च में दो-तीन बार गुड़ाई करके समतल करना बहुत जरूरी होता है. जिससे घास की जड़ें भी समाप्त हो जाती हैं. पौधों की कटाई छटाई के बाद खुरपी से गहरी बुराई करके गोबर की सड़ी हुई खाद को जड़ो तक पहुंचा देने में सहायक होती है.
वर्षा ऋतु में कम से कम 2 बार निराई करना आवश्यक होता है. लेकिन उस समय पौधों की कांटेदार शाखाएं बड़ी हो जाती हैं. जिससे निराई में भारी कठिनाई होती है. इसीलिए इस निर्णय को करने के लिए श्रमिकों को ऐसे कपड़े दिए जाएं. जिससे उनके शरीर पर कांटो का प्रभाव ना हो साथ ही दो मुंह वाली लकड़ियों को लगाकर निराई करें. मोथा व दूब को गहरी निराई करके ही निकाला जा सकता है.
गुलाब की कटाई-छंटाई
गुलाब की खेती में कटाई-छंटाई एक मुख्य क्रिया है. वैसे तो पौध रोपण के पहले वर्ष ही कटाई-छंटाई आवश्यक पड़ती है. परंतु 2 वर्ष बाद यह क्रिया अति आवश्यक हो जाती है. कटाई-छंटाई का कार्य दिसंबर के द्वितीय सप्ताह से जनवरी के तृतीय सप्ताह के बीच करना चाहिए. जमीन की सतह से लगभग 40 से 50 सेंटीमीटर की ऊंचाई से सभी शाखाओं की कटाई कर देनी चाहिए. कटाई करते समय सूखी रोग एवं कीट ग्रस्त तथा पतली शाखाओं को पूर्णतया निकाल देना चाहिए.
गुलाब के पौधे में कांटे होने की वजह से कटाई छटाई में परेशानी होती ही है. इसीलिए इसमें दो मुंह वाली शाखा तथा लंबे हाथों वाली हंसी की आवश्यकता पड़ती है. इसकी सहायता से श्रमिक खड़े-खड़े ही कटाई-छंटाई का कार्य कुशलता पूर्वक कर सकता है. जहां तक संभव हो सके शाखाओं के ऊपरी भाग तिरछे रूप में काटे जाएं. जिससे शाखाओं पर एक जमाना हो सके और किसी भी तरह का कवक भी पौधे को हानि ना पहुंचा सके.
फूल आने का समय
गुलाब पर उत्तरी भारत में पौधे लगाने के दूसरे वर्ष फूल आने शुरू हो जाते हैं. लेकिन अच्छी पैदावार तीसरे वर्ष ही मिलती है. जो लगातार 15 वर्षों तक मिलती रहती है. बुल्गेरियन गुलाब उत्तरी भारत में वर्ष में दो बार खिलता है पहली बार मार्च के द्वितीय सप्ताह से अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक दूसरी बार सितंबर के द्वितीय सप्ताह से अक्टूबर के प्रथम सप्ताह तक फूलता है. पहली बार की फसल की मुख्य फसल होती है. जिसे आसानी से चुना जा सकता है. लेकिन दूसरी फसल में पैदावार कम होती है. और शाखाओं के बढ़ जाने से फूलों को चुनने में भी काफी परेशानी होती है. पूरे वर्ष कुल मिलाकर 40 से 50 दिन ही फूल मिलते हैं. पहली फसल में पहले सप्ताह तक फूल बढ़ते हैं तथा तीसरे सप्ताह से कम होना शुरू हो जाते हैं.
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फूलों की तोड़ाई कब करें
फूलों की तोड़ाई सूर्य निकलने से पहले की जानी चाहिए. प्रायः सुबह-सुबह कृषक भाइयों का पूरा परिवार एवं अन्य श्रमिकों के हाथ से फूलों की तोड़ाई करनी चाहिए. फिर व्यापारी के पास भेज देना चाहिए. सुबह 8:00 बजे के बाद फूलों की तोड़ाई करने से इतर की मात्रा में भारी कमी आ जाती है. आप नीचे दी गई सारणी के हिसाब से ट्राई कर सकते हैं.
फूल तोड़ने का समय | इत्र की मात्रा (प्रतिशत) |
प्रातः 4 बजे से 6 बजे तक | 0.048 |
प्रातः 6 बजे से 8 बजे तक | 0.042 |
प्रातः 8 बजे से 10 बजे तक | 0.036 |
प्रातः 10 बजे से 12 बजे तक | 0.028 |
दूसरी फसल में फूलों को तोड़ने में परेशानी होती है. क्योंकि इस समय शाखाएं बड़ी हो जाती हैं. तथा बड़े बड़े कांटे भी अंगुलियों में चुभते हैं. अतः इनके बचाव के लिए हाथ में रबड़ के दस्ताने पहनना बहुत जरूरी होता है. मोटे कपड़े पहनकर शरीर को भी कांटों से बचाया जा सकता है.
गुलाब के फूलों की पैदावार
फूलों की पैदावार भूमि, प्रजाति एवं अन्य सस्य क्रियाओं पर निर्भर करती है. साधारणतः औसतन पैदावार 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक किसान भाइयों को मिल जाती है. यदि उर्वरक उचित अनुपात में दिया जाए और मार्च महीने में 5 से 6 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जाए. तो फूलों की पैदावार लगभग 40 से 50 कुंटल पर देखते भी मिल जाती है.