Jackfruit farming – कटहल की खेती कैसे करे ? जानिए अपनी भाषा हिंदी में

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jackfruit farming
कटहल की खेती (Jackfruit farming) कैसे करे ?

कटहल की खेती (Jackfruit farming)

नमस्कार किसान भाईयों,कटहल के फल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है.भारत में इसकी बागवानी काफी राज्यों में की जाती है.आज गाँव किसान अपने इस लेख के द्वारा आप सभी को कटहल की खेती (Jackfruit farming) कैसे करे ? इसकी पूरी जानकारी देगा,वो भी अपनी भाषा हिंदी में.जिससे आप सभी कटहल की खेती (Jackfruit farming) कर अधिक लाभ ले सके.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

कटहल का वैज्ञानिक नाम आर्टोकार्पस हेटेरोफाइलस (Artocarpus heterophylles) तथा मोरेसी (Moraceae) कुल का यह वृक्ष है.कटहल के मूल स्थान के विषय में निश्चित रूप से नही कहा जा सकता है.भारत में इसके पौधे सर्वप्रथम पश्चिम घाट के पहाड़ी क्षेत्रों में जंगली तौर पर उगते पाए गए और इन क्षेत्रों से यह फल अन्य उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फैल गए.पुर्तगाल वासियों ने इसे जैक का नाम दिया था.इसकी बागवानी भारत, म्यामार, श्रीलंका, दक्षिणी चीन, मारीशस, आस्ट्रेलिया और ब्राजील में 1935 मीटर की ऊंचाई से नीचे वाले स्थानों में की जाती है.भारत के असम राज्य में इसकी बागवानी सबसे अधिक क्षेत्रफल में की जाती है.जो लगभग 8000 हेक्टेयर है.इसके अलावा केरल, तमिलनाडु, झारखण्ड, आंध्रप्रदेश, आदि राज्यों में इसकी खेती की जाती है.

कटहल के फायदे 

स्वाद और पौष्टिकता की द्रष्टि से कटहल का फल अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.इसके फल बसंत ऋतु से वर्षा ऋतु तक उपलब्ध होते है.बसंत ऋतु में जब प्रायः सब्जी का अन्य प्रजातियों में अभाव रहता है.कटहल के छोटे मुलायम नवजात फल एक प्रमुख एवं स्वादिष्ट सब्जी के रूप में प्रयोग किये जाते है.कटहल का उपयोग अचार बनाने में भी किया जाता है.पका कटहल खाने में मीठा और पौष्टिक होता है.

भूमि एवं जलवायु 

कटहल (Jackfruit farming) के पौधे लगभग सभी प्रकार के भूमि में लगाए जा सकते है.परन्तु अच्छी बढवार एवं पैदावर के लिए जीवांशयुक्त बलुई दोमट भूमि उपयुक्त होती है.भूमि से जल निकास का उचित प्रबन्धन आवश्यक है.

कटहल गर्म जलवायु का पौधा है.जाड़ों में पाला व गर्मियों में लू इसकी खेती के लिए अच्छी होती है.समुद्र तल से 1200 मीटर की उंचाई वाले क्षेत्रों में कटहल की खेती की जा सकती है.

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उन्नत किस्में 

कटहल एक परपरागित फल है,तथा प्रमुखतः बीज द्वारा प्रसार होता है इसलिए इसमें प्रचुर जैव विवधता पायी है.अभी तक कटहल की कोई मानक किस्म का विकास नही हुआ है, परन्तु फलन एवं गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न शोध केन्द्रों द्वारा कटहल की कुछ उन्नतशील किस्में इस प्रकार है–

खजवा 

इस किस्म के पेड़ की ऊंचाई मध्यम ( 7 से 8 मीटर ) तथा क्षत्रक फैलाव अधिक (53 वर्गमीटर ) होता है.इसमें मादा पुष्पों की संख्या अधिक होने के कारण फल अधिक मात्रा में लगते है.फलों कोवा छोटा परन्तु अधिक संख्या में एवं मिठास होने के कारण यह एक महत्वपूर्ण किस्म है.

सी० एच० ई० सी०-1 

छोटे अकार के पेड़ में बड़े-बड़े एवं अधिक संख्या में फल देने वाली यह उम्दा किस्म है.इस किस्म में फरवरी के प्रथम सप्ताह में फल लग जाते है,जिनको छोटी अवधि में सब्जी के लिए बेचकर अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है.

सी० एच० ई० सी०-2 

यह सब्जी के लिए उम्दा किस्म है.इस किस्म में फल छोटा, रेशा कम, बीज छोटा एवं पतले आवरण वाला तथा बीच का भाग मुलायम होता है.इस किस्म के फल देर से पकने के कारन लम्बे समय तक सब्जी के लिए उपयोग किये जा सकते है.

रुद्राक्षी 

इस किस्म के फल छोटे होते है.फल अधिक बराबर आकार के तथा औसत किस्म के होते है.फल सितम्बर से दिसम्बर तक प्राप्त किये जा सकते है.इसमें फल पौधे लगाने के 2 से 3 वर्ष में ही फल देने लगते है.

पौध प्रसारण 

कटहल का प्रवर्धन मुख्य रूप से बीज से किया जाता है.एक समान पेड़ तैयार करने के लिए वानस्पतिक विधि द्वारा पौधा तैयार करना चाहिए.वानस्पतिक विधि से इनार्चिंग तथा ग्राफ्टिंग अधिक सफल पायी गयी है.

पौध रोपण एवं देखरेख 

कटहल के पौधे का आकार बड़ा होता है.इसलिए इसे 10 X 10 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है.पौध रोपण के लिए समुचित रेखाकंन के बाद निर्धारित स्थान पर अप्रैल-मई के महीने में 1 x 1 x 1 मीटर आकार के गड्ढा तैयार किया जाता है.गड्ढा तैयार करने के दौरान गड्ढे के ऊपर की आधी मिट्टी एक तरफ और नीचे की आधी मिट्टी दूसरी तरफ रखनी चाहिए.

इन गड्ढों को 15 दिन खुले रखने के बाद उपरी मिट्टी में 20 से 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद 1 से 2 किलोग्राम करंज या नीम की खली तथा 100 ग्राम नाइट्रोजन,100 ग्राम फास्फोरस तथा 100 ग्राम पोटाश के मिश्रण को अच्छी तरह मिलाकर भर देना चाहिए.जब गड्ढे की मिट्टी अच्छी तरह दब जाए तब इसके बीचों बीच में पौधे के पिंडी के आकार का गड्ढा बनाकर पौधा लगाना चाहिए.पौधा लगाने के बाद चारो तरफ से अच्छी तरह मिट्टी को दबा देना चाहिए और उसके चारों तरफ से अच्छी तरह थाला बनाकर पानी देना चाहिए.यदि वर्षा न हो तो पौधे की नियमित सिंचाई की जानी चाहिए.

पौधा लगाने के बाद से एक वर्ष तक पौधों की अच्छी तरह देखभाल करनी चाहिए.पौधे के थालों में समय-समय पर खरपतवार निकाल कर निकाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार सिंचाई भी करते रहना चाहिए.पौधों को जुलाई अगस्त में खाद एवं उर्वरक देना चाहिए.नए पौधों में 3 वर्ष तक उचित ढांचा देने के लिए कांट छांट करना चाहिए.मुख्य तने पर 1.5 से 2.0 मीटर तक किसी भी शाखा को नही निकलने देना चाहिए.कटहल के पौधों के मुख्य तनों एवं शाखाओं से निकलने वाले उसी वर्ष के कल्लों पर फल लगता है.इसलिए इसके पौधों में किसी विशेष कांट छांट की आवश्यकता नही होती है.फल तोड़ने के बाद फल से जुड़े पुष्पवृंत टहनी को काट देना चाहिए,जिससे अगले वर्ष अच्छी फसल हो.

खाद एवं उर्वरक

कटहल के पेड़ में प्रत्येक साल फलन होता है.इसलिए अच्छी पैदावर के लिए पौधे को खाद एवं उर्वरक पर्याप्त मात्रा में देना चाहिए.प्रत्येक पौधों को 20 से 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद, 100 ग्राम यूरिया, 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश प्रति वर्ष की दर से जुलाई माह में देनी चाहिए.जब पौधे 10 वर्ष के हो जाए तब उसमें 80 से 100 किलोग्राम गोबर की खाद,1 किलोग्राम यूरिया, 2 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति वर्ष देना चाहिए.

पुष्पन एवं फलन

कटहल एक मोनोसीयस पौधा है, जिसमें नर एवं मादा पुष्पक्रम एक ही पेड़ पर परन्तु अलग-अलग स्थानों पर आते है.नर फूल, जिसकी सतह अपेक्षाकृत चिकनी होती है.ये नवम्बर से दिसम्बर में पेड़ को पतली शाखाओं पर आते है. ये फूल कुछ समय बाद गिर जाते है.मादा फूल मुख्य तने एवं मोटी डालियों पर जनवरी-फरवरी में आ जाते है.मादा फूल अधिक ओजपूर्ण वृंत जिसकी सतह अपेक्षा खुरदरी होती है, पर एकल एवं गुच्छे में आते है, उसके साथ नर भी पुष्प निकलते है.कटहल एक पर-परागित फल होता है, जिसमें परागण मौजूदा नर पुष्प से ही होता है.यदि मादा फूल में सामान परागण नही होता है, तो फल का विकास सामान्य रूप नही होता है.कटहल के फल जनवरी-फरवरी से लेकर जून-जुलाई तक पूर्ण विकसित हो जाते है.और जून जुलाई में फल पक जाते है.

परिपक्वता एवं उपज  

कटहल कई प्रकार से उपयोग में लाया जाता है इसलिए इसकी परिपक्वता एवं तोड़ाई को उपयोग के आधार पर कई वर्गों में बांटा जा सकता है.अति नवजात एवं मध्यम उम्र के फल जिसे सब्जी के लिए प्रयोग किये जाता है, को उस समय तोड़ लेना चाहिये जब उसके डंठल का गहरा हरा गूदा कठोर और मुलायम हो जाय. इसके साथ-साथ बाजार में मांग के आधार पर तोड़ाई कर सकते है.कटहल के पूर्ण विकसित फल खाने के लिए फलों को पूर्ण विकसित तथा परिपक्व होने ही तोड़ना चाहिए.साधारणतः फल लगने के 100 से 120 दिनों बाद फल तोड़ने के लायक हो जाता है. तोड़ते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे फलों को सीधा जमीन पर न गिरने पाय नहीं तो फल फट जाते है.इसलिए फल के डंठल को रस्सी से बाँध कर धीरे-धीरे नीचे उतारकर किसी छायादार स्थान पर रखना चाहिए.कटहल बीजू पौधों में 7 से 8 वर्ष में फलन प्रारंभ होता है.जबकि कलमी पौधों 4 से 5 वर्ष में फल मिलने लगते है.एक पूर्ण विकसित वृक्ष से लगभग 150 से 300 किलोग्राम फल प्रतिवर्ष प्राप्त किया जा सकता है.

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कीट एवं रोग नियंत्रण 

कटहल में अन्य सभी फलों की तुलना में कीट एवं रोग कम लगते है.फिर भी जिन कीट एवं रोगों का प्रकोप होता है वे निम्न लिखित है–

(1) मिलीबग – यह पत्तियों तथा कोमल टहनियों का रस चूसता है,जिससे यह सूख जाते है.

रोकथाम – चूना-गंधक के छिड़काव या बुरकाव किया जाना चाहिए.

(2) तना छेदक कीट – यह मुख्य तने में सुरंग बनाकर काफी हानि पहुंचाते है.अधिक उग्रता की अवस्था में पेड़ सूख जाते है.

रोकथाम – छिद्र को किसी पतले तार से साफकर नुवान का घोल (10 मिली० प्रति लीटर पानी) अथवा पेट्रोल या किरासन तेल को रुई में भिगोकर छिद्र में डालकर गीली चिकनी मिट्टी से बंद कर देना चाहिए.इस प्रकार वाष्पीकृत गंध से कीट मर जाते है.

(3) फल का सड़ना या गिरना – यह कवक जनित रोग होता है, जिसमें नवजात कटहल के फल डंठल के पास से धीरे-धीरे सड़ने लगता है.फल पेड़ पर लगने के बाद लक्षण स्पष्ट दिखाई देते है.

रोकथाम – ब्लू कॉपर ( 0.3 ) घोल का छिड़काव दो बार 15 से 20 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए.

निष्कर्ष

किसान भाईयों उम्मीद करता हूँ गाँव किसान का कटहल की खेती (Jackfruit farming) सम्बन्धी लेख आपको पसंद आया होगा.गाँव किसान द्वारा कटहल के उत्पति एव क्षेत्र से लेकर रोग एवं कीट नियंत्रण तक सभी जानकारिया आपको दी गयी है फिर भी अगर कटहल की खेती (Jackfruit farming) सम्बन्धी आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट करके पूछ सकते है इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट करके जरुर बताएं.महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

 

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