चना की खेती (Gram Farming) कैसे करे ?
नमस्कार किसान भाईयों, चना हमारे भोजन का प्रमुख अंग है.हम सभी अपने दैनिक जीवन में चना को विभिन्न रूपों में उपयोग करते है.जैसे- दाल, छोले, बेसन, बेसन से बनी स्वादिष्ट मिठाइयाँ, नमकीन, हरा साग, हरा चना, सत्तू आदि.आज गाँव किसान अपने लेख द्वारा चना की खेती (Gram Farming) कैसे करे ? आप सभी को अपनी भाषा हिंदी में बताएगा.जिससे किसान भाई इसकी खेती कर फायदा उठा सके.तो आइये जानते है चना की खेती (Gram Farming) की पूरी जानकारी.
चना के फायदे
चना से हमारे शरीर का रक्त साफ़ होता है साथ ही पेट जनित बीमारियों में लाभकारी है.क्योकि चना के हरे पत्तों में मेलिक अम्ल (Mallic acid) साइट्रिक अम्ल (Citric acid) पाया जाता है.चने में 18 से 22 प्रतिशत प्रोटीन, 61 से 62 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 4.5 प्रतिशत वसा, तथा 28 मिलीग्राम कैल्सियम, 301 मिली० ग्राम फास्फोरस, 12.3 मिली० ग्राम लोहा प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है.चना की फसल मिट्टी में 41 से 134 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से वायुमंडलीय नेत्रजन स्थापित करता है.जो बाद में बोई जाने वाली फसल के लिए लाभकारी होता है.चना की भूसी पशुओं के पौष्टिक चारे के रूप में उपयोग होती है.चना की एक हेक्टेयर फसल से 25 से 30 कुंटल फसल अवशेष प्राप्त होता है.जिसका उपयोग किसान पशुपालक पशु आहार के रूप में करते है.
उत्पत्ति एवं क्षेत्र
चना की उत्पत्ति का मूल स्थान दक्षिण पश्चिम एशिया शायद अफ़गानिस्तान है.भारत में चना की खेती लगभग 71 लाख हेक्टेयर भूमि में की जाती है.जिससे 57.5 लाख टन चना की उपज प्राप्त होती है.भारत में इसकी खेती राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार आदि राज्यों में की जाती है.
मिट्टी एवं जलवायु
चना की खेती (Gram Farming) सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है.लेकिन धनहर क्षेत्रों की भारी मिट्टी वाली भूमि इस फसल के लिए अधिक उपयुक्त होती है.
ठन्डे मौसम (रबी) में चना की खेती करते है तथा 15 से 25 डिग्री का तापमान इसके वानस्पतिक विकास के लिए उचित रहता है.
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उन्नत किस्में
चना की उन्नत किस्में निम्नवत है-
किस्में | बुवाई का समय | पकने की अवधि (दिनों में) | औसत उपज (कुंटल प्रति हेक्टेयर) | अभियुक्ति |
देशी चना
जी० सी० पी० 105 |
01-30 नवम्बर | 140-148 | 22-25 | मध्यम दाना उकठा, जड़ गलन रोग के प्रति सहनशील |
जी० सी० पी० 92-3 | 01-30 नवम्बर | 135-140 | 18-20 | छोटा दाना उकठा अवरोधी |
पूसा 256 | 01-30 नवम्बर | 140-150 | 20-25 | बड़ा दाना |
जे० जी०-14 | 01-30 नवम्बर | 130-140 | 15-18 | बड़ा दाना |
पूसा 362 | 15 नवम्बर से 15 दिसम्बर | 130-140 | 15-20 | मध्यम दाना |
पी० जी० 186 | 15 नवम्बर से 15 दिसम्बर | 135-145 | 18-20 | मध्यम दाना फली छेदक के प्रति सहनशील |
पूसा 372 | 15 नवम्बर से 15 दिसम्बर | 130-140 | 15-18 | छोटा दाना फली छेदक उकठा, गलन के प्रति सहनशील |
काबुली चना | ||||
सुभ्रा | 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर | 135-145 | 18-20 | बड़ा दाना |
वी० जी० 1053 | 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर | 140-145 | 12-15 | उकठा रोग रोधी |
एच० के० 94-134 | 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर | 140-150 | 18-20 | उकठा जड़ गलन रोग रोधी |
बीज दर
देशी चने की बुवाई के लिए 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है.वही बड़े दाने या काबुली चने के लिए बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए.
बीचोपचार
- चने की बुवाई के 24 घंटे पहले चने के बीज को 2.5 ग्राम फफूंदनाशी दवा डाईफोंटान अथवा थीरम अथवा कैप्टान से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.
- चने में कजरा पिल्लू कीट के नियंत्रण के लिए क्लोरपाईरीफ़ॉस 20 ई० सी० कीटनाशक दवा को 8 मिली० ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.
- उकठा प्रभावित क्षेत्रों में बीज को ट्राईकोडर्मा से उपचारित अवश्य करे.
खेत की तैयारी
अगात खरीफ एवं धान की फसलों की कटाई के बाद खेत की अविलम्ब तैयारी जरुरी है.पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए.इसके बाद 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करे एवं हर बार पाटा जरुर लगाये.इससे मिट्टी भुरभुरी एवं भूमि समतल हो जाती है.खेत से पानी निकास की उचित व्यवस्था जरुर करे.
बोने की दूरी
ज्यादातर किसान चने को छिटकवां विधि से बुवाई करते है.लेकिन पंक्तियों में बुवाई करने से उत्पादन अच्छा होता है.इसलिए पंक्ति में बुवाई करते समय ध्यान रखे पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 30 सेमी० तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी० रखना चाहिए.
उर्वरक प्रबन्धन
चने की खेती (Gram Farming) के लिए 20 किलोग्राम नत्रजन,40 से 50 किलो स्फूर (100 किलोग्राम डी० ए० पी०) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.अभी उर्वरको की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व अंतिम जुताई के समय एक समान रूप से खेत में डाल देना चाहिए.
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबन्धन
चना में दो बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है.पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25 से 30 दिनों बाद एवं दूसरी 45 से 50 दिनों बाद करनी चाहिए.यदि खरपतवार अधिक है तो रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमिथालीन 30 ई० सी० की 3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के उपरान्त अंकुरण के पूर्व छिड़काव करना चाहिए.
सिंचाई प्रबन्धन
दलहनी फसलों को कम पानी की आवश्यकता होती है.अगर नमी कम है तो उस स्थिति में एक सिंचाई बुवाई के 45 से 50 दिनों के बाद करनी चाहिए.
मिश्रित खेती
चने के साथ धनिया, राई, सरसों, तीसी एवं गेहूँ की मिश्रित खेती की कर सकते है.चने के साथ धनिया अंतरवर्ती खेती करने से चने में फली छेदक कीट का प्रकोप कम हो जाता है.
कीट एवं रोग प्रबन्धन
क्रम सं० | फसल का नाम | कीट एवं रोग का नाम | कीट / रोग के कारकों का नाम | लक्षण | प्रबन्धन |
1. | चना (Gram) | चना का फली छेदक (Gram pod borer) | हेलिकोवरपा आर्मीजेरा (Helicoverpa armigera) | कीट की छोटी शिशु या पिल्लू इधर उधर धूमकर फूल तथा फली में पहुंचकर उसमे छेद करके खाती है. फली में शिशु का मल भी पाया जाता है. | 1.चना की फसल के कटते ही खेत की अच्छी तरह जुताई कर देना चाहिए.ताकि प्यूपा ग्रीष्म ऋतु में मर जाए.
2.फेरोमोन टेप का प्रयोग 10 टेप प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में करना चाहिए. 3.अत्यधिक प्रकोप होने पर क्वीनालफ़ॉस 20 ई० सी० दवा का 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. |
चना का उकठा रोग (Wilt of Gram) | फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरियम (Fusarium oxysporium) | रोग ग्रसित पौधो की पत्तियां पीली पड़ जाती है.पौधे मुरझा झुक जाते है.सवंमित पौधे के तना और मुख्य जड़ को बीच से चीरने पर गहरे भूरे या काले रंग की धारी दिखाई पड़ती है. | 1. ग्रीष्म ऋतु में खेत की गहरी जुताई करे.
2.खेत तैयार करते समय गोबर की खाद 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिये. 3.बुवाई से पूर्व 1 ग्राम बीटावेक्स या वैविस्टान कवकनाशी या 4 ग्राम ट्राईकोडरमा चूर्ण द्वारा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिए. |
उपज
उचित प्रबंधन के साथ देशी चना की खेती की जाय तो उपज लगभग 15 से 25 कुंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है.वही काबुली चना 12 से 20 कुंटल प्रति हेक्टेयर की दर से प्राप्त कर सकते है.
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कटाई, दौनी एवं भण्डारण
फसल तैयार होने पर जब चना की फलियाँ पीली पड़ जाती है.तथा पौधा सूख जाता है.तब पौधों को काटकर धूप में सुखा ले एवं दौनी कर दाना अलग कर करे.चने के दानों को धूप में सुखाकर ही भंडारित करे.
निष्कर्ष
किसान भाईयों, उम्मीद है इस गाँव किसान के इस लेख से आप सभी को चना की खेती (Gram Farming) की जानकारी मिल पायी होगी.गाँव किसान द्वारा चना का फायदे से लेकर भंडारण तक सभी जानकारी दी गयी है.फिर भी चना की खेती (Gram Farming) से सम्बन्धित कोई प्रश्न हो या कोई अन्य प्रश्न हो नीचे बॉक्स में कमेन्ट कर कर बताये.इसके अलाव यह लेख कैसा लगा जरुर बताएं.महान कृपा होगी.
अभी सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद,जय हिन्द.