मेथी चारा पशुओं के लिए एक पौष्टिक चारा फसल
मेथी को चारे के लिए उत्तर भारत के कई राज्यों में उगाया जाता है. इसका चारा पशुओं के लिए काफी पौष्टिक होता है. इसके सेवन से पशु काफी हष्ट पुष्ट रहते हैं. मेथी की फसल को पुष्पा अवस्था में काटने पर पौष्टिक हरा चारा उपलब्ध हो जाता है. पशु इसका सेवन बरसीम की तरह करते हैं.
मेथी में पाए जाने वाले पोषक तत्व
मेथी से पशुओं को काफी पोषक तत्व मिलते हैं. इसकी हरे चारे में नमी 77.3 प्रतिशत, प्रोटीन 3.6 प्रतिशत, ईथर निष्कर्ष 0.5%, रेशा 7.1%, राख 2.7 प्रतिशत, नाइट्रोजन रहित निष्कर्ष 9.5%, कैल्शियम 0.47%, फास्फोरस 0.12% और पोटैशियम 0.63% पाया जाता है. इसीलिए उसका हरा चारा पशुओं के लिए काफी लाभकारी माना जाता है.
मेथी की उत्पत्ति और उसका इतिहास
मेथी एक शाकीय एवं 1 वर्षीय पौधा है. इसकी उत्पत्ति स्थान भारत माना जाता है. भारत में यह पौधा प्राचीन काल से मसाले एवं दवाओं के लिए उगाया जाता है. यह भारत के कई भागों के अलावा विश्व में मिस्र एवं एशिया के अन्य भागों में चारों के लिए उगाया जाता है.
देश में मेथी को चारे के रूप में उन सभी जगह हुआ जा सकता है. जहां पर बरसीम की खेती की जाती है. यह एक सिंचित फसल है. इसके लिए सिंचाई का उचित प्रबंध होना आवश्यक है. देश में चारे के लिए इसकी खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार तथा मध्य प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है.
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मेथी का वानस्पतिक विवरण
मेथी का वास्तविक नाम ट्राईगोनेला फीनमग्रीकम है. इसकी लगभग 75 जातियां पाई जाती हैं. यह एक वर्षीय तथा शाकीय फसल है. जिसके तने मुलायम तथा रसीले और पत्तियां त्रिपत्रक रूप में एवं हरी होती हैं. इसके पुष्प सफेद तथा फलियां लंबी पाई जाती हैं. इसके तने शाकीय तथा ठोस होते हैं. पौधा छोटा एवं सीधा होता है.
मेथी के लिए जलवायु एवं भूमि
मेथी की खेती सामान्य रूप से सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है. परंतु उत्तरी पहाड़ी भागों में अधिक ठंड या पाले की अवस्था में इसकी खेती नहीं की जा सकती है. इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी भूमि दोमट या बलुई दोमट है. हल्की और कमजोर या कम उपजाऊ भूमि पर मेथी उगाने से अधिक सिंचाई या खाद देनी पड़ती है. इसके बावजूद भी इसकी उपज कम हो सकती है.
मेथी के लिए फसल चक्र
इस फसल को मक्का या अन्य खरीफ की फसलों के पश्चात बोते हैं. इसलिए इसकी खेती के लिए निम्न फसल चक्र अपनाना चाहिए-
- मक्का (दाना) + मेथी-सूडान घास (एक वर्षीय)
- मक्का (दाना) + मेथी-मक्का + लोबिया (एक वर्षीय)
- ग्वार (चारा) + मेथी-गन्ना (द्विवर्षीय)
- चारा (दाना) + मेथी-गन्ना (द्विवर्षीय)
- ज्वार-मेथी + जेई-मक्का + लोबिया (एक वर्षीय)
- कपास-मेथी (एक वर्षीय)
मेथी की उन्नत किस्में
मेथी की उन्नत किस्मों में किसान भाइयों को स्थानी किस्में उगानी चाहिए. अभी तक कोई अच्छी किस्म नहीं निकाली गई है. जो स्थानी किस्मों से अधिक उपज दे. स्थानी किस्में स्थान के भेद से गुणों मर भिन्न भी होती हैं.
खेत की तैयारी
मेथी की खेती के लिए खरीफ की फसल काटने के बाद खेत को एक जुताई तथा दो से तीन बार हैरो चलाकर अच्छी प्रकार तैयार कर लेना चाहिए. यदि नमी की कमी हो तो पलेवा करके खेत की तैयारी करनी चाहिए.
मेथी की बुवाई
इस फसल को प्रायः ज्वार या बाजरा की फसल के बाद उगाते हैं. इसके लिए खेत को अच्छी प्रकार तैयार करके बीज को छिटकवाँ विधि से बोलना चाहिए. बीज दर प्रति हेक्टेयर 25 से 35 किलोग्राम तक होती है. उचित बीज दर पर प्रायः अलग-अलग स्थानीय किस्मों तथा सिंचाई के साधनों की उपलब्धता से घट बढ़ सकती है. अधिक सिंचाई वाले स्थानों पर बीज दर 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होना चाहिए. बुवाई का उचित समय अक्टूबर होता है. वैसे इस फसल की बुवाई नवंबर के अंत तक भी की जा सकती है. छिटकवाँ विधि से बुवाई करने से में बीज को तैयार खेत या क्यारियों में छिटक देना चाहिए फिर हल्का हैरो चलाकर मिट्टी में बीज को मिला देना चाहिए.
मेथी की बुआई सीड ड्रिल द्वारा कतारों में की जा सकती है. इसके लिए कतार से कतार की दूरी 20 से 21 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. यदि आवश्यकता हो तो बीज की उपयुक्त संभव द्वारा उपचारित करना चाहिए.
खाद एवं उर्वरक की मात्रा
सिंचित स्थानों पर यह फसल असिंचित स्थानों से काफी अच्छी पाई गई है. इसके लिए 250 कुंटल प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में गोबर की खाद डालनी चाहिए. यदि गोबर की खाद उपलब्ध ना हो तो बुवाई के समय 25 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 50 किलोग्राम फास्फोरस अम्ल खेत में डालना आवश्यक है. उचित स्थानों पर गोबर की खाद डालना अधिक लाभ कर होता है.
सिंचाई एवं जल निकास
मेथी की बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई करना आवश्यक है. फिर 10 से 20 दिनों बाद के अंतर पर सिंचाई सिंचाई करना चाहिए. चारे की फसल के लिए औसतन 6 से 7 सिंचाई या तथा बीज उत्पादन के लिए 8 से 9 सिंचाई करनी चाहिए.
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फसल सुरक्षा
इस फसल में खरपतवार नियंत्रण, कीड़ों तथा बीमारियों के नियंत्रण की कोई विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती है. कभी-कभी जल्दी में बोई गई फसल पर रोमिल इल्लियों से हानि पहुंचती है. इसके लिए थायोडान की 1 लीटर मात्रा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए.
मेथी की कटाई तथा उपज
चारे की पहली कटाई बाई के 55 से 60 दिनों बाद करनी चाहिए. इसके पश्चात द्वितीय तथा तृतीय कटाई 3 से 4 सप्ताह के अंतर पर करना चाहिए. यह फसल लगभग 4 माह में पक कर तैयार हो जाती है. सिंचित स्थानों में चारे की कुल उपज लगभग 150 से 200 कुंटल तक हो जाती है. वही असिंचित स्थानों पर मेथी के चारे की उपज 60 से 80 कुंटल तक हो जाती है.