अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) कैसे करे ?
नमस्कार किसान भाइयों, अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जाती है.यह देश की प्रमुख दलहनी फसल है.देश में अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) का स्थान चना के बाद दूसरा है.आज गाँव किसान (gaon kisan) अपने इस लेख द्वारा आप सभी को अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) कैसे करे ? पूरी जानकारी देगा,वो भी अपने देश की भाषा हिन्दी मे,जिससे किसानों को इसकी खेती करने में सहायता मिल सके,तो आइये जाने कि अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) कैसे करे ?-
अरहर के फायदे
अरहर की दाल में अन्य दालों की अपेक्षा अधिक प्रोटीन पाई जाती है.इसमें 20 से 21 प्रतिशत तक प्रोटीन पायी जाती है.इसके अलावा इसका पाच्यमूल्य भी अन्य प्रोटीन से बढ़िया होता है.अधिक प्रोटीन होने के कारण यह देश के भोजन का मुख्य हिस्सा है.इसकी 100 ग्राम दाल से 22.3 प्रतिशत प्रोटीन, 1.7 प्रतिशत वसा, 73 मिग्रा० कैल्सियम, 304 मिग्रा० फास्फोरस, 5 से 8 ग्राम लोहा पाया जाता है. यह मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है.
उत्पत्ति एवं क्षेत्र
विश्व का 90 प्रतिशत अरहर भारत में पैदा की जाती है.इसकी उत्पत्ति भारत में ही हुई है.और यही से अफ्रीका तथा विश्व के दूसरे देशों में इसकी खेती की जाती है.भारत में अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) औसतन 36 लाख हेक्टेयर में की जाती है.जिससे 27 लाख टन दाल मिलती है.जो कि दलहनी फसलों के क्षेत्र एवं उत्पादन का 15.6 तथा 18.6 प्रतिशत है.भारत में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, एवं आंध्र प्रदेश प्रमुख अरहर उत्पादक राज्य है.
उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है.हल्की बलुई मिट्टी से लेकर भारी दोमट मिट्टी जहाँ पर जल निकास की समुचित व्यवस्था हो खेती के लिए उपयुक्त है.भूमि का पी०एच० मान 7 से 8 के बीच का होना चाहिए.
अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) के लिए अधितम तापमान 40 डिग्री० सेंटीग्रेड तथा कम तापमान 5 से 10 डिग्री सेंटीग्रेड पर की जा सकती है.इसे लम्बे अंतर वाले मौसम में खेती की जा सकती है.इसके अलावा इस उष्ण कटिबंधीय तथा उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों तथा शीतोष्ण जहाँ गर्मी कम पड़ती है.इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है.जहाँ पर 650 मिमी० वर्षा होती है.वहां पर इसकी खेती संभव है.पाला इसका सबसे बड़ा दुश्मन है,जिससे इसे बचाना चाहिए.पाला पड़ने वाले क्षेत्रों में इसकी खेती संभव नही है.
भूमि की तैयारी
भूमि की तैयारी मिट्टी के प्रकार तथा पिछली फसल पर निर्भर करती है.खेत की तैयारी इस प्रकार करते है कि खेत-खरपतवार मुक्त हो जाय.बरसात शुरू होने से पहले एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से इसके बाद देशी हल से या मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके खेत को तैयार कर लेते है.खेत में पाटा देकर खेत को समतल कर देते है.साथ ही साथ खेत को एक तरफ थोडा ढलान रखते है ताकि बरसात का पानी खेत से बाहर निकल जाय.
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प्रमुख उन्नतशील प्रजातियाँ
राज्यवार प्रमुख प्रजातियाँ
राज्य | उन्नत प्रजातियाँ |
आंध्र प्रदेश | लक्ष्मी, एल० आर० जी० 41, एल० आर० जी० 38, डब्लू० आर० जी० 27, डब्लू० आर० जी० 53, बहार, एन० डी० ए० 1, डब्लू० आर० जी० 65, (एम० आर० जी० 1004) |
बिहार | एम० ए० 6, आजाद, डी० ए० 11, आई० पी० ए० 203, बहार, पूसा 9, नरेन्द्र अरहर 2 |
मध्य प्रदेश | जे० के० एम० 189, टी० जे० टी० 501, जे० के० एम० 7, टी० टी० 401, आई० सी० पी० एल० 87119 |
छत्तीसगढ़ | राजीव लोचन, एम० ए० 3, आई० सी० पी० एल० 87119, विपुला, बी० एस० आर० 853 |
गुजरात | जी० टी० 100, जी० टी० 101, बानस, बी० डी० एन० 2, बी० एस० एम० आर० 853, ए० जी० टी० 2 |
हरियाणा | पारस, पूसा 992, उपास 120, ए० एल० 201, मानक, पूसा 992, उपास 120, ए० एल० 201, मानक, पूसा 855, पी० ए० यू० 8817 |
कर्नाटक | वान्बन 3, सी० ओ० आर० जी० 9701, आई० सी० पी० एल० 84031, बी० आर० जी० 2, मारुती (आई० सी० पी० 8863), डब्ल्यू० आर० पी० 1, आशा (आई० सी० पी० एल० 87119), टी० एस० 3 |
महाराष्ट्र | बी० डी० एन० 711, बी० एस० एम० आर० 736, |
पंजाब | एल० ए० 201, पी० ए० यू० 881, पूसा 992, उपास 120 |
उत्तर प्रदेश | बहार, एन० डी० ए० 1, एन० डी० ए० 2, अमर, एम० ए० 6, एम० ए० एल० 13, आई० पी० ए० 203,उपास 12011 |
राजस्थान | उपास 120, पी० ए० 291, पूसा 992, आशा ( आई० सी० पी० एल० 87119), वी० एल० ए० 1 |
तमिलनाडु | को-6, सी० ओ० आर० जी० 9701, वन्बन 3, आई० सी० पी० एल० 151, वन्बन 1 और 2 |
झारखण्ड | बहार, आशा, एम० ए० 3 |
उत्तराखंड | वी० एल० ए० 1, पी० ए० 291, उपास 120 |
स्रोत : सीडनेट, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार
रबी की बुवाई के लिए उपयुक्त प्रजातियाँ
बहार, शरद (डी० ए० 11), पूसा 9, डब्लू० बी० 20 अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन अंतर्गत शीध्र, मध्यम व देर से पकने वाली उन्नत प्रजातियों ने विभिन्न स्थानीय/पुराणी प्रजातियों की अपेक्षा 94, 36 एवं 17 प्रतिशत अधिक देती है.
बीज दर
- खरीफ की फसल हेतु बुवाई के लिए 14 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरुरत होती है.
- रबी की फसल हेतु 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरुरत होती है.
बीजोपचार
अरहर की बुवाई से ठीक 48 घंटे पहले पहले 2 से 2.5 ग्राम फफूंदनाशी दवा (डाईफोल्टान अथवा थीरम अथवा कैप्टान) से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.बुवाई से बिलकुल पहले फफूंदनाशक दवा से उपचारित बीजों को उचित राइजोवियम कल्चर एवं पी० एस० बी० से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए.
बोने की दूरी
खरीफ की फसल के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 75 सेमी० एवं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी० रखे.रबी की फसल में बुवाई पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40 से 50 सेमी० एवं पौधे से पौधे की दूरी 16 से 20 सेमी० रखना चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
मृदा परिक्षण के आधार पर समस्त उर्वरक अंतिम जुताई के समय हल के पीछे कूड़ में बीज की सतह से 5 सेमी० गहराई व 5 सेमी० साइड में देना सर्वोत्तम रहता है.बुवाई के समय 20 से 25 किलोग्राम नत्रजन, 40 से 50 किग्रा० फास्फोरस, 20 से 25 पोटाश प्रति हेक्टेयर कतारों में बीज के नीचे डालना चाहिए.इसके अलावा बुवाई के 25 से 30 दिनों बाद 10 किलोग्राम नत्रजन (22 किलो० यूरिया प्रति हेक्टेयर) का उपरिवेशन (Top-dressing) कर निकाई-गुड़ाई करे भूमि में यदि जिंक एवं सल्फर की कमी हो तो बुवाई के समय 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए.
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार नियंत्रण
अरहर में दो बार निकाई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है.पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25 से 30 दिनों के बाद एवं दूसरी 40 से 45 दिनों के बाद करनी चाहिए.
यदि खेत में अधिक खरपतवार होता है तो रासयिनिक विधि से इसके नियंत्रण के लिए पेंडीमिथालिन 30 ई० सी० की 3 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के उपरांत छिडकाव करना चाहिए.
कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन
क्र० स० | फसल का नाम | कीट ब्याधियाँ रोग के नाम | कीट एवं ब्याधि/रोग के कारकों के नाम | लक्षण | प्रबन्धन |
1. | अरहर (Arhar) | पिच्छ्की शलभ (Plumemonth) | एक्सीलास्टिक एटोमोसा (Exelastis atomosa) | सूंडी फलियों को पहले छीलकर उपरी सतह पर से खाती है और फिर फलियों में छेद कर घुस जाती है तथा खाती रहती है. | 1.फसल पर 0.2 प्रतिशत कार्बरिल का छिड़काव करना लाभकर होता है.
2.मिथाइल पारथियान (फौलिडाल) 2 प्रतिशत धूल का बुरकाव करना चाहिए. |
2. | बाँझ चितेरी रोग (Sterlity mosaic) | बाँझ चितेरी विषाणु संचरण : इरियोफिड माईट (कीट) द्वारा (Sterlity mos-aic virus) | संक्रमित पौधों की पत्तियां छोटी, पतली तथा उनपर अनियमित आकार के हल्के एवं गहरे धब्बे या चित्तियाँ पड़ जाती है. रोगी पौधे छोटे रह जाते है.तथा शाखाओ की संख्या स्वस्थ पौधों की तुलना में अधिक हो जाती है.रोगी पौधे में फूल व फलियाँ नहीं बनने के कारण इसे बाँझ रोग कहा जाता है. | 1.रोगी पौधों को उखाड़ कर नष्ट देना चाहिए.
2.बीजो को फ्यूराडान 3 जी द्वारा 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिए. 3.फसल की आरम्भिक अवस्था में कैल्थेन या मैटासिस्टोक्स (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव करना चाहिए. |
उपज
उचित प्रबन्धन करने से खरीफ की फसल में अरहर 20 से 25 कुंटल दाल तथा रबी फसल में 15 से 16 कुंटल दाल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है.
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कटाई, दौनी एवं भण्डारण
जब 80 प्रतिशत फलियाँ पक जाय तो अरहर के पौधे काट ले.एक सप्ताह सुखाने के बाद डंडे से झाड़कर कर दाना अलग कर ले.
भंडारण के पूर्व बीजों को अच्छी प्रकार सुखा ले.अच्छी तरह सूखे बीजों को ऐसे बर्तनों (सीडबीन) में रखे, जिसमें हवा का प्रवेश न हो सके.भंडारण के समय प्रति कुंटल बीज में 1 ई० डी० वी० एम्पुल डालकर बीज वाले बर्तन के मुंह को अच्छी तरह बंद कर देना चाहिए.
निष्कर्ष
किसान भाइयों, उम्मीद है गाँव किसान (gaon kisan) का यह अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) से सम्बंधित लेख आप सभी को मिल पायी होगी. गाँव किसान (gaon kisan) द्वारा अरहर के फायदे से लेकर भण्डारण तक सभी जानकारियां दी गयी है.फिर भी अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) से सम्बन्धित कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है.इसके अलावा यह लेख आप सब को कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये.महान कृपा होगी.
आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.