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Litchi cultivation | लीची की खेती की पूरी जानकारी अपनी भाषा हिंदी में | Litchi ki kheti kaise kare

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लीची की खेती की पूरी जानकारी हिंदी में

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लीची की खेती (Litchi cultivation) की जानकारी 

लीची (Litchi Cultivation 2022) उपोषण जलवायु प्रदेश का एक सदाबहार फल है.लीची (litchi ka plant) का वैज्ञानिक नाम लीची चाईनेन्सिस (Litchi Chinensis) है,तथा सपेंड़ेसी (Sapindacenae) परिवार का सदस्य है.इसके फल मनमोहक सुगन्धयुक्त स्वाद,आकर्षक रंग एवं पौष्टिक गुणों के कारण ही इस फलों की रानी कहा जाता है.लीची उत्पादन में भारत विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है.हमारे देश में लीची की बागवानी 84,200 हेक्टेयर एवं कुल उत्पादन 585,300 मेट्रिक टन है.इसकी औसत उत्पादकता 7.0 टन प्रति हेक्टेयर है.आज गाँव किसान अपने इस लेख के जरिये किसान भाई को लीची की खेती (Litchi cultivation) की पूरी जानकारी अपनी मातृ भाषा हिंदी (litchi in hindi) में देगा.जिससे किसान भाई लीची की खेती (Litchi Farming) कर अधिक लाभ कमा सके.

लीची के फायदे (Benefits of litchi)

लीची के फल (litchi fruit) पोषक तत्वों (litchi nutrition) से भरपूर एवं स्फूर्ति दायक होते है.लीची (litchi benefits) के परिपक्व फल में 11 प्रतिशत शर्करा,0.7 प्रतिशत प्रोटीन,0.3 प्रतिशत वसा,0.7 प्रतिशत खनिज पदार्थ एवं अनेक विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते है. जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक (litchi nutrition
litchi health benefits) होते है. लीची के फल मुख्यतः ताजे फल के रूप में लोग ज्यादा पसंद करते है.इसके फलों से अनेक प्रकार के परिरक्षित पदार्थ जैसे-फलों की डिब्बाबंदी,फलों की रस,शरबत (litchi drink) ,नेक्टर,कार्बोनेटेड पेय (litchi mocktail),जैम,जैली,लीची का सुखौता,लीची कैंडी एवं फोजेनलीची आदि के साथ खमीरी पेय पदार्थ सिरका बनता है.

लीची के क्षेत्र (Field of litchi)

लीची की खेती (Litchi cultivation) के लिए एक विशिष्ट जलवायु की आवश्यता होती है,जिसके कारण इसकी व्यावसायिक खेती देश के कुछ राज्यों में ही की जाती है.भारत में लीची (litchi tree) की बागवानी मुख्यतः उत्तरी बिहार,पश्चिमी बंगाल,उत्तराखंड,असम,उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश,त्रिपुरा,झारखण्ड,पंजाब,छत्तीसगढ़,एवं हरियाणा में की जाती है.भारत में (litchi cultivation in india) सबसे पहले लीची के फल त्रिपुरा में पककर तैयार होते है.इसके बाद क्रमशः रांची एवं पूर्वी सिंहभूमि (झारखण्ड),मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल),मुजफ्फरपुर एवं समस्तीपुर (बिहार),उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र,पंजाब,उत्तराखंड के देहरादून एवं पिथौरागढ़ की घाटी में पककर तैयार होते है.

लीची की खेती के लिए जलवायु (Climate for Litchi Cultivation)

लीची की खेती (litchi cultivation) उपोष्ण जलवायु उत्पादन के लिए बहुत ही उपयुक्त मानी गयी है.गर्म एवं आर्द्र जलवायु गर्मी में एवं जाड़े में शुष्क एवं ठंढ जलवायु सर्वोत्तम माना जाता है.लीची के फूल निकलने के लिए 20 सेंटीग्रेड तापमान जबकि पत्तियों एवं फल वृध्दि के लिए लगभग 30 सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है.सफल लीची उत्पादन के लिए आर्द्रतायुक्त वसंत और गर्मी के मौसम के बाद शरद ऋतु के समय पर लीची फूलन-फलन के लिए सर्वोत्तम होता है.

लीची की खेती के लिए भूमि (Land for Litchi Cultivation)

Litchi ki kheti विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है.लेकिन सामान्य पी०एच० मान वाली गहरी बलुई दोमट मिट्टी इनके वृक्षों के लिए उपयुक्त होती है.हल्की अम्लीय से लेकर हल्की क्षारीय मिट्टी,लीची की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है.चूनायुक्त (20 से 30 प्रतिशत कैल्शियम कार्बोनेट) मिट्टी में सफल खेती एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन होता है.चूने की कमी वाली जगहों में चूने की मात्रा मिलाने की सिफारिश की जाती है.अधिक जलधारण क्षमता युक्त मिट्टी में इसके पौधों की अच्छी बढवार एवं फसलोत्पादन होता है.

लीची की उन्नत किस्में (Improved varieties of litchi)

भारत में लीची (litchi) की कई किस्में उगाई जाती है.व्यवसायिक रूप से प्रमुख किस्मों में शाही,चाईना,पूर्वी,अर्ली बेदाना,लेट बेदाना,बम्बई,देहरादून,देहरा-रोज,रोज-सेंटेड,अर्ली,लार्ज रेड,मंदराजी,देशी,मुजफ्फरपुर,कस्बा,ग्रीन,अझौली,त्रिकोलिया, स्वर्णरूपा,सबौरमधु,सबौर बेदाना,हाइब्रिड 235,एच-73 आदि है.

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लीची का पौधा रोपण (Planting litchi)

लीची के बड़े वृक्ष होने पर आकार में बड़ा एवं फैलाव लिए होता है.इसलिए इसे औसतन 10 मीटर X 10 मीटर की दूरी पर वर्गाकार रोपण विधि से लगाया जाता है.कम ओजपूर्ण वृध्दि वाले बौने किस्मों के पौधों को सघन बागवानी के लिए 8 मीटर X 8 मीटर,7.5 मीटर X 7.5 मीटर,6 मीटर X 6 मीटर पर लगाए जाने चाहिए.लीची के पौधे की रोपाई के पहले खेत में रेखांकन करके अनुशंषित दूरी पर 1 मीटर X 1 मीटर X 1 मीटर के गड्ढे चिन्हित स्थान पर अप्रैल-मई माह में खोदकर 15 से 20 दिनों तक खुला छोड़ देना चाहिए.जून माह में प्रति गड्ढा निकाली गई मिट्टी में 40 किग्रा० कम्पोस्ट,2 किग्रा० नीम या करंज की खली,2 किग्रा चूना, 1 किग्रा० सिंगल सुपर फास्फेट, 50 ग्राम क्लोरिपाईरीफ़ॉस 10 प्रतिशत धुल,अच्छी तरह मिला कर गड्ढा भर देना देना चाहिए.गड्ढे को खेत की सतह से 10 से 15 सेमी० ऊँचा भरना चाहिए.वर्षा के ऋतु में गड्ढे की मिट्टी नीचे दब जाती है उसके पश्चात मध्य में पौधे की पिंडी के आकार का गड्ढा खोदकर पौधा लगा दे.पौधा लगाने के बाद उसके पास की मिट्टी को अच्छी तरह से दबाना चाहिए एवं पौधों के चारों तरफ थाला बनाकर 25 से 30 लीटर पानी डालना चाहिए.यदि वर्षा न हो तो,पौधे के पूर्णस्थापना तक सिंचाई करते रहे.

लीची का पौध प्रवर्धन (Litchi Plant Propagation)

लीची का प्रवर्धन बीज (Seed) और गुटी (Air layering) द्वारा किया जाता है.बीज द्वारा तैयार पौधों में पैतृक गुणों के अभाव के कारण अच्छी गुणवत्ता के फल नही होते है,और फलन भी 10 से 15 वर्ष का समय लग जाता है.गुटी से तैयार पौधे पैतृक गुणों से पूर्ण एवं शीघ्र फल देने वाले हो जाते है.गुटी तैयार करने के लिए मई-जून के महीने में स्वस्थ एवं सीधी डाली चुनकर डाली के शीर्ष से 50 सेमी० नीचे की गाँठ के पास गोलाई से 2 से 3 सेमी० चौड़ा छल्ला बनाकर छल्ले को नम घास से या चिकनी मिट्टी से ढककर ऊपर से 400 गेज की सफ़ेद पालीथिन का टुकड़ा लपेटकर सुतली से कस कर बाँध देना चाहिए.गुटी बाँधने के 2 माह के अन्दर जुड़े पूर्ण रूप से विकसित हो जाती है.इसे पौधों से अलग कर नर्सरी में अधिक छायादार स्थान पर लगाकर पौधे तैयार कर लिए जाते है.

लीची के लिए खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer for Litchi)

लीची की खेती (Litchi cultivation ) के लिए खाद एवं उर्वरकों का निर्धारण पौधे के आकार,कटाई-छंटाई,कृषि क्रियाएं एवं मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए.प्रारंभ के 2 से 5 वर्षों तक लीची के पौधों को 10 से 15 किलोग्राम कम्पोस्ट, 1 किग्राग्राम नीम या करंज की खल्ली,150 से 250 ग्राम यूरिया,250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 100 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधे की दर से देना चाहिए.उसके बाद पौधे की बढवार के साथ-साथ खाद की मात्रा में वृद्धि करते जाना चाहिए.इस प्रकार 5 किग्रा० कम्पोस्ट,250 ग्राम करंजा खल्ली,150 ग्राम यूरिया,200 ग्रा० सिंगल सुपर फास्फेट एवं 60 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति पौधे की दर से पिछले वर्ष दिए गए मात्रा के साथ जोड़ कर देना चाहिए.11 से 15 वर्ष की आयु वाले पौधे में 60 से 75 किलोग्राम कम्पोस्ट,2 से 3 किलोग्राम नीम या करंज की खल्ली,1.5 किलोग्राम यूरिया,2 से 2.5 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 1 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति वृक्ष प्रति वर्ष की दर से देना चाहिए.16 से 20 वर्ष की आयु वाले पौधों में 80 से 100 किलोग्राम कम्पोस्ट,3 से 4 किलो नीम या करंज खल्ली,150 किलोग्राम यूरिया,3 से 3.5 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 1.5 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति वृक्ष प्रति वर्ष की दर से देना चाहिए.खाद एवं उर्वरक का प्रयोग जून-जुलाई में कम्पोस्ट,फास्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण एवं नत्रजन की दो तिहाई मात्रा देनी चाहिए.शेष नत्रजन की एक तिहाई मात्रा सितम्बर माह में या फल विकास के समय जब फल मटर के आकार के हो जाए तब सिंचाई के साथ देना चाहिए.

लीची की सिंचाई (Irrigation of litchi)

लीची के छोटे पौधों को लगाने के पश्चात रोज सिंचाई करनी पड़ती.जिसके लिए जाड़े में एक सप्ताह में दो दिन तथा गर्मी में सप्ताह में तीन से चार दिन सिंचाई करनी पड़ती है.फल देने वाले पेड़ों को फूल आने के 3 से 4 महीने पहले (नवम्बर से फरवरी) पानी नही देना उचित होता है,जब फल का आकर मटर के दाने के बराबर हो जाय तब नियमित अंतराल पर पौधों में सिंचाई करते रहना चाहिए.पानी की कमी से फल का विकास रुक जाता है एवं फल चटखने लगते है.इसलिए किसान भाई जल प्रबंधन करने से गूदे वाले फलों को इससे सुरक्षित कर सकते है.साथ ही विकसित पौधों में छत्रक के नीचे छोटे-छोटे पानी के फव्वारे लगाकर नमी बनाये रख सकते है,इसके अलावा शाम के समय बगीचे में सिंचाई करने से पौधों द्वारा जल का पूर्ण उपयोग कर लिया जाता है.बूँद-बूँद सिंचाई विधि द्वारा प्रतिदिन 10 से 50 लीटर देने से लीची के गुनवत्ता युक्त नमी का रहना अति आवश्यक है.जिसके लिए सिंचाई के साथ-साथ पलवार (मल्चिंग)द्वारा जल संरक्षण करना लाभदायक होता है.पौधों में खाद देने के बाद,बाग़ में नमी कम हो तो,सिंचाई अवश्य देनी चाहिए.

लीची के पौधों की देख-रेख एवं कांट-छांट (Care and pruning of litchi plants)

लीची के पौधों लगाने के बाद प्रारम्भ के 3 से 4 वर्षों तक अच्छी प्रकार से देखभाल की जरुरत होती है.विशेष कर गर्मी के मौसम में जब तेज गर्म हवा (लू) एवं शीत ऋतु में पाल से बचाव के लिए कारगर प्रबंध करना चाहिए.प्रारंभ के 3 से 4 वषों में पौधों की आवंछित शाखाओं को निकाल देना चाहिए जिससे मुख्य तने का उचित विकास हो सके.इसके बाद चारों दिशाओं में 3 से 4 मुख्य शाखाओं को विकसित होने देना चाहिए,जिससे वृक्ष का आकार सुडौल,ढांचा मजबूत एवं फलन अच्छा होता है.लीची के फल देने वाले पेड़ों में हर वर्ष अच्छे उत्पादन के लिए फल तोड़ाई के समय 15 से 20 सेमी० डाल  सहित तोड़ देना चाहिए ,जिससे उसमें अगले साल अच्छे कल्ले निकले तथा उपज में वृध्दि भी होगी.पूर्ण विकसित पौधों के आंतरिक भाग में सूर्य प्रकाश अच्छी प्रकार नही पहुँचता है,जिससे अनेक कीड़ों एवं बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है.लीची के पेड़ों में ज्यादातर फल नीचे के भाग में आते है तथा वृक्ष के ऊपरी दो तिहाई भाग से अपेक्षाकृत कम फल प्राप्त होते है.इसलिए विकसित पेड़ों के बीच की डालियों का जिनका बढ़वार सीधा ऊपर की तरफ हो रही है.उसको काटने से उपज में बिना किसी क्षति के पौधों के अन्दर धुप एवं रोशनी अच्छी प्रकार पहुँच जाती है.ऐसा करने से तना वेधक कीड़ों के प्रकोप कम किया जा सकता है.पौधों की समुचित देखभाल,गुड़ाई तथा कीटों एवं रोगों से रक्षा करने से पौधों का विकास अच्छा होता है.

लीची के पूरक पौधे एवं अंतरसस्यन (Supplemental Plants and Intercropping of Litchi)

लीची के पौधे को पूरी तरह तैयार होने में लगभग 15 से 16 वर्ष का लग जाता है.इसलिए प्रारम्भिक अवस्था में लीची के पौधों के बीज की खाली पड़ी जमीन का सदुपयोग अन्य फलदार पौधों एवं दलहनी फसलों व सब्जियों को लगाकर किया जा सकता है.इससे किसान भाइयों को अतरिक्त लाभ के साथ-साथ मृदा की उर्वराशक्ति का भी विकास होता है.उद्यान शोध कार्यों से ज्ञात हुआ है कि लीची के बगीचे में किसान भाई पूरक पौधों के रूप में अमरुद,पपीता एवं शरीफा जैसे फलदार पेड़ लगा लगा सकते है.अन्तरसस्यन के रूप में दलहनी,तिलहनी एवं अन्य फसलें जैसे भिन्डी,मूंग,कुल्थी एवं धान आदि की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है.

लीची में पुष्पन एवं फलन (Flowering and fruiting in litchi)

गूटी विधि द्वारा तैयार लीची के पेड़ों में 4-5 सालों के पश्चात फूल आना शुरू हो जाते है.फूल आने के संभावित समय से लगभग तीन महीने पहले पौधों में सिंचाई न करने से मंजर बढ़िया आता है.लीची के पौधों में मधुमक्खियों द्वारा परागण होता है.इसलिए फलन के लिए मादा फूलों का समुचित परागण होना चाहिए और परागण के समय कीटनाशक दवाओं के घोल का उपयोग नही करना चाहिए इससे फलन की क्रिया प्रभावित होती है और उपज कम होगी.

लीची के प्रमुख रोग कीट एवं नियंत्रण (Major diseases of litchi, pest and control)

फलों का फटना 

लीची के पेड़ों पर जब फलों का विकास शुरू हो जाता है तभी भूमि में नमी या गर्म हवाओं के कारण फल फट जाते है.इसलिए फलों को इससे बचाने के लिए बाग़ के चारों तरफ वायुरोधी पेड़ लगाए,इसके अलावा अक्टूबर महीने में पेड़ के नीचे मल्चिंग करवाए.भूमि में नमी बनाये रखने के लिए अप्रैल के पहले सप्ताह से फलों के पकने एवं उनकी तुड़ाई तक बाग़ की हल्की सिचाई करवाने के साथ पेड़ों पर पानी का छिडकाव करे.पानी के प्रबन्धन के साथ फल लगने के 15 दिन बाद पेड़ों पर बोरेक्स के घोल का छिडकाव करने से फल फटने की समस्या कम हो जाती है.एवं अच्छी उपज होती है.

फलों का गिरना 

मिट्टी में नाइट्रोजन एवं जल की कमी तथा गर्म हवाओं के कारण लीची के फल छोटी अवस्था में हो गिरने लगते है.खाद एवं पानी का उचित प्रबन्धन से फल गिरने की समस्या नही होती है.पेड़ में जब फल एक सप्ताह के हो जाए तो प्लैनोफिक्स या एन०ए०ए० के घोल का छिडकाव करे.इससे फल गिरने की समस्या दूर हो जाती है.

लीची माइट 

इस कीट के नवजात एवं वयस्क दोनों ही कोमल पत्तियों की निचली सतह,शाखाओं की टहनियां एवं पुष्पों से चिपक कर रसचूसते है.इस कारण में पत्तियां मोटी होकर मुड़ जाती है.और उन पत्तियों सफ़ेद चुने के रंग के रोये से दिखाई पड़ते है.जो बाद में भूरे या काले रंग के हो जाते है.साथ ही टहनियों पर बहुत कम फल लगते है.इस के नियंत्रण के लिए संक्रमित पत्तियों और टहनियों को काटकर जला दे.सितम्बर व अक्टूबर महीने में नए कल्लों केनिकलने पर पर केलथेन या फ़ॉसफमिडान (1.25 मिली०/लीटर)का घोल बनाकर 7 से 10 दिन के अंतराल पर दो छिडकाव करना लाभदायक होता है.

फल एवं बीज बेधक 

फल तैयार होने में यदि ठंडक के मौसम में ज्यादा नमी होती है.तो फल बेधक कीट के प्रकोप की सम्भावना अधिक होती है.इसके शिशु लीची के गूदे के रंग का होता है.जो डंठल से प्रवेश कर फल को अन्दर से खाकर नुकसान पहुंचता है.जिससे फल खाने लायक नही बचाता है.इस कीट के नियंत्रण के लिए फल तोड़ने से लगभग 40 से 45 दिन पहले सायपरमेथ्रिन (1.25 मिली०/लीटर)के दो छिडकाव 15 दिन के अंतर पर करना चाहिए.

लीची बग

लीची बग कीट का प्रकोप ज्यादातर मार्च-अप्रैल एवं जुलाई-अगस्त के महीने में पौधों पर दिखाई पड़ता है.इस कीट के नवजात एवं शिशु दोनों ही नर्म टहनियों,पत्तियों एवं फलों का रस चूस लेते है जिससे वे कमजोर हो जाते है.और फलों का विकास नही हो पाता है.पेड़ों से इसके दुर्गन्ध से इसकी जानकारी हो जाती है.इसके नियंत्रण के लिए शिशु कीट दिखाई देते ही मेटासिस्टाक्स (1.0 मिली०/लीटर) या फ़ॉसफमिडान (1.25 मिली०/लीटर) का घोल बनाकर 10 से 15 दिन के अंतर पर छिडकाव करवाए.

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छिलका खाने वाले पिल्लू 

इस कीट के पिल्लू बड़े आकार के होते है.जो पेड़ों की छाल खाकर जीवित रहता है.और उसी में छिपा रहता है.इस कीट के प्रकोप से पेड़ की टहनियां कमजोर हो जाती है.और कभी-कभी टूटकर गिर जाती है.इसके नियंत्रण के लिए बगीचे की साफ-सफाई रखना बहुत ही आवश्यक है.इसके अलावा ग्रसित पेड़ों में बने इसके छिद्रों को पेट्रोल या नुवान या फार्मलीन से भीगी रुई से बंद कर ऊपर से चिकनी मिट्टी लगा दे.

लीची के फलों तोड़ाई एवं उपज (Plucking and yield of litchi fruits)

लीची के पेड़ में जनवरी-फरवरी महीने में फूल आ जाते है.इसके अलावा फल मई-जून महीने में पक जाते है.फल पकने के बाद इनका रंग गहरा गुलाबी रंग का हो जाता है.साथ ही फल के ऊपर के छोटे-छोटे उभार चपटे हो जाते है.शुरुवाती अवस्था में लची के पेड़ से उपज कम होती है.लेकिन की पेड़ का आकार धीरे-धीरे बढ़ता है और इसकी उपज भी बढती जाती है.लीची के पूर्ण विकसित पेड़ जो कि 15 से 20 साल में होता है,औसतन 70 से 100 किलों लीची की उपज देता है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों,उम्मीद करता हूँ कि आप सभी को गाँव किसान के इस लेख से लीची की खेती (Litchi cultivation) सम्बंधित सभी जानकारियां मिल गयी होगी.गाँव किसान द्वारा इस लेख में लीची के फायदे से लेकर तोड़ाई एवं उपज तक सभी जानकारियां दी गयी है.फिर भी आप सभी को  लीची की खेती (Litchi cultivation) से संबंधित कोई अन्य जानकारी चाहिए हो अथवा आप को यह लेख कैसा कमेन्ट कर इसकी जानकारी जरुर दे.महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद,जय हिन्द.

अन्य पूछे जाने वाले सवाल (Other FAQ)

प्रश्न : लीची का बाग कैसे लगाएं?

उत्तर : लीची के पौधे जुलाई से लेकर अक्टूबर तक लगाए जाने चाहिए है। पौधे रोपाई के पहले बाग के चारों तरफ वायुरोधक वृक्ष लगाना उत्तम माना जाता है तथा पश्चिम दिशा में इसकी काफी जरुरत होती है, क्योंकि गर्मी में लीची के पेड़ गर्म हवा से रक्षा करते हैं। गड्ढ़ो की खुदाई और भराई आम के पौधों की तरह ही करनी चाहिए।

प्रश्न : लीची का पेड़ कितने दिन में तैयार हो जाता है?

उत्तर : लीची के पेड़ दो से तीन साल में फल लगने लगते हैं. 15 से 20 साल के पौधे में 80 से 100 किलो प्रतिवर्ष की उपज हो जाती है.

प्रश्न : सबसे ज्यादा लीची कहाँ होता है?

उत्तर : देश में बिहार के अलावा पंजाब, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी लीची की खेती होती है। दुनिया में चीन के बाद भारत ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा लीची उगाई जाती है।

प्रश्न : लीची में कौन सा विटामिन पाया जाता है?

उत्तर : लीची में विटामिन सी, विटामिन बी6, नियासिन, राइबोफ्लेविन, फोलेट, तांबा, पोटेशियम, फॉस्फोरस, मैग्निशियम और मैग्नीज जैसे खनिज पाए जाते हैं

प्रश्न : लीची को इंग्लिश (Litchi in english) में क्या बोलते है?

उत्तर : लीची (lici) – Meaning in English .इसका परिवार है सोपबैरी। Lychee is the sole member of the genus Litchi in the soapberry family, Sapindaceae.

प्रश्न : लीची को हिंदी में क्या बोलते हैं?

उत्तर : लीची Meaning in Hindi – लीची का मतलब हिंदी में लीची [संज्ञा स्त्रीलिंग] उष्ण कटिबंध में पाया जाने वाला एक पेड़ और उसका काँटेदार छिलकों वाला रसीला फल।

प्रश्न : लीची के पौधे कहाँ से ख़रीदे ?

उत्तर : देश में बागवानी के कई सरकारी संस्थान और कृषि विश्वविद्यालय है जिनसे सम्पर्क किया जा सकता है. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र, मुजफ्फरपुर, बिहार या निदेशक 06212289475, 09431813884 से सम्पर्क किया जा सकता है.लीची की खेती और पौध उपलब्ध के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र मुजफ्फरपुर से प्रशिक्षण और सम्पर्क किया जा सकता है.

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