Cow farming in India | गाय की इन नस्लों को पालकर बन सकते है मालामाल
देश के ज्यादातर किसान भाई खेती के साथ-साथ पशुपलान भी करते है. क्योकि यह पशुपालन व्यवसाय इनकी आमदनी का एक अच्छा जरिया माना जाता है. इस व्यवसाय में किसान भाई न गाय, भैंस और बकरी पालन से बढ़िया लाभ कमा लेते है. लेकिन ज्यादातर किसान परिवार गाय पालन को तरजीह देते रहे है क्योकि गाय के दूध में सभी विटामिन्स और मिनरल्स अधिक मात्रा में होते है. जो मानव शरीर को निरोग रखने की क्षमता रखते है. इसके अलावा इसके दूध के कैल्सियम से हड्डियाँ भी मजबूत रहती है. आज देश में गाय के दूध से विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार किये जा रहे है.
गाय की कौन-कौन सी नस्लों के पालन से है फायदा
आज देश किसी भी पशुपालक किसान के सामने सबसे बड़ी समस्या यह होती है. वह कौन सी नस्ल की गाय पाले जिससे उन्हें अधिक दूध उत्पादन मिल सके. जिससे वह अधिक मुनाफा कमा सके. तो आइये आप सभी को बताते है कि गाय की इन नस्लों को पालकर किसान भाई अच्छे दूध उत्पादन के साथ अच्छा मुनाफा कमा सकते है.
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साहीवाल गाय पालन
साहीवाल गाय की पहचान देश के अच्छे दुधारू पशु के रूप में की जाती है. साहिवाल गाय की उत्पत्ति पंजाब के मोंटेमेरी से हुई थी, जो वर्तमान में पाकिस्तान में है. इस नस्ल की गायों को अन्य नाम जैसे लोला, मुल्तानी और तेली के रूप में भी जाना जाता है. देश के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र यह गाय देखने को मिलती है. इसका रंग गहरा लाल होता है. यह गाय एक दिन में 10 से 16 लीटर तक दूध दे सकती है.
गिर गाय पालन
गिर गाय की उत्पत्ति गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र को माना जाता है. इसलिए आज भी अधिक मात्रा गीर गाये गुजरात के कुछ जिलों जैसे – भावनगर, राजकोट, टोंक, अमरेली इत्यादि में तथा राजस्थान के कोटा जिले में पायी जाती है. इस गाय के सींग माथे से पीछे की तरफ मुड़े और कान लंबे होते हैं. इनका का रंग धब्बेदार होता है. इस गाय में दूध क्षमता करीब 50 लीटर प्रति दिन होती है.
लाल सिन्धी गाय पालन
इस दुधारू गाय की उत्पत्ति पाकिस्तान के सिंध प्रान्त से हुई है. इस नस्ल की गाय प्राचीन काल से करांची, लसबेला एवं हैदराबाद में पायी जाती है. इस नस्ल को रेड सिन्धी के अलावा मालीर, रेड करांची या फिर सिंध भी कहा जाता है.गहरे लाल रंग की इस गाय का चेहरा चौड़ा तथा सींग मोटे एवं छोटे होते हैं. इनके थन सभी अन्य नस्लों की गाय की अपेक्षा लम्बे होते हैं. यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है.
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थारपारकर गाय पालन
इस दुधारू नस्ल यानिकी गाय की थारपारकर नस्ल का नाम राजस्थान राज्य में स्थिति थार मरुस्थल के नाम पर रखा गया है. इस नस्ल को सफ़ेद सिन्धी, भूरी सिन्धी या थारी भी कहा जाता है. क्योकि इस नस्ल की उत्पत्ति भी सिंध में हुई थी जो अब पाकिस्तान में है. यह गठीले शरीर, लंबा चेहरा माध्यम आकार केलम्बे काले गुच्छों से युक्त पूंछ एवं बड़े कान और लटकने वाले होते है. यह गाय प्रति ब्यात 1300 से 2200 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है.