आलू बुखारा की बागवानी में प्रवर्धन 

आलू बुखारा का प्रवर्धन शील्ड कलिकायन व ग्राफ्टिंग द्वारा किया जाता है. 

कलिकायन मई-जून में तथा ग्राफ्टिंग फरवरी माह में किया जाता है. 

भारत में अधिकतर खुबानी का मूलवृंत प्रयोग किया जाता है. 

कुछ दिशा में माइरोबलान आलूचा भी मूलवृंत के रूप में प्रयुक्त होता है. 

आलूचा एक पर्णपाती पौधा है. 

उसमें सुषुप्तावस्था दिसम्बर-जनवरी में आती है. 

आलू बुखारा के पौधों की आपसी दूरी 5 x 6 मी० रखते है. 

जापानी वर्ग की अधिकाँश किस्मों में फैलकर वृध्दि करने की प्रवृत्ति होती है. 

क्रन्तन द्वारा भी फल की मात्रा को नियंत्रित किया जाता है. 

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