नारियल की खेती

नारियल या श्रीफल भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है.इसके पेड़ का प्रत्येक हिस्सा किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है.इसलिए इसे स्वर्ग का पेड़ भी कहा जाता है-एक ऐसा पेड़ जो जीवन की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है

नारियल के फायदे

नारियल के वृक्ष का हर भाग उपयोगी है.नारियल फल का जल प्राकृतिक पेय के रूप में, गरी खाने एवं तेल के लिए, फल का छिलका एवं रेशा विभिन्न औद्योगिक कार्यों में तथा पत्ते, जलावन, झाड़ू, छप्पर एवं खाद हेतु तथा लकड़ी उपयोगी फर्नीचर, दरवाजे-खिड़की इत्यादि बनाने के काम में आती है.नारियल का फल एवं जल में विभिन्न प्रकार के विटामिन, शर्करा,एवं खनिज लवण की प्रचुर मात्रा पायी जाती है.इन्ही उपयोगिताओं के कारण नारियल को कल्पवृक्ष कहा जाता है.

नारियल की किस्में

ईस्ट कोस्ट टोल, वेस्ट कोस्ट टोल, अंडमान टोल, तिप्तूर लंबा, अंडमान जायंट एवं लक्ष्यद्वीप साधारण आदि प्रमुख है.

रोपण की दूरी एवं विधि

नारियल के रोपण के लिए अनुशंसित दूरी 7.5 मीटर से 9 मीटर तक उपयुक्त होती है.7 से 7.5 मीटर की सघन रोपण भी किया जा सकता है.लेकिन किसी भी स्थिति में पौधों से पौधों की दूरी 25 फीट से कम करना लाभदायक नही है.नारियल के बाग़ वर्गाकार, आयताकार, तथा त्रिभुजाकार विधि से लगाये जा सकते है.लेकिन वर्गाकार प्रणाली सबसे उपयुक्त होती है.

पौधों की देखभाल

नारियल पौधों को अधिक सर्दी तथा अधिक गर्मी सहन करने की शक्ति नही होती है.प्रतिरोपण के बाद 2 से 3 वर्षों तक सर्दी के दिनों में पाले से बचाव के लिए सुबह शाम को पानी का छिड़काव या सिंचाई के अलावा धुँआ करना चाहिए एवं तीक्ष्ण गर्मी से बचाव के लिए छाया तथा प्रतिदिन हल्की सिंचाई करना आवश्यक है

फलों की तुड़ाई 

नारियल के फल परागण के 10 से 12 महीने बाद पक जाते है.नारियल पानी के लिए 5 से 6 महीने में तथा गरी के लिए पूर्ण परिपक्व होने पर नारियल तोड़ना चाहिए.