Vetiver farming in India | Khas ki kheti | खस की खेती करेगी मालामाल

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Vetiver farming in India
Vetiver farming in India

Vetiver farming in India | खस की खेती

खस (Vetiver farming) एक प्रकार की कड़ी घास होती है. जिसके कई उपयोग है. इससे औषधीय दवा से लेकर कई जरुरत की चीज बनाई जाती है. इसलिए बाजार में इसकी काफी मांग रहती है. और इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है.

किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है. इसलिए गाँव किसान आज अपने इस लेख में खस की खेती (Vetiver farming) की पूरी जानकारी देगा वह भी अपनी भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है खस की खेती (Vetiver farming in india) की पूरी जानकारी-

खस की खेती की विशेषताएं (Features of Vetiver cultivation)

  • खस कड़ी घास की प्रवृत्ति का घास है. जो सूखे की स्थिति एवं जल जमाव दोनों को बर्दाश्त कर लेता है.
  • इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओ जैसे ऊसर भूमि, जलमग्न भूमि, रेलवे लाइनों के पास की भूमि, क्षारीय मृदाओ, उबड़-खाबड़, गड्ढे युक्त क्षेत्र एवं बलुई भूमि में आसानी से उगाया जा सकता है.
  • यह उस तरह की भूमि में उगाई जा सकती है. जिसमें दूसरी फसलें नही उगाई जा सकती है.
  • समस्याग्रस्त मृदाओ में खस की खेती की संतुति की जाती है. ताकि बेकार पड़ी भूमि का सदुपयोग किया जा सके. और उसकी जड़ों से उच्च गुणवत्ता का तेल (Essential Oil) प्राप्त किया जा सकता है.

खस से मिलने वाले फायदे (Benefits of Vetiver)

प्राचीन काल से ही खस की जड़ों (vetiver roots) का उपयोग तेल निकालने, चटाईयां बनाने एवं औषधीय उपयोग होता रहा है. इसकी जड़ों से बनी चटाईयो को गर्मी के मौसम में दरवाजे पर लटका कर पानी का छिडकाव किया जाता है. जिससे चटाई से होकर गुजरने वाली हवाएं खुश्बूदार हो जाती है. इसकी जड़ों का उपयोग कूलर में भी किया जाता है.

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खस की उत्पति एवं विस्तार (Origin and Expansion of Vetiver)

वेटियर (Vetiveria Zizanioides) Nash या खस का उद्भव स्थान भारत, पकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका एवं मलेशिया माना जाता है. इसका तमिल भाषा में ‘Vetiveru’ का शाब्दिक अर्थ “Root that dug up” है. “Zizanioides” का अर्थ “By the river side” है. जो स्पष्टतः नदी किनारे धाराओं के अगल-बगल पैदा होने के मूल स्थान को इंगित करता है.

विश्व में हैती, इंडोनेशिया, ग्वाटेंमाला, भारत (vetiver india) , रियूनियन द्वीप, चीन एवं ब्राजील खस के मुख्य उत्पादक देश है. खस उष्ण एवं उपोष्ण क्षेत्रों में उगने वाला पौधा है. दक्षिण भारतीय राज्यों में खस के जड़ों (Vetiver farming) की उत्पादन क्षमता ज्यादा है. लेकिन इस निकले तेल की कीमत कम मिलती है. उत्तर भारत में उगने वाले खस के जड़ों की गुणवत्ता काफी अच्छी होती है. तथा ज्यादा कीमत मिलती है.

मृदा एवं जलवायु (Soil and Climate)

खस की खेती (Vetiver farming) भारी एवं मध्यम श्रेणी की मृदायें जिसमें पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा तो जलस्तर ऊँचा हो सफलतापूर्वक की जा सकती है. माध्यम विन्यास वाली मिट्टियों में जड़ों की अच्छी वृध्दि होती है. किन्तु चिकनी मृदाओं में जड़ों में जड़ों की खुदाई कठिन कार्य है. बलुई एवं बलुई दोमट मृदा में जड़ों की खुदाई अपेक्षाकृत कम खर्च आता है. तथा जड़े लम्बी गहराई तक जाती है.

खस गर्म एवं तर जलवायु में अच्छी तरह पनपती है. पहाड़ी इलाकों को छोड़कर अन्य सभी भागों में उपजाया जा सकता है. छायादार स्थानों में जड़ों की अधिक वृध्दि नही होती है.

खस की उन्नत किस्में (vetiver varieties)

खस की उन्नत किस्मों में के० एस०-1, के० एस०-2, धारिणी, केशरी, गुलाबी, सिमवृध्दि, सीमैप खस-15, सीमैप खस-22, खुशनालिका एवं सुगंधा किस्में सीमैप द्वारा तैयार की गई है. इसके अलावा आई० ए० आर० आई० द्वारा हाइब्रिड 8 व हाइब्रिड 7 किस्में तैयार की गयी है.

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खेत की तैयारी (Farm preparation) 

खस (khus vetiver) का पौधा कठोर प्रवृत्ति होने के कारण मामूली देखभाल एवं मृदा की तैयारी कर लगाया जा सकता है. भूमि में मौसमी खरपतवारों का प्रकोप नही हो. खरपतवारों एवं जड़ों के अवशेषों को हटाने के लिए 2 से 3 गहरी जुताईओं की जरुरत होती है.

प्रसारण (Broadcasting)

उतर भारत में खस का प्रसारण 6 से 12 माह के मूढों द्वारा किया जाता है. इन मूढों को 30 से 40 सेमी० ऊपर से काटा जाता है. बनाई गयी कलमों में या स्लिप में 2 से 3 कलमे होनी चाहिए. कलमों को बनाने के बाद छाया में रखना चाहिए. एवं सूखी पत्तियों को हटा देने से बीमारी फैलने की संभावना नही रहती है. नई प्रजातियाँ विकसित करने के लिए बीज से पौधे तैयार किये जाते है.

खस का रोपण (Vetiver seed planting)

खस की रोपाई जाड़े के मौसम छोड़कर किसी भी समय कर सकते है. उत्तर भारत में जड़ों के मौसम में तापमान गिर जाने के कारण पौधे/कलम सही ढंग से स्थापित नही हो पाते है. जिन स्थानों में सिंचाई इ व्यवस्था सही नही है. खस की रोपाई वर्षा के मौसम में की जाती है. अच्छी गुणों से युक्त मृदाओं में कलमों 60×60 सेमी० पर करना उचित होता है.

खाद एवं उर्वरक (Manures and Fertilizers)

खस की खेती (vetiver cultivation) में अधिक उर्वरकों की आवश्यकता नही पड़ती है. कम उर्वरायुक्त जमीन में नत्रजन, फ़ॉसस्फोरस, पोटाश का 60:25:25 की दर से व्यवहार करने से जड़ों की अच्छी उपज होती है. नत्रजन का उपयोग कई भागों में करना चाहिए. खस की रोपण करने के बाद पहले साल नत्रजन का उपयोग बराबर दो भागों में करना चाहिए.

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खरपतवार नियंत्रण (Weed control)

खस का पौधा बहुत तीव्रता से बढ़ता है. इसलिए खरपतवार बढ़ने का मौका कम मिलाता है. लेकिन जिन क्षेत्रों में जहाँ खरपतवार अधिक होते है.वहां पर फावड़े या वीडर का प्रयोग किया जाता है. फसल के पूर्ण विकसित होने पर खरपतवार नियंत्रण की आवश्यता नही पड़ती है.

खस में सिंचाई (Irrigation in khus)

खर के रोपड़ के तुरंत बाद पौधों की अच्छी स्थापना के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. पौधे एक माह में पूर्ण स्थापित हो जाते है. तब यह पौधे जल्दी मरते नही है. जड़ों में पौधों के अच्छे विकास के लिए शुष्क मौसम में सिंचाई करना लाभकारी होता है.

बीमारी एवं कीट रोकथाम (Disease and pest prevention) 

खस का पौधा बिमारियों एवं कीटों के प्रति काफी सहनशील होता है.कभी-कभी पत्तियों पर काले धब्बे कवक कर्बुलेरिया ट्राईफोलाई के कारन होता है. किन्तु हानि नही के बराबर होती है. शल्क कीट के प्रकोप पर मेटासिरटोक्स 0.04 प्रतिशत का छिडकाव करना चाहिए.

खस के तनो की कटाई (Vetiver seed harvesting)

समान्यतः खस 18 से 20 माह में खुदाई योग्य हो जाती है. रोपाई के पहले सालतनों को 30 से 40 सेमी० ऊपर से पहली कटाई तथा खुदाई पूर्व एक कटाई अवश्य की जानी चाहिए. काटे गए उपरी भाग को चारे, ईंधन या झोपड़ियों बनाने के काम में लाया जाता है.

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जड़ों की खुदाई (Digging up roots)

खस की पूर्ण विकसित जड़ों को जाड़े के मौसम दिसम्बर-जनवरी में खुदाई किया जाना चाहिए. खुदाई के समय जमीन में हल्की नमी रहना आवश्यक है. खुदाई पश्चात जड़ों से मिट्टी अलग होने के लिए खेत में दो-तीन दिन सूखने देना चाहिए. पूरी तरह से परिपक्व जड़ों से अच्छी गुणवत्ता के तेल प्राप्त होते है.

खस की उपज (Vetiver seeds)

खस की एक हेक्टेयर में 3 से 5 टन ताज़ी जड़े प्राप्त की जा सकती है. जिसमें तेल की मात्रा 0.4 से 0.6 प्रतिशत तेल प्राप्त है. एक हेक्टेयर में लगभग 12 से 17 किलोग्राम तेल प्राप्त हो जाता है.

अन्य पूछे जाने वाले प्रश्न (Other vertical farming questions)

प्रश्न : खस घास कहाँ पाई जाती है?

उत्तर : यह सघन गुच्छेदार घास राजस्थान एवं भारत के अन्य राज्यों में स्वजात उगती पाई जाती है।

प्रश्न : राजस्थान के कौन से जिलों में खस घास उत्पादित होती है?
उत्तर :खस‘ घास राजस्थान के भरतपुर, सवाई माधोपुर एवं टोंक जिलों में उत्पादित होती है।
प्रश्न : खस का तेल क्या रेट है?
उत्तर : विश्व बाजार में खस तेल की वर्तमान की लगभग 25000/- रूपये किलोग्राम है।
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