Turmeric cultivation in Hindi – हल्दी की खेती कैसे करे ? (हिंदी में)

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Turmeric cultivation in Hindi
हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Hindi) कैसे करे ?

हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Hindi) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Hindi) इसके भूमिगत कंदों, घनकंदों और प्रकंदों के लिए की जाती है. वाणिज्यिक भाषा में इन्हीं कंदों को हल्दी कहा जाता है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमा सकते है. इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Hindi की पूरी जानकारी अपनी भाषा हिंदी में देगा. जिससे किसान भाई अच्छी उपज प्राप्त कर सकेगे. तो आइये जानते है हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Hindi की पूरी जानकारी-

हल्दी के फायदे (Benefits of turmeric)

हल्दी का मुख्य उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है. परन्तु यह रंग और औषधि के रूप में भी उपयोग की जाती है. मसाले के रूप में हल्दी खाद्य पदार्थों का स्वाद बढाने के साथ-साथ उनको अपने रंग से आकर्षक भी बनाती है. दवियों के रूप में हल्दी के अनेक उपयोग है जैसे शरीर के कटे भाग पर हल्दी का चूर्ण लगाना, सर्दी-जुकाम में दूध के साथ पिलाना, शरीर के जोड़ों के दर्द में तथा पुरानी खांसी में हल्दी का पाक बनाकर खिलाना आदि सफल व आम उपयोग है. आयुर्वेद में हल्दी का उपयोग कई दवाइयों के निर्माण में होता है. रंग के रूप में हल्दी ऊन, रेशम व सूत को रंगने के काम में ली जाती है. धार्मिक उत्सवों व पूजा-पाठ आदि कार्यक्रमों में इसका एक पवित्र वस्तु के रूप में उपयोग होता है.

हल्दी की उत्पत्ति एवं क्षेत्र (Origin and area of turmeric)

हल्दी का वानस्पतिक नाम क्युक्युमा डोमेस्टिका (Curcumaa domestica) है. यह जि‍न्‍जि‍बरऐसे (Zingiberacrac) कुल का पौधा है. इसका उत्पत्ति स्थान दक्षिणी-पूर्वी एशिया है. विश्व में इसकी खेती भारत, चीन, जावा, अफ्रीका आदि दशों में मुख्य रूप से की जाती है. लेकिन भारत विश्व का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक देश है. भारत में इसकी खेती आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, व उड़ीसा में मुख्य रूप से की जाती है. इसके अलावा केरल, महाराष्ट्र, बिहार, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश में की जाती है.

हल्दी के लिए जलवायु एवं भूमि (Climate and soil for turmeric)  

हल्दी की अच्छी उपज के लिए गर्म व तर जलवायु की आवश्यकता होती है. इसके पौधे हल्की छाया में भी सफलतापूर्वक वृध्दि कर सकते है. जिन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 225 से 250 सेमी० तक होती है. वहां हल्दी की फसल को बिना सिंचाई के सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. इसकी खेती समुद्र तल से 1500 मीटर ऊंचाई तक की जा सकती है. कुछ जंगली किस्में तो इससे भी अधिक ऊंचाई तक उगती है.

इसकी सफल खेती के लिए मटियार, दोमट मिट्टी जिसमें जीवांश की प्रचुर मात्रा हो सर्वोत्तम होती है. हल्दी को बलुई-दोमट से भारी मिट्टी तक में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि भूमि से जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए.

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हल्दी की उन्नत किस्में (Advanced varieties of turmeric)

हल्दी की उन्नत किस्में निम्न लिखित है-

को-1 – हल्दी की इस किस्म को 1982 में कोयम्बतूर (टी०एन०ए०यू०) तमिलनाडु द्वारा विकसित किया गया है. यह शुष्क परिस्थितियों एवं लवणीय भूमि के लिए उपयुक्त किस्म है. इसकी गाँठ का रंग चमकीला नारंगी होता है. यह एक पछेती किस्म है. इसकी फसल को तैयार होने में लगभग 285 दिन से अधिक का समय लगता है. इसकी पैदावार लगभग 5.85 टन प्रति हेक्टेयर है.

कृष्णा – हल्दी की इस किस्म को 1983 में कसब दिगराज (एम०ए०यू०) महाराष्ट्र द्वारा विकसित किया गया है. इसके पौधे लम्बे व स्थूल प्रकन्द होते है. इसके अलावा प्रकन्द मक्खी, पूर्ण चित्ती व पर्ण धब्बे की बीमारी के प्रतिरोधी होते है. इस किस्म की फसल तैयार होने में 235 दिन से अधिक का समय ले लेती है. इसकी पैदावार लगभग 4 टन प्रति हेक्टेयर है.

बी०एस०आर०-1 – हल्दी की इस किस्म को 1984 में भवानीसागर (टी०एन०ए०यू०) तमिलनाडु द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म जलाक्रांत खेत के लिए उपयुक्त है. इसका प्रकन्द चमकीला नारंगी होता है. यह किस्म भी तैयार होने में 285 दिन से अधिक का समय लेती है. इसकी पैदावार लगभग 6 टन प्रति हेक्टेयर होती है.

सुगंधम – हल्दी की इस किस्म को 1984 में जगुदान गुजरात द्वारा विकसित किया गया है. इस किस्म का प्रकन्द ललाई युक्त पीला सुगठित लम्बी अंगुलियाँ जिसमें अच्छी सौरभ होती है. इस किस्म की फसल 210 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार लगभग 15 टन प्रति हेक्टेयर (ताजे प्रकन्द) होती है.

सोनिया – हल्दी की इस किस्म को 1989 में ढोली (आर०ए०यू०) बिहार द्वारा विकसित किया गया है. इस किस्म की हल्दी का प्रकन्द पुष्ट (सुघटित) छोटा व लंबा प्रकन्द होता है. यह किस्म पर्ण चित्ती रोग से प्रतिरोधी होती है. इसकी फसल लगभग 230 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार लगभग 4.50 से 5 टन प्रति हेक्टेयर होती है.

इन किस्मों के अलावा हल्दी की स्वर्णा, रोमा, सुगुना, सुरोमा, सुदर्शन आदि उन्नत किस्में है.

हल्दी के लिए खेत तैयारी (Field preparation for turmeric)

हल्दी की अच्छी उपज के लिए खेत अच्छी प्रकार तैयार होना चाहिए. इसके लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए और 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए. प्रत्येक जुताई के बाद पाटा जरुर लगाए जिससे मिट्टी के ढेले भी फूट जाए. और जिससे खेत में उचित नमी बनी रहे.

हल्दी के लिए खाद एवं उर्वरक (Compost and fertilizer for turmeric) 

हल्दी की अच्छी उपज के लिए खाद एवं उर्वरक का प्रयोग का सर्वोत्तम होता है. खेत की अंतिम जुताई के समय 250 से 300 कुंटल प्रति हेक्टेयर की दर से देशी खाद या कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिए. जिससे यह खेत की मिट्टी में आसानी से मिल जाए. इसके अलावा भूमि की उर्वरा शक्ति व किस्म के अनुसार 30 से 100 किग्रा० नत्रजन, 30 से 80 किग्रा० फास्फोरस व 60 से 100 किग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से दिया जाना उपयुक्त होता है. फ़ॉस्फोरस की पूरी व पोटाश की आधी मात्रा जुताई के समय भूमि में मिला दे व नाइट्रोजन की पूरी व पोटाश की शेष मात्रा दो भागों में बांटकर खड़ी फसल में पहली किश्त बुवाई के 30 दिन बाद व शेष 60 दिन बाद देनी चाहिए.

हल्दी का बुवाई का समय (Turmeric sowing time)

जलवायु, किस्म व बीजू-सामग्री के अनुसार हल्दी की बुवाई 15 अप्रैल से 15 जुलाई तक की जा सकती है. वही केरल में 15 अप्रैल से 15 मई तक का समय बुवाई के लिए श्रेष्ठ होता है.

हल्दी बीज एवं बुवाई (Turmeric Seeds and Sowing)

हल्दी की फसल बीजों से उगाई जाती है. परन्तु आर्थिक द्रष्टि से ऐसा उपयुक्त नही है. तथा बीज से उगाये पौधों से प्रकन्द भी कम बनते है. इस लिए बीजू सामग्री के रूप में प्रकन्द ही काम में लिए जाते है. पिछली फसल से बचाए गए स्वस्थ, आमतौर पर प्राथमिक, प्रकन्दों का ही बीजों के रूप में प्रयोग किया जाता है. अगर घनकंद बड़े हों तो उनके टुकड़े किये जा सकते है. अगर बीजू सामग्री के रूप में द्वितीयक कन्द, जिनको फिंगर्स कहते है. अगर इनको काम में ले तो इसको फुटान के लिए गीली मिट्टी व बुरादे से उपचारित कर लेना चाहिए.

हल्दी की बुवाई क्यारियों या मेड़ों पर दोनों तरीको से की जा सकती है. मेड़ों पर बुवाई सिर्फ अधिक वर्षा तथा भारी मृदा, जिसमें उचित जल निकास न हो, वाले क्षेत्रों क्यारियों में बुवाई 15 x 25 सेमी० की दूरी की कतारों में की जाती है. बुवाई के समय प्रत्येक गाँठ को 4 से 5 सेमी० की गहराई में बोना चाहिए. बोने के बाद लगभग 30 दिन पर गाँठ अंकुरित हो जाती है. सिंचाई भूमि में अंकुरण थोड़ा जल्दी अर्थात 15 से 20 दिन में ही हो जाता है. बीज की मात्रा बीजू कंदों के आकार पर निर्भर है. सामान्य अवस्था में 2500 किग्रा० कन्द प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है.

हल्दी में पलवार लगाना (Turmeric paste)  

फसल की बुवाई के तुरंत बाद पलवार लगाना लाभदायक होता है. पलवार के लिए 150 से 200 कुंटल प्रति हेक्टेयर की दर से ढेंचा, सनई या अन्य हरी पत्तियां उपयुक्त पायी जाती है. पलवार से भूमि में नमी अधिक समय तक बनी रहती है. फसल का उगाव बढ़िया होता है. तथा खरपतवार भी रुक जाते है. पलवार दो बार लगनी चाहिए. पहली बुवाई के तुरंत बाद व दूसरी बुवाई के 50 दिन बाद लगनी चाहिए. इसके अलावा पलवार से की सामग्री से भूमि में जीवांश की मात्रा बढ़ जाती है. जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है.

हल्दी की सिंचाई (Turmeric irrigation)

हल्दी की फसल को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है. जलवायु, भूमि, वर्षा तथा पलवार के अनुसार 7 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई की जाती है. बीजू प्रकंदों के उगाव तथा फसल में प्रकंदों की वृध्दि के समय भूमि को नम रखना अति आवश्यक है.

हल्दी में खरपतवार नियंत्रण (Turmeric weed control)

हल्दी के खेत में पत्तियों की पलवार लगाने से काफी हद तक खरपतवार का नियंत्रण हो जाता है. फिर भी 2 से 4 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है. अक्टूबर से नवम्बर के महीने में जब निराई-गुड़ाई की जाय तो पौधों के आधार पर मिट्टी भी चढा देनी चाहिए. जिससे प्रकन्दों का समुचित विकास हो.

हल्दी की फसल खुदाई (Turmeric crop digging)

हल्दी की अगेती फसल सात माह, मध्यम आठ माह व पछेती दस माह में पककर तैयार हो जाती है. फसल के पकने पर पत्तियां पीली पद जाती है. तथा सूख जाती है. इस समय घनकन्द पूर्ण विकसित हो जाते है. फसल की कटाई के समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है. कि प्रकन्द न तो कटे, न छिले तथा न तो भूमि में रह पाए. अगर खुदाई करते समय भूमि में उचित नमी न हो तो कुदाली या फावड़े की सहायता से आराम से निकाला जा सकता है. जहाँ पर नमी की कमी हो तो हल्की सिंचाई कर देना चाहिए.

हल्दी की खुदाई के बाद उपज के थोड़े बहुत हिस्से को बीज के लिए या हरे प्रकन्दों के रूप में बाजार में बेचने के लिए बचाकर बाकी हिस्से को उपचारित करके सुखकर हल्दी बनाते है. सुखाने से पहले हल्दी की गांठों को उबलना पड़ता है.

हल्दी की उपज (Turmeric yield) 

सिंचित क्षेत्र में शुध्द फसल से 150 से 200 कुटल और असिंचित क्षेत्रों से 60 से 90 कुंटल प्रति हेक्टेयर कच्ची हल्दी प्राप्त होती है. सुखाने के बाद कच्ची हल्दी की यह उपज 15 से 25 प्रतिशत तक कम बैठती है.

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हल्दी के रोग एवं कीट प्रबन्धन (Turmeric Disease and Pest Management)

हल्दी के प्रमुख रोग एवं प्रबन्धन 

पत्ती चिट्टी रोग – इस बीमारी से ग्रसित पत्तियों के बहरी व भीतरी दोनों ही पटलों पर ललाई-युक्त भूरे धब्बे बन जाते है. व पत्तियां शीघ्र ही पीली पड़ जाती है. इस बीमारी से पौधे मरते नही है. परन्तु रोगी पौधों की पत्तियों की कार्य क्षमता में भरी कमी आ जाती है. जिससे उपज कम हो जाती है.

रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए बोर्डों मिश्रण, ओरियोफींजन (2.5 माइक्रोग्राम/मि०मी०) जाइनेब (0.1 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

पत्ती धब्बा रोग – हल्दी की इस बीमारी से पौधे की पत्तियों व कभी-कभी पर्ण छाद पर भी धब्बे बन जाते है. जो 4 से 5 सेमी० लम्बे व 3 सेमी० चौड़े होते है. ये धब्बे आपस में मिलकर अधिक बड़े धब्बे बनाते हुए सारी पत्ती को घेर लेते है. इससे पत्तियां सूख जाती है और पूरी फसल जली हुई से दिखाई देती है.

रोकथाम – इस रोग के रोग के लक्षण नजर आने से पहले ही अगस्त शुरू में 1.0 प्रतिशत बोर्डों मिश्रण या 2 प्रतिशत केप्टान के छिड़काव से रोका जा सकता है.

हल्दी के प्रमुख कीट एवं प्रबन्धन 

ऊतक बेधक कीट – यह कीट प्ररोह बेधक तने को खाकर नुकसान पहुचता है. एक ताने के मरने के बाद जो दूसरा तना उगता है यह कीट उसे भी खाकर नष्ट कर देता है.

रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए 0.04 प्रतिशत एल्ड्रिन के घोल का छिड़काव करवाना चाहिए.

नीमोटोड – यह कीट मूलगाँठ तथा बिलकारी दोनों तरह के सूत्रकृमी हल्दी की फसल को काफी नुकसान पहुंचाते है.

रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए प्रजननिक सुधार, नीमाटोड नाशी दवाइयों का उपयोग करना चाहिए.

निष्कर्ष (The conclusion)

किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Hindi) से सम्बंधित इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा हल्दी के फायदे से लेकर हल्दी के रोग एवं कीट प्रबंधन तक सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Hindi) से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा गाँव किसान (Gaon Kisan) का यह लेख हल्दी की खेती (Turmeric cultivation in Hindi) आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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