TIL KI KHETI : तिल की खेती के बारे में जानकारी

0
TIL KI KHETI
तिल की खेती की पूरी जानकारी

तिल की खेती के बारे में जानकारी

 नमस्कार किसान भाईयों, देश में तिल की खेती (TIL KI KHETI) ज्यादातर राज्यों में की जाती है. इसकी खेती काफी उपयोगी होती है क्योकि किसानों को इससे अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है. यह तिलहन की खेती (Oilseeds Cultivation) में सबसे पुरानी फसलों में से एक है. इसके अलावा इसमें तेल की मात्रा 40 से 50 प्रतिशत पायी जाती है, जो कि तिलहनी फसलों में सबसे अधिक है. इसलिए गाँव-किसान (GAON KISAN) आज अपने इस लेख के जरिये तिल की खेती (Sesame Cultivation) की पूरी जानकारी देगा.

तिल की खेती के लिए भूमि 

तिल की खेती (TIL KI KHETI) लगभग सभी प्रकार की भूमियों में हो जाती है. केवल क्षारीय और अम्लीय मिट्टियां इसके लिए उपयुक्त नही होती है. तिल के लिए अच्छे जल निकासी वाली मध्यम से भारी मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. मिट्टी का पी० एच० मान 5.00 से 8.00 के बीच का होना चाहिए.

तिल की खेती का समय 

तिल की बुवाई का सबसे उचित समय 1 जुलाई से 15 जुलाई तक होता है. इसके अलावा तापक्रम एवं भूमि की नमी पर निर्भर करता है. बुवाई करते समय यह अवश्य देख लेना चाहिए तापमान ज्यादा व भूमि में नमी कम तो नही है. लेकिन इस बात का अवश्य ध्यान रखे कि बुवाई जुलाई के अंतिम सप्ताह तक हर स्थित में कर देनी चाहिए.

यह भी पढ़े : जानिए,गाजर की उन्नत किस्में, जिससे किसानों को मिलेगा अधिक उत्पादन

खेत की उचित तैयारी 

तिल की बुवाई के लिए खेत की तैयारी मानसून आने से पहले ही शुरू कर देनी चाहिए. खेत की दो से तीन बार अच्छी प्रकार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए.

तिल की उन्नत किस्में 

तिल की उन्नत किस्मों की बात की जाय, तो आर० टी० 125, टी० 13, आर० टी० 46, आर० टी० 127, टी० सी० 25 तिल की प्रमुख किस्में है. जिनकी बुवाई कर किसान भाई अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है.

तिल की बुवाई विधि 

तिल की बुवाई विधि का सीधा असर इसकी बुवाई पर पड़ता है. तिल की बुवाई सीधी लाईनों में करनी चाहिए. जिसमें लाईन से लाईन की दूरी 30 से 45 सेमी० रखनी चाहिए तथा पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 से 15 सेमी० रखनी चाहिए.

तिल की खेती में खाद की मात्रा 

तिल की अच्छी उपज के लिए खाद की संतुलित मात्रा का उपयोग करना चाहिए. इसकी खेती में 60 किग्रा० नत्रजन एवं 46 किग्रा० फास्फोरस प्रति हेक्टेयर में प्रयोग करना चाहिए. नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई के समय खेत में दाल देनी चाहिए. नत्रजन की बची हुई मात्रा जब फसल 25 से 30 दिन की होने पर कड़ी फसल में देनी चाहिए.

तिल की खेती में सिंचाई 

तिल की खेती में सिंचाई की अधिक आवश्यता नही होती है क्योकि इसकी खेती वर्षा आधारित होती है. फिर भी आवश्यतानुसार 15 से 20 दिन के अंतराल पर खेत की क्षमता के आधार पर सिंचाई कर सकते है. फली फकने के बाद सिंचाई नही करनी चाहिए.

यह भी पढ़े : मसूर की उन्नत किस्में | Improved varieties of Lentils

तिल की फसल सुरक्षा

तिल की फसल को पत्ती और पॉड कैटरपिलर जैसे कीटो को नियंत्रित करने के लिए कार्बेरिल 10% से प्रभावित पत्तियों और टहनियों और धूल को हटा देना चाहिए.पत्ती और पॉड कैटरपिलर की घटनाओं का प्रबंधन करने के लिए, फली बेधक संक्रमण और फीलोडी घटना 7 वें और 20 वें डीएएस पर 5 मिलीलीटर प्रति लीटर स्प्रे का उपयोग करना चाहिए.पित्त की मक्खी को रोकने के लिए 2% कार्बरी के साथ निवारक स्प्रे का उपयोग करना चाहिए.

तिल की फसल कटाई एवं उपज 

तिल की फसल की कटाई सुबह के समय करनी चाहिए.फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब पत्तियां पीली होकर लटकने लगती है तथा नीचे के कैप्सूल पौधों को खींचकर नींबू के पीले रंग का हो जाता है.जब पत्तियां गिर जाएं तो जड़ वाले भाग को काटकर बंडलों मे बाँध देना चाहिए. फिर 3 से 4 दिन धूप में फैलाना चाहिए और डंडों से पीते ताकि कैप्सूल खुल जाएं और बीज बाहर आ जाय .इस प्रक्रिया 3 दिन तक दोहराना चाहिए. उपज आम तौर पर प्रति हेक्टेयर 6 से 7 क्विंटल होती है.

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here