तेजपत्ता की खेती (Tejpatta farming in hindi) कैसे करे ?
नमस्कार किसान भाईयों, तेजपत्ता की खेती (Tejpatta farming in hindi) इसके पत्तों के लिए की जाती है. इसके पत्तों का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है. भारत में इसके पत्तों का उपयोग घर की रसोई में किया जाता है. किसान भाई इसे उगाकर अच्छा लाभ कमा सकते है. इसीलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख के जरिये तेजपत्ता की खेती (Tejpatta farming in hindi) की पूरी जानकारी देगा, वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसे आसानी से उगा सके. तो आइये जानते है तेजपत्ता की खेती (Tejpatta farming in hindi) की पूरी जानकारी-
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तेजपत्ता के फायदे
तेजपत्ता का उपयोग रसोई में बनाये गए व्यजनों में स्वाद एव सुगंध बढ़ने में किया जाता है. यह एक मसाले वाला सूखा पत्ता ही नहीं इसके अनगिनत गुण भी है, जिनके बारे लोग कम ही जानते है. आयुर्वेद में इसे औषधि के रूप में प्रयोग करते है.
यह पत्ता एंटी-इन्फ्लैमटोरी, एंटीफंगल, एंटीबेक्टीरियल आदि गुणों से भरपूर होता है. आयुर्वेद में इसका विशेष स्थान है. तेजपत्ता की प्रकृति हल्का, तीखा, कडवा, मधुर, गर्म होती है. इसके सेवन से पाचन, मष्तिक को तेज, पेशाव साफ़, पेट और आमाशय के लिए लाभ मिलता है.
उत्पत्ति एवं क्षेत्र
तेजपत्ता का वानस्पतिक नाम सिनैमोमम तमाला (Cinnamomum tamala) है. यह लोरेसी (lauraceae) कुल का पौधा है. इसकी उत्तपत्ती एशिया माइनर (श्रीलंका) माना जाता है. विश्व में यह वृक्ष फ़्रांस, बेल्जियम, इटली, रूस, मध्य अमेरिका, उत्तरी अमेरिका और भारत में पाया जाता है. तेजपत्ता को अंग्रेजी में इन्डियन बे लीफ (Indian bay leaf) कहा जाता है. देश में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, कर्नाटक के अलावा उत्तरी पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है.
जलवायु एवं मिट्टी
तेजपत्ता की खेती के लिए अधिक नम और साधारण गर्म जलवायु सर्वोत्तम होती है. अत्यधिक गर्मी, सर्दी तथा तेज धूप इसके लिए नुकसान दायक होती है. लगभग 200 से 255 सेमी० वरिश व 27 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान इसके लिए उपयुक्त होता है.
उपयुक्त मिट्टी तेजपत्ता के पौधे के विकास के लिए आवश्यक है. तेजपत्ता की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थयुक्त सूखी मिट्टी उपयुक्त होती है. भूमि का पी० एच० मान 6 से 8 के बीच का होना चाहिए.
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उन्नत किस्में
तेजपत्ता की कोई भी उपयुक्त किस्म उपलब्ध नही है. अतः स्थानीय किस्म ही पौध लगाने के काम में ली जाती है.
खेत की तैयारी
पौधे व पौधशाला के पौधे लगाने से पहले खेत से खरपतवार साफ़ कर लेना चाहिए. फिर खेत की अच्छी प्रकार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा व समतल बना लेना चाहिए. खेत से जल निकास की उचित व्यवस्था रखनी चाहिए.
प्रवर्धन की विधियाँ
तेजपत्ता की पौध मुख्य रूप से बीजों से तैयार की जाती है. वैसे कायिक परिवर्धन की कलम व दाब बिधियाँ अपनाकर भी पौध तैयार की जा सकती है. यद्यपि कायिक विधि से पौधे तैयार करना अपेक्षाकृत कठिन है. परन्तु इस विधि से लगाये गये वृक्ष डेढ़ से दो वर्ष में ही तैयार हो जाते है. जबकि बीजों द्वारा लगाये गए वृक्ष 3 से 4 वर्ष लेते है.
बाग़ लगाना
नर्सरी में बीजो या कायिक प्रवर्धन विधियों द्वारा तैयार पौधे चुने हुए खेत में 50 सेमी० 50 सेमी० गहरे गड्ढे खोदकर इनमें सतही मिट्टी व खाद या कम्पोस्ट का मिश्रण भर देते है. गड्ढे 3 x 3 मीटर की दूरी पर कतारों में खोदे जाते है. कही-कही क़तर व गड्ढे की दूरी 2 से 2.5 मीटर भी रखी जाती है. जून-जुलाई के महीने में नर्सरी या डालियों से पौध को इन गड्ढों में रोपा जाता है. जून-जुलाई महीने में नर्सरी या डालियों से पौध को इन गड्ढों में रोपा जाता है.
निराई-गुड़ाई
रोपाई के बाद किसी विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता नही है. केवल निराई-गुड़ाई करने की आवश्यकता पड़ती है. पहले दो वर्षों तक वर्ष में तीन या चार बार तथा बाद में एक वर्ष में केवल दो बार निराई करना आवश्यक है. निराई के बाद पौधे के आधार पर मिट्टी चढ़ाना पौधे के विकास में सहायक रहता है.
पौधों की छंटाई
पौधे के रोपाई के 2 वर्ष बाद जून-जुलाई के महीने में, जब उनकी ऊंचाई 1.0 से 1.5 मीटर तक बढ़ जाती है. जमीन से 10 से 15 सेमी० की ऊंचाई पर काट कर उन पर मिट्टी चढ़ा देते है. मिट्टी चढाने से पार्श्व प्ररोहों की वृध्दि अधिक होती है. इन पार्श्व प्ररोहों में से 4 से 6 को बढ़ने दिया जाता है. जब पौधा 2 से 3 मीटर ऊँची एक झाड़ी का रूप धारण कर लेता है. हर पौधे की छंटाई एकांतर वर्ष में करनी चाहिए.
खाद एवं उर्वरक
पौधे के समुचित विकास के लिए खाद एवं उर्वरक देना आवश्यक है. पहले वर्ष हर पौधे को 20 ग्राम नाइट्रोजन 18 ग्राम फ़ॉस्फोरस तथा 25 ग्राम पोटाश देना चाहिए. फिर धीरे-धीरे हर साल इस मात्रा को बढ़ाकर दस साल में, जब पौधे का पूर्ण विकास हो जाता है. तब 200 ग्राम नाइट्रोजन, 180 ग्राम फ़ोस्फोरस व 200 ग्राम पोटाश देना चाहिए.
हर साल दी जाने वाली उर्वरक की मात्रा को दो सामान भागों में विभक्त कर एक भाग को सितम्बर-अक्टूबर तथा दूसरे भाई को मई-जून में पौधे के चारों और नाली खोदकर देना चाहिए. उर्वरकों के अलावा 20 किलोग्राम गोबर की खाद अथवा कपोस्ट भी हर पौधे में देनी चाहिए. खाद की सम्पूर्ण मात्रा एक बार में ही मई जून में उर्वरकों के साथ ही डे देनी चाहिए.
पत्तों की तुड़ाई
तेजपत्ता का पौधा एक सदाबहार पौधा होता है. जिसमें पूरे साल पत्ते निकलते रहते है. इनकी तुड़ाई कर आप केवल इन्हें सुखाकर इनका उपयोग कर सकते है.
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उपज
तेजपत्ता की उपज इनके पौधों पर निर्भर करती है. एक हेक्टेयर में लगे पौधे से लगभग 6 टन पत्तियां प्राप्त हो जाती जाती है.
निष्कर्ष
किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस तेजपत्ता की खेती (Tejpatta farming in hindi) से सम्बंधित लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan)द्वारा तेजपत्ता के फायदे से लेकर उपज तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी तेजपत्ता की खेती (Tejpatta farming in hindi) से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा गाँव किसान (Gaon Kisan) का यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.