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Strawberry Farming – स्ट्राबेरी की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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स्ट्राबेरी की खेती (Strawberry Farming) की पूरी जानकारी

स्ट्राबेरी की खेती (Strawberry Farming) की पूरी जानकारी

  नमस्कार किसान भाईयों, स्ट्राबेरी की खेती (Strawberry farming) देश के विभिन्न राज्यों में की जाती है. यह एक आकर्षक, स्वादिष्ट, सुर्ख लाल, गुलाबी, सुगन्धित एवं पौष्टिक फल है. इस फल की खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में स्ट्राबेरी की खेती (Strawberry farming) की पूरी जानकारी अपनी भाषा हिंदी में देगा. जिससे किसान भाई इसकी खेती से अच्छी उपज करके लाभ कमा सके. तो आइये जानते है स्ट्राबेरी की खेती (Strawberry farming) की पूरी जानकारी-

स्ट्राबेरी के फायदे 

स्ट्राबेरी आकर्षित, लाल, गुलाबी, सुगन्धित और पौष्टिकता से भरपूर फल है. इसके प्रति 100 ग्राम गूदे में 87.8 प्रतिशत जल, 0.7 प्रतिशत प्रोटीन, 0.2 प्रतिशत वसा, 0.4 प्रतिशत खनिज लवण, 1.1 प्रतिशत रेशा, 1.8 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.3 प्रतिशत कैल्शियम तथा 1.8 प्रतिशत आयरन पाया जाता है. इसके अलावा इसमें लगभग 40 से 50 मिग्रा० विटामिन तथा लगभग 30 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है. स्ट्राबेरी का उपयोग जैम, जैली, कैंडी, आइसक्रीम, केक तथा कई प्रकार के शीतल पेय बनाने में किया जाता है. सौन्दर्य प्रसाधन में भी स्ट्राबेरी का काफी उपयोग किया जाता है.

उत्त्पति एवं क्षेत्र 

स्ट्राबेरी का वानस्पतिक नाम फेगेरिया अनानासा (Fragria ananassa) है. यह रोजेसी कुल का पौधा है. इसका उत्पत्ति स्थान फ़्रांस माना गया है. स्ट्राबेरी के प्रमुख उत्पादक देशों मे उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय देश, दक्षिणी अमेरिका, कनाडा, जापान आदि प्रमुख देश है. भारत में इसकी पारम्परिक खेती मुख्य रूप से ठंडे प्रदेशों में की जाती है. इनमे उत्तरांचल, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल आदि राज्य प्रमुख है. लेकिन कुछ विशेष किस्मों के आ जाने और प्लास्टिक के बहुयामी उपयोग से व कुछ सालों से यह उपोष्ण जलवायु में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि राज्यों के कुछ क्षेत्रों में सफलता पूर्वक उगाई जा रही है.

जलवायु एवं मिट्टी (Strawberry Farming)

स्ट्राबेरी की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. इसके पुष्पन हेतु कम से कम 10 दिनों तक 8 घंटे से कम सूर्य की रौशनी प्राप्त होना आवश्यक है. स्ट्राबेरी की अच्छी उपज के लिए तापमान 15 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड उपयुक्त होता है. लेकिन पुष्पन के लिए 14 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना आवश्यक है.

जीवांशयुक्त हल्की दोमट मिट्टी जिसमें जल निकासी की समुचित सुविधा हो तथा पी० एच० मान 5.5 से 6.5 के बीच का हो स्ट्राबेरी की खेती के लिए सर्वोत्तम होता है.

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उन्नत किस्में (Strawberry Farming) 

भारत में स्ट्राबेरी की प्रमुख व्यावसायिक किस्में फेस्टिवल, स्टीव चार्ली, कामारोजा, फ्लोरीना, चांदलर, ज्योलीकोट, रेड कोट, सोलोना, फर्न, रेड कोट, रिच रेड, सेल्वा, विंटर डाउन आदि है.

पौध प्रवर्धन एवं रोपण 

स्ट्राबेरी का कायिक प्रवर्धन भूस्तारी द्वारा किया जाता है. भूस्तारी से तैयार पौधों को एकल पंक्ति विधि, चटाई विधि एवं क्यारी विधि द्वारा लगाते है. एकल पंक्ति विधि हल्की मिट्टी में अपनाते है. चटाई विधि में मातृ पौधे से निकले भूस्तारी तने को बढ़ने दिया जाता है, जो बाद में चटाई का रूप ले लेता है. इस विधि में पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी० तथा कतार से कतार की दूरी 60 सेमी० रखते है. क्यारी विधि में उठी हुई क्यारियों पर 30 X 45 सेमी० पर की कतार में 20 से 25 सेमी० पर पौधे लगाते है. क्यारी की लम्बाई सुविधानुसार रखी जानी चाहिए. दो उठी हुई क्यारियों के बीच की दूरी पर 50 सेमी० की रखी जाती है. प्रत्येक क्यारी पर पौधे की दो या तीन पंक्तियाँ 20 से 30 सेमी० दूरी पर लगाई जाती है. इस प्रकार प्रति एकड़ 22,000 से 24,000 पौध की आवश्यकता होती है.

मैदानी क्षेत्रो में पौधों का रोपण मध्य सितम्बर-अक्टूबर माह में किया जाता है. मध्य नवम्बर के बाद तापमान में कमी होने के कारण पौधे की वृध्दि रुक जाती है तथा उत्पादन में कमी आती है. नए पौधे पुराने द्वारा प्राप्त होता है. प्रत्येक पौधे में नए रनर निकलते है. जिनके प्ररोह से नई पत्तियां तथा जड़ निकलती है जो मिट्टी में स्थापित होकर नए पौध का निर्माण करती है. इन पौधों को मातृ पौधे से अलग कर पुनः रोपण के लिए उपयोग किया जाता है.

उर्वरक एवं खाद (Strawberry Farming) 

स्ट्राबेरी की पौध लगाने के बाद इसकी पूरी फसल चक्र में 250 किलोग्राम यूरिया एवं 200 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करते है. यह उर्वरक फर्टिगेशन विधि द्वारा 15 दिनों के अंतराल पर 4 से 5 भागों में दी जानी चाहिए. मल्टीप्लेक्स तथा मल्टी-पोटाश का छिड़काव भी 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए. इससे फलन अच्छा होता है तथा फलों की गुणवत्ता कायम रहती है. फल लगने के उपरान्त कैल्सियम नाइट्रेट का छिड़काव प्रति सप्ताह 2 किलो प्रति एकड़ की दर से की जानी चाहिए. जिससे अच्छी गुणवत्ता वाले फल आ सके.

सिंचाई (Strawberry Farming) 

स्ट्राबेरी की जड़ बहुत गहरी नहीं होती है. इसलिए इसको नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है. पहली सिंचाई पौध लगाने के तुरंत बाद की जानी चाहिए. उसके उपरान्त 3 से 4 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. उचित सिंचाई से फल बड़ा रसीला होता है. सूक्ष्म तत्वों की कमी होने पर माइक्रोन्यूट्रीएन्ट का छिड़काव करना आवश्यक है.

तुड़ाई एवं उपज

स्ट्राबेरी की फसल की तुड़ाई तभी करे जब फल आधे से तीन भाग (2/3) अपना रंग बदल ले. यह सुबह के समय सूरज के निकलने से पहले कर ले साथ ही यह भी ध्यान रखे कि फलों को डंठल के साथ तोड़े. तुड़ाई किये गये फलों को ट्रे में रखना उचित होता है, क्योकि यह बहुत कोमल होते है. गहरे बर्तन में रखने से इन फलों की उपरी परत को नुकसान पहुंचता है.

इन फलों की तुड़ाई नजदीकी बाजार के अनुसार ही करे, क्योकि इन्हें दो से तीन दिन तक ही सुरक्षित रखा जा सकता है. इसलिए तुड़ाई के बाद इन्हें प्लास्टिक के छोटे डिब्बों में पैक बाजार भेजना चाहिए.

स्ट्राबेरी की की उपज इस बात पर निर्भर करती है कि आपके क्षेत्र में जलवायु, मिट्टी, किस्म और फसल प्रबन्धन कैसा है. स्ट्राबेरी का एक पौध  एक सीजन में  से 500 से 600 ग्राम फल देता है. अगर एक एकड़ की बात की जाय तो लगभग 80 से 100 कुंटल तक की पैदावार हो जाजाती है.

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प्रमुख कीट एवं ब्याधि प्रबंधन

प्रमुख कीट 

लाही – यह कीट समूह में रहता है तथा स्ट्राबेरी के पौधों की पत्तियां, कोमल डंठलों, एवं तनो के रस चूसकर उन्हें कमजोर कर देते है. पौधों पर चीटियों की उपस्थित इस कीट के आक्रमण को इंकित करता है.

रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफ़ॉस या मिथाइल डिमेटोन 1 मिली० पार्टी लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करे.

थ्रिप्स – यह कीट स्ट्राबेरी की पत्तियों का रस चूस लेते है. जिससे पौधों को नुकसान पहुंचता है. पोपुधे सूख जाते है.

रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफ़ॉस 10 मिली० प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करे.

लाल मकड़ी – ये लाल व गहरे भूरे रंग के सूक्ष्मजीवी अष्टपदी प्राणी है. जो पत्तियों के प्रायः निचली सतह पर अनगिनत संख्या में रहकर उनका रस चूसते है. ग्रसित पत्तियां सूख जाती है.

रोकथाम – लाल मकड़ी का आक्रमण होते ही डाइकोफाल या इथियान 2.5 मिली प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करवाए.

पत्र छेदक कीट –  यह पात्र छेदक कीट पत्तियों में छेद करके उनका भक्षण करते है. कीटग्रस्त पत्तियां छलनी हो जाती है.

रोकथाम – नीम से निर्मित कीटनाशी निम्बेसिडिन 2 मिली० प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करे.

प्रमुख ब्याधियाँ 

ग्रे मोल्ड – यह रोग स्ट्राबेरी के तना, पत्तियों, फूल और फल सभी को नुकसान पहुंचता है. यह रोग फूल और फल आने के समय ज्यादा लगता है. ग्रसित भागों में भूरे रंग के धब्बे बन जाते है. ये रोग हवा और पानी से दूसरे पौधों को भी अपनी चपेट में ले लेता है.

रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए डाईथेन एम-45 नामक फफूंदी नाशक दवा की 1.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में डालकर घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.

एन्थ्रेकनोज – यह रोग पत्ती और फसल पर अंडाकार काला धब्बा उत्पन्न करता है. कई धब्बे आपस में मिलकर एक बड़े दाग का रूप धारणकर लेते है.जिसके कारन फल का बाजार भाव काफी कम हो जाता है.

रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए ब्लाईटोक्स या फाईटोलान का 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव दस दिनों के अंतर पर करना चाहिए.

उकठा रोग – इस रोग से ग्रस्त पौधे मुरझाकर सूख जाते है. कुछ पौधे हरे-भरे रहते है परन्तु बाद में जल्द ही सूख जाते है.

रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए नई भूमि का चुनाव करना चाहिए जिसमें पूर्व में इसके जीवाणु न हो.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon Kisan) के स्ट्राबेरी की खेती (Strawberry farming) से सम्बंधित इस लेख से सभी जानकारियां मिला पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा स्ट्राबेरी के फायदे से लेकर कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन तक सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी अगर स्ट्राबेरी की खेती (Strawberry farming) से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो आप कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा आपको यह लेख कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

 

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