Sorghum Farming – ज्वार की खेती कैसे करे ? (हिंदी में)

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ज्वार की खेती (Sorghum Farming) कैसे करे ?

ज्वार की खेती (Sorghum Farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, ज्वार की खेती (Sorghum Farming) खरीफ के मौसम में की जाती है.यह चारा और अनाज के लिए बोई जाती है.जिससे किसानों को दोहरा फायदा होता है.आज गाँव किसान (Gaon kisan) अपने इस लेख के जरियें ज्वार की खेती (Sorghum Farming) की खेती कैसे करे ? इसकी पूरी जानकारी देगा अपनी भाषा हिंदी में. जिससे आप सभी इसकी खेती कर फायदा ले पाए. तो आइये जानते है ज्वार की खेती (Sorghum Farming) की पूरी जानकारी-

ज्वार के फायदे  

ज्वार मानव और जानवरों दोनों के लिए काफी फायदेमंद होती है. ज्वार में प्रोटीन, मिनिरल और बी कॉम्पलेक्स जैसे पोषक तत्व होते है.ज्वार के उपयोग से कफ, पित्त, गैस, बावशीर आदि रोग दूर होते है.पशुओं के लिए इसका चारा काफी पौष्टिक होता है. इसमें औसतन 7 से 8 प्रतिशत प्रोटीन, 32 प्रतिशत रेशा, 0.50 प्रतिशत कैल्सियम तथा 0.24 प्रतिशत फास्फोरस पाया जाता है.ज्वार का हरा चारा कडवी (Hay) तथा साइलेज (Silage) के रूप में उपयोग कर सकते है.

ज्वार की उत्पत्ति 

सामान्य रूप से ज्वार की उत्पत्ति पश्चिम अफ्रीका है.लेकिन कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी उत्पत्ति इथोपिया माना जाता है.

ज्वार की खेती का क्षेत्र 

ज्वार का अनाज विश्व के विभिन्न भागों पर उगाया जाता है. ज्वार की खेती चीन, अरब, अमेरिका, बर्मा, अमेरिका आदि देशों में की जाती है.भारत में इसकी खेती पंजाब, राजस्थान, बंगाल, मद्रास, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में की जाती है.

ज्वार की खेती के लिए जलवायु 

ज्वार की अच्छी वृध्दि के लिए तापमान 33 से 34 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए.ज्वार की बुवाई के समय न्यूनतम तापमान 18 से 21 डिग्री सेल्सियस के बीच का होना चाहिए. ज्वार 38 से 75 सेमी० वर्षा वाले स्थानों में अधिक उपज देता है.

ज्वार की खेती के लिए भूमि 

ज्वार की खेती हर प्रकार की मिट्टी में कर सकते है.लेकिन इसकी खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट तथा हल्की व औसत काली मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है.मिट्टी का पी० एच० मान 6.5 से 7.0 के बीच का उपयुक्त होता है.

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ज्वार की खेती के लिए उन्नत किस्में

एक कटाई वाली किस्में :- ज्वार की एक कटाई वाली किस्मों में  PC-6, PC-9, PC-23, HC 171, HC 260, Rio (रियो) प्रमुख है.

बहु कटाई वाली किस्में :- ज्वार की बहु कटाई वाली किस्मों में एम० पी० चरी, मीठी सूडान (SSG-59-3), JC-69 प्रमुख है.

मीठी सूडान तथा जे० सी० 69 मार्च से अक्टूबर तक 700 से 800 कुंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा देती है.इन किस्मों में थ्यूरिन नामक ग्लूकोसाइड अपेक्षाकृत कम होता है, तथा इसमें 2 से 3 कटाइयों तक हरा चारा प्राप्त होता है. जबकि एम० पी० चारी से दो कटाइयों में 650 से 700 कुंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है.

भूमि की जुताई एवं तैयारी 

ज्वार की खेती के लिए खेत की मिट्टी को भुरभरी कर लेना चाहिए.जुताई की संख्या खेत की पिछली फसल पर निर्भर होती है. चना, बरसीम, मटर के बाद ज्वार की खेती के लिए 2 से 3 बार हैरों चलाकर पाटा लगाने से खेत पूरी तरह से तैयार हो जाता है.

बुवाई का समय 

ज्वार की बुवाई का सही समय मार्च से जुलाई तक का है.बुवाई से पहले आवश्यकतानुसार सिंचाई कर देना चाहिए, जिससे अंकुरण सामान रूप से हो सके.

बीज की दर 

छोटे बीज के लिए :- ज्वार के बीज छोटे है तो 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है.

बड़े बीज के लिए :- ज्वार के बीज बड़े है तो 50 से 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है.

बुवाई सीडड्रिल या हल से 25 से 30 सेमी० की दूरी पर पक्तियों में करना चाहिए.छिटकवा विधि से बुवाई की जा सकती है.जिसमें बीज की मात्रा में 15 से 20 प्रतिशत वृध्दि करना आवश्यक है.

ज्वार की खेती में उर्वरकों की मात्रा 

ज्वार की खेती के लिए 60 किलोग्राम नत्रजन, 30 किलोग्राम स्फूर एवं 30 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है.फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा एवं नत्रजन की आधी मात्रा (30 किलोग्राम) बुवाई के समय खेत की अंतिम जुताई के समय भली प्रकार से मिट्टी में मिला देना चाहिए.शेष बची हुई नत्रजन की मात्रा को एक कटाई वाली किस्मों में 40 से 45 दिनों बाद तथा बहु कटाई वाली किस्मों में कटाई के अनुसार दो या तीन भाग में इस प्रकार बाँट लेना चाहिए ताकि प्रत्येक कटाई के बाद ज्वार की फसल में नत्रजन डाला जा सके.

सिंचाई एवं जल निकास  

ग्रीष्म कालीन फसल 

जो ज्वार की फसलें फरवरी व मार्च में बोई जाती है.उनमें 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.

वर्षा ऋतु (खरीफ) वाली फसल 

वर्षा ऋतु में बोई गई ज्वार की फसल को प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है.सूखे की स्थिति में सिंचाई करनी चाहिए.

अधिक वर्षा या अधिक जल भराव जावर की फसल को हानि पहुंचता है. इसलिए खेत से पानी के निकास का उचित प्रबन्धन कर लेना चाहिए.

खरपतवार की रोकथाम 

बुवाई के 15 से 20 दिन बाद एक या दो निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार की समस्या को दूर किया जा सकता है.यदि खरपतवार की समस्या अधिक हो तो तो एट्राजीन 1.5 किग्रा सक्रिय अवयव 1000 लीटर पानी जल में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरंत बाद खेत में सामान रूप से छिड़काव कर लेना चाहिए.छिड़काव के समय खेत में नमी होना आवश्यक है.इस प्रकार खरपतवार नियंत्रण कर सकते है.

फसल सुरक्षा 

ज्वार के छोटे पौधों को सबसे ज्यादा नुकसान ज्वार की तना मक्खी पहुंचाती है.इसके बचाव के लिए फसल को समय पर बोना चाहिए तथा रोग रोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए.बुवाई के समय 15 किग्रा० (10 प्रतिशत फोरेट) थिमिट के दानों के साथ कूड़ों में बुवाई करने से तना पर मक्खी का प्रकोप कम हो जाता है.बीजों को बुवाई से पहले कार्बोफ्यूरान द्वारा उपचारित करने से तना मक्खी का 80 प्रतिशत नियंत्रण किया जा सकता है.

ज्वार के चारे में मुख्य रूप से पत्तियों पर लाल चीटियों की बीमारी लगती है.जिससे चारे की पौष्टिकता कम हो जाती है.यह जीवाणु फफूंदी द्वारा फैलती है.इसके रोकथाम के लिए ड्राईथेन जेड-78 की 2.2 किलोग्राम मात्रा 1000 लीटर पानी में मिलकर पत्तियों पर छिड़काव कर लेना चाहिए.

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कटाई प्रबन्धन

ज्वार चारे की फसलों के शुरुवाती अवस्था में थ्यूरिन नामक ग्लूकोसाइड होता है.जो फसलों के बढवार के साथ कम हो जाता है तथा पुष्पावस्था में इसमें काफी नमी आ जाती है. इसलिए ग्लूकोसाइड के विषैले प्रभाव से बचने के लिए चारा को पुष्पावस्था में काटकर पशुओं को खिलाना चाहिए.इस अवस्था में पौष्टिक तत्वों का भी अच्छा समन्वय रहता है.बहु कटाई वाली किस्मों में पहली कटाई, बुवाई के 50 से 55 दिनों के बाद करनी चाहिए तथा अगली कटाई 30 से 35 दिनों के अंतराल पर करनी चाहिए.

उपज 

ज्वार की एक कटाई वाली किस्मों से 300 से 525 कुंटल हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है.वाही बहु कटाई वाली किस्मों से 500 से 800 कुटल हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उमीद है गाँव किसान (Gaon kisan) के इस लेख से आप सभी को ज्वार की खेती (Sorghum Farming) की पूरी जानकारी मिल पायी होगी.गाँव किसान (Gaon kisan) द्वारा ज्वार के फायदे से लेकर उपज तक सभी जानकारिया दी गयी है.फिर भी ज्वार की खेती (Sorghum Farming) से सम्बन्धित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है.इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं. महान कृपा होगी.

आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद 

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