कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने खोजी की सुकर की नई प्रजाति ‘बांडा’, पशुपालकों की आमदनी में होगा इजाफा

0
new species of succulent 'Banda'
सुकर की नई प्रजाति ‘बांडा’

वैज्ञानिकों ने खोजी की सुकर की नई प्रजाति ‘बांडा’

देश के किसानों व पशुपालकों की आमदनी में इजाफा हो सके इसके लिए देश के कृषि वैज्ञानिक लगातार नई नई खोजों में लगे हुए हैं. इसी कड़ी में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने किसानों की आर्थिक आमदनी बढ़ाने के लिए एक नई खोज की है. यह खोज एक सुकर की नई प्रजाति ‘बांडा’ की है. जो एक बार में 4 बच्चों की को देने की क्षमता है.

राष्ट्रीय पशु अनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो करनाल (हरियाणा) जोकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) से अधिकृत है. उसने हाल ही में देश में खोजी गई 10 नई पशु प्रजातियों को पंजीकृत करवाया है.इन पंजीकृत पशुओं में गाय कटहानी, संचोरी मासलिम, भैंस की पुर्नाथाडी, बकरी की सोजात, गुजारी और करानौली प्रजाति शामिल है.इन नस्लों के अलावा सुकर की ‘बांडा’, मणिपुरी ब्लैक और वाक चमबिल प्रजातियों को भी शामिल किया गया है.

यह भी पढ़े : आलू एवं टमाटर की प्रमुख विषाणु जनित रोग कौन-कौन से हैं ? आइए जाने इनकी रोकथाम कैसे करें?

क्या खासियत है सूकर की बांडा नस्ल की

बांडा नस्ल के सुकर की सबसे बड़ी खासियत कि यह छोटे आकर की नस्ल है. इस नस्ल का रंग काला, कान छोटे और खड़े, थूथन लंबे, पेट बड़ा और गर्दन पर खड़े बाल पाए जाते हैं. यह नस्ल 1 साल में करीब 20 से 25 किग्रा की हो जाती है. और एक बार में 4 बच्चों को जन्म देने की क्षमता रखती है. एक वयस्क ‘बांडा’ सुकर का वजन लगभग 28 से 30 किग्रा० तक हो जाता है.

इस नस्ल में जमीन के अंदर से भोजन प्राप्त कर लेने की है क्षमता  

सुकर की ‘बांडा’ नस्ल में सबसे बड़ी खासियत यह है. कि यह सुखाड़ की स्थिति में भी जमीन के अंदर से भोजन प्राप्त कर लेने की अद्भुत क्षमता रखती है. इसके अलावा यह प्रजाति काफी दूर तक दौड़ लेने की भी क्षमता रखती है. तथा सुदूर भ्रमण से जंगलों से भी खाने योग्य पोषण प्राप्त कर लेने की भी क्षमता रखती है. झारखंड के ग्रामीण परिवेश में ‘बांडा’ नस्ल काफी लोकप्रिय नस्ल है.जिसकी मुख्य वजह प्रदेश के ग्रामीण परिवेश तथा ग्रामीण आदिवासियों की संस्कृति से जुड़ा होना है. ‘बांडा’ के पालन में लगभग नगण्य खर्च होने की वजह से ग्रामीणों द्वारा इसे काफी पसंद किया जाता है। इस नस्ल को खुली जगह में आसानी से पाला जाता है। जो जंगल के अवशेष तथा कृषि अवशेष के सेवन से उन्नत तरीके से मांस में तब्दील करता है.

यह भी पढ़े : बीज की अनुवांशिक शुद्धता बनाए रखने के क्या-क्या उपाय हैं ? आइए जानें पूरी जानकारी

नई प्रजाति की खोज में लगा 8 से 10 साल 

सुकर की नई प्रजाति ‘बांडा’ बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के वैज्ञानिकों की ओर से खोजी गयी नस्ल है. बीएयू के पशु चिकित्सा संकाय के वैज्ञानिक डॉ रविन्द्र कुमार ने 8-10 वर्षाे के अथक प्रयास और शोध से इस नई प्रजाति की खोज की है. डॉ कुमार के प्रयासों से ही राष्ट्रीय पशु अनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो ने ‘बांडा’ को पंजीकृत किया है. जिसे एक्ससेशन संख्या इंडिया-पिग-2500-09011 दी गयी है. इसे झारखंड राज्य के लिए अनुकूल और उपयुक्त बताया है.

देश में अब तक वैज्ञानिकों द्वारा सुकर की कुल 13 प्रजाति की खोज की जा चुकी है, जिसे राष्ट्रीय पशु अनुवांशिकी संसाधन ब्यूरो की ओर से पंजीकृत करने से पहचान मिली है. ग्रामीण स्तर पर ‘बांडा’ की मांग ज्यादा होने से सुकरपालकों को इसका बढ़िया मूल्य मिलता है.

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Group Join Now

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here