गेहूं में चूर्णिल आसिता रोग से सुरक्षा कैसे करे
गेहूं की खेती देश के ज्यादातर किसानो द्वारा की जाती है. जिससे उनकी आय होती है. लेकिन कभी-कभी रोगों के होने के कारन उन्हें लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ती है. इन्ही रोगों में से एक है चूर्णिल असिता रोग. जिससे गेहूं की फसल को काफी नुकसान होता है. इसके प्रकोप से गेहूं की उपज कम हो जाती है.
इसलिए गाँव किसान के इस लेख में गेहूं के चूर्णिल असिता रोग के बारे में पूरी जानकारी जानेगें. कि किसान भाई इस लोग को कैसे पहचाने, इसका प्रकोप क्षेत्र कौन सा है, प्रकोप की शुरुवात समय के बारे एवं किसान भाई इसका अपनी गेहूं की खेती में नियन्त्रण कैसे करे. तो आइये जाने गेहूं की खेती में चूर्णिल असिता रोग का नियंत्रण कैसे करे, पूरी जानकारी-
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चूर्णिल असिता रोग की पहचान
इस रोग के लगने पर गेहूं के पौधे की पत्तियों की सतह पर सफ़ेद चूर्ण हो जाता है एवं छोटे-छोटे, गोल काले क्लाइस्टोंथीसियम का पाया जाना इस रोग की मुख्य पहचान है.
फसल में प्रकोप अधिक होने पर सफ़ेद रंग का चूर्ण पर्णच्छद तना वाली और शूक पर भी पाए जाते है. इस सफ़ेद रंग के चूर्ण का रंग बाद में भूरा या लाल रंग का हो जाता है. इसके उपरांत पत्तियां सूख जाती है. जिससे पौधों की बधवार रुक जाती है. इनका समुचित विकास नही होता है. जिससे गेहू की खेती में किसानों को उपज कम मिलाती है.
रोग के प्रकोप क्षेत्र
गेहूं की फसल का चूर्णिल असिता रोग का प्रकोप उत्तरी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों और उसके नीचे वाले क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है.
प्रकोप का समय और रोग की शुरुवात
चूर्णिल असिता रोग की शुरुवात मार्च से मई तक गेहूं की खेती में पाया जाता है. लेकिन मैदानी क्षेत्रों में गर्मी में तापमान अधिक होने पर रोगजनक मर जाते है. मौसम में कवक के कोनिडियय पहाड़ी क्षेत्रों में बातोढ़ होकर आते है. और मैदानी क्षेत्रों में रोग की शुरुवात हो जाती है.
रोग के लिए अनुकूल परिस्थियाँ
अन्य चूर्णिल असिता के विपरीत इसके लिए अधिक आर्द्रता (100% तक) और 15-20 सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है. अनुकूल वातावरण में पौधा बढ़ने के साथ रोग भी बढ़ सकता है. नाइट्रोजन की अधिकता से रोग बढ़ता है. पर फ़ॉस्फोरस और पोटाश से कम होता है.
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रोग का समाधान ऐसे करे
गेहू की खेती में चूर्णिल असिता रोग के नियंत्रण के लिए निम्न उपाय अपनाना चाहिए. जिससे किसान भाई इसकी रोकथाम कर अधिक उपज प्राप्त कर सके-
- गेहूं की बुवाई करने से पहले मिलस्टेम 8 ग्रा०/किग्रा० से बीजोपचार करना चाहिए.
- रोग सहिष्णु किस्मों का चुनाव करके ही बुवाई करनी चाहिए.
- पहाड़ी क्षेत्रों में रोगी पौध अवशेषों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए.
- डिकार के तीन छिडकाव इसको रोका जा सकता है.
- इसके लिए 2 किग्रा०/1000 लीटर पानी/ हेक्टेयर के हिसाब से 1 बनोमिल 0.5 किग्रा०/हेक्टेयर उपयोगी होता है.
- इसका पहला छिडकाव रोग दिखाते शेष दो 10-14 दिनों के अंतर पर करना चाहिए.