गेहूं का पिथियम मूल विगलन रोग का नियंत्रण
गेहूं की खेती में किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान रोगों के द्वारा ही फैलता है. रोग गेहूं की उपज को काफी कम कर देते है. इसलिए आज हम गेहूं के एक एक ऐसे ही रोग की जानकारी किसान भाइयों को देगें जो गेहूं की फसल को को काफी नुकसान पहुंचता है. गेहूं के इस रोग का नाम पिथियम मूल विगलन है. तो आइये जाते है इस रोग की पूरी जानकारी –
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पिथियम मूल विगलन रोग के मुख्य लक्षण
गेहूं के इस रोग के कारण पौधों की जड़ों में हलके भूरे रंग का सहन हो जाता है. इसके अलावा दौजियाँ बौनी और हलके रंग की हो जाती है. रोग के अधिक प्रसार होने पर पर्णच्छद और पौधे के आधार पर भी इसके सहन दिखाई पड़ते है.
रोग के प्रकोप क्षेत्र
इस रोग को देश के पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार एवं उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में गेहूं की फसल में देखा जा सकता है.
प्रकोप का समय एवं रोग की शुरुवात
गेहूं के इस रोग के प्रकोप का समय नवम्बर से फरवरी तक का होता है. रोगजनक पौधे अवशेषों और मिट्टी में बढ़ता रहता है. पौधे की जड़ों पर संक्रमण आसानी से हो जाता है. नई जड़े जल्दी रोगी हो सकती है.
रोग के लिए अनुकूल परिस्थितियां
रोग अधिक नमी और ऊँचे तापमान वाली मिट्टी में रोग अधिक होता है. नाइट्रोजन की अधिकता और फास्फोरस की कमी भी रोग बढ़ने में सहायक होती है.
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रोग का नियंत्रण करे ऐसे
- कवकनाशी जैसे थाइरम 2.5 ग्रा०/किग्रा० बीज दर से बीजोपचार करना चाहिए.
- किसान भाई हर 2 से 3 साल पर फसल चक्र अपनाएँ, जिसमें धान्य फसलें न हो.
- किसान रोगी फसल के अवशेषों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिये.
- खेत की अच्छी प्रकार तैयारी करनी चाहिए. इसके अलावा खेत से जल निकास का उचित प्रबंध एवं संतुलित खाद का प्रयोग करे.
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