पीली सरसों की खेती कैसे करें ? | Mustard farming
देश के अधिकतर राज्यों में सरसों की खेती की जाती है. लेकिन पीली सरसों की खेती किसान भाई खरीफ के सीजन के अलावा रबी के सीजन में भी कर सकते हैं. लेकिन पीली सरसों की खेती दरिया की तरह कैश क्रॉप के रूप में खरीफ एवं रबी के मध्य बोई जाती है.
इसीलिए इसे खरीफ व रबी दोनों की फसल माना जाता है. पीली सरसों की खेती (Pili sarson ki kheti) करते समय किसान भाई बीज का चुनाव करते समय उत्तम किस्मों का ही चुनाव करते समय काफी सूझबूझ रखनी चाहिए. क्योंकि अच्छी किस्मों के बीज भी अच्छी उपज देंगे. जिससे किसानों को लाभ होगा. तो आइए जानते हैं किसान भाई पीली सरसों की खेती (Yellow mustard cultivation) कैसे करें जिससे उन्हें अधिक पैदावार मिल सके, जाने पूरी जानकारी-
पीली सरसों ( Yellow mustard) के लिए खेत तैयारी
पीली सरसों की खेती के लिए किसान भाई सबसे पहले अपने खेत की साफ सफाई करके पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. उसके उपरांत दो से तीन बताइए देशी हल, कल्टीवेटर या हैरो से करनी चाहिए.किसान भाई इस बात का ध्यान रखें, जितनी बार जुताई करें उतनी बार पाटा जरूर लगाएं. इससे खेत की मिट्टी भुरभरी बन जाएगी. इसके अलावा समतल भी हो जाएगी. भूमि में जलभराव की स्थिति नहीं होनी चाहिए. इसके लिए खेत से जल निकास उचित व्यवस्था होनी चाहिए.
यह भी पढ़े : इस राज्य के 33,000 किसानों का कर्जा होगा माफ़, राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश
पीली सरसों की खेती (Pili sarson ki kheti) के लिए उन्नत किस्में
किसी भी फसल से अच्छी उपज लेने के लिए किस्मों का चुनाव काफी महत्वपूर्ण होता है इसलिए पीली सरसों की इन किस्मों की बुवाई कर किसान भाई अच्छी उपज ले सकते हैं तो आइए आपको बताते हैं पीली सरसों की मुख्य उन्नत किस्में प्रमुख उन्नत किस्में-
उन्नत प्रजातियाँ | विकसित किये जाने का वर्ष | पकने की अवधि (दिनों में) | उत्पादन क्षमता (कुंतल/हेक्टेयर) | तेल का प्रतिशत |
पीताम्बरी | 2009 | 110-115 | 18-20 | 42-45 |
नरेन्द्र सरसों-2 | 1996 | 125-130 | 16-20 | 44-45 |
के-88 | 1978 | 125-130 | 16-18 | 40-45 |
पन्त पीली सरसों-1 | 2010 | 107-113 | 10-13 | 39-45 |
पूसा डबल जीरों सरसों-31 (पी०डी० 2-1) | 2016 | 140-144 | 24.00 | 40-41 |
बीज की मात्रा एवं शोधन
पीली सरसों की बुवाई के लिए किसान भाई अपनी उन्नत किस्म के बीज का चुनाव कर 4 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से इसकी बुवाई कर सकते हैं वही बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को उपचारित करना जरूरी है लेकिन उससे पहले किसान भाई बीज खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखें वह प्रमाणित बीज ही खरीदें.
बीज को उपचारित करने के लिए 2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा बीज की दर से बीज को उपचारित कर के ही बोना चाहिए. यदि किसी वजह से ही थीरम उपलब्ध हो पाए, तो किसान भाई मैंकोज़ेब 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बीज को उपचारित करना चाहिए. इसके अलावा मेटालेक्सिल 35% डब्ल्यू० एस० 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधन करके प्रारंभिक अवस्था में सफेद गेरुई एवं तुलसिता रोग की रोकथाम के लिए काफी आवश्यक है.
बुवाई का उपयुक्त समय एवं विधि
किसान भाइयों के लिए पीली सरसों की बुवाई का उपयुक्त समय 15 सितंबर से 30 सितंबर तक होता है. गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए पीली सरसों की बुवाई सितंबर के पहले पखवाड़े में किसान भाइयों को कर लेनी चाहिए.
पीली सरसों की बुवाई के लिए देशी हल काफी उपयुक्त होता है. लेकिन आप इसकी बुवाई ट्रैक्टर के हलों से भी करवा सकते हैं.एक किसान भाई पीली सरसों की बुवाई 30 सेमी की दूरी पर तीन से चार सेमी की गहराई पर कतारों में करनी चाहिए. इसके उपरांत पाटा लगाकर बीजों को ढक देना चाहिए.
पीली सरसों के लिए उर्वरक की मात्रा
पीली सरसों की बुवाई करने से पहले संतुलित मात्रा में उर्वरक देने के लिए भूमि का परीक्षण बहुत ही जरूरी होता है. इससे किसान अधिक उपज ले पाएंगे. असिंचित क्षेत्रों में बुवाई करने की दशा में 40 किग्रा नाइट्रोजन, 30 किग्रा फास्फेट तथा 30 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से किसान भाई प्रयोग कर सकते हैं. वही सिंचित क्षेत्रों में 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम पास एवं 40 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर का उपयोग करना चाहिए. फास्फेट का प्रयोग एस०एस०पी० के रूप में अधिक लाभदायक पाया गया है, क्योंकि इसमें 12% गंधक की पूर्ति हो जाती है. फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा एवं नाइट्रोजन की आधी मात्रा जुताई के समय नाई या चोगें द्वारा बीज से 2 से 3 सेमी नीचे प्रयोग करनी चाहिए. नाइट्रोजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई टापड्रेसिंग के रूप में करनी चाहिए. वही गंधक की पूर्ति हेतु 200 किग्रा जिप्सम का प्रयोग किसान भाई अवश्य कर लें. और अपने खेतों में खेत की तैयारी के समय 40 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद जरूर डालनी चाहिए.
पीली सरसों की निराई-गुड़ाई
पीली सरसों की अच्छी उपज लेने के लिए निराई गुड़ाई काफी आवश्यक है. क्योंकि फसल से घने पौधों को दवाई करके 10 से 15 दिन के अंदर निकाल देना चाहिए. वही पौधों की आपस की दूरी 10 से 15 सेमी० कर देनी चाहिए. इसके अलावा किसान भाई इसके साथ उपजे खरपतवार को निराई गुड़ाई के साथ निकाल देना चाहिए. अधिक खरपतवार होने की दशा में पेंडीमैथलीन 30 ई०सी० का 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के बाद तथा जमाव से पहले छिड़काव करना जरूरी होता है.
पीली सरसों में सिंचाई का उपयुक्त समय
किसान भाई पीली सरसों, राई और सरसों की तरह ही फूल निकलने के पूर्व की अवस्था पर जल की कमी के प्रति सरसों की तरह काफी संवेदनशील होती है. इसीलिए इसलिए इस अवस्था में सिंचाई करना उपज के लिए काफी उपयोगी साबित होता है. इसके अलावा किसान भाई जब भी फसल को सिंचाई की आवश्यकता हो सिंचाई कर सकते हैं.
पीली सरसों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट
आरा मक्खी
पीली सरसों के इस कीट की सूड़िया काले स्लेटी रंग की होती है. जो पत्तियों के किनारे अथवा पत्ती में छेद करके खाती हैं. इस कीट के प्रकोप से पूरा पौधा पत्ता विहीन हो जाता है.
चित्रित बग
फसल के इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ चमकीले नारंगी एवं लाल रंग के चकत्ते युक्त होते हैं. शिशु एवं प्रौढ़ पौधे की पत्तियां शाखाओं तने फलों एवं फलियों का रस चूस लेते हैं जिससे प्रभावित पत्तियां किनारों से सूख कर गिर जाती हैं प्रभावित फलियों के दाने कम बनते हैं
बालदार सूड़ी
बालदार सूडी का रंग काला एवं नारंगी होता है तथा इसका पूरा शरीर बालों से ढका रहता है. इसकी सूदियाँ शुरुआत में झुण्ड बनाकर पत्तियों को खाती हैं. इसके उपरांत बाद में पूरे खेत में फैल कर पत्तियों को खा जाती है. तीव्र प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है.
मांहू
माहू कीट का शिशु एवं प्रौढ़ पीलेपन का रंग लिए होता है. जो पौधे के कोमल तना व पत्तियों, फूलों एवं नई फलियों के रस को चूस कर कमजोर बना देता है. मांहू कीट मधुस्राव करते हैं. जिससे काली फफूंदी हो जाती है. जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो जाती है. और पौधा कमजोर हो जाता है.
पत्ती सुरंगक कीट
पीली सरसों के इस कीट की सूड़ियाँ पत्तियों में सुरंग बनाकर रहती हैं. और उसके हरे भाग को खा जाती हैं. जिसके फलस्वरूप पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखाएं बन जाती हैं और पौधे का विकास समुचित नहीं हो पाता है.
कीटों का नियंत्रण इस तरह करे
- गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करके छोड़ देना चाहिए.
- अपने खेतों में संतुलित उर्वरकों का उपयोग करना चाहिए.
- खेत में आरा मक्खी का प्रयोग होने पर इसकी सूड़ियों को प्रातकाल इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए.
- यदि फसल में माहू का प्रकोप हो तो प्रभावित खोलो फलियों और शाखाओं को तोड़कर माहू सहित नष्ट कर देना चाहिए.
- खेत में यदि अधिक प्रकोप हो तो कीटनाशकों का प्रयोग करना सबसे उचित रहता है.
- आरा मक्खी एवं बालदार सूडी के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 5% डी०पी० की 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर का बुरकाव अथवा मैलाथियान 50% ई०सी० की 1.50 लीटर अथवा डाईक्लोरोवास 76% ई०सी०की 500 मिली मात्रा अथवा क्यूनालफ़ॉस 25% ई०सी० का 1.25 लीटर प्रति लीटर की दर से लगभग 600 से 700 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
- माहूँ, चित्रित बग एवं पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु डाइमेथोएट 30% ईसी अथवा ऑक्सीडेमेटान-मिथाइल 25% ईसी अथवा क्लोरोपायरीफ़ॉस 20% ईसी की 1.0 लीटर अथवा मोनोक्रोटोफॉस 36% एस० एल० की 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600 से 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. एजाडिरेक्टिन (नीम का तेल) 0.15% ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.
पीली सरसों की कटाई का समय
फसल की 75% फलिया सुनहरे रंग की हो जाए, तो उसे काटकर सुखा लेना चाहिए. उसके उपरांत सूखी हुई फसल को मड़ाई कर के बीज को अलग कर ले. अगर किसान भाई समय पर कटाई नहीं करेंगे, तो पौधों से बीज झड़ने की आशंका बनी रहती है. इसके अलावा किसान भाई इसका बात का ध्यान रखें, कि उपज का भंडारण करने से पहले उन्हें अच्छी तरह सुखा लें अन्यथा भंडारण किये गए दाने कुप्रभावित हो जाएंगे.