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Nigella seeds farming – कलौंजी की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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कलौंजी की खेती ( Nigella seeds farming) की पूरी जानकारी

कलौंजी की खेती ( Nigella seeds farming) की पूरी जानकारी

 नमस्कार किसान भाईयों, कलौंजी की खेती ( Nigella seeds farming) देश में मसाले के रूप में की जाती है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते है. इसलिए गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख के जरिये आप को कलौंजी की खेती ( Nigella seeds farming) की पूरी जानकारी देगा, वह भी अपनी भाषा हिंदी में. जिससे आप सभी किसान इसकी अच्छी खेती कर अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है कलौंजी की खेती ( Nigella seeds farming) की पूरी जानकारी-

कलौंजी के फायदे 

कलौंजी एक मसाला फसल है. जिसका प्रयोग औषधि, सौन्दर्य प्रसाधन, मसाले तथा खुशबू के लिए भोज्य पकवानों में किया जाता है.

कलौंजी पोषक तत्वों से भरपूर होती है. इसमें 35 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 21 प्रतिशत प्रोटीन और 35 से 38 प्रतिशत वसा होता है. कलौंजी में केरोटीन, विटामिन ए, बी-1, बी-2, नायसिन व सी और कैल्सियम पौतेशिय्म लोहा, मैग्नीशियम, सेलेनियम, व जिंक आदि खनिज पाए जाते है.

कलौंजी में 100 से ज्यादा पौषक तत्व मौजूद होते है. कलौंजी के सेवन से कैंसर, फंगस, खांसी, बुखार, दमा, ब्रोंकाइटिस, मधुमेह, एच० आई० वी०, सफ़ेद दाग और कुष्ठ आदि रोगों में लाभदायक होती है.

कलौंजी का स्वाद खाने में हल्का कडवा व तीखा और गंध तेज होती है. इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के खानों, ब्रेड, केक और अचारों में किया जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

कलौंजी का वानस्पतिक नाम निजेला सेटाइवा है. जो रनुनकुलेसी कुल का झाड़ी वाला पौधा है. कलौंजी का पौधा भारत सहित दक्षिण पश्चिम एशियाई, भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों में उगने वाला पौधा है. भारत में इसकी खेती ज्यादातर उत्तर भारत के गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में की जाती है.

जलवायु एवं भूमि (Nigella seeds farming)

कलौंजी के लिए उष्ण कटिबंधीय जलवायु उपयुक्त होती है. शुरुवात में इसकी वृध्दि के लिए ठंडा मौसम उपयुक्त होती है. कलौंजी में जब बीज बन जाते है तो उसे शुष्क और गर्म जलवायु की जरुरत होती है. कलेजी की फसल को पाले से बचाना चाहिए.

कलौंजी की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थ से युक्त बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है. भूमि का पी० एच० मान 6 से 7.5 के बीच का होना चाहिए. भूमि से जल निकास का उचित प्रबंध होना जरुरी होता है.

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उन्नतशील किस्में (Nigella seeds farming) 

कलौंजी की खेती के लिए उन्नत किस्में निम्न लिखित है-

एन० आर० सी० एस० एस० ए० एन०-1 – कलौंजी की इस किस्म की उपज 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसक किस्म के पौधे की लम्बाई 2 फीट तक होती है. इसकी उपज 8 कुंटल प्रति हेक्टेयर है.

आजाद कलौंजी – कलौंजी की इस किस्म की उपज 140 से 150 दिन में पककर तेयार् हो जाती है. यह किस्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में विकसित की गयी है. इसकी पैदावार 10 से 12 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.

पन्त कृष्णा – कलौंजी की इस किस्म की उपज 130 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसका पौधा 2 से 2.5 फीट लंबा होता है. इसकी पैदावार 8 से 10 कुंटल होता है.

एन० एस०-32 – कलौंजी की इस किस्म की उपज 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म की पैदावार 10 से 15 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.

खेत की तैयारी (Nigella seeds farming)

कलौंजी की अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी अच्छी प्रकार करनी चाहिए. इसके लिए सबसे पहले खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुटी कर लेनी चाहिए. इसके बाद 2 से 3 जुताईयाँ कल्टीवेटर से कर लेनी चाहिए. उसके बाद पाटा लगाकर मिट्टी को अच्छी प्रकार भुरभुरी बना लेना चाहिए.

बुवाई का समय एवं बीज मात्रा

रबी की फसल में कलौंजी की बुवाई करने लिए अक्टूबर के शुरुवात से अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक बुवाई कर देनी चाहिए.

कलौंजी की बुवाई के लिए 7 से 8 किलों बीज प्रति हेक्टेयर की जरुरत होती है. बुवाई से पहले बीज का बीजोपचार अति आवश्यक है.

बुवाई (Nigella seeds farming)

कलौंजी की बुवाई के लिए समतल खेत में उचित आकर की क्यारियां तैयार कर ली जाती है. और इनमे कतरे बनाकर बीज की बुवाई की जाती है. जिसमें कतार से कतार की दूरी 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. वही पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. बीज को डेढ़ सेंटीमीटर गहराई पर बोना चाहिए. कलौंजी को छिटकवाँ विधि से बोया जा सकता है.

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन 

कलौंजी की अच्छी उपज के लिए जुताई करते समय 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट खाद खेत में जरुर डाले. इसके अलावा रासायनिक खाद में 15:15:15 एन० पी० के० तत्व के रूप में अंतिम जुताई के समय खेत में मिला देना चाहिए. 15 किग्रा० नत्रजन पर्णीय छिड़काव के रूप में देना चाहिए.

सिंचाई (Nigella seeds farming)

कलौंजी की फसल को सामान्य सिंचाई की आवश्यकता होती है. इसके पौधे की अच्छी वृध्दि के लिए 15 से 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता हिती है.

खरपतवार नियंत्रण 

कलौंजी की बुवाई के 20 से 25 दिन बाद पौधों की हल्की निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की दो से तीन निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है.

फसल सुरक्षा 

कलौंजी की फसल में रोग एवं कीटों का प्रकोप कम ही होता है. लेकिन जो कीट एवं रोग फसल को फसल को हानि पहुंचा सकते है वह निम्नवत है-

  • जड़ गलन रोग से कलौंजी की उपज को भारी हानि पहुँचती है. इसकी रोकथाम के लिए पौधों में जलभराव की स्थिति न होने दे. इसके अलावा बुवाई के लिए प्रमाणित बीज ही ख़रीदे.
  • कटवा इल्ली कीट इसकी फसल को काफी नुकसान पहुंचता है. इसकी रोकथाम के लिए क्लोराफाइरीफ़ॉस की उचित मात्रा में छिड़काव पौधों की जड़ों पे कराना चाहिए.

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पौधों की कटाई 

कलौंजी की फसल 130 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है. पौधे की कटाई जड़ सहित कर लेनी चाहिए. इसके बाद इसको धूप में अच्छी तरह सूखना चाहिए. जब पौधे अच्छी तरह सूख जाए तो डंडे से पौधों को पीटकर इसके बीज अलग कर लेना चाहिए.

उपज 

कलौंजी की उन्नत विधि से की गयी खेती से औसतन 10 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज हो जाती है. बाजार में इसका मूल्य काफी अच्छा रहता है. इसकी लिए किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon Kisan) के कलौंजी की खेती ( Nigella seeds farming) से सम्बंधित लेख से आपको सभी जानकारियां मिल पायी होंगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा कलौंजी के फायदे से लेकर कलौंजी की उपज तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी कलौंजी की खेती ( Nigella seeds farming) से सम्बन्धित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कम्नेट कर पूछ सकते है. इसके अलावा आपको यह लेख कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं. महान कृपा होगी.

आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द. 

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