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मसूर की नई टॉप किस्में
देश के ज्यादातर राज्यों में मसूर की खेती प्रमुख रूप से की जाती है. विशेषकर उन राज्यों में जहाँ वर्षा आधारित क्षेत्र है. इसलिए देश के कृषि विश्व विद्यालयों द्वारा समय-समय पर नई-नई उन्नत किस्मों को विकसित किया जाता है जो कि रोग और कीटों से प्रतिरोधी होने के साथ-साथ अधिक उत्पादन देने में समर्थ होती है. जिससे किसानों को मसूर की खेती में आने वाली लागत में कमी आती है. और उत्पादन अधिक मिलता है. जिससे उन्हें इसकी खेती से अच्छा लाभ प्राप्त होता है.
साथ ही आपको जानकारी देते चले कि इस साल केंद्र सरकार द्वारा रबी फसलों का न्यूतम समर्थन मूल्यों की घोषणा की गयी है जिसमें सरकार द्वारा मसूर के मूल्यों में एमएसपी सबसे ज्यादा है. इस साल केंद्र सरकार ने मसूर के समर्थन मूल्य में 425 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की है. जिससे वर्ष 2024-25 में मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6425 रुपए प्रति क्विंटल तक पहुँच गया है.
मसूर की बुवाई का उचित समय
मसूर की खेती मुख्य रूप से रबी सीजन में की जाती है. वाही इसकी बुवाई का उचित समय उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर के अंत में तथा उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्रों व मध्य क्षेत्रों के लिए नवम्बर का दूसरा पखवाड़ा होता है.
किसान भाई इसके अधिक उत्पादन के लिए बीजो का बीजोपचार करके ही बुवाई करे जिससे रोगों और कीटों से इसकी सुरक्षा हो सके.
वही बुवाई के लिए बड़े दाने वाली मसूर प्रजातिओं के लिए बीज दर 55-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा छोटे दानों वाली प्रजातिओं के लिए बीज दर 40-45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आश्यकता होती है.
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मसूर की टॉप उन्नत किस्में और इसकी विशेषताएं
मसूर की खेती के लिए किसान भाई अपने क्षेत्र के अनुसार जारी की गयी किस्मों का चुवान कर सकते है. जिससे उन्हें अधिक उत्पादन मिलेगा. इसके अलावा इसं किस्मों को चुनाव करके किसान भैअधिक पैदावार ले सकते है.इन किस्मों में L-4729, पूसा युवराज, पूसा अवंतिका, पूसा अगेती, पूसा वैभव, पूसा मसूर-5, पूसा शिवालिक, L-4727, गरिमा, शेखर-5, कोटा मसूर-4, छत्तीसगढ़ मसूर-1, आई.पी.एल 329 एवं आई.पी.एल 230 आदि प्रमुख किस्मों की बुवाई किसान भाई कर सकते है.
मसूर की नई किस्मों की विस्तृत जानकारी
मसूर की उन्नत किस्म L-4729
मसूर की यह किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ के वर्षा आधारित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. इस किस्म से औसत उपज 17.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तो अधिकतम 25.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है. यह किस्म उकठा रोग के लिये मध्यम प्रतिरोधी है.
मसूर की उन्नत किस्म पूसा युवराज
मसूर की यह किस्म हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य के वर्षा आधारित क्षेत्रों (लवणीय मिट्टी) लिए सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी गयी है. इस किस्म से औसत उपज 9.50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तो अधिकतम 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक ली जा सकती है. यह मुख्य रूप से कीट और रोगों के लिए प्रतिरोधी किस्म मानी जाती है, जो कि 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
मसूर की उन्नत किस्म पूसा अवंतिका
पूसा अवन्तिका किस्म हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के लिए अनुकूल मानी गयी है.देश के किसान इसकी खेती वर्षा आधारित क्षेत्रों में रबी सीजन में आसनी से कर सकते हैं. मसूर की इस किस्म से किसान भाई औसत उपज 9.83 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तो अधिकतम 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त कर सकते है. मसूर की यह किस्म उच्च तापमान सहने में सक्षम पायी गयी है. यह किस्म विल्ट, रतुआ, स्टेमफ़िलियम ब्लॉइट, फली भेदक और माहु के लिये प्रतिरोधी होती है. यह किस्म सामान्य परिस्थितियों में 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
मसूर की उन्नत किस्म शेखर 5
मसूर की इस किस्म को उत्तर प्रदेश राज्य के लिए अनुकूल पाया गया है. मसूर की यह किस्म 105 से 115 दिनों में पूरी तरह पक कर तैयार हो जाती है. उपज की बात करे तो मसूर की यह किस्म स लगभग 16 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन दे देती है. मसूर की इस किस्म के दाने छोटे होते हैं साथ ही यह किस्म रस्ट एवं विल्ट रोग के लिये प्रतिरोधी होती है.
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मसूर की उन्नत किस्म L-4727
यह किस्म मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य के लिए उपयुक्त पायी गयी है. इस किस्म से औसत उपज 11.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तो अधिकतम 23.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है. मसूर की इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा 26.5 प्रतिशत तक होती है. मसूर की यह किस्म 103 दिनों में पककर तैयार हो जाती है साथ ही यह क़िस्म उकठा रोग के लिये मध्यम प्रतिरोधी है.
मसूर की उन्नत किस्म कोटा मसूर-4
मसूर की यह किस्म देश के मध्य भाग खासकर मध्य प्रदेश, गुजरात, बुंदेलखंड क्षेत्र, राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से के लिये उपयुक्त है. मसूर की इस किस्म से 18 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त की जा सकती है. इसका दाना मोटा एवं 100 दानों का भार 3.33 ग्राम का होता है. इसके पौधे का रंग गहरा हरा होता है तथा अर्ध फैलाव युक्त व परिसीमित वृद्धि अंडाकार युक्त रोयें रहित पत्तियाँ होती हैं. यह किस्म उकठा रोग के लिये मध्यम प्रतिरोधी तथा जीवाणुपत्ती धब्बा व रतुआ रोग के प्रतिरोधी होती है। इस किस्म में चेपा कीट व फली छैदक कीट का प्रकोप बहुत की कम होता है.