Mustard Farming – सरसों की खेती कैसे करे ? जानिए हिंदी में

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सरसों की खेती (Mustard Farming) कैसे करे ?

सरसों की खेती (Mustard Farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाई, सरसों की खेती (Mustard Farming) देश में मुख्य रूप से तेल के लिए की जाती है. यह तिलहनी फसलों में मूंगफली के बाद दूसरा स्थान रखती है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमा सकते है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज आपके लिए सरसों की खेती (Mustard Farming) की पूरी जानकारी ले के आया है वह भी अपनी भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है सरसों की खेती (Mustard Farming) की पूरी जानकारी-

सरसों के फायदे

सरसों का उपयोग मुख्य रूप के भोजन को पकाने वाले तेल के रूप में किया जाता है. उत्तरी भारत का यह मुख्य खाद्य तेल है. इसके बीज में सामान्य रूप से 36 से 48 प्रतिशत तेल की तथा 28 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा होती है. इसका कच्चा तेल भोजन पकाने के लिए उपयुक्त होता है. साथ ही इसको जलाने, तेल मालिस तथा लकड़ी या चमड़े के बने सामानों को मुलायम करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है.

इससे निकली खल्ली एक अच्छी पशु आहार है. गाय, भैसों के आहार के रूप में इसकी खल्ली का बड़ा ठंडा तथा पाचक प्रभाव पड़ता है. साथ ही इससे पशु रोगों को रोकने में भी सहायता मिलाती है. खल्ली में लगभग 4.9 प्रतिशत नाइट्रोजन, 25 प्रतिशत फ़ॉस्फोरस तथा 1.5 प्रतिशत पोटाश होता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

पीली सरसों की उत्पति स्थान पूर्वी अफगानिस्तान माना जाता है. इसे विश्व के कई देशों में उगाया जाता है. भारत में इसकी खेती पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा आदि राज्यों में मुख्य रूप से की जाती है.

मिट्टी एवं जलवायु (Mustard Farming)

सरसों की खेती सभी प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है. लेकिन हल्की दोमट मिट्टी इसके लिए अधिक उपयुक्त होती है.

सरसों मुख्य रूप से शीतोष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु की तिलहनी फसल है. इसकी खेती रबी के मौसम में की जा सकती है. ठंडा तापमान, पर्याप्त मृदा आद्रता तथा साफ एवं खुले आसमान का इसके बीज एवं तेल की उपज पर अनुकूल प्रभाव डालते है. फल आते समय अत्यधिक कोहरे, बदली और अत्यधिक ठंडी हवाओं वाला मौसम बीजों के बनने एवं मधुमक्खियों द्वारा फूलों के परागन के लिए उपयुक्त नही होता है.

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उन्नत किस्में (Mustard Farming)

पीली सरसों की उन्नत किस्मों में पीताम्बरी, नरेन्द्र सरसों-2, के-88, आदि प्रमुख है.

खेत की तैयारी (Mustard Farming)

सरसों की बुवाई के लिए खेत की एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और दो से तीन बार कल्टीवेटर या देशी हल से करनी चाहिए. इसके बाद पाटा लगाकार खेत को समतल कर ले. इसके अलावा खेत से पानी निकास का उचित प्रबंध करना आवश्यक है.

बीज दर 

सरसों की बुवाई के लिए 05 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरुरत जरुरत पड़ती है.

बीजोपचार 

बीज जनित रोगों एवं कीटो से फसल को बचाने के लिए बीजों को बेविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करना चाहिए.

बोने की दूरी 

ज्यादातर किसान भाई सरसों को छिटकवाँ विधि से बुवाई करते है लेकिन कतार विधि से बुवाई करने पर उपज अच्छी होती है. कतार विधि से बुवाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी० तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी० रखना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक (Mustard Farming)

सरसों की अच्च्छी उपज के लिए 8 से 10 टन गोबर की सड़ी हुई खाद या कम्पोस्ट खाद बुवाई से 20 से 30 दिन पूर्व खेत की मिट्टी में जुअताई करके मिला देना चाहिए. अगर बात रासायनिक उर्वरकों की जाय तो सिंचित क्षेत्र के लिए 80 किलो ग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम स्फूर एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से तथा असिंचित क्षेत्रों के लिए 40 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलोग्राम स्फूर एवं 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से फसल में देना चाहिए.

सिंचित अवस्था में नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए. नत्रजन की शेष मात्रा फसल में फूल आने के समय उअप्रिवेशन करना चाहिए. जिंक की कमी वाले खेत में प्रति हेक्टेयर 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट खेत की तैयारी के समय डालना चाहिए.

सिंचाई (Mustard Farming)

सरसों की अच्छी उपज के लिए खेत की मिट्टी में पर्याप्त नमी होना अति आवश्यक है. सिंचित अवस्था में दो सिंचाई करना चाहिए.जिसमें पहली सिंचाई फूल आने के पूर्व तथा दोसरी सिंचाई फली लगने के समय करे.

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबन्धन 

खेत में सरसों की बुवाई के 10 से 15 दिनों के अन्दर अतरिक्त पौधों की बछनी करनी चाहिए. बुवाई के 20 दिनों बाद निराई-गुड़ाई अवश्य करे. विशेष परिस्थितयों में रासायनिक विधि से खरपतवारों की रोकथाम के लिए पेंडीमिथालिन 30 ई० सी० तीन लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरंत बाद 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर मिट्टी पर छिड़काव करना चाहिए.

कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन 

क्र० सं०  फसल का नाम  कीट ब्याधि रोग के नाम  कीट ब्याधि/रोग कारको के नाम लक्षण  प्रबन्धन
1. सरसों (Mustard) लाही या एफिड (Aphid) लिपाफिस एरिसिमी (Lipaphis erysimi) इस कीट के प्रकोप से पौधे बदरंग और कमजोर हो जाते है. तथा उसमें फल नही आ पाते है. ये एक प्रकार का द्रव छोड़ते है. जिसे मधु विन्दु कहते है. इनसे पत्तियों पर फफूंद पैदा हो जाती है. 1. फसल की आगत बुवाई करने से कीट के प्रकोप से बचाव किया जा सकता है.

2. नीम बीज चूर्ण 5 प्रतिशत या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस० एल० दवा का 250 मिली० प्रति हेक्टेयर या डायइमेथोएट 30 ई० सी० का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

सफ़ेद हरदा रोग (White rust) टलबूगों कैंडिडा (Albugo candida) जड़ को छोड़कर पौधे के है आक्रान्त भाग पर फफोले एवं सफ़ेद चूर्णी दिखाई पड़ते है. 1. थीरम 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिए.

2. रिडोमिल एम० जेड० 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

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कटाई, दौनी एवं भण्डारण 

सरसों की 75 प्रतिशत फलियाँ सुनहरे रंग की हो जाय तो फसल को काटकर सुखाने के लिए धूप में डाल देना चाहिए. इसके बाद डंडे से  पीटकर या मणाई करके बीजों को अलग कर लेना. अगर कटाई में देरी की तो बीजों के झड़ने की आशंका रहती है. बीजो को तीन से चार दिन धूप में अच्छी तरह सुखाकर, टीन या मिट्टी की बखारियों में भंडारित करना चाहिए.

निष्कर्ष  

किसान भाईयों उमीद है, गाँव किसान (Gaon Kisan) का सरसों की खेती (Mustard Farming) से सम्बंधित इस लेख से आप को सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा सरसों के फायदे से लेकर भण्डारण तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी सरसों की खेती (Mustard Farming) से सम्बंधित आपका कोई भी प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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