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आलू एवं टमाटर की प्रमुख विषाणु जनित रोग कौन-कौन से हैं ? आइए जाने इनकी रोकथाम कैसे करें?

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आलू एवं टमाटर के प्रमुख विषाणु जनित रोग

आलू एवं टमाटर के प्रमुख विषाणु जनित रोग

देश में आलू और टमाटर की खेती बहुत बड़े स्तर पर की जाती है. लेकिन इन दोनों की अच्छी उपज लेने के लिए इन्हें विषाणु जनित रोगों से भी बचाना होगा. क्योंकि इन  रोगों से किसानों को इनकी फसलों से काफी हानि उठानी पड़ती है.

वही आलू और टमाटर दोनों सोलेनेसी कुल के पौधे हैं.  जबकि आलू में भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट तथा टमाटर में विटामिन एवं स्वास्थ्यवर्धक पोषक तत्व पाए जाते हैं. इन दोनों को सब्जियों के अतिरिक्त अन्य विभिन्न प्रकार के व्यंजनों के निर्माण में भी प्रयोग किया जाता है. आलू एवं टमाटर विभिन्न प्रकार की बीमारियों से संक्रमित होते हैं. इन बीमारियों में विषाणु जनित रोगों का विशिष्ट स्थान है. तो आइए जानते हैं इन दोनों फसलों के प्रमुख विषाणु जनित रोग कौन-कौन से हैं. और इनका निवारण कैसे करें-

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1.आलू का मोजैक रोग 

मोजैक रोग में पत्तियों पर सर्वप्रथम हरे पीले चिट्ठी दाग धब्बे बनते हैं. पत्तियों का आकार छोटा रह जाता है. तथा निर्मित आलू का आकार असामान्य रूप से छोटा रह जाता है. तथा संख्या में न्यूनता आ जाती है. संक्रमण के फल स्वरुप कार्बोहाइड्रेट प्रतिशत में कमी तथा एमिनो अम्ल के उपलब्धता का ह्रास होने लगता है. यह रोग कई प्रकार के विचारों से उत्पन्न होता है. अतएव रोग जन्म विषाणु की पहचान उसके भौतिक गुणों एवं अन्य प्रतिरोधी संबंधी परीक्षण एवं मानकीकृत पारिपोषियों पर उत्पन्न विशिष्ट लक्षणों आदि के आधार पर किया जा सकता है.

रोग का निवारण करें ऐसे

  • बुवाई के लिए सदैव स्वस्थ एवं प्रमाणित बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए.
  • फसल का समय-समय पर निरीक्षण करते रहना चाहिए और संक्रमित पौधों दृष्टिगोचर होने पर आलू सहित उखाड़ का नष्ट कर देना चाहिए.
  • रोगी पौधों को स्पर्श करने के पश्चात हाथ धो लेना चाहिए. रोगाणुनाशी रसायन तथा ट्राईसोडियम फास्फेट के घोल में डुबोकर भी हाथ को विषाणु मुक्त किया जा सकता है.
  • कीट द्वारा रोग प्रसारण पर नियंत्रण हेतु मेटा सिस्टाक्स  0.1% का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करना लाभदायक होता है.

2.आलू का पर्णवेलन रोग 

आलू का या भयंकर रोग होता है तथा ऐसा अनुमान है कि आलू के सभी विषाणु रोगों में इस रोग की भयंकरता सर्वाधिक होती है.

पर्णवेलन (लीफकर्ल) का प्रमुख लक्षण पर्णकों का मध्यशिराओं के ऊपर की तरफ मुड़ जाना है. पर्णकों मोड़ना विशेष रूप से पौधों की निकली पत्तियों में होता पाया जाता है. संक्रमित पौधों की पत्तियां मोटी, रुक्ष एवं भंगुर (ब्रिटिल) हो जाती हैं. तथा स्पर्श मात्र से संक्रमित पत्तियों के ऊतक टूटने लगते हैं. पर्णवेलन रोग में पत्तियां मौजेक की भांति चितकबरी नहीं होती, लेकिन वे अपेक्षाकृत कम हरी रहती हैं. यह विषाणु रोग आलू के विषाणु जनित मौजेक की भांति रस संचरणशील नहीं है. हां इसका संचरण कलम बंधन, कोर, रोपण और एफिड कीट के विभिन्न प्रजातियों द्वारा होता है

रोग का निवारण करें ऐसे

इसका नियंत्रण भी आलू के मौजेक रोग की रोकथाम की विधियों द्वारा किया जा सकता है.

3.टमाटर का पर्णकुंचन रोग

टमाटर का यह रोग भारत के विभिन्न राज्यों में पाया जाता है. टमाटर के अलावा यह रोग तम्बाकू एवं मिर्च की फसल में भी पाया जाता है.

इस रोग से संक्रमित पौधों की पत्तियां छोटी रह जाती हैं. तथा नीचे की ओर मुड़ी हुई हो जाती हैं. पर्णको में विकृति आ जाती है. और वह खुद दूरी एवं मोटी हो जाती हैं. इसके अतिरिक्त पत्तियों की शिराएं एवं शिरिकाएं मोटी हो जाती हैं. कुछ स्थितियों में सीधा उदभावन (वेन क्लीयरिंग) तथा तना के पोरियों के मध्यांतर में न्यूनता भी देखने को मिलती है. यह विषाणु रस संचरणशील नहीं है. और ना ही अन्तः विजोढ़ है. उग्र रूप से संक्रमित पौधे झाड़ियों सद्रश्य दिखाई पड़ते हैं. यह रोग सफेद मक्खी से संचालित होता है.

रोग का निवारण करें ऐसे

  • नर्सरी अवस्था से ही पौधों को कीटनाशक रसायन मेटासिस्टाक्स 0.1% से उपचारित करके रोग के संक्रमण को नियंत्रित रखना चाहिए.
  •  संक्रमित पौधों एवं खरपतवारओं को नष्ट कर देना चाहिए.

4. टमाटर का मोजेक रोग

टमाटर का यह विनाशकारी रोग है. तथा टमाटर के अतिरिक्त यह मिर्च, तंबाकू, मकोय और पिट्यूनिया को भी सामान्य रूप से संक्रमित करता है. क्रत्रित विधियों से इस रोग को सेम, चुकंदर, आलू, सरसों और पालक पर भी संचारित किया जा सकता है.

सर्वप्रथम संक्रमित पौधों की पत्तियों पर हरा-पीला धब्बा दृष्टिगोचर होने लगता है. जो चितकबरा रंग सदस्य दिखाई पड़ता है. पत्तियों के पीले भाग के ऊतक नष्ट हो जाते हैं. तथा उनका रंग बुरा हो जाता है. फूलों एवं फलों की संख्या में न्यूनता आ जाती है. तथा फलों का आकार अति छोटा रह जाता है.

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रोग का निवारण करें ऐसे

  • इस रोग की रोकथाम के लिए बुवाई से पूर्व स्वस्थ बीजों को 50 सेंटीग्रेड तापमान पर गर्म पानी में 25 मिनट तक रखकर अथवा 2.0% ट्राई सोडियम फास्फेट के घोल में धोकर शोधित कर लेना चाहिए. यह उपचार करने से विषाणु यदि उपस्थित है. तो वह निष्क्रिय हो जाता है.
  • नर्सरी एवं खेत की भूमि से रोग ग्रस्त पौधों के अवशेष को नष्ट कर देता है.
  • संक्रमित पौधों को उखाड़ने के बाद उन्हीं हाथों से स्वस्थ पौधों को स्पर्श नहीं करना चाहिए.

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