आलू की खेती के प्रमुख कीट एवं नियंत्रण
आलू देश में उगाई जाने वाली प्रमुख सब्जियों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इसीलिए देश के ज्यादातर किसान आलू की खेती करते हैं. और उससे अच्छी आए कमाते हैं.
लेकिन कभी-कभी आलू की फसल में कई कीट लग जाते हैं. जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए यह आवश्यक हो जाता है. कि किसान भाई आलू की फसल की उचित पहुंच संरक्षण के उपायों को अपनाकर अच्छी फसल ले सके. जिससे किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ हो सके. और कम खर्चे में कीटों का नियंत्रण भी कर सकते हैं. तो आइए जानते हैं, आलू की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट कौन-कौन से हैं. और इनका नियंत्रण कैसे करें-
आलू की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट एवं नियंत्रण
आलू की फसल का कटुआ कीट
आलू की फसल का यह सर्वभक्षी कीट होता है.जिससे देश के आलू के कंदो का 35 से 40% तक नुकसान होता है.आलू के इस कीट की इंडिया दिन के समय में मिट्टी के ढेले के बीच छिप जाती हैं.और रात के समय निकालकर आलू की पत्तियां और कोमल शाखाओं को काट कर हानि पहुंचा देती हैं. जिससे आलू की उपज काफी कम हो जाती है.
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कीट की रोकथाम
- गर्मी के सीजन में खेतों की गहरी जुताई कर छोड़ दें ताकि कीट गर्मी से मर जाएं.
- मेंढो या खेतों के किनारे पड़े खरपतवार को नष्ट कर दें. ताकि कीट की इल्लियां अगर इनमें छुपी हो तो वह भी मर जाएं.
- आलू की फसल में अधिक कीट का प्रकोप होने पर नोवेल्यूरॉन 10 ई०सी० दवा 300 मि०ली० प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए.
आलू का कंद पतंगा या शलभ कीट
आलू का यह कीट खेतों में लगभग 0.84 प्रतिशत और भंडार ग्रह में 0.52% नुकसान पहुंचाता है इस कीट के लारवा आलू की फसल को दो तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. पहले यह आलू की नई पत्तियों में सुरंग बना कर नुकसान पहुंचाते हैं. दूसरे में यह आलू के कंदों को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं. आलू के इस कीट की मादा आलू की आंखों में अंडे दे देती है.जिससे 18 से 20 दिन बाद सूडियां बाहर आ जाती है. यह कंदों को अंदर से खाकर उन्हें खोखला कर देती हैं. जिससे आलू सड़ जाता है.
कीट की रोकथाम
- कीट की गणना हेतु खेतों व भंडारगृह में फेरोमोन ट्रैप लगाना आवश्यक होता है.
- खेतों में पिछली फसल के छूटे हुए कंदों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए. इसके अलावा खाली खेतों में उगाए आलू के पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
- बीज बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखें बीज कीट रहित होना चाहिए. साथ ही बुवाई गहरी होनी चाहिए.
- आलू का भंडार करते समय कंद पतंगा की रोकथाम के लिए आलू के ढेर के नीचे और ऊपर सुखी हुई लेंटाना या नीम की सूखी पत्तियों की 2.0 से 2.5 सेमी मोटी तह बिछा लेनी चाहिए.
- आलू का भंडारण करते समय केवल स्वस्थ और अच्छे आलू भी भंडारगृह में रखना चाहिए.
- आलू के इस कीट के नियंत्रण के लिए मेलाथियान 50 ई०सी० को 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए इसका फूल बनाने के लिए 600 से 700 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है.
आलू का एपीलेकना भृंग कीट
आलू का यह कीट मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में पाया जाता है.इस कीट की मादा भ्रंग आलू के पौधों की निचली सतह पर लगभग 300 छोटे-छोटे पीले रंग के अंडे दे देती है. जिससे अगले 4 से 5 दिन में छोटी-छोटी पीले रंग की लटे बन जाती है. यह लटे आलू की पत्तियों की शिराओं के बीच दोनों तरफ का हरा पदार्थ खुरच कर खा जाती हैं.
इससे पत्तियां छलनी सी हो जाती है. और बाद में सूख कर गिर जाती है. इसके अलावा पौधे की बढ़वार रुक जाती है. और आलू के कंद बहुत कम बनते हैं.
कीट की रोकथाम
इस कीट की रोकथाम के लिए मेलाथियान 5% चूर्ण या फैनक्लरेट 0.4% चूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर बुरकाव करना चाहिए. यदि जरूरत पड़े तो 15 दिन बाद इस उपचार को फिर से दोहराना चाहिए.
आलू का सफेद लट कीट
आलू का सफेद लट कीट के कारण उपज को 40 से 90% तक का नुकसान हो जाता है. अक्सर देर से बोली गई आलू की फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. यह एक बहुभक्षी कीट है. शुरुआत में सूंड़ियां पौधों को की जड़ों को खाती है. बाद में यह कंदों में उथले गोलाकार छिद्र कर देती है. यह कीट मुख्यतया पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक नुकसान पहुंचाता है.
कीट की रोकथाम
- कीट की रोकथाम के लिए गर्मी के मौसम में खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए.
- इसके अलावा फसल में उचित फसल चक्र अपनाना चाहिए.
- खेतों में गोबर की अच्छी तरह से सड़ी खाद डालनी चाहिए.
- आलू की बुवाई के समय कार्बोफ्यूरान 3 जी या फोरेट 10 जी 25 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिए.
आलू का मांहू/चेंपा/मोयला (एफिड) कीट
आलू का माहू कीट एक महत्वपूर्ण कीट है क्योंकि यह पत्ती मोड़क व वाई वायरस के मुख्य बाह्कों के रूप में कार्य करता है. इससे रोगमुक्त बीज उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. मांहू की दो प्रमुख प्रजातियों में माइजस पर्रासेकी व एफिस गॉसिपी है. इन कीटों के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों में टहनियों के रस चूस कर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं.कीट का अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती है. और पीली पढ़कर सूख जाती हैं. इसके कारण जो वायरस जनित रोग फैलते हैं. इससे आलू की फसल को 40 से 85% तक नुकसान होता है. माइजस पर्रासेकी प्रजाति के माहू की संख्या फरवरी महीने में अधिक हो जाती है. परंतु उसके बाद कम पड़ जाते हैं.
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कीट की रोकथाम
- इस कीट की रोकथाम के लिए खेतों के आस-पास मांहू के सुग्राही खरपतवार परपोषी पौधों को नष्ट कर देना चाहिए.
- आलू की फसल पर जैसे ही 100 यौगिक पत्तियों पर मांहू की संख्या 20 के ऊपर होने लगे. तो बीज आलू की फसल के डंठलों की कटाई कर देना जरूरी होता है.
- खेत की मिट्टी में यदि पर्याप्त नमी हो.तो उस स्थिति में बुवाई के समय नालियों में फोरेट बस जी का 15 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बीजों का उपचार करके कीट को फसल पर आने से रोका जा सकता है
- यदि जरूरत पड़े तो किसी उपयुक्त दैहिक कीटनाशी जैसे एमिटामिप्रिड 20 ई०सी० का छिड़काव करवाना चाहिए. नियंत्रण ना होने पर इस छिड़काव को 15 दिन के अंतराल पर दोबारा करना चाहिए.
आलू का हरा तेला (जैसिड) कीट
आलू का कीट हरे रंग का होता है. इस कीट के प्रौढ़ और शिशु दोनों ही आलू की पत्तियों व टहनियों का रस चूस लेते हैं. इसका अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं. एवं सुख का नीचे झड जाती हैं. यह कीट विषाणु जनित रोगों को फैलाने वाला वाहक होता है.
कीट की रोकथाम
- शुरुआत में उसको रोकने के लिए माहू की तरह ही सारी प्रक्रिया अपनानी चाहिए.
- इसके अलावा आवश्यकता पड़ने पर फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 30 मिली प्रति एकड़ का छिड़काव करना चाहिए. आवश्यकता पड़ने पर इस छिडकाव को दोबारा 15 दिन के अंतराल पर फिर से करें.