तिल की खेती में लगने वाले प्रमुख कीट एवं इनका नियंत्रण कैसे करें ?

0
Sesame Farming Pests
तिल की खेती में लगने वाले प्रमुख कीट

तिल की खेती में लगने वाले प्रमुख कीट एवं नियंत्रण

तिल की खेती देश के तिलहनी फसलों में से एक है. इसका वैज्ञानिक नाम सिसेमम इंडीकम एल है. तिल को देश के राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. हिंदी भाषी राज्यो में तिल, पंजाबी में तिली, गुजराती में ताल. तमिल में एलु बोला जाता है.

आयुर्वेद में इसे औषधि बताया गया है. तिल को स्निग्ध, भारी, गरम, कफ, पित्त, कारक, बलवर्धक, बालों के लिए उपयोगी, स्तनों में दूध उत्पन्न करने वाला, मल रोधक और वात नाशक माना गया है, इसके अलावा तेल की कुछ मात्रा को अगर किया जाए तो यह रेचक भी होता है.

तिल की उपज में 38 से 54% तक तेल पाया जाता है. इसके अलावा 18 से 25% तक प्रोटीन पाई जाती है. बाजार में तिल की अच्छी कीमत मिलती है. क्योंकि इसका उपयोग ज्यादातर औषधीय रूप में किया जाता है. इसलिए किसान भाई इसकी खेती करते हैं. लेकिन खेती में लगने वाले कीट इसकी उत्पादकता का 10 से 60% तक नुकसान कर देते हैं. जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. तो आइए जानते हैं तिल की खेती में लगने वाले प्रमुख कीट कौन-कौन से हैं. और किसान भाई इनका नियंत्रण कैसे कर सकते हैं तो आइए जानें पूरी जानकारी–

यह भी पढ़े : इस राज्य के किसान अब घर बैठे मंगा सकेंगे ऑनलाइन फसलों के बीज, आइए जानें पूरी प्रक्रिया

तिल की खेती में लगने वाले प्रमुख कीट

पत्ती मोडक व फली बेधक कीट 

तिल के इस कीट की इल्लियाँ पौधे के शीर्ष पतियों को एक साथ जोड़ देती हैं. और वहीं पर गुच्छा बना देती हैं. फिर इस गुच्छे को अंदर ही अंदर खाती रहती हैं. फली बनने पर इल्ली उसमें छेद करके बीज को खा जाती है.

तिल की पिटिका मक्खी(गाल फ्लाई)

तिल के इस कीट की इल्लियाँ पौधें की कलियों के अंदर रहकर फूल के आवश्यक अंगों को खाकर नष्ट कर देती है. जिसके कारण फली की जगह गांठ के आकार की आकृति पौधों पर बन जाती है. और फसल को नुकसान होता है.

तिल की कलिका मक्खी (डेसीन्यूरा सिसेमी)

तिल की यह मक्खी पुष्पकली के अंदर पित्तनुमा संरचना बनाती है. जिससे फूल और फली विकसित नहीं हो पाते हैं. एवं प्रभावित कलियां पौधे से सूख कर नीचे गिर जाती हैं. कलियां बनते समय इस कीट का प्रकोप अधिक देखा गया है. कलियां सितंबर से अक्टूबर माह के बीच बनती हैं.

तिल का फुदका

इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही पौधों के कोमल भागों का रस चूस कर उपज को नुकसान पहुंचाते हैं. इस कीट द्वारा तिल में गंभीर बीमारी फायलोडी लग जाती हैं. इस बीमारी में फूल के सभी भाग हरी पत्तियों के समान हो जाते हैं. प्रभावित पौधों के गुच्छों में छोटी-छोटी पत्तियां हो जाती हैं. जिससे पौधे में अधिक शाखाएं एवं कम पत्ते दिखाई पड़ते हैं.

तिल का हॉक शलभ कीट (हॉक मॉथ)

तिल के इस कीट की इल्लियां पत्तियों को खाती है. जिससे पौधे में एक भी पत्ती नहीं रह जाती है. और पौधा पत्ती विहीन हो जाता है. इस कारण तिल की उपज को काफी हानि पहुंचती है.

बिहार रोम युक्त इल्लियाँ (कम्बलिया कीट) 

तिल के इस कीट द्वारा शुरुवाती लक्षणों में इल्लियाँ समूहों में मिलकर पौधे सभी को खातें है. और कुछ पौधों पर केन्द्रित रहती है. इसके अलावा यह एक पौधे से दूसरे पौधे पर फैलती रहती है. इन इल्लियों द्वारा पौधे के तने को छोड़कर सभी भाग को भोजन के रूप में खा जाती है.

तिलका माहू कीट

इस कीट के प्रकोप से पौधे की पत्तियां सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं. एवं कीड़ों द्वारा उत्सर्जित गूंजे से चिपचिपा पदार्थ के कारण पत्तियां चमकदार और चिपचिपी दिखाई देती हैं. जो कि बाद में पत्तियों पर काली के रूप में जमा होकर पौधे के भोजन बनाने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न कर देती हैं. जिससे पौधे का विकास नहीं हो पाता है. और उपज में हानि पहुंचती है. यह तिल का सबसे हानिकारक कीट है.

यह भी पढ़े : आइए जानते, खेती की फसल उत्पादन में पोटाश का महत्व

तिल के कीटों की रोकथाम कैसे करें

किसान भाई तिल की अच्छी उपज पाने के लिए कीटों की रोकथाम सबसे आवश्यक है. किसान भाई निम्न तरीके से कीटों की रोकथाम कर सकते हैं. तो आइए जाने इसकी पूरी जानकारी-

  • तिल की खेती में माहू कीट लग जाने पर आप पीले चिपचिपा ट्रैप का प्रयोग कर सकते हैं इससे मामू की पर नियंत्रण किया जा सकता है.
  • इसके अलावा माहू कीट के नियंत्रण के लिए लेसविंग, क्राइसोपरला कार्निया का प्रयोग करे. जोकि मांहू का पूर्वसूचक है.
  • कीटों का प्रकोप होने पर नीम के गुठली का अर्क 5% या डाइमेथोएट 30 ई०सी० 1.5 मिली० प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस० एल० 0.3 मिली० प्रति लीटर या एसिटामिप्रिड 20 एस०एल० 0.3 ग्राम प्रति लीटर का आवश्यतानुसार एक या दो छिडकाव फसल पर करवा सकते है.
  • पौधे के विकास के शुरुआती दौर में पत्तियों पर मौजूद जले से लार्वा को इकठ्ठा  करके नष्ट करने से कीटों से पौधों को नुकसान से बचाया जाता सकता है.
  • पक्षियों द्वारा को खाया जा सके इसके लिए 40 से 50 प्रति हेक्टेयर पर पक्षियों के बसेरे के लिए खूटे को खेत में लगाया जा सकता है.
  • तिल के पौधों को शुरूआती दौर में इल्लियों एवं इल्लियों ग्रसित गुच्छों को इकठ्ठा करने नष्ट कर देना चाहिए.
  • बुवाई से पहले बीजों को इमिडाक्लोरप्रिड 70 डब्लू० एस० या थायोमेथोक्जाम (25 डब्लू० जी०) 5 ग्राम प्रति किलोग्राम से उपचार करे.
  • अपनी फसलों में फसल चक्र अपनाए, जिससे कीटों का प्रकोप फसलों पर कम होता है.
  • प्रकोपित पौधों का उखाड़कर नष्ट करना लाभदायक होता है.
  • खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए, इससे कीट शंखी अवस्था बाहर आ जाती है. जिससे कीट भक्क्षी कीट इनका सेवन कर लेते है. जिससे फसलों पर कीटों का प्रकोप कम होता है.
  • फसल की बुवाई में उचित बीजदर का प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा पौधे से पौधे की उचित दूरी रखनी आवश्यक है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here