अलसी की खेती (Linseed Farming) की पूरी जानकारी
नमस्कार किसान भाईयों, अलसी वानस्पतिक औद्योगिक तेल प्रदान करने वाली रबी की प्रमुख तिलहन फसल है. अलसी की खेती (Linseed Farming) करके किसान अच्छा मुनाफ़ा ले सकते है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख में अलसी की खेती की पूरी जानकारी अपनी भाषा हिंदी में देगा. जिससे किसान भाई अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है अलसी की खेती (Linseed Farming) की पूरी जानकारी-
अलसी के फायदे
अलसी के बीजों में 37 से 45 प्रतिशत तेल तथा 20 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पायी जाती है. तेल में प्रचुर मात्रा 55 से 57 प्रतिशत लिनोलिनिक अम्ल पाया जाता है. जिसके कारण तेल जल्दी सूखने की प्रवृति पायी जाती है. असली के इस गुण के कारण इसे मुख्य रूप से पेंट तथा वारनिस उद्योग में प्रयोग करते है. इसकी खल्ली में 30 प्रतिशत तेल तथा 12 प्रतिशत प्रोटीन पायी जाती है. इसकी खली को खाद्य एवं पशुओं को आहार के रूप में उपयोग की की जाती है.अलसी के तने से रेशा निकालने के लये भी इसे उगाया जाता है.
उत्पत्ति एवं क्षेत्र
अलसी की खेती प्राचीन काल (5000 पूर्व) से की जा रही है. इसके मुख्य रूप से दो उद्भव स्थल स्थल माने जाते है दक्षिण पश्चिम एशिया तथा यूरोप का भूमध्यसागरीय क्षेत्र. दक्षिण पश्चिम एशिया के उद्भव का क्षेत्र तुर्की से लेकर पकिस्तान तथा पश्चिमी भारत तक फैला हुआ है. अलसी का दूसरा उद्भव केंद्र भूमध्यसागरीय क्षेत्र माना गया है. इसकी खेती वर्तमान में सीरिया तथा मेसोपोटामिया में कई हजार वर्षों से इसकी खेती की जा रही है.
भारत में अलसी की खेती लगभग 18.76 लाख हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्रफल में उगाई जाती है. जिससे लगभग 4.70 लाख मैट्रिक टन (वर्ष 2015-16) उत्पादन प्राप्त किया जाता है. भारत के मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि राज्यों में इसकी खेती की जाती है.
जलवायु एवं मिट्टी (Linseed Farming)
असली समशीतोष्ण तथा शीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु की फसल है. इसलिए इसे भारत में सामान्य रूप से रबी के मौसम में उगाते है. इसकी खेती मुख्य रूप से कम वर्षा वाले क्षेत्र में की जाती है. इसकी फसल आमतौर से वर्षा ऋतु के अंत में उगाई जाती है. जिससे भूमि में एकत्रित जल इसकी वृध्दि एवं विकास में उपयोग में आ जाए. फल आने के बाद पर्याप्त गर्मी (15 से 20 डिग्री सेंटी ग्रेड) तथा प्रकाश मिलते रहने से फलियों का तथा उसमें तेल की मात्रा का विकास अच्छा होता है. अंकुरण के समय तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड उत्तम होता है.बीज बनते समय तथा पौधों का विकास होते समय 50 से 60 प्रतिशत वायुमण्डल में आद्रता होना उपयुक्त होता है.
अलसी की खेती के लिए दोमट तथा मटियार भूमि उपयुक्त होती है. लेकिन इसके लिए आवश्यक है भूमि में नमी बनाए रखने की क्षमता प्राप्त हो. अलसी की अच्छी उपज के लिए भूमि का पी० एच० मान उदासीन होना आवश्यक होता है
खेत की तैयारी (Linseed Farming)
अलसी की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी अच्छी प्रकार से करनी चाहिए. इसके लिए सबसे पहले एक बार खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर लेनी चाहिए. इसके बाद दो से तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से कर ले. इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल तथा खेत की मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए.
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उन्नत किस्में (Linseed Farming)
किस्म | बुवाई का समय | पकने की अवधि (दिनों में) | औसत उपज (कुं०/हे०) | तेल की मात्रा/अभियुक्ति |
टी० 397 | 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर | 120-130 | 10-12 | 40 प्रतिशत, पैरा फसल हेतु उपयुक्त |
सुभ्रा | 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर | 130-135 | 10-12 | 44 प्रतिशत |
गरिमा | 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर | 125-130 | 10-14 | 42 प्रतिशत |
श्वेता | 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर | 140-145 | 10-12 | 41 प्रतिशत |
शेखर | 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर | 135-140 | 10-15 | 43 प्रतिशत पैरा फसल हेतु उपयुक्त |
पार्वती | 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर | 140-145 | 10-12
(10 कुंटल रेशा) |
सिंचित खेती के लिए उपयुक्त द्विउद्देशीय , 42 प्रतिशत |
मीरा | 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर | 135-140 | 10-12 (10 कुंटल रेशा) | सिंचित खेती के लिए उपयुक्त द्विउद्देशीय , 42 प्रतिशत |
रश्मि | 20 अक्टूबर से 20 नवम्बर | 140-145 | 10-12 (07 कुंटल रेशा) | सिंचित खेती के लिए उपयुक्त द्विउद्देशीय , 41 प्रतिशत |
बीज दर
अलसी की खेती के लिए 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है.
बीजोपचार
बीज जनित रोगों एवं कीटों से फसल को बचाने के लिए बीजों को बेविस्टीन 2.5 ग्राम पार्टी किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.
बोने की दूरी
ज्यादतर किसान भाई अलसी को छिटकाव विधि से बुवाई करते है लेकिन पंक्ति विधि से बुवाई करने पर उपज अच्छी प्राप्त होती है. बुवाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी० तथा पौधे से पौधे की दूरी 5 सेमी० रखना चाहिए.
खाद एवं उर्वरक (Linseed Farming)
अलसी की बुवाई के सबसे पहले 5 से 6 टन कम्पोस्ट खाद बुवाई से 20 से 30 दिन पूर्व खेत में डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए. इसके बाद सिंचित क्षेत्रों के लिए 80 किलोग्राम नत्रजन, 30 किलोग्राम स्फूर एवं 20 किलोग्राम पोटास प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए. असिंचित क्षेत्रो के लिए 50 किलोग्राम नत्रजन, 30 किलोग्राम स्फूर एवं 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.
सिंचित अवस्था में नत्रजन की आधी मात्रा एवं स्फूर तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए. नत्रजन की शेष आधी मात्रा को फूल लगाने के समय खेत में डालना चाहिए. असिंचित अवस्था में नत्रजन, स्फूर तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय ही प्रयोग करना चाहिए.
सिंचाई (Linseed Farming)
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए मिट्टी में अच्छी नमी होना बहुत ही आवश्यक है. सिंचित अवस्था में दो सिंचाई करना चाहिए. जिसमें पहली सिंचाई फूल आने के पूर्व तथा दूसरी सिंचाई फली आने के समय करनी चाहिए.
निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबन्धन
तीसी फसल में 15 दिन के अन्दर अतरिक्त पौधों की छंटाई जरुर करना चाहिए. खेत को बुवाई के 25 से 30 दिनों तक खरपतवार मुक्त रखना चाहिए. खरपतवारों का अधिक प्रकोप होने पर इसकी रोकथाम के लिए पेंडीमिथालिन 30 ई० सी० तीन लीटर मात्रा की प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के तुरंत बाद 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर मिट्टी पर छिड़काव करना चाहिए.
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कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन
क्र० सं० | फसल का नाम | कीट/ब्याधि का नाम | लक्षण | प्रबन्धन |
1. | अलसी | उकठा रोग | पुराने पौधों पर रोग पत्तियों पर छोटी गहरी हरी अथवा भूरी धब्बों के रूप में प्रकट होते है.इससे पत्तियां सिकुड़ने लगती है और पत्ते मुरझा जाते है. | 1. बुवाई से पहले बीजों को कवकनाशी थीरम का कैप्टान (2 ग्रा०/किग्रा० बीज दर ) से उपचारित करना चाहिए.
2.यह म्रदोढ रोग होता है.इसलिए न्यूनतम 4 या 5 वर्षों का फसलचक्र अपनाना चाहिए. |
2. | अलसी | हरदा रोग | इस रोग में पत्तियां पहले गुलाबी राग का धब्बा बनता है जो बाद में तना एवं फली पर भी बनने लगता है | 1. रोग रोधी किस्मों का चुनाव करना चाहिए.
2.खेतों को खरपतवार से मुक्त रखे. 3. मेन्कोजेब 75 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे. |
3. | अलसी | सेमिलपुर कीट | इसका वस्यक कीट पीलापन लिए हुए भूरे रंग का होता है. पंख पर सफ़ेद रंग का निशान होता है. इसकी पहचान या है यह अपने शरीर को वलय आकार में मोड़कर चलता है. यह पत्तियों को खाकर नुकसान पहुंचता है. | 1. गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करे.
2. खेत को खरपतवार से मुक्त रखे. 3. ऑक्सीडेमेटान मिथाएल 25 ई० सी० का 1 मिली० लीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करे. |
4. | अलसी | लिनिसिड मिज | वयस्क कीट सुन्दर नारंगी रंग का होता ही मादा मक्खी पौधों के फूलों की कली में अंडे देती है जिससे शिशु निकल कर फूलों की कली को खाता है. | 1. फसल की अगात बुवाई करे.
2. फसल चक्र अपनाये. 3. इमिडाक्लोरोपिड मिथाएल 25 ई० सी० 1 मिली लीटर प्रति लीटर की दर से पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करे. |
कटाई, दौनी एवं भंडारण
जब पौधा का तना पीला पड़ जाय तथा पत्तियों सूख्ग जाय तो फसल को काटकर सुखा कर बीज को अलग कर लेना चाहिए. बीजों को दोबारा 3 से 4 दिन सुखाकर एवं साफ़ कर भंडारित करना चाहिए.
निष्कर्ष
किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के अलसी की खेती (Linseed Farming) से सम्बन्धित लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा अलसी के फायदे से लेकर अलसी के कीट एवं रोग प्रबंधन तक की सभी जानकारियां दी गयी. फिर भी अलसी की खेती (Linseed Farming) से सम्बन्धित आप का कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा यह लेख आप को कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.
आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.