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Lemon Farming – नींबू की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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नींबू की खेती (Lemon Farming) की पूरी जानकारी

नींबू की खेती (Lemon Farming) की पूरी जानकारी

नमस्कार किसान भाईयों, नींबू की खेती (Lemon Farming) भारत में प्रमुख रूप से की जाती है. बाजार में इसकी अधिक मांग रहती है.इसलिए किसान भाई इसकी खेती कर अधिक मुनाफा कमा सकते है. गाँव किसान (Gaon Kisan) आज अपने इस लेख के जरिये नींबू की खेती (Lemon Farming) की पूरी जानकारी अपने देश की भाषा हिंदी में देगा. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज ले पाए.तो आइये जानते है नींबू की खेती (Lemon Farming) की पूरी जानकारी-

Contents

नींबू के फायदे 

नींबू अपने खट्टे स्वाद और विटामिन सी की प्रचुरता के कारण काफी पसंद किया जाता है. इसके उपयोग से पेट, त्वचा, एसिडिटी, स्कर्वी, पित्त एवं कफ आदि रोगों में लाभ मिलता है. नींबू से अचार, चटनी, कॉर्डियल, नेक्टर, शरबत, तेल निकालने, रंग बनाने आदि में उपयोग किया जाता है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

नींबू रूटेसी (Rutaceae) कुल का सदस्य है यह नींबू वर्गीय फलों में से एक है. इस वर्ग के अन्य फल मुसम्मी, संतरा, गागर नींबू, पूर्वी, कागजी नींबू आदि है. विश्व में नींबू की खेती में भारत का प्रथम स्थान है. नींबू की उत्पत्ति दक्षिण एशिया मानी जाती है. नींबू की कुछ जातियां चीन, तो कुछ भारत और कुछ दोनों देशों के मध्य तथा मालवा द्वीप में उत्पन्न हुई है.

जलवायु (Lemon Farming)

नींबू उष्ण एव उपोष्ण जलवायु में उगाया जाने वाला एक प्रमुख फल है.इसके अच्छे फलन के लिए 10 से 15 डिग्री सेल्सियस तक तापक्रम उपयुक्त होता है.ऐसे क्षेत्र जहाँ 100 से 120 सेमी० वार्षिक वर्षा होती है वहां संतरा की फसल अच्छी होती है.

भूमि का चुनाव (Lemon Farming)

नींबू की खेती के लिए ऐसी भूमि होनी चाहिए जिसमें जल-जमाव नही होता हो और मिट्टी बलुवार दोमट या मटियार दोमट होनी चाहिए. जिसमें जीवांश पदार्थ की अधिकता हो. मिट्टी का पी० एच० मान 5.5 से 7.5 तक होना चाहिए.

पौध प्रसारण विधियाँ (Lemon Farming)

कलम द्वारा 

कलम द्वारा नींबू का पौध प्रवर्धन किया जाता है. इसके लिए परिपक्व, अर्धपरिपक्व तथा मुलायम किसी भी भाग का 15 से 20 सेमी० लंबा शाखा प्रयोग में लाया जाता है. इससे पौध तैयार करने का उचित समय जून जुलाई है.

गुट्टी बांधना 

नींबूवर्गीय फल वृक्ष के लिए या एक सहज एवं उपयोगी कायिक प्रवर्धन विधि है.इस प्रक्रिया को फरवरी-मार्च और जून-जुलाई में की जाती है.

चश्मा चढाना 

यह नींबूवर्गीय फल वृक्ष के प्रवर्धन की व्यवसायिक विधि है.इसमें टी और ढाल चश्मा चढाने की विधि प्रचलित है.

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मूलवृंत का चुनाव (Lemon Farming)

पौधे का दीर्घायु जीवन, मिट्टी तथा जलवायु की प्रतिकूल दशा के प्रति सहिष्णु, फल उत्पादन तथा गुणवत्ता आदि अनेक बाते मूल्वृंत पर निर्भर करते है. मूलवृंत में मुख्य रूप से जम्भीरी, जट्टी-खट्टी तथा करना खट्टा प्रचलित है.

पौध रोपण की विधि (Lemon Farming)

अप्रैल-मई में 1x1x1 के गड्ढे खोद लेने चाहिए. रेखांकन की विधि के अनुसार पौधे तथा पंक्तियों की दूरी जाति विशेष के अनुसार जैसे माल्टा में 5 मीटर, संतरा 6 मीटर, महानींबू के लिए 7 मीटर तथा चकोतरा के लिए 8 मीटर निर्धारित कर लेनी चाहिए. वर्षा ऋतु के कुछ दिन पूर्व गड्ढे में 40 किग्रा० गोबर की खाद, ढाई किलो हड्डी का चूरा, 1 किग्रा० राख व तीन कटोरी मिट्टी में मिलाकर गड्ढे में भर देनी चाहिए.फिर एक बारिश के बाद जब मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाय तो आवश्यकतानुसार खोदकर पौधे लगा देना चाहिए. पौधे शाम के समय लगाना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक का उपयोग  (Lemon Farming) 

खाद एवं उर्वरक की मात्रा भूमि की उर्वरा-शक्ति पर निर्भर करती है. उत्तर भारत के लिए पहले साल में खाद एवं उर्वरक की मात्रा कम्पोस्ट 5 किलोग्राम नत्रजन 75 ग्राम, स्फूर 40 ग्राम एवं पोटाश 75 ग्राम डालनी चाहिए. हर साल इतनी ही मात्रा जोड़कर डाले और दसवें साल कम्पोस्ट खाद 50 किलोग्राम, नत्रजन 750 किलोग्राम, स्फूर 400 ग्राम एवं पोटाश 750 ग्राम डाली जाती है.दसवें साल दी गयी खाद की मात्रा ही ग्यारहवें साल या बाद के सालों में पेड़ों को देना चाहिए.

सिंचाई एवं गुड़ाई (Lemon Farming)

नींबूवर्गीय फल को पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है. गर्मी में सिंचाई एक सप्ताह के अंतराल पर तथा जाड़े में 3 से 4 सप्ताह के अंतराल पर करनी चाहिए. बागों की गुड़ाई करके खरपतवार रहित रखना चाहिए.

संतरा (Mandarin)

नींबू वर्गीय फलों में संतरा के फल काफी लोकप्रिय फल का रंग नारंगी या सिन्दूरी-नारंगी रंग का होता है.इस फल का छिलका आसानी से अलग हो जाता है. इसका उपयोग ताजा फल खाने में, रस पीने में एवं उद्योग में तरह-तरह के उत्पाद बनाने में किया जाता है.

प्रमुख किस्में 

संतरा की प्रमुख किस्मों में  कूर्ग, नागपुर, खासी, किन्नो आदि है

मुसम्मी (Sweet Orange)

यह नींबू वर्ग का एक स्वदिष्ट फल है. इसका उपयोग मुख्य रूप से ताजा फल के लिए किया जाता है. इसकी सबसे लोक प्रिय किस्म मोसम्बी है.

प्रमुख किस्में 

मुसम्मी की प्रमुख किस्मों में मोसम्बी, हेमलिन, जाफा, माल्टा, पाइनएप्पल, सथगुदी, वेलेंसियालेट, वाशिंगटन आदि है.

फल-फूल लगने का समय (Lemon Farming)

उत्तर भारत में नींबू वर्गीय फल वृक्षों में फरवरी में बड़ी संख्या में फूल लगते है. परन्तु 8 से 10 प्रतिशत फूल ही फल के रूप में विकसित होकर पकने तक पहुँच जाते है. शेष फल विभिन्न अवस्थाओं में झड़ जाते है.

कागजी नींबू (Lemon Farming)

कागजी नींबू का उपयोग पूरे साल रसोई में होता है.इसका फल छोटा, रसदार, खट्टा तथा छिलका पतला होता है.इसका उपयोग अचार, शरबत, साइट्रिक एसिड उद्योग आदि में होता है.इसका जन्म स्थान हिमालय का वह गर्म भाग है जो सिक्किम से लेकर असम तथा म्यांमार तक फैला हुआ है.

प्रमुख किस्में 

कागजी नींबू की प्रमुख किस्मों में बनारसी, कागजी, शरबती, चक्रधर, प्रमालिनी, विक्रम, ताहिती नींबू पी० के० एम० 1 आदि है.

अन्तः सहफसली (Lemon Farming)

नींबू प्रजाति के फल 7 से 8 वर्ष में पूरे स्थान को घेर लेते है.तब तक वर्षा ऋतु में हरी खाद तथा जाड़ों में चना व बरसीम का उत्पादन कर सकते है.

फलों की तुड़ाई 

पुष्पन के लगभग 9 महीने बाद फल पककर तैयार होते है.उत्तर भारत में फल जाड़ों में पककर तैयार होते है. दक्षिण भारत में फल भिन्न-भिन्न समय में पककर तैयार होते है. परन्तु पकने में समय कम लगता है.

उपज

नींबूवर्गीय फल वृक्ष से 5 से 8 वर्ष में व्यावसायिक उत्पादन प्राप्त होता है. फलों को उत्पादन जाति, किस्म, बाग़ की देख-रेख और जलवायु पर निर्भर करता है. एक अच्छे माल्टा से 500 फल प्रति पेड़, संतरे 1000 से 1500 फल प्रति पेड़, लाइम से लगभग 1000 फल प्रति पेड़ तथा लेमन से 500 फल प्रति पेड़ उपज प्राप्त होती है.

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कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन (Lemon Farming)

सिट्रस साइला 

यह कीट कोमल पत्तियों तथा प्ररोहों से रस चूसकर उन्हें कमजोर बना देता है.

रोकथाम

इस कीट की रोकथाम के लिए मेलाथियान 0.5 प्रतिशत, कार्बोरिल 0.1 प्रतिशत, फास्फोमिडान 0.025 प्रतिशत तथा पेराथियान 0.025 प्रतिशत का छिड़काव प्रभावकारी रहता है.

पत्ती माइनर 

इस कीट का प्रकोप वर्ष ऋतु में बढ़ जाता है.

रोकथाम 

इस कीट के प्रकोप से बचने के लिए 0.01 प्रतिशत सल्फेट के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

तना बेधक 

इस कीट के आक्रमण से नींबू के पौधे सूख जाते है.क्योकि यह पौधे के तने को नुकसान पहुँचता है.

रोकथाम 

इस कीट से प्रभवित पौधों को काटकर जला देना चाहिए.छिद्रों में कार्बन डाई-सल्फर या पेट्रोल भरकर चिकनी मिट्टी से बंद कर दे.

फलचूशक शलभ 

यह कीट फलों को नुकसान पहुंचता है जिससे फल नष्ट हो जाते है.

रोकथाम 

इस कीट के लिए गुड़ का घोल  160 भाग, लेड आर्सिनेट -1 भाग, सिरका की कुछ बूंदे और अध सरे तुर्शबा के फल का टुकड़ा यह जहरीला चारा बर्तन में रखकर पेड़ पर टांग दे.

सफ़ेद मक्खी 

यह कीट शिशु व प्रौढ़ दोनों ही अवस्थाओं में पत्तियों का रस चूसते है.

रोकथाम 

इस मक्खी की रोकथाम के लिए 0.03 प्रतिशत पैराथियान के घोल का छिड़काव करे.

सूखा रोग 

इस रोग के कई कारण होते है. जिससे पेड़ प्रभावित होता है.

रोकथाम 

इसकी रोकथाम के लिए पेड़ से गिरी हुई पत्तियों को इकठ्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए.मानसून के प्रारंभ में पेड़ों पर 0.3 प्रतिशत ब्लाइटाक्स-50 ई० सी० का छिड़काव 15 दिन के अंतर पर करना चाहिए.

एंथ्रेकनोज 

इस रोग से ग्रस्त प्ररोहों की पत्तियां गिराने लगती है. इनका रंग भूरा हो जाता है.

रोकथाम 

संक्रमित प्ररोहों को काटकर जला देना चाहिए तथा कटे सिरों पर 1:1:3 का बोडोलेप लगाना चाहिए.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों, उम्मीद है कि गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख के द्वारा नींबू की खेती (Lemon Farming) के बारे में जानकारी मिली होगी.गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा नींबू के फायदे से लेकर नींबू के कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन के बारे में सभी जानकारियां दी गयी है. किसान भाईयों फिर भी नींबू की खेती (Lemon Farming) से सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बाक्स में आकर पूछ सकते है.इसके अलावा आप को यह लेख कैसा लगा कमेन्ट करके जरुर बताये. महान कृपा होगी.

नींबू के बारह महीनों के कार्य

आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

 

 

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