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रोटावायरस के इंफेक्शन से पशुओं का कैसे करें बचाव ?
देश में पशुपालन का व्यवसाय बहुत बड़े स्तर पर किया जाता है. क्योंकि यह भी आय का एक मुख्य स्रोत है. जिससे किसान भाई व बेरोजगारों को रोजगार के साथ-साथ आमदनी भी होती है. लेकिन कभी-कभी पशुपालन व्यवसाय में भी हानि का सामना करना पड़ता है. क्योंकि समय-समय पर पशुओं में रोग एवं वायरस जनित बीमारी लग जाने से पशुओं का स्वास्थ्य नुकसान और कभी कभी मौत भी हो जाती है. जिससे पशुपालन व्यवसाय से जुड़े किसान भाई को नुकसान उठाना पड़ता है.
आज के इस लेख में हम एक ऐसे ही वायरस की बात करने वाले हैं. जो पशुओं को सर्दियों के मौसम में अधिक होता है.इस वायरस का नाम है रोटावायरस. यह वायरस की बीमारी से पशुपालकों को आर्थिक रूप से नुकसान उठाना पड़ता है. यह बीमारी सभी पशुओं, बछड़ों, सूअर, मुर्गी, बिल्ली एवं पपी में भी देखने को मिल जाती है. तो आइए जानते हैं रोटा वायरस क्या है ? इसके इंफेक्शन से अपने पशुओं को किसान भाई कैसे बचाएं ? पूरी जानकारी-
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रोटावायरस क्या है ?
रोटावायरस पूरे विश्व में पशुओं और पक्षियों में गंभीर तीव्र वायरल डायरिया और गैस्ट्रोएन्टराइटिस का प्रमुख कारण है.यह वायरस मनुष्यों को मुख्य रूप से बच्चों को भी बीमार कर देता है. विकासशील देशों में इस बीमारी से नवजात बच्चों में अत्यधिक मृत्यु दर देखने को मिल जाती है. यह वायरस संक्रमित पशुओं की फिसेस (मल) से निकलता है. जो वातावरण को भी दूषित कर देता है. जिससे अन्य पशु भी संक्रमित होकर बीमार पड़ जाते हैं. इसके अलावा यह बीमारी मुंह से पानी के द्वारा अथवा सांस लेने के द्वारा भी फैल जाती है.
रोग होने के कारण
रोटावायरस सी विषाणु जनित बीमारी है. जो रिओविरिडी परिवार की सदस्य है. इस वायरस में डबल स्टैंड आर० एन० ए० जीनोम पाया जाता है. यह एक सेगमेंटेड जीनोम वाला विषाणु होता है. जिसमें 11 सेगमेंट पाए जाते हैं. इसके अलावा इस वायरस में कई प्रकार की प्रोटीन भी पाई जाती है. इसी के आधार पर इस वायरस को अनेक प्रकारों में बांटा गया है. जिनको ए से एच तक नाम दिया गया है.
जिसमें से मनुष्य को एवं पशुओं में मुख्य रूप से ए प्रकार की बीमारी पाई जाती है. लेकिन अन्य प्रकारों द्वारा भी इनमें बीमारी हो सकती है. इसके अलावा पशुओं में ए से लेकर ई तक बीमारी करते हैं. यह एक बीमा एनवलप वाला वायरस होता है. साथ ही अलग-अलग प्रोटीन वायरस की घातकता को बढ़ाने का कार्य करती है. यह वायरस मुख्य रूप से फीको-ओरल रूट के द्वारा फैल जाता है.यह वायरस संक्रमित पशुओं से स्वस्थ व सामान्य पशुओं में अधिक जल्दी फैलता है.
रोग में होने वाले लक्षण
रोटावायरस ज्यादातर नवजात बच्चों में होता है. जिसमें नवजात को दस्त लग जाते हैं. जिसके कारण इनमें डिहाइड्रेशन हो जाता है. साथ ही इलेक्ट्रोलाइट की भी कमी हो जाती है. अगर सही समय पर उपचार ना मिल पाया तो पशु की मृत्यु हो जाती है.
संक्रमित पशु के मल के माध्यम से बहुत अधिक नंबर में यह वायरस वातावरण में फैलता है. जो कि दूध,पानी एवं अन्य सामान को भी दूषित कर देता . जब स्वस्थ पशु जब इन दूषित दूध, पानी एवं सामग्री के संपर्क में आते हैं. तो बीमार पड़ जाते हैं.
इस बीमारी में बुखार बहुत कम देखने को मिलता है. परंतु अन्य पेथोजन का इंफेक्शन होने पर बुखार भी आ जाता है.पपी में इस वायरस के अनेक लक्षण देखने को मिलते हैं. जैसे पपी को डायरिया मल में म्यूकस आना, थोड़ा थोड़ा बुखार आना, भूख कम हो जाना, उल्टी हो जाना इस तरह के लक्षण देखने को मिल जाते हैं.
रोग की पहचान कैसे करें ?
इस वायरस जनित बीमारी के हो जाने पर पशुओं में कुछ खास तरीकों से पता लगाया जाता है. इस बीमारी के होने पर सबसे पहले पशु के मल की जांच की जानी चाहिए जिससे इस वायरस के सेल कल्चर का पता लगाया जाता है. इसके अलावा इस वायरस जनित बीमारी की पहचान करने के लिए आर एन ए पेज नामक विधि का उपयोग करते हैं साथ ही कुछ अन्य तरीकों में पी०सी०आर०, आर० टी० पी० सी० आर०, आर० ऍफ़० एल० पी० इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कॉपी द्वारा भी इस वायरस का पता लगाया जा सकता है.
रोग का उपचार कैसे करें
रोटावायरस जनित बीमारी का अभी तक कोई सटीक उपचार नहीं है. लेकिन बीमारी के लक्षणों के आधार पर पशुओं का उपचार किया जाता है. अगर पशुओं में उल्टी-दस्त की शिकायत होती है. तो पानी और इलेक्ट्रोलाइट की कमी को पूरा करने के लिए ड्रिप लगाया जाता है. जबकि अन्य बैक्टीरियल इन्फेक्शन को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दिया जाता है. इसके अलावा पशुओं को ऊर्जा प्रदान करने के लिए ग्लूकोस सैलाइन दिया जाता है.
पशुओं का रोग से बचाव कैसे करें ?
यह वायरस बीमारी एक संक्रामक बीमारी है. इसके अलावा यह वायरस डिसइन्फेकटेंट और एंटीसेप्टिस से आसानी से नहीं जाती है. इसका वायरस बहुत अधिक मात्रा में पशुओं के मल द्वारा वातावरण फैल जाता है. इसके अलावा इस वायरस की सबसे खास बात यह है कि यह किसी भी प्रकार के मौसम में जीवित रह सकता है. क्योंकि इस बीमारी का कोई विशेष उपचार नहीं है. इसलिए इसका बचाव ही सबसे बेहतर उपाय माना जाता है. इसलिए पशुपालकों को निम्न बिंदुओं पर विशेष ध्यान रखना चाहिए-
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- संक्रमित पशु को स्वस्थ पशुओं से एकदम अलग ही रखा जाए.
- नए जन्मे बच्चे को कोलोस्ट्रम का सेवन जरूर कराना चाहिए जिससे बच्चे में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक हो.
- जहां पर नए बच्चों का जन्म हो वह स्थान एकदम साफ सुथरा होना चाहिए.
- पशु बाड़े या पशु बांधने वाले स्थान पर बाहर से आने वाले लोगों पर प्रतिबंध होना चाहिए.
- समय-समय पर पशु बाड़े में या पशु बांधने वाले स्थान पर चूने का छिड़काव होना जरूरी होता है.
- सभी पशुओं का समय अनुसार टीकाकरण होना काफी आवश्यक होता है. जिससे वह सभी बीमारियों से बच सकें.
- पशु बाड़े में आवश्यकतानुसार की पशु रखें. कम स्थान पर अधिक पशुओं को रखने से बचें.