गोबर की उत्तम खाद कैसे बनाएं, आइए जानें पूरी जानकारी ?

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उत्तम गोबर की खाद कैसे बनाएं

उत्तम गोबर की खाद कैसे बनाएं

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है. यहां के किसान प्राचीन काल से ही अपनी खेती में पशुओं का गोबर एवं मल मूत्र का उपयोग करते हैं. लेकिन वास्तविकता में लोग इन्हें ना तो उचित रूप में जमा करते हैं. और ना ही उचित रूप  ढंग से इस्तेमाल इससे हमारे देश में गोबर की खाद की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं होती है, जितनी होनी चाहिए.

गोबर की खाद के मुख्य घटक गोबर मूत्र एवं बिछावन व बचे-खुचे चारेआदि है. जो सड़कर खाद का रूप लेते हैं. इसीलिए इस खाद में वह सभी पोषक तत्व न्यूनाधिक मात्रा में पाए जाते हैं. जिनकी पौधों को नितांत आवश्यकता होती है.

गोबर की खाद की संरचना

गोबर की खाद की संरचना मैं तीन प्रकार की सामग्रियों की आवश्यकता पड़ती है जो निम्नवत है-

  •  ठोस पदार्थ या जानवरों का गोबर
  •  द्रव पदार्थ या जानवरों का मूत्र
  •  बिछावन के रूप में प्रयोग किया गया घास-फूस, पुआल एवं अन्य वनस्पति कूड़ा कचरा

बताई गई इन सभी सामग्रियों की मात्रा अगर सही अनुपात में होती हैं. तो गोबर की खाद तैयार हो जाती है.

इन पदार्थों से तैयार की गई खाद में नत्रजन 0.5%, फास्फोरस 0.25% और पोटेशियम 0.5% की मात्रा तक पाई जाती है.

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ठोस पदार्थ या जानवरों का गोबर की खाद

गोबर के ठोस भाग या गोबर में लगभग 70 से 80 प्रतिशत पानी की मात्रा पाई जाती है. इसके अलावा इसमें पशुओं द्वारा अपचित खाद्य पदार्थ होता है. साथ में ही भूसा पुआल पत्तियां एवं चारा आदि में पाए जाने वाले पोषक तत्वों का कुछ भाग पशु अपने शरीर संरचना के रूप में उपयोग कर लेते हैं. फिर भी कुछ भाग अवशेष रह जाता है. इसमें प्रमुख भाग में फाइबर, सैल्यूलोज, स्टार्च, वसा तथा इनके अपघटीय उत्पाद जैसे इंडोल, स्केटोल आदि पाए जाते हैं. साथ ही में वसा अम्ल, कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा पोषक तत्वों की विभिन्न मात्राएं पाई जाती है. खाद गड्ढे में डालने पर ही ये अवयव सड़ने के पश्चात खाद के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं.

द्रव पदार्थ या जानवरों का मूत्र

गोबर की खाद बनाने में दूसरा जो सबसे महत्वपूर्ण अंश है. वह द्रव्य पदार्थ या जानवरों का मल मूत्र है. खाद्य पदार्थ के उपापचय  के अपशिष्ट उत्पाद से मूत्र बनता है. जिसमें 96% पानी तथा 4% घुलनशील पदार्थ पाया जाता है. घुलनशील पदार्थ में मुख्य रूप से नत्रजन पदार्थ और यूरिया पाए जाते हैं. रुधिर प्रोटीन के उपापचय तथा आंतों में ल्यूसीन तथा ठाईरोसीन के पाचन से यूरिया बनता है. मूत्र में उपस्थित पदार्थों का 1/2 भाग यूरिया एवं शेष भाग में यूरिक अम्ल, हिप्यूरिक अम्ल एवं सोडियम हाइड्रोजन फास्फेट, कैलशियम फास्फेट, मैग्निशियम फास्फेट, सोडियम सल्फेट एवं पोटेशियम सल्फेट जैसे लवण उपस्थित होते हैं. जो पोषक तत्वों का कार्य करते हैं.

बिछावन के रूप में

गोबर की खाद की संरचना में तीसरा महत्वपूर्ण अवयव बिछावन है. बिछावन  में प्रयोग होने वाले विभिन्न पदार्थों के द्वारा मूत्र शोषित होता रहता है. सामान्यतः  बिछावन  के रूप में ज्वार मक्का बाजरा आदि  की बची डन्ठले गेहूं धान जौ जईआदि का भूसा तथा पेड़ पौधों की पत्तियों को काम में लाया जाता है.

गोबर की खाद के तीनों अवयवो को एकत्रित करके गड्ढे में अच्छी प्रकार सड़ाकर खाद तैयार की जाती है. अच्छी प्रकार से उलट-पुलट कर तैयार की हुई खाद में ताजी खाद की अपेक्षा पोषक तत्वों की औसत मात्रा अधिक होती है.

गोबर की खाद तैयार करने की वैज्ञानिक विधियां

गोबर की उत्तम खाद तैयार करने के लिए निम्न वैज्ञानिक विधियों का उपयोग करना चाहिए-

  •  उन्नत गड्ढा विधि
  •  खाई या ट्रेंच विधि
  •  बॉक्स विधि

उन्नत गड्ढा विधि क्या है

इस विधि में गड्ढे की गहराई 1 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए, तथा चौड़ाई 2 से 3 मीटर एवं लंबाई आवश्यकतानुसार रखते हैं. गड्ढा न बहुत बड़ा हो और ना ही छोटा होना चाहिए. इस गड्ढे को ऊंचे स्थान पर बनाना चाहिए. जिससे बरसात आदि का पानी न भरें. इसके अलावा निक्षालन द्वारा पोषक तत्वों का छीजन ना हो. खाद के गड्ढे की दीवारें पक्की तथा सहत सीमेंट की होनी जरूरी है. जिससे खाद के घुलनशील पोषक तत्वों का निक्षालन द्वारा बाहर न निकल सके. अच्छी खाद बनाने के लिए गोबर मूत्र का अधिकाधिक कुशलता पूर्वक उपयोग करना चाहिए.

खाई या ट्रेंच विधि क्या है

खाद बनाने की इस विधि को डॉ सी० एन० आचार्य ने 1951 में विकसित की थी. इस विधि में ट्रेंच तैयार की जाती है. जिसकी लंबाई 6.5 से 10 मीटर चौड़ाई, 1 से 1.6 मीटर चौड़ाई और गहराई 1 मीटर की जाती है. खाई की 1-1 मीटर की लंबाई के हिस्सों में समान रूप से एक तरफ से भरा जाता है. और भरते समय दो इस हिस्से के ढेर के ऊपरी भाग को गुम्बद के आकार का बनाना चाहिए. इससे ऊपरी मिट्टी गोबर से लीप देना उचित रहता है. साधारणतया एक खाई पर एक ही तीन से चार जानवरों के मल मूत्र से 3 माह में भर जाती है. एक खाई के बाद दूसरी को भराई शुरू कर देना चाहिए. तब तक पहली खाई की खाद सड़कर कर तैयार हो जाती है. इस प्रकार तीन से चार पशुओं वाले किसान के लिए दो ट्रंच पर्याप्त .है एक जोड़ी बैल से 1 वर्ष में 10 से 12 टन खाद तैयार हो जाती है.

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बॉक्स विधि क्या है

इस विधि को ए० सी० सैम्सन ने 1914 में विकसित किया था. इस विधि से खाद तैयार करने के लिए पशुपालन की फर्श को जमीन की सतह से 2 से 3 फीट नीचे रखना जरूरी है. इस प्रकार खाद पशुशाला में ही तैयार हो जाती है. पशुओं के नीचे रोजाना बिछाने वाला बिछावन से पशुओं का मल मूत्र ढकता जाता है. यह क्रिया तब तक चलती है. जब तक फर्श जमीन की सतह के बराबर नहीं आ जाती. इस विधि से तैयार की गई खाद में गोबर और मूत्र की पूरी मात्रा का सदुपयोग हो जाता है. इस प्रकार इस खाद की गुणवत्ता सर्वोत्तम होती है.

ऊपर बताई गई विधियों से गोबर की खाद तैयार करने पर होने वाली हानियों को चाहे वह गोबर से हो या मूत्र से रोका जा सकता है. खाद के संचयन के दौरान तत्वों की हानि जो निक्षापन एवं वाष्पीकरण द्वारा होती है. रोकी जा सकती है.

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