Groundnut Farming – मूँगफली की खेती कैसे करे ? (हिंदी में )

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Groundnut Farming
मूँगफली की खेती (Groundnut Farming) कैसे करे ?

मूँगफली की खेती (Groundnut Farming) कैसे करे ?

नमस्कार किसान भाईयों, मूंगफली की खेती (Groundnut Farming) देश की कृषिगत अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा लाभ ले सकते है. गाँव किसान (Gaon kisan) आज अपने इस लेख में आप सभी को मूंगफली की खेती (Groundnut Farming) की कैसे करे ? इसकी पूरी जानकारी देगा,वह भी अपनी भाषा हिंदी में. तो आइये जानते है मूंगफली की खेती (Groundnut Farming) कैसे करे ? की जानकारी –

मूंगफली के फायदे 

मूंगफली देश की सबसे महत्वपूर्ण फसल है. यह देश में खाद्य वानस्पतिक तेल एवं प्रोटीन का प्रमुख, प्रचुर एवं सस्ता स्रोत है. इसके बीज में सामान्य रूप से 45 से 50 प्रतिशत तेल तथा 28 से 30 प्रतिशत प्रोटीन पायी जाती है. इसलिए इसे गरीबों का बादाम भी कहते है.

इसके अलावा आवश्यक जैविक खनिज पदार्थ जैसे फास्फोरस, कैल्सियम, लोहा आदि तथा साथ ही कुछ आवश्यक विटामिन जैसे थियासीन, राइवोफ्लेविन तथा निकिटोनिक अम्ल भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है.

मूंगफली के तेल का उपयोग प्रमुख रूप से वानस्पतिक घी के उत्पादन में किया जाता है. थोड़ी भाग में इसके तेल का उपयोग पशुचिकित्सा की दवाईयों, साबुन एवं सौन्दर्य प्रसाधन वाले उद्योगों में भी किया जाता है. इसकी खल्ली एक बहुमूल्य पशु आहार एवं खाद है. मूंगफली की जड़े, दलहल कुल की अन्य फसलों की भांति वायुमंडल से प्रचुर मात्रा में नत्रजन लेकर भूमि में जमा करती है. इससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढती है.

उत्पत्ति स्थल 

मूंगफली का उत्पत्ति स्थल ब्राजील देश (दक्षिण अमेरिका) माना गया है. भारत में इसका प्रवेश सर्वप्रथम तमिलनाडु तथा पश्चिम बंगाल में अलग-अलग रूप में हुआ. दक्षिण भारत में यह फिलीपीन से सर्वप्रथम तमिलनाडु में लायी गयी. वहां अभी भी इसे ‘मनीला कोटाई’ कहते है. उत्तर भारत में इसका प्रवेश स्वतंत्र रूप से चीन से बंगाल होते हुए इसलिए पूर्व भारत में प्रायः इसे ‘चिनिया बादाम’ कहते है.

क्षेत्र विस्तार 

पिछली आधी सदी में विश्व में मूंगफली के क्षेत्र में काफी वृध्दि हुई है. दुनिया के अनेक देशों में यह एक प्रमुख फसल बन गयी है. भारत में औसतन 67.83 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाई जाती है. जिसमें प्रतिवर्ष औसतन 72.49 लाख मेट्रिक टन उत्पादन प्राप्त जाता है. भारत में मूंगफली का उत्पादन गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु तथा कर्णाटक राज्यों में होता है. लेकिन अब बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी यह काफी महत्वपूर्ण फसल फसल मानी जाने लगी है.

मृदा एवं जलवायु (Groundnut Farming)

मूंगफली की खेती हल्की बलुई मिट्टी में अच्छी प्रकार की जा सकती है. भूमि में पानी निकलने की अच्छी व्यवस्था करनी चाहिए.

मूंगफली उष्ण कटिबंधीय जलवायु की फसल है. सामान्य रूप से 120 से 125 सेमी० वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी अच्छी फ़सल ले सकते है. फसल की कटाई के समय मौसम साफ़ और सूखा रहना चाहिए. सामान्य रूप से मूंगफली की खेती के लिए 21 से 27 सेंटीग्रेड तापमान ठीक रहता है तथा तापमान में बीजों का अंकुरण भी ठीक से होता है तथा बीजों में तेल के विकास पर भी अच्छा प्रभाव रहता है.

खेत की तैयारी (Groundnut Farming)

खेत की तैयारी के दो से टन बार खेत की जुताई कर ले. हर जुताई के बाद पाटा लगाकर समतल कर दे.

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उन्नत किस्में (Groundnut Farming)

मूंगफली की उन्नत किस्मे बुवाई का समय और पकने की अवधि निम्नवत है-

किस्में  बुवाई का समय  पकने की अवधि (दिनों में) औसत उपज (कुंटल/हे०) तेल की मात्रा 
गुच्छेदार : 

ए० के० 12-24

15 जून से 10 जुलाई 100-105 14-18 49 प्रतिशत
कुबेर 15 जून से 10 जुलाई 100-105 15-17 48 प्रतिशत
जे० एल० 24 (फूले प्रगति) 15 जून से 10 जुलाई 95-100 18-20 46 प्रतिशत
फैलने वाले : एम-13 15 जून से 10 जुलाई 130-135 15-18 49 प्रतिशत

बीज दर (Groundnut Farming)

गुच्छेदार किस्मों के लिए 80 से 90 किलोग्राम दाना प्रति हेक्टेयर तथा फैलने वाली किस्मों के लिए 70 से 75 किलोग्राम दाना प्रति हेक्टेयर दाना की आवश्यकता होती है.

बीजोपचार (Groundnut Farming)

बीज जनित रोगों एवं कीटों से फसल को बचाने के लिए फफूंदनाशक एवं कीटनाशक दवाओं से बीजों को उपचारित करना चाहिए. बुवाई से ठीक पहले बीज को बेविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए. यदि खेत में दीमक या तना छेदक हानि पहुंचाते हो, तो फफूंदनाशक से उपचारित करने के बाद बीज को क्लोरीपायारिफोस 20 ई० सी० 8 मिली० प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.

बोने की दूरी

मूंगफली की फैलाने वाली किस्मों को पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी० तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी० एवं गुच्छेदार किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी० तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी० रखना चाहिए.

खाद एवं उर्वरक 

मूंगफली के 20 से 30 दिन बुवाई के पूर्व 4 से 6 टन कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर खेत में डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए. नत्रजन, स्फूर एवं पोटाश की मात्रा में नत्रजन 25 किलोग्राम, स्फूर 50 किलोग्राम तथा पोटाश 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालना चाहिए. उर्वरकों की मात्रा बुवाई के पूर्व अंतिम जुताई के समय समान रूप से खेत की भूमि में मिला देना चाहिए. जिस खेत में जस्ता की कमी हो तो 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा जिस खेत में गंधक की कमी हो तो 20 किलोग्राम गंधक का उपयोग करे. जिप्सन का प्रयोग  40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (50 प्रतिशत) फूल आने के बाद करना चाहिए.

निराई-गुड़ाई एवं खरपतवार प्रबन्धन  

मूंगफली की निराई-गुड़ाई बुवाई के 20 दिनों बाद करने से मिट्टी हल्की तथा ढीली होती है जिससे खूंट (पेग) आसानी से जमीन में प्रवेश कर पाते है और फलियों का विकास अच्छा होता है. अन्तःकर्षण का कार्य खूँटी (पेग) के मिट्टी में प्रवेश करने के बाद नहीं करना चाहिए. रासायनिक विधि से खरपतवार के लिए पेंडीमेथिलीन 30 ई० सी० की तीन लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के उपरांत अंकुरण पूर्व छिड़काव करना चाहिए या एलाक्लोर (लासो) 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 1 से 2 दिनों के अन्दर 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.जिससे सभी सामायिक खरपतवारों से छुटकारा मिल जाय.

कीट एवं ब्याधि प्रबन्धन 

क्र० सं० फसल का नाम  कीट ब्याधि रोग के नाम  कीट ब्याधियाँ/रोग के कारको के नाम  लक्षण प्रबन्धन
1. मूंगफली (Groundnut) मूंगफली का लाही या एफिड (Groundnut aphid) एफीस क्रासीभोरा (Aphis craccivora) इस कीट के प्रकोप के कारण पत्तियां पीली होने लगती है तथा मुरझाकर झड जाती है. पौधों के ऊपर डाईमेथोएट 0.03 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
2. टिक्का रोग (Tikka disease) सर्कोसपोरा अराचिड़िकोला (Cercospora arachiddicola) पत्तियों पर छोटे धब्बों के रूप में दिखाई पड़ते है.ये गहरे भूरे या काले रंग के होते है. बुवाई से पहले बीजों को थीरम (2.5 ग्रा०/किग्रा०) बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.

रोग के द्वितीयक संक्रमण के रोकथाम के लिए 0.03 प्रतिशत बैविस्टीन (कोर्बेंडाजिम) का एक या दो छिड़काव करना चाहिए.

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कटाई दौनी एवं भण्डारण 

मूंगफली की खुदाई तब करनी चाहिए जब पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लगाती है. फलियों को 6 से 7 दिन तक 40 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर सुखाना चाहिए. भण्डारण के दौरान फली छेदक कीट हानि पहुंचाते है. इसलिए भण्डारण के स्थान पर डाईक्लोरोवास तरल 3 मिली० प्रति लीटर पानी के साथ घोल बनाकर पाँच लीटर प्रति 100 वर्गमीटर क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिए. फिर फलियों को साफ़ बोरो में भरकर लकड़ी की तख्तियों के ऊपर रखना चाहिए.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान के मूंगफली की खेती (Groundnut Farming) से सम्बंधित इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon kisan)द्वारा मूंगफली की खेती से लेकर भंडारण तक सभी जानकारियाँ दी गयी है.फिर भी मूंगफली की खेती (Groundnut Farming) से सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है.इसके अलावा यह लेख आप सभी को कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

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