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हरी खाद क्या है?, आइए जाने फसलों पर उसकी उपयोगिता के बारे में

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हरी खाद एवं उससे मिलने वाले लाभ

हरी खाद एवं उससे मिलने वाले लाभ | Green manure and its benefits

देश के किसान फसलों से अच्छी उपज देने के लिए खेती के सभी तौर तरीके एवं खाद-उर्वरक का उचित मात्रा में उपयोग करते हैं. लेकिन फसलों की अच्छी उपज के लिए  खाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

आज की इस लेख में हम सभी हरी खाद (Green manure)के बारे में जानेंगे. जिससे किसानों को हरी खाद के उपयोग और उससे मिलने वाले लाभ के बारे में अच्छी प्रकार से जान पाएंगे. तो आइए जानते हैं, हरी खाद क्या है? और उस से कौन-कौन से लाभ हमारी फसलों को मिलते हैं? तो आइए जानें पूरी जानकारी-

हरी खाद क्या है?

किसान भाई अपने खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद का उपयोग करते हैं. इसके लिए किसान भाई पौधों को हरे वनस्पतिक को उसी खेत में उगाकर या दूसरे स्थान से लाकर खेत में मिला देने की क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं.

हरी खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है. जिससे किसान भाइयों की फसल अच्छी उपज देती हैं. इसलिए किसान भाई हरी खाद का उपयोग अपने खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए जरूर करें.

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हरी खाद की प्रयोग करने की विधियां 

हरी खाद बनाने के लिए किसान भाई दो तरह की विधियां अपना सकते हैं-

उसी खेत में उगाई जाने वाली हरी खाद

किसान भाई इस विधि में हरी खाद उपयोग करने के लिए जिस खेत में उन्हें खाद देनी है. उसी खेत में फसल उगाई जाती है. एक समय पर जब पौधों की वनस्पतिक वृद्धि काफी हो चुकी है. तब फसल पर पाटा चलाने के बाद उसे मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर मिट्टी में मिला कर किया जाता है. इस विधि से हरी खाद तैयार करने के लिए सनई, ढेंचा, ग्वार आदि फसलें उगाई जाती हैं.

खेत से दूर उगाई जाने वाली हरी खाद

इस विधि में किसान भाई फसलों को अन्य दूसरे खेतों में उगाते हैं. और वहां से काटकर जिस खेत में हरी खाद देना होता है. उसमें मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर दबा देते हैं. इस रीति में जंगलों या अन्य स्थानों पर उगे पेड़, पौधा, झाड़ियों आदि की पत्तियों टहनियों आदि को इकक्ठा करके खेत में मिला दिया जाता है.

हरी खाद के लिए काम आने वाली फसलें

हरी खाद बनाने के लिए सनई, ढेंचा, मूंग, उर्द, मोठ, ग्वार, लोबिया, जंगली नील, बरसीम एवं सेंची फसलों का उपयोग किया जाता है.

हरी खाद के लिए उपयोग की जाने वाली फसलों के गुण

हरी खाद्य के लिए जो फसलें उपयोग की जाती हैं उनके गुण निम्न वत हैं-

  • फसल पत्तीदार एवं उसकी वृद्धि शीघ्र होने वाली हो. जिससे उसे शीघ्र खेत में पलटा जा सके.
  • फसल का डंठल तथा ऊपरी भाग काफी मात्रा में तथा सरस होना चाहिए. जिससे मिट्टी में शीघ्र विच्छेदन हो सके.
  • फसल कम उपजाऊ मृदा में भी वायुमंडलीय नत्रजन की यौगिकीकरण करने की क्षमता रखती हो.
  • लंबी जड़ों वाली हो ताकि निचली सतह में पोषक तत्वों का प्रयोग कर सकें.
  • समस्या करण भूमि में भी फसल अधिक हरा पदार्थ प्रदान करें.

हरी खाद से मिलने वाले लाभ

हरी खाद से फसलों को मिलने वाले निम्नलिखित लाभ हैं-

  • हरी खाद हेतु इस्तेमाल में लाई गई फसल मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा की भौतिक दशा में सुधार होता है. जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक है. यह मृदा में वायु जलोत्सारण तथा कणोंभवन की दशाओं को सुधारते हैं.
  • हरी खाद के लिए प्रयोग की गई दलहनी फसलों की जड़ों में ग्रंथियां होती है. जो नत्रजन का स्थिरीकरण करती .हैं फल स्वरुप नत्रजन की मात्रा में वृद्धि होती है.
  • हरी खाद से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ का मृदा जीवाणुओं पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है. इसकी क्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड, अमोनियम नाइट्रेट आयन तथा दूसरे सरल योगिक बनते हैं. जो पौधों की खुराक में काम आते हैं.
  • हरी खाद का मृदा पोषक के संरक्षण पर प्रभाव पड़ता है. यह घुलनशील पदार्थों को ले लेती है. जो निकास या कटाव में नष्ट हो जाते हैं. हरी खाद से पोषक तत्वों की प्राप्त होती है. हरी खाद के प्रयोग से पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है.
  • लंबी जड़ों वाले पौधों की जड़ें अधो मृदा में काफी गहराई तक चली जाती है. जिससे वाय आवागमन तथा जल पारच्यवन में सुविधा हो जाती है.
  • हरी खाद छादन सस्य के रूप में कार्य करती है. इसमें मृदा को पानी के कटाव तथा हल्की मृदा में हवा के कटाव से सुरक्षा करती है.
  • हरी खाद को प्रयोग करने पर मिट्टी में विच्छेदन के फल स्वरुप बहुत से कार्बनिक अम्ल बनते हैं. अधिक विच्छेदन के लिए मृदा दशा में उपयुक्त होती है. जिससे कार्बनिक अम्ल टूट जाते हैं. और कार्बन डाइऑक्साइड जल और कार्बोनेट बनते हैं. इस प्रकार अम्लता समाप्त हो जाती है.

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हरी खाद तैयार एवं उपयोग करने की विधियां

खरीफ फसलों में हरी खाद के प्रयोग करने हेतु रबी की फसलों की कटाई के बाद खाली खेतों में मई के अंतिम सप्ताह में सनई, ढेंचा आदि जल्दी बढ़ने वाली फसलों की बुआई करनी चाहिए.

जब फसल 45 से 50 दिन की हो जाए तब मिट्टी में पलट देना चाहिए. हरी खाद वाली फसलों की पलटाई इस समय करनी चाहिए. जब उसमें मुलायम हरे पदार्थ की मात्रा अधिकतम हो.

हरी खाद को मिट्टी के पलटाई करने के बाद पाटा लगा देना चाहिए. धान के पानी भरे खेतों में हरे पदार्थ का विघटन शीघ्र होता है इसके बाद मुख्य फसल की बुवाई करनी चाहिए.

हरी खाद से नत्रजन की बचत

धान में ढेंचा को हरी खाद के रूप में प्रयोग करने से प्रति हेक्टेयर 60 किग्रा नाइट्रोजन की बचत होगी. तथा मृदा के भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों में वृद्धि होगी. जो कि टिकाऊ खेती के लिए आवश्यक है. यह म्रदाओ में रासायनिक उर्वरकों से संभावित को प्रभाव को भी रोकता है.

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