फूलगोभी की अगेती किस्में
देश के अधिकतर किसान फूलगोभी की खेती करते हैं. जिससे वह अच्छा-खासा मुनाफा कमाते हैं. लेकिन फूलगोभी की सफल खेती के लिए मौसम के अनुसार उचित किस्मों का चयन आवश्यक है. अन्यथा की स्थिति में किसान भाइयों को इसकी खेती से नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्योंकि उचित किस्म को नहीं चुना और मौसम के अनुसार फूल गोभी को नहीं लगाया गया. तो इसके गोभी का आकार अत्यंत छोटा रह जाएगा.
इसीलिए किसान भाइयों को फूलगोभी की खेती के करते समय उचित किस्म का चुनाव अत्यंत आवश्यक है. जिससे इसके फूलों का आकार अच्छी तरह से विकसित हो सके और किसान भाई इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सके. इसीलिए आज के किसान भाइयों को गोभी की अगेती किस्मों की जानकारी देंगे. जिससे किसान भाई इन किस्मों को लगाकर फूलगोभी की खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकें. तो आइए जानते हैं फूलगोभी की खेती अगेती किस्मों की प्रमुख जानकारी-
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भारतीय मूल की अगेती किस्में
फूलगोभी की अर्लीकुंआरी किस्म
गोभी की इस किस्म को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किया गया है. यह एक अगेती किस्म है. किसान भाई इसको अपनी पौधशाला में मई के उत्तरार्ध में इसके बीजों को बोना चाहिए तथा मध्य जुलाई या जुलाई के उत्तरार्ध में इसकी पौध को खेत में रोपाई कर देनी चाहिए.
पौध रोपाई के 45 से 50 दिन बाद तक यह तैयार हो जाती है. तथा मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक इसकी फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इस किस्म को भारत के उत्तरी/गंगा के मैदानों के लिए तथा विशेष कर पंजाब एवं हरियाणा में उत्पादन के लिए सिफारिश की है.
इसकी गोभी गोलार्ध्द के आकार की होती है. तथा इसकी समस्त सतह एक जैसी होती है. गोभी का रंग हल्का पीला होता है. इसकी औसत उपज लगभग 12 टन प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.
गोभी की अगेती किस्म पूसा दीपाली
अगेती किस्म पूसा दीपाली को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. गोभी की यह किस्म उत्तरी मैदानी क्षेत्रों एवं कर्नाटक में खेती के लिए सफल सिद्ध हुई है. इसके पौधे की पत्तियां लंबी, सीधी, खड़ी, हरी तथा चिकनी पाई जाती हैं. तथा इसकी गोभी पत्तियों द्वारा सुरक्षित, सफेद रंग में मध्यम एवं समरूप आकार की होती है.
गोभी की इस किस्म को किसान भाई अपनी पाठशाला में मई के अंत या जून के आरंभ में बो सकते हैं. वही रोपण के लिए मध्य जुलाई सबसे उचित समय है. इस किस्म की गोभी अक्टूबर के मध्य से उत्तरार्ध तक बिल्कुल परिपक्व हो जाती है. वहीं अगर इसकी उपज की बात करें, तो लगभग 15 टन प्रति हेक्टेयर तक इसकी उपज किसान भाई प्राप्त कर सकते हैं.
फूलगोभी की अगेती किस्म पूसा अर्ली सिंथैटिक
गोभी की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है. यह एक संश्लेषित किस्म है. वहीं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उत्तरी भारत में इसकी खेती की सिफारिश की गई है.
गोभी की इस किस्म का पौधा सीधा खड़ा एवं मध्यम होता है. गोभी का आकार मध्यम तथा रंग हल्का पीला होता है. तथा वह सुसम्बध्द होती है.
किसान भाई इस किस्म को अपनी पौधशाला में जून के आरंभ में बो सकते हैं. वही इसकी रोपाई मध्य जुलाई से अगस्त के आरंभ तक खेतों में की जा सकती है. इसकी फसल अक्टूबर माह के उत्तरार्ध में तैयार हो जाती है. किसान भाई इस किस्म से 20 टन प्रति हेक्टेयर तक औसत उपज प्राप्त कर सकते हैं.
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गोभी की अगेती किस्म पन्त गोभी 3
गोभी की इस किस्म को गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पन्तनगर द्वारा की गई है. उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में इसके उगाने की कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिश की गई है. किसान भाई से मध्य जून तक इसके बीजों को पौधशाला में बो देना चाहिए. तथा इसकी रोपाई अगस्त के प्रारंभ में ही कर दी जाती है. इसकी फसल अक्टूबर के अंत तक तैयार हो जाती है. अगर उपज की बात की जाए. तो लगभग 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से किसानों को उपज प्राप्त होगी.
गोभी की अगेती किस्म उज्जवल
गोभी की इस किस्म को भी गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर द्वारा विकसित की गई है. यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त है. वही किसान भाई इसे मध्य जून में नर्सरी में बुवाई कर दें. और अगस्त मध्य तक इसका रोपण अपने खेतों में कर दें. गोभी की यह किस्म अक्टूबर मध्य तक तैयार हो जाती है. और इस किस्म की औसतन लगभग 15 से 16 टन प्रति हेक्टेयर तक किसानों को मिल जाती है.