गेहूं की खेती का तुष धब्बा रोग
रबी की फसलों के इस मौसम में गेहूं की फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान रोग पहुचाते है. इसलिए गाँव किसान अपने लेखों में गेहूं के खेती के प्रमुख रोगों की जानकारी किसानों के लिए लेकर आया है. इसी कड़ी में आज गेहूं के पांचवे नंबर के रोग की चर्चा की जायेगी. गेहूं का यह रोग है तुष धब्बा रोग.
आप इस लेख में तुष धब्बा रोग के लक्षण, प्रकोप क्षेत्र, प्रकोप का समय, रोग की अनुकूल परिस्थियाँ और रोग का नियंत्रण कैसे करे की जानकारी दी जाएगी. जिससे किसान भाई इस तुष धब्बा रोग से अपनी फसलों को बचा सके. जिससे वह गेहूं की खेती से अधिक उपज प्राप्त कर अधिक मुनाफा कमा सके. तो आइये जाते है गेहूं की खेती के तुष धब्बा रोग की पूरी जानकारी –
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तुष धब्बा रोग की पहचान
इस रोग के लगने से फसल के तुष पर पतले और अंडाकार धब्बे के अलावा गाठों और पोरियों पर भी दिखाई देते है. तुष पर धब्बे भूरे रंग के और 4-5 x 2-3 मि०मी० आकार के होते है. इनमे छोटे-छोटे काले-बिंदु- पिक्निडियम स्पष्ट दिखाई देते है.
रोग के प्रकोप क्षेत्र
तुष धब्बा रोग पंजाब और उत्तरी भारत के कई अन्य क्षेत्रों काफी अधिक पाया जाता है. इसलिए उतर भारत किसान भाई गेहूं के इस रोग को लेकर काफी सतर्क रहे. अन्यथा रोग लगने पर किसान भाइयों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.
रोग के प्रकोप का समय एवं शुरुवात
इस रोग की शुरुवात मार्च से अप्रैल महीने के बीच होती है. पौधे अवशेषों पर पिक्नीडियम गर्मी में जीवित रहते है. ये बीजाणु नयी फसल पर संक्रमण करते है. यह रोग बीजोढ़ भी होता है.
तुष रोग की अनुकूल परिस्थितियां
यह रोग नम मौसम में अधिक फैलता है. जबकि गर्म वाला वातावरण इस रोग के लिए अनुकूल होता है.
रोग का नियंत्रण कैसे करे
किसान भाई रोग से बचाव के लिए निम्न उपाय कर सकते है-
- बीज बुवाई से पहले किसी अच्छे कवकनाशी से बीजोपचार करे.
- फसल कटाई के बाद अवशेष को जला देना चाहिए.
- रोग रोधी किस्मों का ही चुनाव करना चाहिए.
- पी०वी०-18, कल्याण 227, एस 308, एस 307, एस 331, के-68 आदि रोग रोधी किस्में है.
- जबकि वल्गेरी की जातियां रोग ग्राही होती है.