बीजामृत
प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकूल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी. जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र देता चलता रहता था. जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था. देश में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गांव पालन किया जाता था. जिसके प्रमाण हमारे ग्रंथों में मिलते हैं. कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्यंत लाभदाई था. जो कि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यंत उपयोगी था. परंतु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे धीरे कम हो गया. तथा कृषि में तरह-तरह के रासायनिक खादों व कीटनाशकों का उपयोग हो रहा है. जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थों के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है. और वातावरण प्रदूषित होकर मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है.
आज ज्यादातर किसान भाई रासायनिक खादों जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर जैविक खाद एवं दवाइयों का उपयोग कर अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं .जिससे वह जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी स्वस्थ रहेंगे. आइए आज हम सभी जानते हैं बीजों को स्वस्थ रखने के लिए बीजामृत कैसे बनाएं. जिससे स्वस्थ एवं जैविक पौधे तैयार हो सके. तो आइए जानते हैं बीजामृत बनाने की पूरी विधि-
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बीजामृत बनाने के लिए उपयुक्त सामग्री
- गाय का गोबर 5 किलो
- गोमूत्र 5 लीटर
- लाइन 50 ग्राम
- पानी 20 लीटर
- 100 किग्रा गेहूं का बीज
- 50 ग्राम पेड़ या जंगल की मिट्टी
बीज उपचार हेतु उपयुक्त नुस्खा
बीज शोधन के लिए बीजामृत का उपयोग किया जाता है. बीज शोधन बीजों को बीज जनित या मृदा जनित रोगों से बचाने के लिए बनाया जाता .है फसलों में बहुत सारे रोग बीजों द्वारा ही फैलते हैं. जिन से फसल को बचाना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. रोग जनित बीमारियों का इलाज बीज शोधन द्वारा ही संभव हो पाता है. लेकिन आज भी अधिकांश किसान बिना उपचारित बीज से ही खेत की बुवाई कर देते हैं. बीज उपचार बीजों के अंकुरण क्षमता में भी वृद्धि करता है. बीज शोधन से बीज जल्द एवं अच्छी मात्रा में उगाते हैं. पौधों की जड़े तीव्र गति से बढ़ती है. और जमीन से फसलों पर बीमारियों का प्रकोप नहीं हो पाता है.
बीजामृत बनाने की विधि
बीजामृत बनाने के लिए 20 लीटर पानी को एक बर्तन में लेकर. उसमें गोमूत्र मिला दिया जाता है. इसके उपरांत गोबर, चूना तथा पेड़ की तल की मिट्टी को अच्छी प्रकार से मिश्रण करके मिलाया जाता है. इस मिश्रण को लगभग 24 घंटे तक छाया में रखा जाता है. इसके बाद 100 किलो बीज को फर्श या पॉलिथीन सीट पर बिछाकर उस पर बीजामृत का छिड़काव करके अच्छी प्रकार से मिला देते हैं. इस छिड़काव को हाथों से अच्छी तरह बीजों में मिला देना चाहिए. जिससे बीजों पर बीजामृत की एक अच्छी परत चढ़ जाए.
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बीजामृत का उपयोग
फसल बुवाई के 24 घंटे पहले बीज शोधन करना चाहिए. इसके उपरांत बीजामृत के उपयोग किए हुए बीजों को छाया में सुखाया जाना चाहिए. उसके पश्चात अगली सुबह उन बीजों की बुवाई की जानी चाहिए. बीजामृत के उपचार से बीज जनित रोगों की रोकथाम अच्छी प्रकार से हो जाती है. जिससे फसलों की सुरक्षा के साथ-साथ अच्छी उपज किसान भाइयों को मिलती है.