विशेष प्रकार के मक्का की खेती
देश में मक्का की खेती बहुत बड़े पैमाने पर की जा रही है. किसान भाई इससे अच्छा लाभ कमा रहे है. लेकिन किसान भाई अगर मक्का की खेती से और अच्छा लाभ कमाना चाहते है तो उन्हें विशेष प्रकार की मक्का की खेती करनी पड़ेगी.
विशेष प्रकार के मक्का जिसमें स्वीटकॉर्न, पॉपकॉर्न एवं बेबीकॉर्न की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते है. ये विशेष प्रकार की मक्का केवल मक्का की ही अवस्थाएं होती है. इसलिए किसान भाई इसकी खेती मक्का की खेती की ही तरह कर सकते है. केवल कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए.
स्वीटकॉर्न
- मीठी मक्का (स्वीटकॉर्न) की तुड़ाई कच्चे भुट्टे हेतु परागण के लगभग 18 से 22 दिन बाद करनी चाहिए,
- स्वीटकॉर्न की तुड़ाई शाम को करनी चाहिए, इस समय भुट्टे में नमी लगभग 70 प्रतिशत होनी चाहिए.
- इन भुट्टों की पैकिंग अच्छी तरह पैकिंग करके ठंडे स्थान (कोल्ड स्टोर, फ्रीज इत्यादि) पर भंडारित करना चाहिए.
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पॉपकॉर्न
- यह पूरे विश्व में स्नैक्स के रूप में उपयोग किया जाता है. यह हल्का एवं कुरकुरे होने के कारण शहरों में अधिक पसंद किया जाता है.
- इससे बनाया हुआ आते से कई प्रकार के व्यंजन बनाये जा सकते है. इसे हवा की नमी से बचाने के लिए ताजा ही प्रयोग में लाया जाता है.
- यह एक सख्त इन्डोस्पर्म का फ्लिंट मक्का होता है.
- पॉपकर का दाना बहुत छोटा एवं गोल होता है. इसे जब लगभग 170 सेंटीग्रेड तक गर्म करते है. तो इसके दाने फूल कर फट जाते है.और दाना पलट कर अन्दर का बाहर हो जाता है.
- पॉपकॉर्न की गुणवत्ता इसके फूटने के घनत्व और कम से कम बिना फूटे हुए पॉपकॉर्न संख्या पर निर्भर करती है.
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बेबीकॉर्न
- बेबीकॉर्न को शिशु मक्का भी कहते है.
- यह वह अनिषेचित मक्का का भुट्टा है जो सिल्क की 2 से 3 सेमी० लम्बाई वाली अवस्था या सिल्क आने के 1 से 3 दिन के अन्दर पौधे से तोड़ लिया जाता है.
- अच्छे बेबीकॉर्न की लम्बाई 6 से 11 सेमी० और रंग हल्का पीला होना चाहिए.
- यह फसल खरीफ में लगभग 50 से 55 दिन में तैयार हो जाती है.
- एक वर्ष में बेबीकॉर्न की 3 से 4 फसलें आसानी से ली जा सकती है.
- इसकी खेती से पशुओं के लिए पौष्टिक हरा चारा भी मिल जाता है.
- बेबीकॉर्न की अच्छी प्रकार से मार्केटिंग और डिब्बाबंदी होने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
- यह विभिन्न व्यंजनों के रूप में उपयोग में लाया जाता है.
- बेबीकॉर्न को दक्षिण भारत में पूरे वर्ष भर तथा उत्तरी भारत में फरवरी से नवम्बर के बीच बोया जाता है.