Home खेती-बाड़ी MAKKA KI KHETI | खरीफ में मक्का की खेती करके किसान भाई...

MAKKA KI KHETI | खरीफ में मक्का की खेती करके किसान भाई होंगें मालामाल

0
खरीफ में मक्का की खेती

MAKKA KI KHETI | खरीफ में मक्का की खेती

विश्व खाद्यान में मक्का की फसल को रानी बताया गया है. इसका सबसे बड़ा कारण अन्य खाद्यान फसलों से इसका अधिक उत्पादन होता है. पुराने समय में मक्का को गरीबों का अन्न माना जाता था, लेकिन अब ऐसा बिलकुल भी नही है. क्योकि अब इसका उपयोग मानव आहार में 25 प्रतिशत, कुक्कुट आहार में 49 प्रतिशत, पशु आहार में 12 प्रतिशत, स्टार्च के रूप में 12 प्रतिशत तथा बीज के लिए 1 प्रतिशत किया जाता है. भारत में मक्का से निर्मित 1000 से ज्यादा उत्पाद बनाये जाते है.

खरीफ के मौसम में लगभग 75 प्रतिशत मक्का की खेती (cultivating maize) देश की जाती है. विश्व के कुल मक्का उत्पादन में 3 प्रतिशत मक्का भारत में उगाया जाता है. विश्व में अमेरिका, चीन, ब्राजील एवं मैक्सिको के बाद भारत का पांचवा स्थान है. सभी खाद्यान्न फसलों की तरह मक्का भी भारत के लगभग सभी भागों में उगाया जाता है. देश में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर तथा पूर्वी राज्यों में मक्का की खेती मुख्य रूप से की जाती है.

मक्का के लिए भूमि एवं उसकी तैयारी

मक्का की खेती (cultivating maize in Kharif) को विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में अच्छी प्रकार से की जा सकती है. मक्का की अच्छी उपज के लिए बलुई मटियार एवं दोमट मृदा उपयुक्त होती है. भूमि से जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. भूमि का पी० एच० मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए.

मक्का की खेती के लिए जून के दूसरे सप्ताह खेत की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. खरीफ की फसल के लिए एक गहरी जुताई 15 से 20 सेमी० मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. अगर खेत गर्मी में खाली हो जाय तो जुताई गर्मियों ने करना लाभदायक होता है. इस जुताई से खरपतवार, कीट-पतंगे व बीमारियों की रोकथाम में काफी सहायता मिलाती है. जब भी खेत की जुताई करे पाटा जरुर लगाये, इससे खेत में नमी बनी रहेगी.

यह भी पढ़े : प्रो ट्रे नर्सरी तकनीक से किसान भाई उगाये सब्जियां, कम समय में होगा बेहतर मुनाफा

मक्का की बुवाई के समय 

मक्के की बुवाई पूरे साल खरीफ, रबी तथा जायद किसी भी मुसम में की जा सकती है. लेकिन खरीफ की बुवाई मानसून के मौसम पर निर्भर करती है. जिन राज्यों में सिंचाई के साधन उपलब्ध होते है वहां पर खरीफ में मक्का की बुवाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक कर सकते है. पहाड़ी वाले क्षेत्रों एवं कम तापमान वाले क्षेत्रों में मि के अंतिम सप्ताह से जून के शुरुवात तक मक्का की बुवाई कर लेनी चाहिए.

मक्का की बीज की मात्रा 

मक्का की बुवाई के लिए बीज की मात्रा बुवाई के उद्देश्य पर निर्भर करती है. सामान्य बुवाई के लिए 8 से 10 किग्रा० प्रति हेक्टेयर, बेबीकॉर्न की बुवाई के लिए 10 से 12 किग्रा० प्रति हेक्टेयर, स्वीटकॉर्न की बुवाई के लिए 2.5 से 3 किग्रा० प्रति हेक्टेयर, चारे के लिए 25 से 30 किग्रा० प्रति हेक्टेयर एवं पॉपकॉर्न के लिए 4 से 5 किग्रा० प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता है.

मक्का की बीज की बुवाई विधि 

मक्का की बुवाई के लिए फसल को मेड़ो पर बोना उचित होता है. बुवाई पूर्वी-पश्चिमी दिशा की मेड़ों के दक्षिणी भाग करनी चाहिए. बीज को उचित दूरी पर बोना चाहिए. इसके लिए आजकल विभिन्न बीज माप प्रणालियों के प्लान्टर मौजूद है. किन्तु एन्कलाइंड प्लेट, कापिंग या रोलर टाइप के सीट मीटरिंग प्रणाली सर्वोत्तम पायी गयी है. बुवाई के लिए प्लान्टर का उपयोग करना चाहिए इससे एक बार में ही बीज व उर्वरकों को उचित स्थान पर डालने में मदद मिलती है.

मक्का की उन्नत किस्में

मक्का का अच्छा उत्पादन के लिए शुध्द एवं प्रमाणित बीजों की ही बुवाई करनी चाहिए.

  • पॉपकॉर्न – पॉपकॉर्न के लिये बी० एल० पॉपकॉर्न, अम्बर, पर्ल एवं जवाहर आदि प्रमुख किस्में है.
  • बेबीकॉर्न बेबीकॉर्न के लिए एच० एम० 4 एवं बी० एल० बेबीकॉर्न आदि प्रमुख उन्नत किस्में है.
  • मीठी मक्का – मीठी मक्का के लिए माधुरी, विनओरेंज, प्रिया एवं एच० एस० सी० – 1 (संकर) आदि प्रमुख उन्नत किस्में है.
  • चारे के लिए – चारे के लिए अफ्रिकन टाल, जे – 1006, प्रताप चरी – 6 आदि प्रमुख किस्में है.

मक्का में खाद एवं उर्वरक 

मक्का की अच्छी उपज के लिए मृदा परिक्षण बहुत ही आवश्यक है. भारतीय भूमि नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश के अतरिक्त कुछ सूक्ष्म तत्वों जैसे – लोहा व जस्ता आदि कई क्षेत्रों में कमी देखी गई है. खेत में बीज बुवाई से पहले जुताई के समय गोबर की सड़ी हुई 10 से 12 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए. इसके अलावा 150 से 180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 70 किस्लोग्राम फास्फोरस, 60 से 70 किलोग्राम पोटाश तथा 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का उपयोग करना चाहिए. फास्फोरस, पोटाश और जिंक की पूरी मात्रा तथा 10 प्रतिशत नाइट्रोजन को बुवाई के समय देना चाहिए. बची हुई नाइट्रोजन को चार हिस्सों में देनी चाहिए.

  1. 20 प्रतिशत नाइट्रोजन फसल में चार पत्तियां आने के समय देनी चाहिए.
  2. 30 प्रतिशत नाइट्रोजन फसल में 8 पत्तियां आने के समय देनी चाहिए.
  3. 30 प्रतिशत नाइट्रोजन फसल पुष्पन अवस्था में हो या फूल आने के समय देनी चाहिए.
  4. 10 प्रतिशत नाइट्रोजन का प्रयोग दानों के भराव के समय फसल में देनी चाहिए.

मक्का की सिंचाई 

मक्का की फसल न तो सूखा सहन कर सकती है और न ही अधिक पानी सहन कर सकती है. इसलिए खेत से जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए. मानसून के मौसम में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है. बारिश न होने की दशा में आवशयकतानुसार सिंचाई करे. सिंचाई की द्रष्टि से देखा जाया तो नई पौध, घुटने तक की उंचाई, फूल आने तथा दाने के भराव की अवस्थाएं सबसे संवेदनशील होती है. इसलिए इन अवस्थाओं पर सिंचाई की सुविधा होनी चाहिए.

यह भी पढ़े : किसानों को डीजल पर 60 रूपये प्रति लीटर का अनुदान, खेती का खर्चा होगा कम, बचेगें हजारों रुपये

खरपतवार नियंत्रण

खरीफ के मौसम में खरपतवारों का फसल पर अधिक प्रभाव पड़ता है. खरपतवार फसल के पोषण, जल एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते है. जिसके कारण  उपज में 40 से 50 प्रतिशत तक का नुकसान हो जाता है. इसलिए खरीफ के मौसम में मक्का की फसल को अधिक निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है. इसलिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहे.

मक्का की कटाई एवं उपज 

जब फसल के भुट्टों को ढकने वाली पत्तियों पीली पड़ने लेगे तभी मक्का की कटाई करनी चाहिए. भुट्टों से दाने निकलने से पहले अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए. जब दानों में 13 से 14 प्रतिशत नमी रह जाए तब दाने निकाल लेने चाहिए. दाना निकलने के लिए ऊर्जा चालित मेज शेलर या हाथ से करनी चाहिए.

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version