बसंत कालीन गन्ने की बुवाई के समय ध्यान रखने वाली 6 प्रमुख बातें
देश के अधिकतर किसान गन्ने की बुवाई करते हैं. गन्ने की बुवाई वर्ष में तीन बार की जाती है. लेकिन अधिकतर जगह दो ही बार की जाती है. पहली शरद कालीन बुवाई, दूसरी बसंत कालीन गन्ने की बुवाई. बसंत कालीन गन्ने की बुवाई किसान भाई फरवरी-अप्रैल महीने में करते है.
उत्तर प्रदेश राज्य के किसान गन्ने की बसंत कालीन बुवाई अच्छी प्रकार से कर सकें. इसके लिए प्रदेश के अपर मुख्य सचिव चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग श्री संजय भूसरेड्डी ने बसंत कालीन गन्ना बुवाई के संबंध में एक विस्तृत एडवाइजरी किसानों के लिए जारी की है. इसमें किसानों को बसंत कालीन गन्ने की बुवाई करते समय छह प्रमुख बातों का ध्यान रखने को बताया गया है तो आइए जानते हैं कौन सी है वह 6 प्रमुख बातें-
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पंचामृत योजना के अंतर्गत 5 घटक
प्रदेश के मुख्य सचिव श्री संजय भूसरेड्डी द्वारा बताया गया कि विभाग की पंचामृत योजना के अंतर्गत 5 घटक है जिसमें ट्रेंच विधि द्वारा गन्ने की बुवाई करने के साथ-साथ सहफसली, पेड़ी प्रबंधन, ड्रिप विधि द्वारा सिंचाई तथा ट्रेंच मल्चिंग है. किसान इन घटको को अपनाकर अपनी पैदावार में वृद्धि कर सकते हैं. बसंत काल में ट्रेंच विधि द्वारा गन्ने की बुवाई करके जहां 60 से 70% तक जमाव प्राप्त कर सकते हैं. वही गन्ने के साथ मूंग और उड़द की सहफसली खेती द्वारा अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं. फसलों को जड़ों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया द्वारा वायुमंडलीय नत्रजन का अवशोषण कर मृदा उर्वरता में भी वृद्धि की जाती है. जहां हम सिंचाई जल में बचत करने की जड़ों के आसपास आवश्यक सिंचाई जल की पूर्ति कर उपज में वृद्धि कर सकते हैं. वही पेड़ी प्रबंधन तकनीक के अंतर्गत रैटून मैनेजमेंट डिवाइस द्वारा 20 से 25% कम लागत में उतनी ही प्राप्त कर सकते हैं. ट्रेस मल्चिंग द्वारा मृदा नमी को संरक्षित कर मृदा में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि के साथ-साथ खरपतवार नियंत्रण भी कर सकते हैं.
सिंगल बेड बेड विधि से बुवाई हेतु महिला स्वयं सहायता समूह तैयार कराए नर्सरी
इसके अलावा उन्होंने किसानों से कहा कि तापक्रम को दृष्टिगत रखते हुए 15 फरवरी से बसंत कालीन गन्ने की बुवाई प्रारंभ कर देनी चाहिए. अधिकतम 30 अप्रैल तक गन्ना बुवाई का कार्य अवश्य पूरा कर लेना चाहिए. गन्ना विकास विभाग द्वारा गठित महिला स्वयं सहायता समूह को सुझाव दिया कि सिंगल बेड विधि द्वारा नवीन गन्ना किसानों को अधिक से अधिक और तैयार करना अभी से प्रारंभ कर देना चाहिए. जिससे 25 से 30 दिन बाद उन पौधों का वितरण कृषकों को किया जा सके.
बसंत कालीन गन्ना बुवाई हेतु नवीन गन्ना किस्में
श्री भूसरेड्डी द्वारा बताया गया कि किसान बीज गन्ना एवं गन्ना किस्म स्वीकृत उप समिति द्वारा उत्तर प्रदेश हेतु स्वीकृत गन्ना किसानों की बुवाई करें. स्वीकृत किस्मों में उपज व चीनी परत में वृद्धि के साथ-साथ कीट व रोगों से लड़ने की क्षमता होती है. वसंत कालीन गन्ना की बुवाई हेतु नवीन किस्मों में को०शा० 13235, को० 15023, को०लख० 14201, को०शा० 17231, को०शा० 14233, को०शा०16235, को०शा० 15233, को०लख० 14204, 15207 (मध्य एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश हेतु) को०लख० 15466 (पूर्वी उत्तर प्रदेश), यू०पी० 14234 (उसर भूमि हेतु) आदि की बुवाई कर किसान अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं. गन्ना किस्म को०शा० 13235 व को० 15023 में अधिक नत्रजन का प्रयोग हानिकारक है. इसका उपयोग संतोष मात्रा में ही करना चाहिए तथा दोनों टॉप ड्रेसिंग मानसून से पहले ही पूर्ण कर लेनी चाहिए. मानसून के बाद नत्रजन का उपयोग नहीं करना चाहिए. उन्होंने किसानों से यह अपेक्षा की है अन्य प्रदेशों की गन्ना किस्में जो उत्तर प्रदेश में स्वीकृत नहीं है अथवा प्रदेश के शोध केंद्रों के अधीन ट्रायल चल रही हैं. उन किस्मों की बुवाई कदापि ना करें.
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग
बसंत कालीन गन्ना बुवाई में संतुलित रूप में उर्वरकों का प्रयोग पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए. अन्यथा की दशा में 180 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश तथा 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए. नत्रजन की मात्रा को तीन हिस्सों में बांट कर तीन अलग-अलग समय पर प्रयोग करना चाहिए. इन तत्वों की पूर्ति के लिए बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर 130 किलोग्राम यूरिया, 500 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 100 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश तथा 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट नालियों में प्रयोग करना चाहिए . यूरिया की शेष 260 किग्रा की मात्रा को बुवाई के बाद एवं मानसून से पहले दो बार में टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए, इसके लिए नैनो यूरिया का उपयोग करने से उर्वरकों की दक्षता बढ़ जाती है, उन्होंने बताया कि गन्ने में फास्फोरस सिंगल सुपर फास्फेट से करने पर 11% सल्फर की अतिरिक्त होती है, जिससे उपज एवं शर्करा प्रतिशत में वृद्धि होती है. मृदा में कार्बनिक पदार्थों की पूर्ति के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 100 कुंटल गोबर की सड़ी हुई खाद अथवा 50 कुंटल प्रेसमड अथवा 25 कुंटल वर्मी कंपोस्ट के साथ 10 किग्रा एजोटोबैक्टर व 10 किग्रा० पी०एस०बी० का प्रयोग खेत की तैयारी के समय अवश्य करना चाहिए. कार्बनिक पदार्थों के प्रयोग से मृदा की जल धारण क्षमता व मृदा में सूक्ष्म जीवो की संख्या में वृद्धि होती है. जिससे मृदा की उर्वरता एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है. कीट नियंत्रण हेतु फिप्रोनिल 0.3 जी 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से नालियों में पेड़ों के ऊपर डाल कर देना चाहिए.
बीज शोधन जरूरी
उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि लाल सड़न गन्ने की एक बीज जनित बीमारी है. अर्थात इस बीमारी को प्राथमिक संक्रमण बीज गन्ने से होता है. इसलिए किसान गन्ना बुवाई से पूर्व बीज का उपचार अवश्य करें. बीज उपचार हेतु कार्बेन्डाजिम अथवा थायोफिनेट मेथिल 0.1% की दर से 112 लीटर पानी में 112 ग्राम रसायन में मिलाकर गन्ने के एक अथवा दो आंखों के टुकड़े को 10 मिनट तक शोधित करने के बाद बुवाई करनी चाहिए. इस बीमारी से पूर्ण बचाव हेतु रोग रहित शुद्ध स्वस्थ विभागीय नर्सरी, पंजीकृत गन्ना बीज उत्पादकों की नर्सरी या अपने स्वस्थ खेत से ही बीज को लेकर बुवाई करनी चाहिए. लाल सड़न रोग से संक्रमित खेत में कम से कम 1 वर्ष तक गन्ना न बोये तथा गन्ने के स्थान पर अन्य फसल की बुवाई कर फसल चक्र अपनाना चाहिए. क्योंकि लाल सड़न रोग का रोगजनक बिना पोषक पौधे अर्थात गन्ने के बिना भी 0.6 माह तक सक्रिय रहता है. संक्रमित गन्ने की पेड़ी न ले. भूमिगत कीटों यथा दीमक, व्हाइट ग्रब तथा रूट बोरर के बचाव हेतु जैविक कीटनाशक कवक मेटाराइजियम एनीसोपली व बावेरिया बैसियाना की जीरो 05 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर को 2 कुंटल गोबर की खाद में मिलाकर अवश्य प्रयोग करना चाहिए.
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खेत की तैयारी इस तरह करें
खेत की तैयारी के समय गहरी जुताई कर अंतिम जुताई के समय यदि 10 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को दो से तीन कुंटल गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में प्रयोग करना चाहिए. इसके प्रयोग से लाल सडन रोग के रोगजनक कोलेटोट्राइकम फाल्केटम का मृदा में संक्रमण नहीं होता है. जिससे फसल पर मृदा द्वारा लाल सड़न रोग के फैलने की संभावना क्षीण हो जाती है. उन्होंने यह भी बताया कि ट्राइकोडरमा एक जैव उत्पाद है जो गन्ने की फसल को लाल सड़न रोग के साथ-साथ उकठा (विल्ट) एवं पाइन एप्पल जैसी मृदा जनित रोगों से भी गन्ना फसल को बचाता है. तथा इन रोगों के फफूंद को खाकर नष्ट कर देता है.