केला उत्पादन के प्रमुख बिंदु
देश में अधिकतर किसान केले की खेती करते हैं. लेकिन किसान भाई को अधिक जानकारी ना होने के कारण फसल का उत्पादन कम मिलता है. इसीलिए आज के इस लेख में केले के उत्पादन संबंधित कुछ प्रमुख बिंदुओं के बारे में बात करने जा रहा हूं. जिन्हें अपनाकर किसान भाई के लिए से अधिक उत्पादन ले सकते हैं. तो आइए जानते हैं केले उत्पादन के उन प्रमुख बिंदुओं के बारे में जिन से किसानों को अधिक उत्पादन मिल सकेगा-
यह भी पढ़े : कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने खोजी की सुकर की नई प्रजाति ‘बांडा’, पशुपालकों की आमदनी में होगा इजाफा
- केले की खेती के लिए जीवाश्म बाबुल दोमट अथवा मटियार दोमट मिट्टी तथा जल निकास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए.
- भूमि का पीएच मान 6 से 7 के बीच तक उचित माना जाता है.
- गर्मतर- सम जलवायु केला की व्यवसायिक खेती के लिए उत्तम मानी जाती है.
- सर्दी के मौसम में पाला नहीं पड़ता, गर्मी के मौसम में तापमान 36 से 38 सेंटीग्रेड के आसपास एवं लू के हमले और तेज गर्म हवा चलती हो, उपयुक्त होता है.
- केले की ताजे फल खाने वाली बरराई ड्वार्फ, हरी छाल तथा सब्जी हेतु अल्पान, माल योग, पुवन रोबस्टा एवं कोठिया प्रजातियों का चयन करना चाहिए.
- केले के रोपण हेतु 3 माह की तलवार नुमा पुन्तियाँ जिनमें घन कंद पूर्ण विकसित गठीला हो. उसी का रोपण हेतु प्रयोग किया जाना चाहिए.
- केले की पुन्तियों का रोपण 15 से 30 जून तक कर देना चाहिए.
- गर्मी की तेज हवाओं के बचाव हेतु आयुर्वेद अखबार तैयार करने हेतु सूबबूत दो से तीन लाइनों में इसी समय लगा देना चाहिए.
- केले के पौधों की रोपाई 2 x 2 मीटर की दूरी पर 45 x 45 x 45 आकार के गड्ढे मई माह में खुदाई कर 15 दिन बाद जीवाश्म मुक्त सभी गोबर की खाद 20 से 25 के किलोग्राम 5 मिली क्लोरोपायरीफास दवा 1 किग्रा बालू के हाथ मिलाते हुए मिट्टी के गड्ढे में भर दे बाद में सिंचाई भी करें.
- केले की अधिकतम उपज एवं अच्छी गुणवत्ता के फल प्राप्त करने के लिए संतुलित मात्रा में प्रति पौधा 300 ग्राम नत्रजन, 100 ग्राम फास्फोरस और तीन सौ ग्राम पोटाश देनी चाहिए. फास्फोरस की आधी मात्रा रोपाई के समय तथा शेष आधी मात्रा रोपाई के दो माह बाद देनी चाहिए.
- नत्रजन की पूरी मात्रा 5 भाग में बैठकर अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, फरवरी तथा अप्रैल माह में देनी चाहिए.
- केले में उर्वरकों को पौधों से 30 सेमी दूर व 15 सेमी की गहराई तक गोलाई में पौधों के चारों ओर देनी चाहिए.
- खेत में नमी की कमी होने पर आवश्यकता अनुसार 7 से 10 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करनी जरूरी होती है.
- देर में सिंचाई होने पर पौधों की बढ़वार रुक जाएगी और ऊपर भी अच्छी नहीं आएगी.
- केले में समय-समय पर निराई गुड़ाई कर खरपतवार निकालना काफी जरूरी होता है.
- कहावत है कि केला रहे अकेला अतः रोपण के 2 माह बाद पौधे के बगल में नई पुन्तियाँ निकलती है उन्हें समय-समय पर काटते रहना चाहिए.
- यदि दूसरी फसल लेनी है तो अप्रैल में निकाली हुई एक स्वस्थ पुत्ती को छोड़ देना चाहिए.
- केले के फल का पूरा टिकाऊ हो जाने के बाद लटकते नर फूल को निकाल देते हैं.
- केले के धार का वजन बढ़ने तथा हवा के कारण कभी-कभी पौधे गिर जाते हैं इसके बचाव हेतु धार को लकड़ी या बांस का सहारा देना चाहिए तथा पौधों के तने के चारों तरफ मिट्टी चढ़ा देना चाहिए.
- केले को पकाने के लिए धार को पौधों से काटकर किसी बंद कमरे में रख कर पुन्तियों से ढक देना चाहिए.
- केले की धार पर 500 पीपीएम एथ्रिक का छिड़काव करके धार के ढेर को बोरे से ढक देने से अकेला अच्छी तरह से पकता है.
यह भी पढ़े : आलू एवं टमाटर की प्रमुख विषाणु जनित रोग कौन-कौन से हैं ? आइए जाने इनकी रोकथाम कैसे करें?
- जून में रोपड़ करने पर नवंबर दिसंबर तक फल तैयार हो जाते हैं.
- केले की खेती से प्रति हेक्टेयर 300 से 400 कुंतल तक उपज प्राप्त हो जाती है.
- कितवा रोगों का समय-समय पर नियंत्रण करते रहने से केले की खेती से अच्छी आय प्राप्त हो जाती है.
- केले की खेती से 1 हेक्टेयर से शुद्ध लाभ ₹100000 तक हो सकता है.