गेहूं की खेती में मृदरोमिल आसिता रोग
रबी फसलों की खेती में गेहूं एक प्रमुख फसल है. लेकिन इसमें कई तरह के रोग इसकी उपज को नुकसान पहुंचाते है. जिससे किसान भाइयों को लाभ के स्थान पर हानि उठानी पड़ती है. इसलिए गाँव किसान गेहूं के रोगों की इस कड़ी में आज आपकों गेहूं की खेती में मृदरोमिल आसिता रोग लगने पर किसान अपनी गेहूं की फसल को कैसे बचाए. इसकी पूरी जानकारी दी जायेगी.
आज के के इस लेख में गेहूं के मृदरोमिल आसिता रोग के प्रमुख लक्षणों, प्रकोप के क्षेत्र, प्रकोप का समय एवं रोग की शुरुवात, अनुकूल परिस्थियाँ एवं नियंत्रण आदि के बारे में पूरी जानकारी दी जायेगी. जिससे किसान भाई अपनी गेहूं की इस फसल को मृदरोमिल आसिता रोग से बचा पाए. और गेहूं की खेती से अधिक लाभ कमा सके. तो आइये जाने गेहूं के मृदरोमिल आसिता रोग की विस्तृत जानकारी –
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मृदरोमिल आसिता रोग के मुख्य लक्षण
गेहूं की खेती में मृदरोमिल आसिता रोग लगने पर रोगी पौधे सीधे खड़े, हरे-पीले, बौने और अधिक दौजियों वाले हो जाते है. इसके अलावा पत्तियां मोटी, भंगुर और तने ऊपर घुमावदार बंद गुच्छा बनाती है. गाठों के बीच की लम्बाई कम हो जाती है. बाद में दौजियाँ भूरी होकर मर जाती है. पत्तियों के उतकों में कवक के निषिक्तांड का पाया जाना इस रोग की पहचान है. बाली पत्तियां जैसी आकृति में बदल जाती है.
रोग के प्रकोप क्षेत्र
मृदरोमिल आसिता रोग मुख्य रूप से देश के हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में जहाँ नमी अधिक रहती है. गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचता है. जिससे इन राज्यों के किसान को गेहूं की खेती में नुकसान उठाना पड़ता है.
प्रकोप का समय एवं रोग की शुरुवात
गेहूं के इस रोग की शुरुवात नवम्बर माह से शुरू होकर फरवरी-मार्च माह तक रहती है. रोग-जनक के निषिक्तांड पौध अवशेषों के साथ वर्षों जीवित रहती है. खेत के निचले हिस्सों में इनकी संख्या अधिक हो जाती है. कुछ घासों जैसे कैलेरिस ट्यूवरोसा से भी रोग आ जाता है.
रोग की अनुकूल परिस्थितियां
यह रोग देश के उन हिस्सों में अधिक होता है. जहाँ नमी अधिक पायी जाती है. खासकर खेत के निचले हिस्से में यह रोग अधिक तेजी से पनपता है.
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रोग का नियंत्रण कैसे करे ?
इस रोग के नियंत्रण के लिए किसान भाई निम्न उपाय अपनाकर रोग से अपनी फसलों को बचा सकते है-
- बुवाई से पहले कवकनाशी से बीजों का बीजोपचार करना चाहिए.
- किसान भाई अपने खेत में उचित फसल चक्र अपनाए. जिसमें धान्य फसलें शामिल न हो.
- खेत में जलभराव की समस्या नही होनी चाहिए.इसलिए उचित जलनिकास की व्यवस्था करे.
- फसल-चक्र में दलहनी फसलों का ही उपयोग करना चाहिए.
- खेत में परपोषी पौधों का समुचित नियंत्रण करे.
- गेहूं की खेती में खेत की अच्छी प्रकार तैयारी करे.