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Cumin farming – जीरा की खेती कैसे करे ? (हिंदी में)

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जीरा की खेती (Cumin farming) कैसे करे ?

जीरा की खेती (Cumin farming) कैसे करे ?

 नमस्कार किसान भाईयों, जीरा की खेती (Cumin farming) भारत के कई राज्यों में प्रमुख रूप से की जाती है. इसकी खेती मसाले के लिए की जाती है. जीरे का मसलों में मुख्य स्थान है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा फायदा ले सकते है. गाँव किसान (Gaon kisan) आज अपने इस लेख के द्वारा जीरा की खेती (Cumin farming) कैसे करे ? इसकी पूरी जानकारी देगा. वह अपने देश की भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है जीरा की खेती (Cumin farming) की पूरी जानकारी-

जीरा के फायदे 

जीरा के दानों में पाए जाने वाले वाष्पशील तेल के कारण इसमें जायकेदार सुगंध आती है. इसी सुगंध के कारण जीरे का मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है. इसके वाष्पशील तेल का मुख्य अवयव क्यूमिनोल या क्यूमिन एल्डीहाइड पाया जाता है. इसके दानों में नमी 6.2 प्रतिशत, प्रोटीन 17.7 प्रतिशत, वसा 23.85 प्रतिशत, रेशा 9.1 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 35.5 प्रतिशत, एवं खनिज पदार्थ 7.7 प्रतिशत पाया जाता है. इसके अलावा खनिज पदार्थों में मुख्य रूप से कैल्शियम 0.90 प्रतिशत, फ़ोस्फोरस 0.45 प्रतिशत, लोहा 0.05 प्रतिशत, सोडियम 0.16 प्रतिशत व पोटाश 2.10 प्रतिशत पाए जाते है. जीरे के दानों में विटामिन मुख्य तौर से बी-1, बी-2, ए व सी भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते है.

मसाले के रूप में जीरे का प्रयोग हर प्रकार की सब्जी, अचार, सूप, सॉस आदि में किया जाता है. इसके अलावा ब्रेड, केक, व बिस्कुट के स्वाद को बढाने में किया जाता है. जीरे का उपयोग जलजीरा नामक स्वादिष्ट व शीतल पेय बनाया जाता है. जिससे का उपयोग आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में किया जाता है. इसका उपयोग पाचन, जलन व मूत्र सम्बन्धी रोगों को दूर करने में किया जाता है.

उत्पति एवं क्षेत्र

जीरा का वानस्पतिक नाम क्यूनिम सिमिनम ली० ( Cuminum cymininum L.) है. यह अम्बेलीफेरा कुल का पौधा है. जीरे की उत्पत्ति स्थान भूमध्य सागरीय तथा इससे जुड़े हुए क्षेत्र को माना जाता है. इसकी खेती मुख्य रूप से भारत, मिस्र, इजराइल, लीबिया, ईरान, पाकिस्तान, मोरक्को, जापान व तुर्की आदि देशों में की जाती है. भारत में इसकी खेती अधिक नमी वाले क्षेत्रों को छोड़कर सभी सभी प्रदेशों में की जाती है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात राज्य में की जाती है.

जलवायु एवं भूमि 

जीरे की खेती के लिए मध्यम जलवायु उपयुक्त होती है. जो अधिक ठंडी और गर्म न हो. शुष्क एवं साधारण ठंडा मौसम जीरे की फसल के सर्वोत्तम होता है. वायुमंडलीय नमी की अधिकता वाले क्षेत्र इसकी खेती के लिए अनुपयुक्त होते है. यह नमी बीज बनने की अवस्था और पुष्पन के समय अधिक हानिकारक होती है. उचित जलवायु व सिंचाई प्रबन्धन जीरे की फसल के लिए आवश्यक होती है.

जीरे की खेती के लिए दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है. लेकिन मध्यम भारी एवं लवणीय मिट्टी में, जिसकी लवणीयता अधिक न हो, भी जीरे की खेती सफलता पूर्वक की जाती है. खेत से जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए.

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उन्नत किस्में (Cumin farming)

जीरे की उन्नत किस्में जिनकी उपज काफी अच्छी है निम्नवत है-

  1. एम० सी० 43 – यह किस्म गुजरात क्षेत्र में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है. यह किस्म लगभग 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसके पौधे अधिक पैदावार, झाड़ीनुमा, अधिक शाखा वाला व इसका दाना भूरा सुस्पष्ट धारीदार होता है. इस किस्म को जी० ए० यू० जगुदान, गुजरात द्वारा विकसित किया गया है. इसकी उपज 580 टन प्रति हेक्टेयर लगभग हो जाती है.
  2. आर० जेड०-19 – यह किस्म राजस्थान के सभी क्षत्रों के लिए उपयुक्त है. इसका तना सीधा होता है. इसके अलावा गुलाबी रंग के फूल व रोमिल दाने होते है. यह लगभग 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म की उपज 8 से 10 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है. इस किस्म को जोबनेर आर० ए० यू० राजस्थान  द्वारा विकसित किया जाता है.
  3. आर० एस०-1 – यह किस्म भी राजस्थान के लिए उपयुक्त होती है. इसके बीज बड़े और रोयेदार होती है. यह किस्म 80 से 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी उपज 6 से 8 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. यह किस्म उकठा रोग के प्रति रोधी होती है.
  4. जी० सी०-1 – यह किस्म भी गुजरात के लिए उपयोगी है. इस किस्म के पौधे सीधे, गुलाबी फूलों वाले व भूरे मोटे बीज वाले होते है. यह किस्म 105 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 7 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.
  5. आर० जेड०-209 – यह किस्म राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के श्री करण नरेंद कृषि महाविद्यालय, जोबनेर द्वारा किया गया है. यह किस्म राजस्थान के लिए उपयुक्त है. तथा यह लगभग 140 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इसकी औसत उपज 6 से 7 कुंटल प्रति हेक्टेयर हो जाती है.

खेत की तैयारी (Cumin farming)

जीरे की खेती के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए. इसके बाद दो या तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा जरुर लगा दे. जिससे मिट्टी भुरभुरी और समतल हो जाए. फसल की सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था कर लेनी चाहिए.

बीज दर एवं बीजोपचार 

जीरे का 12 से 15 किग्रा० बीज एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है. बिज की बुवाई बीजोपचार करने के बाद ही करनी चाहिए. इससे भूमि जनित व बीज जनित रोग फसल को नुकसान नही पहुंचा पाते है. इसके लिए बीज को थाइरम या सेरेसान या बाविस्टीन द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए.

बुवाई का समय (Cumin farming)

जीरे की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के मध्य तक है. फसल की बुवाई देर से करने पर फसल का विकास अच्छा नही होता है. जिससे बीमारियाँ और कीट का प्रकोप बढ़ जाता है. जिससे उपज कम हो जाती है.

बुवाई की विधियाँ (Cumin farming)

जीरे की बुवाई दो तरह से की जा सकती है जो निम्नवत है-

  1. छिटकवाँ विधि- अधिकतर किसान भाई जीरे की बुवाई छिटकवां विधि द्वारा करते है. बुवाई का यह तरीका वैज्ञानिक नही है. इससे कृषि क्रियाएँ प्रभावित होती है.
  2. कतार विधि – इस विधि में जीरे की बुवाई कतारों में होती है. जिसमें कतार से कतार की दूरी 25 सेमी० एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी० रखनी चाहिए. इसमें बीज बोने में गहराई 2.0 सेमी० से अधिक नही होनी चाहिए. इस विधि की बुवाई में मेहनत जरुर लगती है. लेकिन कृषि क्रियाएं आसानी से की जा सकती है. और फसल का जमाव भी अच्छी प्रकार होता है एवं उपज भी अच्छी प्राप्त होती है.

खाद एवं उर्वरक (Cumin farming)

जीरे की अच्छी उपज के लिए खाद एवं उर्वरक की उचित मात्रा की आवश्यकता है. उर्वरक की मात्रा मृदा परिक्षण के अनुसार ही देना चाहिए. सबसे पहले पहली जुताई के समय 10 से 15 टन गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. इसके अलावा 30 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करना चाहिए. नत्रजन की आधी मात्रा,फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय मिला देना चाहिए. जबकि शेष आधी नत्रजन की मात्रा को दो भागों में बांटकर बुवाई के 30 व 60 दिन बाद सदी फसल में देना चाहिए.

सिंचाई (Cumin farming)  

पहली हल्की सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद की जाती है. इस सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए, क्यारियों में पानी का बहाव अधिक तेज न हो. अधिक तेज बहाव से बीज क्यारियों के किनारे पर इक्कठ्ठे हो जाते है. जिससे उनका वितरण विगड़ जाता है. दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के 8 से 10 दिन करनी चाहिए. फिर इसके बाद आवश्यकता अनुसार सिंचाई कर सकते है. 2 से 3 सिंचाईयों बाद जीरे की फसल को अधिक सिंचाई आवश्यकता नही पड़ती है. जीरे की फसल में जब 50 प्रतिशत दाने पूरी तौर पर सिंचाई बंद कर देना चाहिए. इस अवस्था में सिंचाई करने से बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है.

खरपतवार नियंत्रण एवं निराई-गुड़ाई

जीरे की अच्छी उपज के लिए खरपतवार नियंत्रण एवं भूमि उचित वायु संचार के लिए दो से तीन निराई-गुड़ाई की जरुरत होती है. जीरे की फसल में पहली निराई-गुड़ाई 30 दिन बाद करनी चाहिए. और दूसरी गुड़ाई 60 दिन बाद करनी चाहिए. इससे ज्यादातर खरपतवार नष्ट हो जाते है. जिससे फसल की अच्छी वृध्दि होती है.

खेत में अधिक खरपतवार होने पर खरपतवार नाशी का प्रयोग करना चाहिए. इसके लिए बुवाई के बाद और जमाव से पहले पेंडीमेथालिन खरपतवारनाशी का एक क्रियाशील तत्व का 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर भूमि पर छिड़काव करना चाहिए.

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कीट एवं रोग नियंत्रण 

प्रमुख कीट एवं रोकथाम 

माहू (एफिड) – जीरे की फसल पर यह कीट पुष्पन के समय ज्यादा हानि पहुंचता है. अधिक प्रकोप होने पर पौधे पीले होकर सूख जाते है. और फसल की उपज को भारी हानि पहुंचती है.

रोकथाम – इस कीट की रोकथाम के लिए 0.03 प्रतिशत डाईमेथोएट एवं फास्फामिडान का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए. अधिक प्रकोप होने पर 10 से 15 दिन पर दोबारा छिड़काव करे.

प्रमुख बीमारियाँ एवं रोकथाम  

उखठा रोग (विल्ट) – जीरे की फसल में यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरियम नामक फफूंद से पैदा होता है. इस रोग का आक्रमण पौधे की किसी अवस्था में हो सकता है परन्तु फसल की प्रारम्भिक अवस्था में इसका अधिक प्रकोप होता है. इस रोग से प्रभावित पौधे हरे के हरे मुरझा जाते है. चूंकि रोग पौधे की जड़ में लगता है. इसलिए इसका उपचार करना कठिन है.

रोकथाम – इस रोग से बचाव के लिए गर्मी के दिनों में गहरी जुताई करनी चाहिए. इसके अलावा बुवाई के लिए रोग रहित बीजों का चुनाव करना चाहिए. साथ ही बाविस्टीन या कैप्टान द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज को उपचारित करना चाहिए.

झुलसा रोग (ब्लाइट) – जीरे की फसल का यह रोग काफी घातक होता है. यह एक या दो दिन में पूरी फसल को नष्ट कर देता है. यह रोग पुष्पन के समय अगर आकाश में बादल छाए हो और वायुमंडल में नमी बढ़ जाय तो इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है. इस रोग में पौधे की पत्तियों व तने पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते है. तथा पौधे के सिर झुक जाते है. यह रोग बहुत तेजी से फैलता है. इसके लक्षण दिखने के बाद फसल को बचाना मुश्किल होता है.

रोकथाम – इस रोग से बचाव के लिए आकाश में बादल दिखाई देते ही फसल पर डाइथेन एम-45  या डाइथेन जेड-78 अदि में से किसी एक ताम्रयुक्त कवकनाशी की 0.8 से 1.0 किलोग्राम का घोल प्रति हेक्टेयर फसल पर छिड़काव करना चाहिए.

छाछाया रोग (पाउडरी मिल्ड्यू) – इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पौधों की पत्तियों व टहनियों पर सफ़ेद चूर्ण सा लग जाता है. रोग की रोकथाम समय पर न की जाय तो पूरा पौधा हो इस चूर्ण से ग्रसित हो जाता है. रोग से प्रभावित पौधे में बीज नही बनते है बनते भी है तो बहुत कम और आकार में बहुत छोटे और जीरे की फसल को प्रभावित कर देता है.

रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए एक किलोग्राम घुलनशील गंधक अथवा 500 मिलीलीटर कैराथेन अथवा 700 ग्राम कैलेक्सिन का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करे. अधिक प्रकोप होने पर 10 से 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करे.

फसल कटाई और औसाई 

जीरे की फसल 90 से 110 दिन में पाक कर तैयार हो जाती है. इसकी फसल को पौधे उखाड़ कर कटाई की जाती है. कटी हुई फसल को धूप अच्छी तरह सुखा लिया जाता है. पौधे सुखाने के बाद इसको डंडे से हल्का पीटकर दाने अलग कर लिए जाते है. दानों को अच्छी तरह सुखाकर बोरियों में भरकर नमी रहित कमरे में रख सकते है.

उपज 

जीरे की फसल में बीमारियाँ का प्रकोप अधिक होता है. इसलिए अनुशंसित कृषि क्रियाएं अपनाकर एवं बीमारियों की रोकथाम करके 8 से 10 कुंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज जीरे से प्राप्त की जा सकती है.

निष्कर्ष 

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon kisan) के जीरा की खेती (Cumin farming) सम्बन्धित इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगीं. गाँव किसान (Gaon kisan) द्वारा जीरा के फायदे से लेकर जीरा की उपज तक की सभी जानकारी दी गयी है. फिर भी जीरा की खेती (Cumin farming) से सम्बन्धित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कम्नेट कर पूछ सकते है. इसके अलावा गाँव किसान (Gaon kisan) यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताएं. महान कृपा होगी.

आप सभी लोगो का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द. 

 

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