गेहूं और जौ की बुवाई से पूर्व रोगों एवं कीटों से बचाव हेतु फसल सुरक्षा उपाय
देश में इस समय रबी फसलों की बुवाई का समय है.अक्टूबर महीना धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है.नवंबर की भी शुरुआत होने वाली है. ऐसे में गेहूं और जौ फसलों की बुवाई किसान भाई कर रहे हैं या फिर बुवाई की तैयारी में लगे हुए हैं.
ऐसे में किसान भाई अपनी फसलों से अच्छी पैदावार ले सके. इसके लिए स्वस्थ बीज का होना काफी जरूरी है. इसीलिए गेहूं और जौ की बुवाई से पूर्व बीज जनित रोगों व कीटों से बचाव के लिए बीज उपचार करना अति आवश्यक है.
क्योंकि रोग कारक फफूंदी जीवाणु सूत्रकृमि बीज की सतह पर तथा सतह के नीचे भूमि में अथवा भूमि के अंदर प्रसुम्ता अवस्था में मौजूद रहते हैं. जिससे उगने वाली फसल रोग व कीटों से मुक्त हो. बीज जनित रोगों में प्रमुख रूप से आवृत व अनावृत कंडुवा करनाल बंट गेहूं या ममनी रोग हैं.
इसीलिए रोग व कीटों से बचाव हेतु और दशा में शोधित, उपचारित एवं प्रमाणित बीज बुवाई में प्रयोग करना चाहिए. प्रमुख रोगों कीटों के लक्षण एवं उपचार निम्नलिखित हैं-
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करनाल बंट रोग
करनाल बंट रोग के रोगी दाने आंशिक रूप से काले चूर्ण में बदल जाते हैं. यह रोग दूषित बीज तथा भूमि द्वारा फैलता है.
रोग रोकथाम के उपाय
बीज को थीरम 2.5 ग्राम प्रति किग्रा की दर से शोधित करके ही बोना चाहिए. तथा खड़ी फसल में बीज पैदा करने के लिए बाली आने पर 2 किग्रा मैनकोज़ेब अथवा 500ml प्रॉपिकॉनाजोल प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से बीच में करनाल बंट की रोकथाम की जा सकती है.
आवृत्त कंडुआ रोग
इस रोग में बालियों में दाने के स्थान पर काले फफूंदी के बीजाणु बन जाते हैं. जो एक मजबूत झिल्ली से ढके रहते हैं.
रोग रोकथाम के उपाय
- इस रोग के रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी प्रजातियों को अपनाया जाए.
- फसल बुवाई से पूर्व बीज को 2.5 किग्रा बीज की दर से थीरम नामक रसायन से शोधित करके बुआई करना चाहिए.
अनावृत्त कंडुआ रोग
इस रोग में बीजाणु प्रारंभ में एक झिल्ली से ढके रहते हैं. जो बाद में पटकर स्पोरों को फैला देती है. तथा बाली का डंठल ही बचा रहता है.
रोग रोकथाम के उपाय
- इस रोग की रोकथाम के लिए भी रोग प्रतिरोधी प्रजातियों को अपनाया जाए.
- बीजों को कार्बेंडाजिम या कार्बोक्सिन नामक कवकनाशी 2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोलना चाहिए.
गेहूं का ईयर कांकल रोग (सेहूं रोग)
यह रोग ऐग्वीना टिटिसाई नामक सूत्रकृमि द्वारा होता है. इस रोग से बीमार पौधों की पत्तियां मुड़ कर सिकुड़ जाती हैं. प्रकोपित पौधे बौने रह जाते हैं. तथा उसमें स्वस्थ पौधों की अपेक्षा अधिक शाखाएं निकलती हैं. रोग ग्रस्त बालियां छोटी एवं फैली हुई होती हैं. और इसमें अनाज की जगह भूरे और काले रंग की गांठ बन जाती हैं. जिसमें सूत्रकृमि रहते हैं.
रोग रोकथाम के उपाय
इस रोग के निदान के लिए स्वच्छ और ईयर कांकल गांठ मुक्त बीज जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त बीज वितरण केंद्र पर उपलब्ध होते हैं का प्रयोग करना चाहिए. ईयर कांकल गाँठ मिश्रित बीज को कुछ समय के लिए 2% नमक के घोल में डूबने के बाद बीज को साफ पानी से दो-तीन बार धो कर सुखा लेने के पश्चात ही बोने के काम में लाया जाना चाहिए.
दीमक का प्रकोप
दीमक सफेद मटमैला रंग का बहुभक्षी कीट है. जो कई प्रकार का होता है श्रमिक, सैनिक, पंखदार, प्रौढ़ नर राजा तथा पंखहीन रानी आदि. दीमक जमीन की सतह के अंदर या टीले बनाकर रहती है.
कीट रोकथाम के उपाय
- बुवाई से पूर्व दीमक/गुजिया की रोकथाम हेतु लिन्डेन 1.3% चूर्ण का 25 से 30 किग्रा०, क्लोरपाइफ़ॉस 1.5% चूर्ण 25 से 30 किग्रा० अथवा सेवीडाल दानेदार 25 से 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व मिट्टी में मिला देना चाहिए.
- बीज को क्लोरपाइफ़ॉस 20 ई०सी० के तीन से चार मि०ली० प्रति किग्रा० की दर से शोधित करके ही बुवाई करनी चाहिए.
- खड़ी फसल में दीमक लगने पर लिन्डेन 20 ई०सी० 3.75 लीटर अथवा क्लोरपाइफ़ॉस 20 ई०सी० लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए.
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गुजिया कीट का प्रकोप
गुजिया कीट भूरे मटमैला रंग का 5 से 6 मिमी लंबा एवं 2 से 3 मि०मी० चौड़ा होता है. जो जमीन में ढेलो या दरारों में छिपा रहता है. यह नए उग रहे पौधों को जमीन की सतह से थोड़ा नीचे से काटकर हानि पहुंचाते हैं.
कीट रोकथाम के उपाय
खड़ी फसल में गुजिया लगने पर लिन्डेन 20 ई०सी० 3.75 लीटर अथवा क्लोरपाइफ़ॉस 20 ई०सी० 2 से 3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए.