कपास की खेती (Cotton farming) कैसे करे ?
नमस्कार किसान भाईयों, कपास की खेती (Cotton farming) देश के विभिन्न राज्यों में की जाती है. यह एक नगदी फसल है. व्यावसायिक जगत में में यह श्वेत स्वर्ण के नाम से जानी जाती है. किसान भाई इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है. इसलिए गाँव किसान (gaon kisan) आज अपने इस लेख के जरिये कपास की खेती (Cotton farming) की पूरी जानकारी देगा वह भी अपनी भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है कपास की खेती (Cotton farming) की पूरी जानकारी-
Contents
- 1 कपास के फायदे
- 2 कपास की उत्पत्ति एवं क्षेत्र
- 3 कपास के लिए जलवायु एवं भूमि
- 4 कपास की उन्नत किस्में
- 5 कपास के लिए खेत तैयारी (Cotton farming)
- 6 कपास के बीजों को रेशाविहीनीकरण
- 7 कपास के बीज का शोधन (Cotton farming)
- 8 कपास बुवाई का उपयुक्त समय
- 9 कपास की बुवाई व दूरी (Cotton farming)
- 10 कपास हेतु उर्वरक (Cotton farming)
- 11 कपास की छंटाई (Cotton farming)
- 12 कपास में सिंचाई
- 13 कपास में खरपतवार नियंत्रण
- 14 कपास की तुड़ाई
- 15 कपास की पैदावार
- 16 निष्कर्ष
कपास के फायदे
कपास को सफ़ेद सोना भी कहा जाता है. कपास से निकली हुई रुई से कपडे, गद्दे, रजाई, कम्बल आदि बनाने में किया जाता है. इसकी रुई से बनाये गए कपडे त्वचा के लिए काफी फायदेमंद होते है. इसके अलावा कपास के औषधीय द्रष्टि से भी काफी उपयोग है.
कपास की प्रकृति थोड़ी मधुर, थोड़ी गर्म तासीर की होती है. यह पित्त बढाने वाली, वातकफ दूर करने वाली, रुचिकारक, प्यास, जलन, थकान, बेहोशी, कान में दर्द, काटने-छिलने आदि शारीरिक समस्याओं में औएशधि की तरह काम करती है. कपसा का अर्क या काढ़ा सर और कान दर्द को कम करने के साथ-साथ शंखक रोग नाशक होता है.
कपास की उत्पत्ति एवं क्षेत्र
कपास का वानस्पतिक नाम गॉसिपिअम हर्बेसिअम (Gossypium herbaceum L०) है. यह मालवेसी (Malvaceae) कुल का पौधा है. वैज्ञानिको की माने तो सबसे पहले 6000 B.C. में सिन्धु घाटी सभ्यता में कपास के खेती की जाती थी. कपास की उत्पत्ति भारत और पाकिस्तान में मानी जाती है. विश्व में इसकी खेती मिस्र, अमेरिका आदि दशों में भी की जाती है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, उत्तर-प्रदेश, आसाम एवं तमिलनाडु में की जाती है.
कपास के लिए जलवायु एवं भूमि
कपास की अच्छे जमाव के लिए 16 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान, फसल बढवार के लिए के समय 21 से 27 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान एवं फलन हेतु दिन में 27 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान तथा रात्रि में ठंडक का होना जरुरी होता है. इसके गूलरों को फटने हेतु चमकीली धूप व पाला रहित ऋतु की आवश्यकता होती है.
कपास की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है. लेकिन बलुई, कंकड़युक्त जमीन कपास की खेती के लिए अनुपयुक्त होती है. इस बात का धयान रखे जमीन से पानी निकास का उअचित प्रबन्धन होना चाहिए.
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कपास की उन्नत किस्में
प्रजाति | अवधि | औसत उपज (कुंटल/हेक्टेयर ) | रेशे की लम्बाई (मिमी०) | ओटाई (प्रतिशत) | कताई अंक | |
देशी | लोहित | 175-180 | 15 | 17.5 | 38.5 | 6-8 |
आर० जी० 8 | 175-180 | 15 | 16.5 | 39.0 | 6-8 | |
सी० ए० डी० 4 | 145-150 | 16 | 17.5 | 39.4 | 6-7 | |
अमेरिकन | एच० एस० 6 | 165-170 | 12 | 24.8 | 33.4 | 30 |
विकास | 150-165 | 16 | 25.6 | 34 | 30 | |
एच० 777 | 175-180 | 16 | 22.5 | 33.8 | 30 | |
ऍफ़० 846 | 175-180 | 14 | 25.4 | 35.0 | 30 | |
आर० एस० 810 | 165-170 | 15 | 25.2 | 34.2 | 30 |
कपास के लिए खेत तैयारी (Cotton farming)
कपास की बुवाई से दो बार पलेवा की आवश्यकता होती है. पहला पलेवा लगकर मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई (20 से 25 सेमी०) करनी चाहिए. दूसरा पलेवा कर कल्टीवेटर या देशी हल से तीन-चार बार जुताइयाँ करके खेत तैयार करना चाहिए. अच्छी उपज के लिए भूमि का भुरभुरा होना आवश्यक होता है.
कपास के बीजों को रेशाविहीनीकरण
मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में बीज लेकर ऊपर से व्यापारिक श्रेणी का सान्द्र गंधक डालकर (10 किग्रा० अमेरिकन बीज हेतु 1 किग्रा गंधक अम्ल तथा 6 किग्रा० देशी बीज हेतु 600 ग्राम गंधक अम्ल) बीजों को प्लास्टिक की छड़ या डंडे से तेजी से चलाना चाहिए, जिससे सभी बीज अम्ल के संपर्क में आ जाए. रेशे जलाने की प्रक्रिया में 2 से 3 मिनट लगता है. जैसे ही रेशे जल जाए 10 लीटर साप पानी डालकर डंडे से बीजों को हिलाए. इसके बाद महीन छिद्र युक्त प्लास्टिक की जाली से बीज युक्त अम्ल डालकर पूरी तरह से बहा डे. व तीन चार बार साफ पानी से धुलाई कर दे. इसके बाद साफ़ धुले हुये बीजों को 50 ग्राम सोडियम बाईकार्बोनेट व 10 लीटर पानी में डुबाना चाहिए. इसके बाद पुनः बीजों को साफ़ पानी से धुल दे. इसके बाद बीजों को छाया में फैलाकर सुखा ले.
कपास के बीज का शोधन (Cotton farming)
बीज सुखाने के बाद कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक द्वारा 2.5 ग्राम प्रति किग्रा० की दर से बीज शोधन करना चाहिए. फफूंदनाशक दवाई के उपचार से राइजोक्टोनिया जड़ गलन प्युजेरियम उकठा और अन्य फफूंद जनित से होने वाले रोगों से बचाया जा सकता है.
कपास बुवाई का उपयुक्त समय
देशी प्रजियों के लिए अप्रैल का प्रथम व दूसरा पखवारा व अमेरिकन प्रजाति के लिए मध्य अप्रैल से मई प्रथम सप्ताह तक का समय बुवाई के लिए उपयुक्त रहता है.
कपास की बुवाई व दूरी (Cotton farming)
कपास की अच्छी उपज के लिए कूडों में बुवाई करना उअचित होता है. ट्रेक्टर द्वारा बुवाई करने पर कतार से कतार की दूरी 67.5 सेमी० व पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी० रखनी चाहिए. देशी हल ये दूरी 70 सेमी० व 30 सेमी० रखनी चाहिए.
कपास हेतु उर्वरक (Cotton farming)
कपास की अच्छी उपज के लिए खेत की तैयारी करते समय 20 से 25 ट्रोली प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी हुई खाद खेत में डालनी चाहिए. इसके अलावा नत्रजन 60 किग्रा०, फास्फोरस 30 किग्रा०, यूरिया 120 किग्रा० ( 46 प्रतिशत नत्रजन), सुपर फास्फेट 188 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए. इसमें नत्रजन की आधी, फास्फोरस की पूरी मात्रा खेत की आखिरी जुताई के समय खेत में डालनी चाहिए. नत्रजन की बाकी बची हुई मात्रा शेष दो भागों में फूल आने के समय और अधिकतम फूल आ जाने पर करनी चाहिए. नत्रजन का प्रयोग पौधे के बगल में करना चाहिए. न की पौधे की पत्तियों पर.
कपास की छंटाई (Cotton farming)
कपास की अत्यधिक व असामायिक वर्षा के कारण सामान्यता पौधे की ऊंचाई 1.5 मीटर से अधिक हो जाती है. जिससे उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. अतएव 1.5 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली मुख्य ताने की ऊपर वाली सभी शाखाओं की छाती कैंची से कर देनी चाहिए. इससे कीटनाशक रसायनों के छिड़काव में आसानी हो जाती है.
कपास में सिंचाई
कपास की अच्छी उपज के लिए सिंचाई की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद करनी चाहिए. यदि बर्ष न हो तो 2 से 3 सप्ताह के बाद सिंचाई की आवश्यकता होती है. इस बात ध्यान जरुर रखे फूल व गूलर बनते समय सिंचाई न करे.
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कपास में खरपतवार नियंत्रण
कपास की अच्छी उपज के लिए हेतु पूरी तरह खरपतवार नियंत्रण होना अति आवश्यक है. इसके लिए चार-चार बार फसल बढवार के समय गुड़ाई ट्रेक्टर चालित कल्टीवेटर या बैल चालित त्रिफाली कल्टीवेटर द्वारा करनी चाहिए. पहली गुड़ाई सूखी हो, जिसे पहली से पूर्व ही कर लेनी चाहिए. अधिक प्रकोप होने पर 3.30 लीटर पेंडीमेथिलीन 30 प्रतिशत ई० सी० प्रति हेक्टेयर जमाव से पूर्व बुवाई के 2 से 3 दिन के अन्दर प्रयोग कर लेनी चाहिए.
कपास की तुड़ाई
कपास की तुड़ाई सितम्बर व अक्टूबर महीने में शुरू होजाती है. जब कपास के टिंडे लगभग 40 से 60 प्रतिशत खिल जाये. तो पहली तुड़ाई कर लेनी चाहिए. इसके बाद जब सभी टिंडे खिल जाय, तो दूसरी तुड़ाई कर लेनी चाहिए.
कपास की पैदावार
कपाज की उपज कपास की किस्मों पर निर्भर करती है. देशी किस्मों से लगभग 20 से 25 कुंटल कपास प्रति हेक्टेयर और अमेरिकन संकर किस्मों से 30 कुंटल तक की पैदावार प्रति हेक्टेयर में हो जाती है.
निष्कर्ष
किसान भाईयों उम्मीद है गाँव किसान (gaon kisan) के कपास की खेती (Cotton farming) से सम्बंधित इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (gaon kisan) द्वारा कपास के फायदे से लेकर कपास की उपज तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी कपास की खेती (Cotton farming) से सम्बंधित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलावा गाँव किसान (gaon kisan) का यह लेख आपको कैसा लगा कमेन्ट कर जरुर बताये. महान कृपा होगी.
आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.
1 हेक्टेयर मे बुआई के लिए कपास की बीज की मात्रा ?
चार किलो प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए. देशी और नरमा किस्मों की बुवाई के लिए 12 से 16 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए.