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Clove farming in Hindi – लौंग की खेती की पूरी जानकारी (हिंदी में)

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लौंग की खेती (Clove farming in Hindi) की पूरी जानकारी

लौंग की खेती (Clove farming in Hindi) की पूरी जानकारी

 नमस्कार किसान भाईयों, लौंग की खेती (Clove farming in Hindi) देश में एक मसाले के रूप में की जाती है. लौंग को साबुत और पीस कर दोनों ही प्रकार से मसाले के रूप में उपयोग किया जाता है. बाजार में इसकी मांग भी बहुत रहती है. इसलिए लौंग उगाकर किसान भाई अच्छा लाभ ले सकते है. इस लिए गाँव किसान (Gaon kisan) आज अपने इस लेख के जरिये लौंग की खेती (Clove farming in Hindi) की पूरी जानकारी देगा वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में. जिससे किसान भाई इसकी अच्छी उपज प्राप्त कर सके. तो आइये जानते है लौंग की खेती (Clove farming in Hindi) की पूरी जानकारी –

लौंग के फायदे (Benefits of cloves)

लौंग का उपयोग इसमें पायी जाने वाली स्वादवर्ध्दक सुगंध के कारण, मसाले के रूप में होता है. कई आयुर्वेदिक औषधियों में भी लौंग का उपयोग होता है. पेट के आफरे तथा जी मिचलाना की अवस्था में लौंग का सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है. लौंग के इस्तेमाल से रक्त विकार, सांस की बीमारी, हिचकी, टीबी रोग, सर दर्द, माइग्रेन, आँख की बीमारी, हैजा, खांसी, बुखार, पेट गैस, कैंसर, मधुमेह आदि रोगों में फायदेमंद है.

लौंग के स्वादवर्धक व भाष्जीय गुणों के आधार इसमें पाया जाने वाला वाष्पशील तेल है. लौंग के डोडो में इस तेल की मात्रा 15 से 17 प्रतिशत तक होती है. वाष्पशील तेल के अलावा इसमें नमी 8 प्रतिशत, ईथर निष्कर्ष (वसा) 15.5 प्रतिशत, प्रोटीन 6.3 प्रतिशत, रेशा 11.1 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 57.7 प्रतिशत तथा खनिज पदार्थ 5.0 प्रतिशत पाया जाता है. लौंग में विटामिन बी-1, बी-2, नियासिन, विटामिन-सी तथा ए भी पाया जाता है.

लौंग की उत्पत्ति एवं क्षेत्र (Clove origin and area)

लौंग का वानस्पतिक नाम सीजियम एरोमेटिकम (Syzygium aromaticum) है. यह मिर्टेसी (Myrtaceae) कुल का पौधा है. लौंग को अंग्रेजी क्लोव (Clove) कहते है. लौंग का उत्पत्ति स्थान इंडोनेशिया का एक भाग मोलुक्का द्वीप बताया जाता है. विश्व में यह चीन, अमेरिका, ब्रिटेन, श्रीलंका और भारत में की जा सकती है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से दक्षिण भारत के केरल और तमिलनाडु राज्य में मुख्य रूप से की जाती है.

लौंग के जलवायु एवं मिट्टी (Clove climate and soil)

लौंग की खेती के लिए उष्ण कटिबंधीय उष्ण व नम जलवायु की आवश्यकता होती है. इसके पौधे के समुचित विकास के लिओये 24 से 23 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा 1500 से 3000 मिमी० वार्षिक वर्षा उपयुक्त रहता है. लौंग की फलियों को सूखने के लिए शुष्क मौसम की आवश्यकता है.

लौंग की अच्छी उपज के लिए काली दोमट मिट्टी, जिसमें ह्यूमस की मात्रा पर्याप्त हो, श्रेष्ठ होती है. इसके अलावा इसे रेतीली मिट्टी में भी इसके पौधे लगाए जा सकते है. साथ भूमि से उचित जल निकास की भी व्यवस्था होनी चाहिए. खेत में पानी भरे रहने के कारण पौधे कमजोर हो जाते है. व मर भी जाते है.

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लौंग की उन्नत किस्में (Advanced varieties of cloves)

भारत में अभी तक लौंग की कोई भी उन्नत किस्म तैयार नही की गयी है. इसलिए किसान भाई स्थानीय किस्म के पौधे लगा सकते है. असके अलावा अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी उद्यान विभाग या कृषि विभाग से संपर्क कर सकते है.

लौंग की पौधे की प्रवर्धन विधियाँ (Clove plant propagation methods)

लौंग के बाग़ लगाने के लिए सर्वप्रथम पर्याप्त पौध की आवश्यकता पड़ती है. नए पौधे कायिक प्रवर्धन की कुछ विधियां अपनाकर या बीजों से तैयार किये जाते है.कायिक प्रवर्धन विधिक्यों में गुट्टी बाँधना तथा लौंग की नई कोपलों के समजातीय पौधों जैसे अमरुद पर प्रत्यारोपण सफल पाया गया है. परन्तु यह कठिन विधियाँ है.तथा इनसे बागानों के लिए पर्याप्त मात्रा में पौधे तैयार नही किये जा सकते है. अतः बागानों के लिए पौधे तैयार करने की व्यावहारिक विधि बीजों से पौधे उगाना चाहिए.

लौंग की पौध तैयारी (Clove Plant Preparation)

पौधशाला तैयार करने के लिए लौंग के स्वस्थ व अधिक पैदावार देने वाले वृक्षों में परिपक्व फल जिनकों मातृ लौंग कहा जाता है. इकट्ठा कर लेना चाहिए.यह फल पूर्ण रूप से पाक जाने पर भूमि पर गिर जाते है. गिरे हुए फलों को इकठ्ठा करके उनमें से स्वस्थ फलों को अलग कर लिया जाता है. फिर इनको 2 से 3 दिनों तक पानी में भिगोते है. जिससे इनका छिलका व गूदा नरम हो जाता है. फिर इसके बाद फलों को हलके-हलके मसलते है. जिससे गूदा व बीज अलग-अलग हो जाते है. फिर बीजों को पानी में धोकर साफ कर लेते है. पौधशाला में स्वस्थ व सुडौल बीज जिनमें अंकुर स्पष्ट दिखाई देते हो बुवाई के लिए रखे.

पौधशाला के लिए उपयुक्त व सुविधाजनक भूमि का चुनाव कर भूमि को अच्छी प्रकार तैयार कर लेना चाहिए. इसके उपरांत साफ़ किये बीजों को पौधशाला में बो देना चाहिए. बीज को 20 सेमी० की दूरी पर बुवाई करनी चाहिए. पौधशाला में समय-समय पर पानी देते रहना चाहिए. बीज का अंकुरण 30 से 35 दिन शुरू हो जाता है. पौधे 12 से 18 माह महीने बाद रोपाई योग्य हो जाते है.

लौंग की पौध की रोपाई (Planting of cloves)

जब पौधशाला में पौधे तैयार हो जाये तब चुने हुए खेत को अच्छी प्रकार जुताई कर तैयार कर ले. इसके बाद 6 से 7 मीटर की दूरी पर 0.75 x 0.75 x 0.75 मीटर आकार के गड्ढे खोद लेते है. इन गड्ढों में सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद तथा ह्यूमसयुक्त मिट्टी भर दी जाती है. फिर प्रत्येक गड्ढे में 2 से 3 पौधे रोप दिए जाते है. अगर किसी गड्ढे में एक से अधिक पौधे जम जाय तो उन्हें चलने दिया जाता है. पौधे रोपाई का उचित समय जून से वर्षा ऋतु के अंत तक अर्थात अक्टूबर-नवम्बर तक उचित है.

लौंग की निराई-गुड़ाई (Weeding of cloves)

भूमि में पर्याप्त वायु संचार व खरपतवार को हटाने के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है. लौंग वृक्ष की जड़े उथली होती है. इसलिए निराई-गुड़ाई के समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक होता है कि वृक्ष की जड़ों को कोई नुकसान न पहुंचे. लौंग के बागानों में मुख्यतया कॉटन ग्रास जिसको स्पीयर ग्रास भी कहते है. एक हानिकारक खरपतवार है. इसको खरपतवारनाशी दवा यथा डेलापोन के छिड़काव से भी नष्ट किया जा सकता है.

लौंग के लिए खाद एवं उर्वरक (Fertilizers and fertilizers for cloves)

लौंग के पौधो के अच्छे विकास के लिए 100 किलोग्राम नदी पेटे की चिकनी मिट्टी प्रति गड्ढा की दर से देना उअप्योगी होता है. इसके अलावा 20 से 50 किलोग्राम प्रति गड्ढे की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट तथा 2.5 किलोग्राम प्रति गड्ढे की दर से हड्डी या मछली चूरा डाल सकते है. रासायनिक उर्वरकों से कोई ज्यादा लाभ नही मिलाता है.

लौंग की तुड़ाई एवं संसाधन (Clove weeding and processing)

लौंग का वृक्ष 5 वर्ष की आयु से फल देना शुरू कर देता है. परन्तु अच्छी पैदावार के लिए 15 से 20 वर्ष के वृक्ष से ही आरम्भ होता है. जो 50 वर्ष तक मिलती है. भारत के मैदानी क्षेत्रों में लौंग के वृक्ष पर सितम्बर-अक्टूबर में फूल आना शुरू होते है. पर्वतीय क्षेत्रों में फूल आने का समय दिसम्बर-जनवरी है. इसी तरह कलियों की तुड़ाई मैदानी क्षेत्रों में जनवरी-फरवरी तथा पर्वतीय क्षेत्रों में मार्च-अप्रैल से शुरू होती है. अच्छी किस्म की लौंग प्राप्त करने के लिए इन कलियों को एक विशेष अवस्था में अर्थात इनके खिलने से पहले जब ये गुलाबी रंग ग्रहण कर ले तभी तोड़ना चाहिए. पूरे खिले पुष्प व्यावारिक द्रष्टि से बेकार होते है. इसी तरह कच्चे पुष्पों से प्राप्त लौंग भी घटिया किस्म की होतीहै. तुड़ाई के समय यह भी जरुरी है कि एक वृक्ष के सारे पुष्प तोड़े जाय. अगर सभी पुष्पों को वृक्ष पर पूर्णतः खिलने व फलने दिया जाय तो आने वर्ष की उपज पर विपरीत प्रभाव पडेगा. किसी भी पुष्प को वृक्ष पर फलने नही दिया जाना चाहिए. इसलिए लौंग की तुड़ाई के समय विशेष दक्षता व सावधानी की जरुरत होती है.

तुड़ाई के बाद लौंग की कोशिकाओं को डंठलों से अलग कर लिया जाता है. साथ ही कच्चे तथा पूर्ण खिले हुए फूलो को भी अलग कर दिया जाता है.उचित अवस्था वाली कलिओं को इकटठा करके चटाइयों पर धूप में सुखाते है. सूखने पर इनका रंग कत्थई हो जाता है. कत्थई रंग बनना ही अच्छी लौंग की पहचान है. आकर्षक रंग व लौंग पर चमक बनाये रखने केलिए लौंग कलिकाओं को वृक्ष से तोड़ने के बाद शीघ्र सुखा लेना चाहिए. अगर तुड़ाई के बाद सफाई करने या सुखाने में देरी कर दे तो लौंग पर सीलन के करण सफ़ेद झांई बन जाती है. तथा लौंग सिकुड़ जाती है.

लौंग की उपज (Clove yield)

लौंग वृक्ष रोपाई के 5 वर्ष बाद उत्पादन देना शुरू कर देता है. लौंग वृक्ष की उपज वर्ष-प्रतिवर्ष बदलती रहती है. आमतौर पर एक वर्ष में अच्छी उपज देने वाला वृक्ष अगले वर्ष बहुत कम उपज देता है. साधारणतः एक वृक्ष 4 वर्ष में एक बार अच्छी उपज देता है. देश में एक पूर्ण विकसित वृक्ष की औसत उपज 2.5 से 3.0 किलोग्राम प्रति वर्ष आंकी गयी है.

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लौंग में कीट एवं रोग प्रबन्धन (Pest and Disease Management in Cloves)

प्रमुख कीट एवं रोकथाम 

लौंग के बाग़ में किसी भी कीट का विशेष आक्रमण नही देखा गया है. लेकिन नर्सरी में पौधे पर स्केल कीट का आक्रमण अवश्य देखा गया है. इसके अलावा दीमक इसके लिए काफी हानि पहुचता है. इन कीटों की निकरानी कर पौधो में दिखाई पड़ते ही तुरत ही कीटनाशी का प्रयोग करना चाहिए.

प्रमुख रोग एवं रोकथाम 

डाई-बेक – यह बीमारी पौधे में किसी अवस्था में हो सकती है. यह बीमारी कवक के द्वारा फैलता है. यह पौधे को काफी नुकसान पहुंचता है.

रोकथाम – रोगग्रस्त टहनियों को काट देना चाहिए. कटी हुई टहनियों में फफूंद नाशक दवा का लेप लगाना चाहिए.

निष्कर्ष (The conclusion)

किसान भाईयों उम्मीद है, गाँव किसान (Gaon kisan) के लौंग की खेती (Clove farming in Hindi) से सम्बंधित इस लेख से सभी जानकारियां मिल पायी होगी. गाँव किसान (Gaon kisan) द्वारा लौंग के फायदे से लेकर लौंग के कीट एवं रोग प्रबंधन तक की सभी जानकारियां दी गयी है. फिर भी लौंग की खेती (Clove farming in Hindi) से सम्बन्धित आपका कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में कमेन्ट कर पूछ सकते है. इसके अलाव गाँव किसान (Gaon kisan) का यह लेख कैसा लगा कम्नेट कर जरुर बताएं. महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द. 

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